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सुधार जारि
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==परिभाषा==
 
==परिभाषा==
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विद्वानों ने भाषा की परिभाषा इस प्रकार दी है - पाणिनी के अष्टाध्यायी के महाभाष्य में महर्षि पतञ्जलि ने भाषा की परिभाषा इस प्रकार दी है - <blockquote>व्यक्तां वचि वर्णा येषां त इमे व्यक्तवाचः।</blockquote>यहां वर्णात्मक वाणी को ही भाषा कहा गया है। प्राचीन समय में भाषा-विज्ञान-विषयक अध्ययन के लिये व्याकरण, शब्दानुशासन, शब्दशास्त्र, निर्वचन शास्त्र आदि शब्द प्रचलित थे। वर्तमान समय में इस अर्थ में तुलनात्मक भाषा-विज्ञान, भाषा-शास्त्र, तुलनात्मक भाषा-शास्त्र, शब्द-शास्त्र, भाषिकी आदि शब्द प्रचलित हैं। भाषा के विशिष्ट ज्ञान को भाषा-विज्ञान कहते हैं - <blockquote>भाषायाः विज्ञानम्-भाषा विज्ञानम्। विशिष्टं ज्ञानम्-विज्ञानम्।</blockquote>भाषा के वैज्ञानिक और विवेचनात्मक अध्ययन को भाषा-विज्ञान कहा जाएगा -
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भाषाया यत्तु विज्ञानं, सर्वांगं व्याकृतात्मकम्। विज्ञानदृष्टिमूलं तद्, भाषाविज्ञानमुच्यते॥ (कपिलस्य)
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==भाषा-विज्ञान के अध्ययन के प्रकार==
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भाषा-विज्ञान का अध्ययन कई दृष्टियों में किया जाता है। प्रत्येक दृष्टि से किया गया अध्ययन भाषा-विज्ञान के नए रूप व नए प्रकार को हमारे सम्मुख प्रस्तुत करता है -
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#सामान्य भाषा-विज्ञान
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#वर्णनात्मक भाषा-विज्ञान
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#ऐतिहासिक भाषा-विज्ञान
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#तुलनात्मक भाषा-विज्ञान
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#सैद्धान्तिक भाषा-विज्ञान
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==भाषा-विज्ञान के अंग==
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भाषा का सर्वांगीण अध्ययन करना ही भाषा-विज्ञान का उद्देश्य है। भाषा-विज्ञान में भाषा से सम्बन्धित सभी विषय आते हैं इन्हें हम भाषा के अध्ययन के विभाग भी कह सकते हैं। मुख्यतः भाषा के चार घटक हैं -
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#ध्वनि विज्ञान
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#पद विज्ञान
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#वाक्य विज्ञान
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#अर्थ विज्ञान
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==भाषा की उत्पत्ति==
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==उद्धरण==
 
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