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| == परिचय == | | == परिचय == |
− | आयुर्वेद का अर्थ है-आयु को देने वाला वेद या शास्त्र। वृक्षायुर्वेद वृक्षों को दीर्घायुष्य एवं स्वास्थ्य प्रदान करने वाला शास्त्र है। अतः यह वृक्षों के रोपण, पोषण, चिकित्सा एवं दोहद आदि के द्वारा मनचाहे फल, फूलों की समृद्धि को प्राप्त करने की कला है। इस कला का उद्देश्य है-मनोरम उद्यान या उपवन की रचना। प्राचीन भारत में उद्यान, नगरनिवेश एवं भवन-वास्तु के अनिवार्य अंग माने गये थे। वराह के अनुसार उद्यानों से युक्त नगरों में देवता सर्वदा निवास करते हैं -<ref>सी० के० रामचंद्रन, [https://www.researchgate.net/publication/224898698_VRIKSHAYURVEDA_Arboreal_Medicine_in_Ancient_India वृक्षायुर्वेद], सन् 1984, रिसर्चगेट पब्लिकेशन (पृ० 5)। </ref><blockquote>रमन्ते देवता नित्यं पुरेषूद्यानवत्सु च॥ (शब्दकल्पद्रुम)</blockquote>इस कला के अन्तर्गत निम्न विषयों का निरूपण हुआ है -
| + | वेदों में वृक्ष-वनस्पतियों की उपयोगिता के विषय में विस्तृत विवरण प्राप्त होता है। वृक्ष मानवमात्र को प्राणवायु देते हैं एवं मनुष्य प्राणवायु के बिना जीवित नहीं रह सकता है, अतः वृक्ष, वनस्पतियों और औषधियों को रक्षक बताया गया है। वृक्ष-वनस्पति मात्र प्राणवायु के साधन नहीं हैं, अपितु उनके समस्त अंग उपयोगी हैं। ये पाँच अंग हैं - मूल, स्कन्ध, पत्र, पुष्प और फल। काष्ठ की प्राप्ति का एक मात्र साधन वृक्ष हैं।<ref>डॉ० कपिलदेव द्विवेदी, [https://archive.org/details/VedomMeinVigyanDr.KapilDevDwivedi/page/n75/mode/1up वेदों में विज्ञान], सन् 2004, विश्वभारती अनुसंधान परिषद,भदोही (पृ० 56)।</ref> |
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| + | यह वृक्षों के रोपण, पोषण, चिकित्सा एवं दोहद आदि के द्वारा मनचाहे फल, फूलों की समृद्धि को प्राप्त करने की कला है। इस कला का उद्देश्य है-मनोरम उद्यान या उपवन की रचना। प्राचीन भारत में उद्यान, नगरनिवेश एवं भवन-वास्तु के अनिवार्य अंग माने गये थे। वराह के अनुसार उद्यानों से युक्त नगरों में देवता सर्वदा निवास करते हैं -<ref>सी० के० रामचंद्रन, [https://www.researchgate.net/publication/224898698_VRIKSHAYURVEDA_Arboreal_Medicine_in_Ancient_India वृक्षायुर्वेद], सन् 1984, रिसर्चगेट पब्लिकेशन (पृ० 5)। </ref><blockquote>रमन्ते देवता नित्यं पुरेषूद्यानवत्सु च॥ (शब्दकल्पद्रुम)</blockquote>इस कला के अन्तर्गत निम्न विषयों का निरूपण हुआ है - |
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| * उपवनयोग्य भूमि का चयन | | * उपवनयोग्य भूमि का चयन |
− | * वृक्षरोपण के लिये भूमि तैयार करना | + | *वृक्षरोपण के लिये भूमि तैयार करना |
− | * मांगलिक वृक्षों का प्रथम रोपण | + | *मांगलिक वृक्षों का प्रथम रोपण |
− | * पादप-संरोपण | + | *पादप-संरोपण |
− | * पादप-सिंचन | + | *पादप-सिंचन |
− | * वृक्ष-चिकित्सा | + | *वृक्ष-चिकित्सा |
− | * बीजोपचार | + | *बीजोपचार |
− | * वृक्षदोहद | + | *वृक्षदोहद |
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− | कतिपय अलौकिक प्रयोग आदि। वस्तुतः वृक्षायुर्वेदयोग विज्ञान और कला, प्रयोग और चमत्कार का रोचक समन्वय है। | + | कतिपय अलौकिक प्रयोग आदि। वस्तुतः वृक्षायुर्वेदयोग विज्ञान और कला, प्रयोग और चमत्कार का रोचक समन्वय है। श्री वराहमिहिर जी ने बृहत्संहिता में 55वें अध्याय के रूप में वृक्षायुर्वेद का वर्णन किया है , जिसमें वर्णनीय विषय इस प्रकार हैं।<ref>वराहमिहिर, [https://archive.org/details/brihat-samhita-/%E0%A4%AC%E0%A5%83%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE%20Brihat%20samhita%C2%A0_3/page/n118/mode/1up बृहत्संहिता-वृक्षायुर्वेद], सन् 2014, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी (पृ०110)।</ref> |
