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==धर्मशास्त्र एवं स्मृति==
 
==धर्मशास्त्र एवं स्मृति==
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धर्मशास्त्र शब्द सर्वप्रथम मनुस्मृति में प्राप्त है। मनु ने श्रुतियों को वेद तथा स्मृतियों को धर्मशास्त्र शब्द से व्यवहार किया है - <blockquote>श्रुतिस्तु वेदो विज्ञेयो धर्मशास्त्रं तु वै स्मृतिः। ते सर्वार्थेष्वमीमांस्ये ताभ्यां धर्मो हि निर्बभौ॥ (मनु 2.10)</blockquote>याज्ञवल्क्य-स्मृति के प्रारंभ में उन्नीस धर्मशास्त्रकारों का उल्लेख किया गया है। इससे उनकी रचनाओं का धर्मशास्त्र होना स्वतः सिद्ध हो जाता है।<ref>शोधगंगा-विनोद कुमार, स्मृति साहित्य में राष्ट्र अवधारणा, सन २००२, शोधकेन्द्र- पंजाब विश्वविद्यालय (पृ० २७)।</ref>
    
==स्मृतियों का स्वरूप एवं विषय-वस्तु==
 
==स्मृतियों का स्वरूप एवं विषय-वस्तु==
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