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कुंभ की उत्पत्ति बहुत पुरानी है और उस काल के समय की है जब समुद्र मंथन के समय अमरता को प्रदान करने वाला कलस निकला था, इस कलस के लिए राक्षसों और देवताओं के बीच भयंकर युद्ध हुआ था।  
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कुंभ की उत्पत्ति बहुत पुरानी है और उस काल के समय की है जब समुद्र मंथन के समय अमरता को प्रदान करने वाला कलस निकला था, इस कलस के लिए राक्षसों और देवताओं के बीच भयंकर युद्ध हुआ था। कुंभ मेला का वैदिक एवं पौराणिक कथाओं में उल्लेख प्राप्त होता आ रहा है। पूर्ण कुंभ, अर्ध कुंभ और महाकुंभ के रूप में मेला का आयोजन होता आ रहा है। कुंभ का शाब्दिक अर्थ घड़ा, सुराही या बर्तन है। यहां कुम्भ से तात्पर्य अमृत कलश से है। वैदिक ग्रन्थों में भी कुंभ शब्द का प्रयोग देखा जाता है। मेला शब्द का अर्थ है समूह में लोगों का एकजुट होकर मिलना या उत्सव मनाना।
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कुंभ मेला का वैदिक एवं पौराणिक कथाओं में उल्लेख प्राप्त होता आ रहा है। पूर्ण कुंभ, अर्ध कुंभ और महाकुंभ के रूप में मेला का आयोजन होता आ रहा है। कुंभ का शाब्दिक अर्थ घड़ा, सुराही या बर्तन है। यहां कुम्भ से तात्पर्य अमृत कलश से है। वैदिक ग्रन्थों में भी कुंभ शब्द का प्रयोग देखा जाता है। मेला शब्द का अर्थ है समूह में लोगों का एकजुट होकर मिलना या उत्सव मनाना।
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==परिचय==
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पुराणवर्णित देवासुर-संग्राम एवं समुद्र-मन्थनद्वारा अमृत-प्राप्तिके आख्यानसे यह स्पष्ट होता है कि भगवानने स्वयं मोहिनीरूप धारण कर दैवी प्रकृतिवाले देवताओंको अमृत-पान कराया था। अमृत-कुंभ की उत्पत्ति विषयक आख्यानके परिप्रेक्ष्यमें भारतवर्षमें प्रति द्वादश वर्षमें हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिकमें कुंभ-पर्वका आयोजन हुआ करता है। जैसा कि - <ref name=":1">पं० वेणीराम शर्मा गौड, [https://archive.org/details/pvSx_kumbha-parva-mahatmya-by-veniram-sharma-gaud-vanik-press-banaras/mode/1up कुंभपर्व-माहात्म्य], सन १९४७, वणिकप्रेस, वाराणसी (पृ० १४)।</ref><blockquote>
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गंगाद्वारे प्रयागे च धारा-गोदावरीतटे। कुंभाख्येयस्तु योगोऽयं प्रोच्यते शंकरादिभिः॥</blockquote>
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अर्थात गंगाद्वार, प्रयाग, धारानगरी और गोदावरी में शंकरादि देवगण ने कुंभयोग कहा है। कुंभ पर्व बारह-बारह वर्ष के अंतर से चार मुख्य तीर्थों में लगनेवाला स्नान-दान आदि का ग्रहयोग है। कुंभ के इस अवसर पर तीर्थयात्रियों को मुख्य दो लाभ होते हैं - तीर्थस्नान एवं संतसमागम।<ref>डॉ० राजबली पाण्डेय, [https://archive.org/details/dli.language.0884/page/190/mode/1up हिंदू धर्मकोश], सन 2014, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ (पृ० 190)।