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कक्षा सर्वाऽपि दिविषदां चक्रलिप्तांकितास्ता। वृत्ते लघ्व्योर्लघुनि महति स्युर्महत्यश्च लिप्ताः॥</blockquote>अर्थात अपनी-अपनी कक्षा में सभी ग्रह समान योजन गति से चलते हैं परन्तु जिन ग्रहों की कक्षा परिधि स्वल्प होती है उनकी परिक्रमा योजन मानों में अल्प होने से अल्प काल में पूर्ण हो जाती है। किन्तु जिन ग्रहों की कक्षा परिधि जितनी अधिक होती है, योजनमान भी उतना ही अधिक होने से समान गति होते हुए भी 360० अंश का चक्र भ्रमण करने में उन्हैं अधिक समय लगता है। अर्थात परिणाम स्वरूप दूरस्थ ग्रह अपेक्षा कृत अंशात्मकमान में मंदगति वाले प्रतीत होते हैं। ग्रहों के बिम्बमान भी कक्षाओं की स्थिति से प्रमाणित होते हैं। वासराधिपति, वर्षेश, मासेश और होरेश आदि के साधन में भी ग्रहकक्षा की उपयोगिता होती है।
 
कक्षा सर्वाऽपि दिविषदां चक्रलिप्तांकितास्ता। वृत्ते लघ्व्योर्लघुनि महति स्युर्महत्यश्च लिप्ताः॥</blockquote>अर्थात अपनी-अपनी कक्षा में सभी ग्रह समान योजन गति से चलते हैं परन्तु जिन ग्रहों की कक्षा परिधि स्वल्प होती है उनकी परिक्रमा योजन मानों में अल्प होने से अल्प काल में पूर्ण हो जाती है। किन्तु जिन ग्रहों की कक्षा परिधि जितनी अधिक होती है, योजनमान भी उतना ही अधिक होने से समान गति होते हुए भी 360० अंश का चक्र भ्रमण करने में उन्हैं अधिक समय लगता है। अर्थात परिणाम स्वरूप दूरस्थ ग्रह अपेक्षा कृत अंशात्मकमान में मंदगति वाले प्रतीत होते हैं। ग्रहों के बिम्बमान भी कक्षाओं की स्थिति से प्रमाणित होते हैं। वासराधिपति, वर्षेश, मासेश और होरेश आदि के साधन में भी ग्रहकक्षा की उपयोगिता होती है।
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==ग्रह ऊर्जा और मानव जीवन==
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ग्रहों की ऊर्जा और उनके मानव जीवन पर प्रभाव को प्राचीन भारतीय शास्त्रों में गहराई से समझा गया है। ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों को जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रभाव डालने वाले ऊर्जा स्रोतों के रूप में देखा जाता है। यहाँ कुछ शास्त्रीय उद्धरणों के साथ ग्रहों की ऊर्जा और उनके मानव जीवन पर प्रभाव की व्याख्या की जा रही है - <blockquote>ग्रहाः शमयन्ति दुरितानि, ग्रहाः प्रजासुखावहाः। (बृहत्संहिता अध्याय 2, श्लोक 3)</blockquote>ग्रह मनुष्यों के दुखों को शांत करते हैं, और सुख देने वाले होते हैं।" यह उद्धरण ग्रहों की ऊर्जा को शांतिदायक और सुखप्रद के रूप में दर्शाता है, जो जीवन में संतुलन और शांति लाती है।<blockquote>सप्तग्रहा सूर्यादयः प्रजाः सकलाः सप्तबलेन। (बृहत्पाराशर होरा शास्त्र, अध्याय 3, श्लोक 7)</blockquote>सप्त (सात) ग्रह सूर्यादि (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि) अपनी ऊर्जा से सभी प्राणियों को प्रभावित करते हैं। यह उद्धरण स्पष्ट करता है कि कैसे ये ग्रह मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करते हैं।<blockquote>सोमं प्राणमथो ज्योतिः सूयं चक्षुरुच्यते। (मनुस्मृति, अध्याय 3, श्लोक 96)</blockquote>चंद्रमा प्राण है और सूर्य ज्योति (आत्मा) है। यह उद्धरण चंद्रमा और सूर्य की ऊर्जा को जीवन शक्ति और आत्मा के रूप में दर्शाता है, जो मानव जीवन को संचालित करते हैं।
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सर्वेषामेव ग्रहाणां प्रभवः सूर्य एव हि। (सूर्य सिद्धांत)
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सभी ग्रहों की ऊर्जा का स्रोत सूर्य ही है। यह सूर्य की प्रमुखता और उसकी ऊर्जा के प्रभाव को दर्शाता है, जो सभी ग्रहों की ऊर्जा का केंद्र है।
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'''ग्रहों की ऊर्जा का मानव जीवन पर प्रभाव'''
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'''1. सूर्य (सोलर एनर्जी) -'''  सूर्य जीवन का स्रोत है और इसे आत्मा, शक्ति, और स्वास्थ्य का प्रतीक माना जाता है। इसकी ऊर्जा व्यक्ति के आत्मविश्वास, नेतृत्व, और उर्जा स्तर को प्रभावित करती है।
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'''2. चंद्रमा (लूनर एनर्जी) -'''  चंद्रमा को मन, भावनाएँ, और मानसिक शांति का प्रतीक माना जाता है। इसकी ऊर्जा मनुष्य की मानसिक स्थिति, भावनात्मक संतुलन, और रचनात्मकता को प्रभावित करती है।
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'''3. मंगल (मार्टियन एनर्जी) -'''  मंगल ग्रह को साहस, शक्ति, और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। इसकी ऊर्जा व्यक्ति के साहसिक कार्यों, प्रतिस्पर्धात्मकता, और जीवन की चुनौतियों से लड़ने की क्षमता को प्रभावित करती है।
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'''4. शुक्र (वीनस एनर्जी) -'''  शुक्र ग्रह को प्रेम, सौंदर्य, और वैभव का प्रतीक माना जाता है। इसकी ऊर्जा व्यक्ति के संबंधों, सौंदर्य की समझ, और भौतिक सुख-सुविधाओं को प्रभावित करती है।
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'''5. शनि (सैटर्न एनर्जी) -''' शनि ग्रह को अनुशासन, जिम्मेदारी, और कर्म का प्रतीक माना जाता है। इसकी ऊर्जा व्यक्ति के जीवन में धैर्य, प्रतिबद्धता, और कर्मफल को प्रभावित करती है।
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ग्रहों की ऊर्जा का मानव जीवन पर गहरा प्रभाव होता है, जो व्यक्ति के व्यक्तित्व, स्वास्थ्य, मानसिक स्थिति, और जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करती है। यह प्रभाव शास्त्रीय ज्योतिष शास्त्र में विस्तृत रूप से वर्णित किया गया है और आज भी यह अध्ययन का एक महत्वपूर्ण विषय है।
    
