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'''धार्मिक महत्व -''' यह धार्मिक दृष्टि से प्राचीन संस्कृति, आचार, सत्य, धर्म, व्रत-पालन, विविध यज्ञों का महत्व आदि का पूरा इतिहास प्रस्तुत करता है।
 
'''धार्मिक महत्व -''' यह धार्मिक दृष्टि से प्राचीन संस्कृति, आचार, सत्य, धर्म, व्रत-पालन, विविध यज्ञों का महत्व आदि का पूरा इतिहास प्रस्तुत करता है।
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'''सामाजिक महत्व -'''  यह पति-पत्नी के सम्बन्ध, पिता-पुत्र के कर्तव्य, गुरु-शिष्य का पारस्परिक व्यवहार, भाई का भाई के प्रति कर्तव्य, व्यक्ति का समाज के प्रति उत्तरदायित्व, आदर्श पिता-माता-पुत्र-भाई-पति एवं पत्नी का चित्रण, आदर्श गृहस्थ-जीवन की अभिव्यक्ति करता है।
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'''सामाजिक महत्व -'''  यह पति-पत्नी के सम्बन्ध, पिता-पुत्र के कर्तव्य, गुरु-शिष्य का पारस्परिक व्यवहार, भाई का भाई के प्रति कर्तव्य, व्यक्ति का समाज के प्रति उत्तरदायित्व, आदर्श पिता-माता-पुत्र-भाई-पति एवं पत्नी का चित्रण, आदर्श गृहस्थ-जीवन की अभिव्यक्ति करता है। इसमें पितृ भक्ति, पुत्र-प्रेम, भ्रातृ-स्नेह एवं जन-साधारण से सौहार्द का सुन्दर चित्रण है। सांस्कृतिक दृष्टि से यह राम-राज्य का आदर्श, पाप पर पुण्य की विजय, वानरों में भारतीय-संस्कृति का प्रसार, यज्ञादि का महत्व, जीवन में नैतिकता, सत्य-प्रतिज्ञता और कर्तव्य के लिये बलिदान का आदर्श प्रस्तुत करत है।
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'''राजनीतिक महत्व -''' राजा के कर्तव्य और अधिकार, राजा-प्रजा-सम्बन्ध, उच्च नागरिकता, उत्तराधिकार-विधान, शत्रु-संहार, पाप-विनाशन, सैन्य-संचालन आदि विषयों पर महत्वपूर्ण प्रकाश डाला गया है।
 
*वैदिक यज्ञीय सामग्रियों का वर्णन रामायण में मिलता है जैसे - आज्य, हवि, पुरोडाश, कुश तथा खादिरयूप।
 
*वैदिक यज्ञीय सामग्रियों का वर्णन रामायण में मिलता है जैसे - आज्य, हवि, पुरोडाश, कुश तथा खादिरयूप।
 
*यज्ञों में विहित दक्षिणा का प्रचलन रामायणकाल में भी था।
 
*यज्ञों में विहित दक्षिणा का प्रचलन रामायणकाल में भी था।
*यज्ञीय पशुबलि का भी उल्लेख रामायण में प्राप्त हो जाता है।
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* यज्ञीय पशुबलि का भी उल्लेख रामायण में प्राप्त हो जाता है।
 
*रामायण अनेक नीतिवाक्यों, सुभाषितों तथा राजनीतिपरक तथ्यों का संग्रह भी है।
 
*रामायण अनेक नीतिवाक्यों, सुभाषितों तथा राजनीतिपरक तथ्यों का संग्रह भी है।
 
*आशीर्वादात्मक, नमस्कारात्मक अथवा वस्तुनिर्देशात्मक मंगलाचरण का प्रयोग महाकाव्य में किया जाता है - रामायण में "तपः स्वाध्याय निरतं" इत्यादि पद्य को देखकर ही वस्तुनिर्देशात्मक मंगलाचरण की प्रवृत्ति हुई।
 