</ref><blockquote>श्राद्धं कुम्भे विमुञ्चन्ति ज्ञेयं पापनिषूदनम्। श्राद्धं तत्राक्षयं प्रोक्तं जप्यहोमतपांसि च॥ (वायु पु० ७७/४७)<ref name=":0">रामप्रताप त्रिपाठी, [https://archive.org/details/VayuPuranam/page/n716/mode/1up वायुपुराण - हिन्दी अनुवाद सहित], सन 1987, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग (पृ० 692)।</ref></blockquote>भाषार्थ - कुम्भतीर्थ में जाकर लोग श्राद्धादि कर्मों का अनुष्ठान करते हैं, उस पवित्र तीर्थ को पाप विनाशक समझना चाहिये, वहाँ पर किये गये श्राद्ध को अक्षय फलदायी कहा गया है, इसी प्रकार जप, हवन एवं तपस्या के बारे में भी कहा गया है।<ref name=":0" /> सामान्यतया दो प्रकार के कुंभ मेलों का सैद्धान्तिक वर्गीकरण किया गया है - <ref>डॉ० मोहन चन्द तिवारी, [https://www.exoticindiaart.com/book/details/amrit-parva-kumbh-history-and-tradition-vedic-to-modern-period-uaf620/ अमृत पर्व कुम्भ : इतिहास और परम्परा], ईस्टर्न बुक लिंकर्स, दिल्ली (पृ० १६)।</ref>
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==परिचय ==
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# '''चतुर्धा कुंभ -''' हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन।
कुंभ पर्व बारह-बारह वर्ष के अंतर से चार मुख्य तीर्थों में लगनेवाला स्नान-दान आदि का ग्रहयोग है। इसके चार स्थल प्रयाग, हरिद्वार, नासिक-पंचवटी और अवन्तिका (उज्जैन) हैं। कुंभ के इस अवसर पर तीर्थयात्रियों को मुख्य दो लाभ होते हैं - गंगास्नान तथा संतसमागम।<ref>डॉ० राजबली पाण्डेय, [https://archive.org/details/dli.language.0884/page/190/mode/1up हिंदू धर्मकोश], सन 2014, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ (पृ० 190)।</ref><blockquote>श्राद्धं कुम्भे विमुञ्चन्ति ज्ञेयं पापनिषूदनम्। श्राद्धं तत्राक्षयं प्रोक्तं जप्यहोमतपांसि च॥ (वायु पु० ७७/४७)<ref name=":0">रामप्रताप त्रिपाठी, [https://archive.org/details/VayuPuranam/page/n716/mode/1up वायुपुराण - हिन्दी अनुवाद सहित], सन 1987, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग (पृ० 692)।</ref></blockquote>भाषार्थ - कुम्भतीर्थ में जाकर लोग श्राद्धादि कर्मों का अनुष्ठान करते हैं, उस पवित्र तीर्थ को पाप विनाशक समझना चाहिये, वहाँ पर किये गये श्राद्ध को अक्षय फलदायी कहा गया है, इसी प्रकार जप, हवन एवं तपस्या के बारे में भी कहा गया है।<ref name=":0" />
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# '''द्वादशकुंभ -''' रामेश्वरम, कुंभकोणम, सिमरियाधाम, वृन्दावन, राजिम और ब्रह्मसरोवर।
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==परिभाषा==
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कुंभ का शब्दार्थ प्रकार है - <blockquote>कुं पृथ्वीं भावयन्ति संकेतयन्ति भविष्यत्कल्याणादिकाय महत्याकाशे स्थिताः बृहस्पत्यादयो ग्रहाः संयुज्य हरिद्वार-प्रयागादितत्तत्पुण्यस्थानविशेषानुद्दिश्य यस्मिन् सः कुंभः।<ref name=":1" /></blockquote>
    
