Line 50: |
Line 50: |
| अष्टादश पुराणों में विष्णुपुराण का तृतीय स्थान है। इस पुराण में आदि से अन्त तक वैष्णव धर्म की समवेत धारा प्रवाहित हुयी है। परिमाण में लघु होते हुये भी यह पुराण धर्म एवं दर्शन के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है। विष्णु पुराण वैष्णवों का प्रमुख ग्रन्थ माना जात है। इसकी महत्ता इस रूप में सिद्ध है कि वैष्णव आचार्य रामानुज ने अपने श्रीभाष्य में प्रमाण स्वरूप इसके उद्धरण दिये हैं। विष्णुपुराण में वर्णित प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं -<ref>शोधगंगा-दिवाकर मणि त्रिपाठी, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/311248/2/02-content.pdf विष्णु पुराण में धर्म एवं दर्शन का निरूपण], सन् २००२, शोधकेन्द्र-महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, भूमिका (पृ० ५)।</ref> | | अष्टादश पुराणों में विष्णुपुराण का तृतीय स्थान है। इस पुराण में आदि से अन्त तक वैष्णव धर्म की समवेत धारा प्रवाहित हुयी है। परिमाण में लघु होते हुये भी यह पुराण धर्म एवं दर्शन के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है। विष्णु पुराण वैष्णवों का प्रमुख ग्रन्थ माना जात है। इसकी महत्ता इस रूप में सिद्ध है कि वैष्णव आचार्य रामानुज ने अपने श्रीभाष्य में प्रमाण स्वरूप इसके उद्धरण दिये हैं। विष्णुपुराण में वर्णित प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं -<ref>शोधगंगा-दिवाकर मणि त्रिपाठी, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/311248/2/02-content.pdf विष्णु पुराण में धर्म एवं दर्शन का निरूपण], सन् २००२, शोधकेन्द्र-महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, भूमिका (पृ० ५)।</ref> |
| | | |
− | * चतुर्वर्णों की उत्पत्ति और चारों आश्रमों का वर्णन | + | *चतुर्वर्णों की उत्पत्ति और चारों आश्रमों का वर्णन |
− | * माता, पिता एवं गुरुजनों का सम्मान, सदाचार पालन का महत्व | + | *माता, पिता एवं गुरुजनों का सम्मान, सदाचार पालन का महत्व |
− | * सामाजिक धर्म की महत्ता और उसकीआवश्यकता तथा समाज में प्रचलित संस्कारों का विवरण | + | *सामाजिक धर्म की महत्ता और उसकीआवश्यकता तथा समाज में प्रचलित संस्कारों का विवरण |
− | * विष्णुपुराण में योग धर्म - योग का अर्थ और उसका स्वरूप तथा अष्टांग योग का विवेचन | + | *विष्णुपुराण में योग धर्म - योग का अर्थ और उसका स्वरूप तथा अष्टांग योग का विवेचन |
− | * कर्म, ज्ञान एवं भक्ति मार्ग का वर्णन एवं मोक्ष का स्वरूप | + | *कर्म, ज्ञान एवं भक्ति मार्ग का वर्णन एवं मोक्ष का स्वरूप |
| | | |
| ===वायु पुराण=== | | ===वायु पुराण=== |
− | वायु पुराण में ऐतिहासिक तत्त्वों का आधिक्य है तथा अनेक पुराणों की अपेक्षा इसमें वैज्ञानिक तथ्यों की अधिकता है। इस पुराण की रचना असीमकृष्ण के शासनकाल में हुई थी। | + | वायु पुराण में ऐतिहासिक तत्त्वों का आधिक्य है तथा अनेक पुराणों की अपेक्षा इसमें वैज्ञानिक तथ्यों की अधिकता है। इस पुराण की रचना असीमकृष्ण के शासनकाल में हुई थी। अन्य पुराणों की भाँति वायुपुराण के भी वर्ण्य विषय, सर्ग, प्रतिसर्ग, मन्वन्तर आदि से समन्वित हैं। वंशानुचरित अन्य पुराणों की भाँति इसमें कुछ कम है। वायुपुराण के वंशानुक्रम और अन्य वर्ण्य विषयों में स्पष्टतः परोक्षवाद, प्रतीकवाद और रहस्यवाद निहित है।<ref>रामप्रताप त्रिपाठी, [https://archive.org/details/VayuPuranam/page/n5/mode/1up वायुपुराण-हिन्दी अनुवाद सहित], सन् १९८७, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, भूमिका (पृ० ६)।</ref> |