==भारतीय ज्योतिष एवं छाया ग्रह==
 
==भारतीय ज्योतिष एवं छाया ग्रह==
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भारतीय ज्योतिष में छाया ग्रहों का महत्वपूर्ण स्थान है। ये छाया ग्रह हैं '''राहु''' और '''केतु''', जिन्हें नवग्रहों में शामिल किया जाता है। यद्यपि ये ग्रह खगोलीय पिंड नहीं हैं, लेकिन भारतीय ज्योतिष में इनके प्रभावों को महत्वपूर्ण माना गया है। राहु और केतु चंद्रमा की कक्षाओं के उत्तरी और दक्षिणी बिंदु होते हैं और इन्हें आमतौर पर "छाया ग्रह" कहा जाता है क्योंकि इनका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं होता है।<blockquote>राहु: शिरो राक्षसस्य केतुश्चापि तु पच्छगः। (बृहत्पाराशर होराशास्त्र, अध्याय 2, श्लोक 5)</blockquote>राहु राक्षस का सिर है और केतु उसका धड़ है। यह कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है, जिसमें राहु और केतु को अमृत का पान करने पर भगवान विष्णु ने इन दो भागों में विभाजित कर दिया था।<blockquote>राहु: क्रूरतमो ज्ञेयः केतुश्च महातपाः। (फलदीपिका,3-25)</blockquote>राहु को क्रूर और केतु को तपस्वी के रूप में समझा जाता है। यह उद्धरण राहु और केतु की प्रकृति को दर्शाता है, जहाँ राहु को भौतिक इच्छाओं का प्रतीक और केतु को आध्यात्मिकता का प्रतीक माना गया है।
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भारतीय ज्योतिष में राहु और केतु का अध्ययन महत्वपूर्ण है क्योंकि ये छाया ग्रह व्यक्ति के जीवन के भौतिक और आध्यात्मिक पहलुओं को प्रभावित करते हैं। इनका प्रभाव गहरा और जटिल हो सकता है, इसलिए ज्योतिष शास्त्र में इन्हें विशेष महत्व दिया गया है।
    
==ग्रहों का वैज्ञानिक विवेचन==
 
==ग्रहों का वैज्ञानिक विवेचन==
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