==कुंभ के ज्योतिषीय योग==
 
==कुंभ के ज्योतिषीय योग==
ज्योतिषीय-ग्रन्थोक्त सिद्धान्तों के आलोक में सनातन संस्कृति के अनुसार देवताओं का एक दिन, हमारे सौर-मान से एक वर्ष के तुल्य माना जाता है। सूर्य सिद्धान्त - <blockquote>मासैर्द्वादशभिर्वर्षं दिव्यं तदह उच्यते।</blockquote>बारह मासों के द्वारा देवताओं का एक दिन कहा जाता है। इस प्रकार एक दिव्य दिवस एक सांसारिक वर्ष के बराबर होता है। इसीलिये बारह दिन तक चले युद्ध को बारह वर्ष माना जाता है। इस प्रकार प्रत्येक बारहवें वर्ष कुंभ की आवृत्ति होती है। जैसा कि कहा है - <ref>महाकुंभ-पर्व, सन 2012, गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० 23)।</ref>
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ज्योतिषीय-ग्रन्थोक्त सिद्धान्तों के आलोक में सनातन संस्कृति के अनुसार देवताओं का एक दिन, हमारे सौर-मान से एक वर्ष के तुल्य माना जाता है। सूर्य सिद्धान्त - <blockquote>मासैर्द्वादशभिर्वर्षं दिव्यं तदह उच्यते।</blockquote>बारह मासों के द्वारा देवताओं का एक दिन कहा जाता है। इस प्रकार एक दिव्य दिवस एक सांसारिक वर्ष के बराबर होता है। इसीलिये बारह दिन तक चले युद्ध को बारह वर्ष माना जाता है। इस प्रकार प्रत्येक बारहवें वर्ष कुंभ की आवृत्ति होती है। जैसा कि कहा है - <ref name=":2">महाकुंभ-पर्व, सन 2012, गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० 23)।</ref><blockquote>देवानां द्वादशभिर्मासैर्मर्त्यैः द्वादशवत्सरैः। जायन्ते कुंभपर्वाणि तथा द्वादश संख्यया॥</blockquote>अर्थात मनुष्यों के बारह वर्षों के द्वारा, देवताओं के बारह दिन सम्पन्न होते हैं, इसलिये 12-12 वर्षों के अन्तराल पर कुंभ पर्व होते हैं। एवं जिस दिन अमृत-कुंभ गिरने वाली राशि पर सूर्य, चन्द्रमा और बृहस्पति का संयोग हो, उस समय पृथ्वी पर कुंभ होता है -
 
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{| class="wikitable"
देवानां द्वादशभिर्मासैर्मर्त्यैः द्वादशवत्सरैः। जायन्ते कुंभपर्वाणि तथा द्वादश संख्यया॥
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|+ग्रह स्थिति एवं कुंभ पर्व
 
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!स्थान
अर्थात मनुष्यों के बारह वर्षों के द्वारा, देवताओं के बारह दिन सम्पन्न होते हैं, इसलिये 12-12 वर्षों के अन्तराल पर कुंभ पर्व होते हैं। एवं जिस दिन अमृत-कुंभ गिरने वाली राशि पर सूर्य, चन्द्रमा और बृहस्पति का संयोग हो, उस समय पृथ्वी पर कुंभ होता है।
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!बृहस्पति
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!सूर्य
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!चंद्र
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|हरिद्वार
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|कुंभ राशि
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|मेष राशि
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|धनु राशि
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|-
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|प्रयाग
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|वृषभ राशि
 +
| मकर राशि
 +
|मकर राशि
 +
|-
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|नाशिक
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|सिंह राशि
 +
| सिंह राशि
 +
|कर्क राशि
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|-
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|उज्जैन
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|सिंह राशि
 +
|मेष राशि
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| मेष राशि
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|}
    
===प्रयाग में कुंभ===
 
===प्रयाग में कुंभ===
 
माघ मास की अमावस्या को जब गुरु वृषभ राशि में तथा सूर्य चन्द्रमा मकर राशि में संचरण करते हैं तो प्रयागराज में कुंभ पर्व मनाने की परम्परा है - <blockquote>मकरे च दिवानाथे वृषराशि गते गुरौ। प्रयागे कुंभ योगि वै माघ मासे विधुक्षये॥ (<ref>धर्मकृत्योपयोगि-तिथ्यादिनिर्णयः कुम्भपर्व-निर्णयश्च, सन 1965, संतशरण वेदान्ती, वाराणसी (पृ० 06)।</ref></blockquote>
 
माघ मास की अमावस्या को जब गुरु वृषभ राशि में तथा सूर्य चन्द्रमा मकर राशि में संचरण करते हैं तो प्रयागराज में कुंभ पर्व मनाने की परम्परा है - <blockquote>मकरे च दिवानाथे वृषराशि गते गुरौ। प्रयागे कुंभ योगि वै माघ मासे विधुक्षये॥ (<ref>धर्मकृत्योपयोगि-तिथ्यादिनिर्णयः कुम्भपर्व-निर्णयश्च, सन 1965, संतशरण वेदान्ती, वाराणसी (पृ० 06)।</ref></blockquote>
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===नासिक में कुंभ ===
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===नासिक में कुंभ===
 