| | | |
| ===नारदीयपुराण या बृहन्नारदीय पुराण=== | | ===नारदीयपुराण या बृहन्नारदीय पुराण=== |
Line 68: |
Line 68: |
| अग्नि द्वारा वसिष्ठ को उपदेश दिये जाने के कारन इस पुराण का नाम अग्नि पुराण है। पौराणिक क्रम से इसे अष्टम स्थान प्राप्त है। यह पुराण भारतीय कला, दर्शन, संस्कृति और साहित्य का विश्व कोश माना जाता है, जिसमें शताब्दियों के प्रबह-मान भारतीय विद्या का सार उपन्यस्त है। | | अग्नि द्वारा वसिष्ठ को उपदेश दिये जाने के कारन इस पुराण का नाम अग्नि पुराण है। पौराणिक क्रम से इसे अष्टम स्थान प्राप्त है। यह पुराण भारतीय कला, दर्शन, संस्कृति और साहित्य का विश्व कोश माना जाता है, जिसमें शताब्दियों के प्रबह-मान भारतीय विद्या का सार उपन्यस्त है। |
| | | |
− | ===भविष्य पुराण === | + | ===भविष्य पुराण=== |
| भविष्य की घटनाओं वर्णन होने के कारण इसका नाम भविष्य पुराण है। बृहन्नारदीयपुराण में इसकी जो विषय-सूची दी गयी है, उसके अनुसार इसमें पाँच पर्व हैं - ब्रह्मपर्व, विष्णुपर्व, शिवपर्व, सूर्यपर्व तथा प्रतिसर्ग पर्व। भविष्यपुराण में कुल १४ हजार श्लोक हैं।<ref>शोधगंगा-प्रतिभा शर्मा, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/302034 भविष्य पुराण का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन], सन् २००२, शोधकेन्द्र- महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ (पृ० ३३)।</ref> | | भविष्य की घटनाओं वर्णन होने के कारण इसका नाम भविष्य पुराण है। बृहन्नारदीयपुराण में इसकी जो विषय-सूची दी गयी है, उसके अनुसार इसमें पाँच पर्व हैं - ब्रह्मपर्व, विष्णुपर्व, शिवपर्व, सूर्यपर्व तथा प्रतिसर्ग पर्व। भविष्यपुराण में कुल १४ हजार श्लोक हैं।<ref>शोधगंगा-प्रतिभा शर्मा, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/302034 भविष्य पुराण का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन], सन् २००२, शोधकेन्द्र- महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ (पृ० ३३)।</ref> |
| | | |
Line 84: |
Line 84: |
| यह शिवपूजा एवं लिंगोपासना के रहस्य को बतलाने वाला तथा शिव-तत्त्व का प्रतिपादक पुराण है। इसके आरम्भ में लिंग शब्द का अर्थ ओंकार किया गया है, जिसका अभिप्राय यह है कि शब्द तथा अर्थ दोनों ही ब्रह्म के विवर्त रूप हैं। इसमें बताया गया है कि ब्रह्म सच्चिदानन्द स्वरूप है और उसके तीन रूप- सत्ता, चेतना और आनन्द आपस में संबद्ध हैं। शिव पुराण बतलाता है कि लिंग के चरित का कथन करने या शिवपूजा के विधान का प्रतिपादन करने के कारण इसे लिंग पुराण कहते हैं -<blockquote>लिंगस्य चरितोक्तत्वात् पुराणं लिंगमुच्यते॥