*आशीर्वादात्मक, नमस्कारात्मक अथवा वस्तुनिर्देशात्मक मंगलाचरण का प्रयोग महाकाव्य में किया जाता है - रामायण में "तपः स्वाध्याय निरतं" इत्यादि पद्य को देखकर ही वस्तुनिर्देशात्मक मंगलाचरण की प्रवृत्ति हुई।
 
*रामायण में प्रायः सभी रसों का वर्णन आया है परन्तु करुण रस प्रधान है।
 
*रामायण में प्रायः सभी रसों का वर्णन आया है परन्तु करुण रस प्रधान है।
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रामायण भारतीय सभ्यता, नगर-ग्रामादि निर्माण, सेतुबन्ध, वर्णाश्रम-व्यवस्था आदि सांस्कृतिक एवं सामाजिक विषयों पर प्रकाश डालने वाला प्रकाश-स्तम्भ है, जिसके प्रकाश में प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का साक्षात् दर्शन होता है।
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== रामायण के टीकाकार एवं टीकाएँ ==
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वाल्मीकीय रामायण का महत्व केवल काव्यशास्त्रीय दृष्टि से ही नहीं है अपितु वैष्णव सम्प्रदायों का उपास्य ग्रन्थ भी है, इसलिये मध्य युग में रामायण की व्याख्या करना, प्रतिलिपि करना और पुस्तक की पूजा करना धार्मिक कृत्य का  रूप ले चुका था। पन्द्रहवीं से सत्रहवीं शताब्दी ई० के मध्य रामायण की १० प्रमुख टीकाएं लिखी गयी। रामायण की प्रमुख टीकाओं का विवरण इस प्रकार है -
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* रामानुज की रामानुजीय टीका - यह रामायण की सबसे प्रसिद्ध टीका है, इसका उल्लेख वैद्यनाथ दीक्षित ने किया है।
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* वेंकट कृष्णाध्वरी की सर्वार्थसार टीका - इसका उल्लेख भी वैद्यनाथ दीक्षित ने किया है।
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* वैद्यनाथ दीक्षित की रामायण दीपिका
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* ईश्वर दीक्षित की लघुविवरण एवं बृहद्विवरण टीका
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* महेश्वर तीर्थ कृत रामायण तत्व दीपिका - यह तीर्थीय टीका नाम से भी प्रसिद्ध है।
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* गोविन्दराज कृत रामायणभूषण  - यह गोविन्दराजीय नाम से भी प्रख्यात है। प्रत्येक काण्ड में व्याख्यान के नाम ग्रन्थकार ने भिन्न-भिन्न दिये हैं। इस टीका के काण्डक्रम इस प्रकार हैं - मणिमंजीर, पीताम्बर, रत्नमेखल, मुक्ताहार, शृंगारतिलक, मणिमुकुट तथा रत्नकिरीट।
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==रामायण में इन्द्रियातीत वर्णन==
 
==रामायण में इन्द्रियातीत वर्णन==
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आकाशवाणी का अर्थ केवल आकाश से उत्पन्न वाणी नहीं लिया जा सकता जो अलौकिक प्रतीत हो बल्कि वर्तमान समय में आकाशवाणी से अभिप्राय मानव द्वारा आकाश में स्थापित की गई उपग्रह, सैटेलाईट द्वारा भेजी गई तरंगों को रेडियो, टी०वी० इन्टर-नेट आदि यन्त्रों द्वारा ग्रहण कर उसे वाणी रूप में प्रसारित करना है।
 
आकाशवाणी का अर्थ केवल आकाश से उत्पन्न वाणी नहीं लिया जा सकता जो अलौकिक प्रतीत हो बल्कि वर्तमान समय में आकाशवाणी से अभिप्राय मानव द्वारा आकाश में स्थापित की गई उपग्रह, सैटेलाईट द्वारा भेजी गई तरंगों को रेडियो, टी०वी० इन्टर-नेट आदि यन्त्रों द्वारा ग्रहण कर उसे वाणी रूप में प्रसारित करना है।
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==रामायणकालीन समाज एवं संस्कृति ==
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==रामायणकालीन समाज एवं संस्कृति==
 