जिस समय बृहस्पति सिंह राशिपर स्थित हों, उस समय गोदावरीमें केवल एक बार स्नान करनेसे मनुष्य साठ हजार वर्षों तक गंगा-स्नान करने सदृश पुण्य प्राप्त करता है - <blockquote>षष्टिवर्षसहस्राणि भागीरथ्यवगाहनम्। सकृद् गोदावरीस्नानं सिंहस्थे च बृहस्पतौ॥</blockquote>ब्रह्मवैवर्त पुराणमें भी लिखा गया है - <blockquote>अश्वमेधफलं चैव लक्षगोदानजं फलम्। प्राप्नोति स्नानमात्रेण गोदायां सिंहगे गुरौ॥</blockquote>जिस समय बृहस्पति सिंह राशिपर स्थित हो, उस समय गोदावरीमें केवल स्नानमात्रसे ही मनुष्य अश्वमेध-यज्ञ करनेका तथा एक लक्ष गो-दान करने का पुण्य प्राप्त करता है।
 
जिस समय बृहस्पति सिंह राशिपर स्थित हों, उस समय गोदावरीमें केवल एक बार स्नान करनेसे मनुष्य साठ हजार वर्षों तक गंगा-स्नान करने सदृश पुण्य प्राप्त करता है - <blockquote>षष्टिवर्षसहस्राणि भागीरथ्यवगाहनम्। सकृद् गोदावरीस्नानं सिंहस्थे च बृहस्पतौ॥</blockquote>ब्रह्मवैवर्त पुराणमें भी लिखा गया है - <blockquote>अश्वमेधफलं चैव लक्षगोदानजं फलम्। प्राप्नोति स्नानमात्रेण गोदायां सिंहगे गुरौ॥</blockquote>जिस समय बृहस्पति सिंह राशिपर स्थित हो, उस समय गोदावरीमें केवल स्नानमात्रसे ही मनुष्य अश्वमेध-यज्ञ करनेका तथा एक लक्ष गो-दान करने का पुण्य प्राप्त करता है।
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===हरिद्वार में कुंभ===
 
===हरिद्वार में कुंभ===
 
कुंभ राशिमें बृहस्पति हो तथा मेष राशिपर सूर्य हो तो हरिद्वारके कुंभमें स्नान करनेसे मनुष्य पुनर्जन्म से रहित हो जाता है - <blockquote>कुम्भराशिं गते जीवे तथा मेषे गते रवौ। हरिद्वारे कृतं स्नानं पुनरावृत्तिवर्जनम्॥</blockquote>
 
कुंभ राशिमें बृहस्पति हो तथा मेष राशिपर सूर्य हो तो हरिद्वारके कुंभमें स्नान करनेसे मनुष्य पुनर्जन्म से रहित हो जाता है - <blockquote>कुम्भराशिं गते जीवे तथा मेषे गते रवौ। हरिद्वारे कृतं स्नानं पुनरावृत्तिवर्जनम्॥</blockquote>
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==कुंभ पर्व एवं दन्त कथाएँ==
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कुंभ पर्व का प्रचलन कब से प्रारंभ हुआ, इसका ठीक-ठीक निर्णय नहीं मिलता है। कुंभ पर्व के संबंध में कुछ कुछ वेदों में और पुराणों में वर्णन मिलता है। कुंभ पर्व के संबंध में अनेक दन्तकथाएँ सुनने में आती हैं। जो कि इस प्रकार हैं -<ref name=":2" />
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#कुछ लोग कहते हैं - भगवान आद्य शंकराचार्य जी ने कुंभ-पर्व की स्थापना की, पश्चात उनकी शिष्य मण्डली ने कुंभ को अपने धर्म-प्रचार का मुख्य साधन समझ कर इसका विस्तार किया, जिसके फलस्वरूप आज भी कुंभ-पर्व का मेला बडी धूम-धाम से मनाया जाता है।
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#कुछ लोग - सनक-सनन्दनादि महर्षियों की सभा हरिद्वार तथा प्रयागादि तीर्थों में 12-12 वर्ष पर उपस्थित होती थी, तभी से कुंभ-पर्व मनाया जाता है।
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#योगी लोगों के अभ्यास की अवधि 12 वर्ष होती है अतः उन्होंने १२ वर्ष पर अपने साधकों के मिलन की सुविधा के लिए हरिद्वारादि तीर्थों में कुंभ पर्व का प्रचार किया।
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#जब गरुड समुद्र से विष्णुलोक में अमृत-कुंभ को ले जाते हुए हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक इन चार स्थानों में ठहरे थे, तभी से ये चार स्थान कुंभ के कहे जाते हैं।
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#कुंभ-पर्व साधु-महात्माओं का धर्म सम्मेलन या धर्मपरिषद् है।
    