</blockquote>यह पुराण अपेक्षाकृत छोटा है क्योंकि इसमें अध्यायों की संख्या १३३ और श्लोकों की संख्या ११,००० है। इसमें दो भाग हैं - पूर्व भाग और उत्तर भाग। | | यह शिवपूजा एवं लिंगोपासना के रहस्य को बतलाने वाला तथा शिव-तत्त्व का प्रतिपादक पुराण है। इसके आरम्भ में लिंग शब्द का अर्थ ओंकार किया गया है, जिसका अभिप्राय यह है कि शब्द तथा अर्थ दोनों ही ब्रह्म के विवर्त रूप हैं। इसमें बताया गया है कि ब्रह्म सच्चिदानन्द स्वरूप है और उसके तीन रूप- सत्ता, चेतना और आनन्द आपस में संबद्ध हैं। शिव पुराण बतलाता है कि लिंग के चरित का कथन करने या शिवपूजा के विधान का प्रतिपादन करने के कारण इसे लिंग पुराण कहते हैं -<blockquote>लिंगस्य चरितोक्तत्वात् पुराणं लिंगमुच्यते॥</blockquote>यह पुराण अपेक्षाकृत छोटा है क्योंकि इसमें अध्यायों की संख्या १३३ और श्लोकों की संख्या ११,००० है। इसमें दो भाग हैं - पूर्व भाग और उत्तर भाग। |
| | | |
− | * इस पुराण में लिंगोपासना की उत्पत्ति दिखलायी गयी है। | + | *इस पुराण में लिंगोपासना की उत्पत्ति दिखलायी गयी है। |
| *सृष्टि का वर्णन भगवान् शंकर के द्वारा बतलाया गया है। | | *सृष्टि का वर्णन भगवान् शंकर के द्वारा बतलाया गया है। |
| *शंकर के २८ अवतारों का वर्णन भी उपलब्ध होता है। | | *शंकर के २८ अवतारों का वर्णन भी उपलब्ध होता है। |
Line 118: |
Line 118: |
| इस पुराण का प्रारम्भ भगवान् कूर्म की प्रशंसा से होता है। प्राचीन काल में जब देवता और दानवों ने मिलकर समुद्र का मंथन किया तो भगवान् विष्णु ने कूर्म का रूप ग्रहण कर मंदराचल को अपने पृष्ठ पर धारण किया। इस पुराण में चार संहितायें रही होंगी - ब्राह्मी संहिता, भागवती संहिता, गौरी संहिता एवं वैष्णवी संहिता - पर सम्प्रति एक भाग ब्राह्मी संहिता ही प्राप्त होती है और उपलब्ध प्रति में केवल छह हजार श्लोक हैं। | | इस पुराण का प्रारम्भ भगवान् कूर्म की प्रशंसा से होता है। प्राचीन काल में जब देवता और दानवों ने मिलकर समुद्र का मंथन किया तो भगवान् विष्णु ने कूर्म का रूप ग्रहण कर मंदराचल को अपने पृष्ठ पर धारण किया। इस पुराण में चार संहितायें रही होंगी - ब्राह्मी संहिता, भागवती संहिता, गौरी संहिता एवं वैष्णवी संहिता - पर सम्प्रति एक भाग ब्राह्मी संहिता ही प्राप्त होती है और उपलब्ध प्रति में केवल छह हजार श्लोक हैं। |
| | | |
− | === मत्स्य पुराण=== | + | ===मत्स्य पुराण=== |
| इस पुराण का प्रारम्भ मनु तथा विष्णु के संवाद से होता है। श्रीमद्भागवत, ब्रह्मवैवर्त्तपुराण तथा रेवामाहात्म्य में इसकी श्लोक संख्या १५,००० दी गयी है। इसमें २९१ अध्याय हैं। आनन्दाश्रम पूना से प्रकाशित इस पुराण के संस्करण में कुल १४,००० हजार श्लोक प्राप्त होते हैं। इस पुराण का आरम्भ प्रलयकाल की, उस घटना के साथ होता है, जब विष्णु जी ने एक मत्स्य का रूप धारण कर मनु की रक्षा की थी तथा नौकारूढ मनु को बचा कर उनके साथ संवाद किया था। जिस पुराण में सृष्टि के प्रारंभ में भगवान् जनार्दन विष्णु ने मात्स्य रूप धारण कर मनु के लिए, वेदों में लोक प्रवृत्ति के लिए, नरसिंहावतार के विषय के प्रसंग से सात कल्प वृत्तान्तों का वर्णन किया है, उसे मत्स्यपुराण के नाम से जाना जाता है। | | इस पुराण का प्रारम्भ मनु तथा विष्णु के संवाद से होता है। श्रीमद्भागवत, ब्रह्मवैवर्त्तपुराण तथा रेवामाहात्म्य में इसकी श्लोक संख्या १५,००० दी गयी है। इसमें २९१ अध्याय हैं। आनन्दाश्रम पूना से प्रकाशित इस पुराण के संस्करण में कुल १४,००० हजार श्लोक प्राप्त होते हैं। इस पुराण का आरम्भ प्रलयकाल की, उस घटना के साथ होता है, जब विष्णु जी ने एक मत्स्य का रूप धारण कर मनु की रक्षा की थी तथा नौकारूढ मनु को बचा कर उनके साथ संवाद किया था। जिस पुराण में सृष्टि के प्रारंभ में भगवान् जनार्दन विष्णु ने मात्स्य रूप धारण कर मनु के लिए, वेदों में लोक प्रवृत्ति के लिए, नरसिंहावतार के विषय के प्रसंग से सात कल्प वृत्तान्तों का वर्णन किया है, उसे मत्स्यपुराण के नाम से जाना जाता है। |