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− | == पेड़-पौधों में भेद == | + | ==परिभाषा== |
| + | आयुर्वेद का अर्थ है- आयु को देने वाला वेद या शास्त्र। वृक्षायुर्वेद वृक्षों को दीर्घायुष्य एवं स्वास्थ्य प्रदान करने वाला शास्त्र है - <blockquote>वृक्षस्य आयुर्वेदः - वृक्षायुर्वेदः, अर्थात् तरुचिकित्सादिशास्त्रम्। (शब्दकल्पद्रुम)</blockquote> |
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| + | ==पेड़-पौधों में भेद== |
| प्रकृति से उत्पन्न सभी वस्तुएँ परिवर्तनशील हैं। जिस अवस्था में निर्मित होते हैं उस अवस्था के अग्रिम चरणों से गुजरते हुए ये अन्तिम अवस्था के पडाव को पार करते हैं। वृक्ष की यात्रा भी प्रथम बीज से आरंभ होकर तना, टहनियाँ एवं पौधे की अन्तिम वृक्ष की अवस्था तक चलती है। इन सभी अवस्था में परिणत होते हुए वह अपनी उत्पत्ति यात्रा को समाप्त करता है तथा पुनः बीज के रूप में परिवर्तित हो जाता है। | | प्रकृति से उत्पन्न सभी वस्तुएँ परिवर्तनशील हैं। जिस अवस्था में निर्मित होते हैं उस अवस्था के अग्रिम चरणों से गुजरते हुए ये अन्तिम अवस्था के पडाव को पार करते हैं। वृक्ष की यात्रा भी प्रथम बीज से आरंभ होकर तना, टहनियाँ एवं पौधे की अन्तिम वृक्ष की अवस्था तक चलती है। इन सभी अवस्था में परिणत होते हुए वह अपनी उत्पत्ति यात्रा को समाप्त करता है तथा पुनः बीज के रूप में परिवर्तित हो जाता है। |
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| ==लक्षण एवं उपचार== | | ==लक्षण एवं उपचार== |
| यह चिकित्सा विज्ञान परम उपयोगी यशवर्द्धक, आयुरक्षक तथा पौष्टिक है। चिकित्साशास्त्र का प्रमुख लक्ष्य है रोग निवारण।प्राचीन काल में रोग निवारण से अधिक ध्यान रोग न हो इस पर था। प्राचीन वैदिक संहिता में मानव जीवन के दीर्घायु के लिए लता-वन-वनस्पति-वृक्षादि का महत्व प्रतिपादित है।<ref>डॉ० उर्मिला श्रीवास्तव - [https://dn790002.ca.archive.org/0/items/vedvigyanshridrurmilashrivastava/Ved%20Vigyan%20Shri%20-%20Dr%20Urmila%20Shrivastava.pdf वेदविज्ञानश्रीः] , डॉ० उमारमण झा-वैदिक संहिता में चिकित्सा विज्ञान, आर्य कन्या डिग्री कॉलेज, इलाहाबाद (पृ० 92)।</ref> | | यह चिकित्सा विज्ञान परम उपयोगी यशवर्द्धक, आयुरक्षक तथा पौष्टिक है। चिकित्साशास्त्र का प्रमुख लक्ष्य है रोग निवारण।प्राचीन काल में रोग निवारण से अधिक ध्यान रोग न हो इस पर था। प्राचीन वैदिक संहिता में मानव जीवन के दीर्घायु के लिए लता-वन-वनस्पति-वृक्षादि का महत्व प्रतिपादित है।<ref>डॉ० उर्मिला श्रीवास्तव - [https://dn790002.ca.archive.org/0/items/vedvigyanshridrurmilashrivastava/Ved%20Vigyan%20Shri%20-%20Dr%20Urmila%20Shrivastava.pdf वेदविज्ञानश्रीः] , डॉ० उमारमण झा-वैदिक संहिता में चिकित्सा विज्ञान, आर्य कन्या डिग्री कॉलेज, इलाहाबाद (पृ० 92)।</ref> |
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| + | ==वृक्षायुर्वेद की उपयोगिता== |
| + | पर्यावरण की सुरक्षा के लिये वृक्ष सम्पत्ति की अनिवार्यता बहुत आवश्यक है। वैदिक ऋषियों ने भूमि में सन्तुलन स्थापित करने के लिये वृक्षारोपण करने पर जोर दिया है। वृक्षों में भी कुछ देव वृक्ष, कुछ याज्ञिक , औषधीय आदि वृक्षों का वर्गीकरण देखा गया है।<ref>शोधगंगा-अमित कुमार झा, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/535489 ज्योतिष शास्त्र के प्रकाश में वृक्षायुर्वेद का विश्लेषणात्मक अध्ययन], सन् 2022, शोधकेंद्र - केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुरम् (पृ० 184)।</ref> |
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| ==उद्धरण== | | ==उद्धरण== |