==अर्धकुंभ एवं महाकुंभ==
 
==अर्धकुंभ एवं महाकुंभ==
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सनातन परंपरा में प्राचीनकाल से ही कुंभ-पर्व मनाने की प्रथा चली आ रही है। हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक इन चारों स्थानों में क्रमशः बारह-बारह वर्ष में पूर्ण-कुंभ का मेला लगता है और हरिद्वार तथा प्रयाग में अर्ध-कुंभ पर्व भी मनाया जाता है। किन्तु यह अर्धकुंभ-पर्व उज्जैन और नासिक में नहीं होता है।<ref name=":1" />
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*अर्धकुंभ-पर्व हरिद्वार और प्रयाग में ही क्यों मनाया जाता है?
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*उज्जैन और नासिक में क्यों नहीं मनाया जाता है?
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इसके बारे में कोई शास्त्रीय विशेष प्रमाण प्राप्त नहीं होते, अतः अर्धकुंभ-पर्व का मेला शास्त्रीय दृष्टि से विशेष महत्व नहीं रखता।
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{| class="wikitable"
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|+1983 से कुंभ पर्व की सारणी
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!सन
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!प्रयागराज
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!नाशिक
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!उज्जैन
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!हरिद्वार
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|1983
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|अर्ध कुंभ
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|1989
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|पूर्ण कुंभ
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| 1991
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| कुंभ
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|1992
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|कुंभ
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|अर्ध कुंभ
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|1995
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| अर्ध कुंभ
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|1998
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|कुंभ
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|2001
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|पूर्ण कुंभ
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|2003
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|कुंभ
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|2004
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|सिंहस्थ
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|अर्ध कुंभ
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|2007
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|अर्ध कुंभ
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|2010
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| कुंभ
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| 2013
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|महाकुंभ
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|2015
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|कुंभ
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|2016
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|सिंहस्थ
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|अर्ध कुंभ
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|2019
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|अर्ध कुंभ
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|2022
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|कुंभ
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|2025
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|पूर्ण कुंभ
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|
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|}
    
==वृन्दावन - लघु कुंभ==
 
==वृन्दावन - लघु कुंभ==
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==पौराणिक कथाओं में कुंभ==
 
==पौराणिक कथाओं में कुंभ==
कुंभ एक पर्वका नाम जो हर बारहवें वर्ष पडता है। यह स्नान, दान, श्राद्धादि  
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कुंभ एक पर्वका नाम जो हर बारहवें वर्ष पडता है। यह स्नान, दान, श्राद्धादि के लिए उपयुक्त पुण्य काल है -<ref>श्री वैद्यनाथ अग्निहोत्री, [https://archive.org/details/QUMg_kumbha-mahaparva-aur-usaka-mahatmya-by-vaidyanath-agnihotri-dandi-swami-bhumanan/mode/2up कुम्भ-महापर्व और उसका माहात्म्य], दण्डी स्वामी भूमानन्द तीर्थ न्यास संस्थानम्, हरिद्वार (पृ० ११)।</ref>  <blockquote>विवादे काश्यपेयानां यत्र यत्रावनिस्थले। कलशोऽभ्यपतद्यत्र कुम्भपर्वस्तदुच्यते॥ </blockquote>काश्यप-पुत्र देव-दानवों में अमृत-कलश के विवाद में जहां-जहां भूमि पर कलश रखा गया, वहां-वहां कुंभ-पर्व होता है।
    
==कुंभमेला का महत्व==
 
==कुंभमेला का महत्व==
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हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक इन चार कुंभ-पर्व के निर्णीत स्थानों में कुंभ-योग के समय तत्तत्सम्प्रदाय सम्मानित साधु-महात्माओं के समवाय द्वारा संसार के सर्वविध कष्टों के निवृत्यर्थ देश, समाज, राष्ट्र और धर्म आदि समस्त विश्व के कल्याण-सम्पादनार्थ निष्काम-भावनापुरस्सर वेदादि शास्त्रानुकूल अमूल्य दिव्य उपदेशों से जगत्कल्याण करना ही कुंभ-पर्व का महान उद्देश्य है।
    
===कुंभ स्नान का मुहूर्त===
 
===कुंभ स्नान का मुहूर्त===
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