रामायण कालीन समाज के अन्तर्गत वर्णव्यवस्था, आश्रमव्यवस्था, समाज की जानकारी, विवाह और परिवार आदि के बारे में एवं रामायण कालीन संस्कृति में वेश भूषा, खानपान, शिक्षा व्यवस्था, कला-कौशल, धर्म-दर्शन आदि के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। वस्तुतः सभ्यता हमारा बाह्य रहन-सहन, खान-पान, आचरण, भौतिक-विकास, पारिवारिक सामाजिक संस्कार आदि का  परिचायक होती है। संस्कृति हमारी आन्तरिक सोच ज्ञान-विज्ञान आदि प्रेरक तत्त्व को बताती है। वैसे तो आन्तरिक ही बाह्य आचरण का कारण होता है। रामायण मानवीय सभ्यता के विकास में परम सहयोगी है तथा सदा रहेगी।
 
रामायण कालीन समाज के अन्तर्गत वर्णव्यवस्था, आश्रमव्यवस्था, समाज की जानकारी, विवाह और परिवार आदि के बारे में एवं रामायण कालीन संस्कृति में वेश भूषा, खानपान, शिक्षा व्यवस्था, कला-कौशल, धर्म-दर्शन आदि के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। वस्तुतः सभ्यता हमारा बाह्य रहन-सहन, खान-पान, आचरण, भौतिक-विकास, पारिवारिक सामाजिक संस्कार आदि का  परिचायक होती है। संस्कृति हमारी आन्तरिक सोच ज्ञान-विज्ञान आदि प्रेरक तत्त्व को बताती है। वैसे तो आन्तरिक ही बाह्य आचरण का कारण होता है। रामायण मानवीय सभ्यता के विकास में परम सहयोगी है तथा सदा रहेगी।
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भारतीय ऋषि परंपरा के अनुसार सम्पूर्ण मानव जीवन आत्म विश्वास एवं आत्मानुशासन का है। इसी शिक्षण काल को उन्होंने आश्रमों के नाम से कई वर्गों में बाँट दिया था। रामायणकालीन समाज में आश्रमों की संख्या निश्चित रूप से चार मानी जाती थी -  
 
भारतीय ऋषि परंपरा के अनुसार सम्पूर्ण मानव जीवन आत्म विश्वास एवं आत्मानुशासन का है। इसी शिक्षण काल को उन्होंने आश्रमों के नाम से कई वर्गों में बाँट दिया था। रामायणकालीन समाज में आश्रमों की संख्या निश्चित रूप से चार मानी जाती थी -  
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* विद्यार्थी के लिये ब्रह्मचर्य आश्रम
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*विद्यार्थी के लिये ब्रह्मचर्य आश्रम
 
*विवाहितों के लिये गृहस्थाश्रम
 
*विवाहितों के लिये गृहस्थाश्रम
 
*वनवासी तपस्वी के लिये वानप्रस्थाश्रम
 
*वनवासी तपस्वी के लिये वानप्रस्थाश्रम
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रामायण के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि आश्रम व्यवस्था का अनुसरण उपर्युक्त क्रम से ही संचालित किया जाता था। वस्तुतः ऋषियों द्वारा निर्देशित यह आश्रम व्यवस्था पूर्व वर्णित वर्ण व्यवस्था की ही पूरक है। दोनों मानव और समाज से ही सम्बन्धित हैं, केवल दृष्टिकोण का अन्तर है। वर्ण व्यवस्था व्यक्ति को एक सामाजिक प्राणी के रूप में देखती है।
 
रामायण के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि आश्रम व्यवस्था का अनुसरण उपर्युक्त क्रम से ही संचालित किया जाता था। वस्तुतः ऋषियों द्वारा निर्देशित यह आश्रम व्यवस्था पूर्व वर्णित वर्ण व्यवस्था की ही पूरक है। दोनों मानव और समाज से ही सम्बन्धित हैं, केवल दृष्टिकोण का अन्तर है। वर्ण व्यवस्था व्यक्ति को एक सामाजिक प्राणी के रूप में देखती है।
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== निष्कर्ष ==
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==निष्कर्ष==
    
==उद्धरण==
 
==उद्धरण==
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