| | | |
− | === गरुड पुराण=== | + | ===गरुड पुराण=== |
| विष्णु के वाहन गरुड के नाम पर इस पुराण का नामकरण हुआ है। इसमें विष्णु द्वारा गरुड को विश्व की सृष्टि का कथन किया गया है। यह वैष्णव पुराण है। यह पुराण पूर्व एवं उत्तर दो खण्डों में विभक्त है और उत्तर खण्ड का नाम प्रेतखण्ड भी है। इस खण्ड में मृत्यु के अनन्तर प्राणी की गति का वर्णन होने के कारण सनातनी परंपरा में श्राद्ध के समय इसका श्रवण करते हैं। | | विष्णु के वाहन गरुड के नाम पर इस पुराण का नामकरण हुआ है। इसमें विष्णु द्वारा गरुड को विश्व की सृष्टि का कथन किया गया है। यह वैष्णव पुराण है। यह पुराण पूर्व एवं उत्तर दो खण्डों में विभक्त है और उत्तर खण्ड का नाम प्रेतखण्ड भी है। इस खण्ड में मृत्यु के अनन्तर प्राणी की गति का वर्णन होने के कारण सनातनी परंपरा में श्राद्ध के समय इसका श्रवण करते हैं। |
| | | |
Line 131: |
Line 131: |
| शिवपुराण तथा वायुपुराण के सम्बन्ध में विद्वानों में मतैक्य नहीं है। कुछ विद्वानों के अनुसार दोनों ही पुराण अभिन्न हैं और कतिपय वुद्वान् इन्हें स्वतन्त्र पुराण के रूप में मान्यता प्रदान करते हैं। कुछ विद्वान् विभिन्न पुराणों में निर्दिष्ट सूची के अनुसार शिवपुराण को चतुर्थ स्थान प्रदान करते हैं। | | शिवपुराण तथा वायुपुराण के सम्बन्ध में विद्वानों में मतैक्य नहीं है। कुछ विद्वानों के अनुसार दोनों ही पुराण अभिन्न हैं और कतिपय वुद्वान् इन्हें स्वतन्त्र पुराण के रूप में मान्यता प्रदान करते हैं। कुछ विद्वान् विभिन्न पुराणों में निर्दिष्ट सूची के अनुसार शिवपुराण को चतुर्थ स्थान प्रदान करते हैं। |
| | | |
− | ==महापुराणों का वर्गीकरण == | + | ==महापुराणों का वर्गीकरण== |
| मत्स्यपुराण (५३।२७-२८) के अनुसार पुराणों का त्रिविध विभाजन माना गया है - सात्त्विकपुराण, राजसपुराण और तामसपुराण। जिन पुराणों में विष्णु भगवान का अधिक महत्त्व बताया गया है वह सात्त्विकपुराण, जिसमें भगवान शिव का महत्व अधिक बताया गया है, वह तामसपुराण और राजस पुराणों में ब्रह्मा तथा अग्नि का अधिक महत्त्व वर्णित है - <blockquote>महापुराणान्येतानि ह्यष्टादश महामुने। तथा चोपपुराणानि मुनिभः कथितानि च॥ (विष्णुपुराण ३/६/२४) | | मत्स्यपुराण (५३।२७-२८) के अनुसार पुराणों का त्रिविध विभाजन माना गया है - सात्त्विकपुराण, राजसपुराण और तामसपुराण। जिन पुराणों में विष्णु भगवान का अधिक महत्त्व बताया गया है वह सात्त्विकपुराण, जिसमें भगवान शिव का महत्व अधिक बताया गया है, वह तामसपुराण और राजस पुराणों में ब्रह्मा तथा अग्नि का अधिक महत्त्व वर्णित है - <blockquote>महापुराणान्येतानि ह्यष्टादश महामुने। तथा चोपपुराणानि मुनिभः कथितानि च॥ (विष्णुपुराण ३/६/२४) |
| सात्त्विकेषु पुराणेषु माहात्म्यमधिकं हरेः। राजसेषु च माहात्म्यमधिकं ब्रह्मणो विदुः॥ | | सात्त्विकेषु पुराणेषु माहात्म्यमधिकं हरेः। राजसेषु च माहात्म्यमधिकं ब्रह्मणो विदुः॥ |