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| ये छः संहितायें हैं टोटल = ८१,००० श्लोक | | ये छः संहितायें हैं टोटल = ८१,००० श्लोक |
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− | इस पुराण का विभाजन विभिन्न खण्डों में भी किया गया है, यथा - माहेश्वरखंड, वैष्णवखण्ड, ब्रह्मखण्ड, काशीखण्ड, ध्वनिखण्ड, रेवाखंड, तापीखंड तथा प्रभासक्षेत्र। | + | इस पुराण का विभाजन विभिन्न खण्डों में भी किया गया है, यथा - माहेश्वरखंड, वैष्णवखण्ड, ब्रह्मखण्ड, काशीखण्ड, ध्वनिखण्ड, रेवाखंड, तापीखंड तथा प्रभासक्षेत्र। इस पुराण का नामकरण शिव जी के पुत्र स्कन्द या कार्त्तिकेय के नाम पर किया गया है। इसमें स्कन्द द्वारा शैव तत्त्व का प्रतिपादन कराया गया है। |
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− | इस पुराण का नामकरण शिव जी के पुत्र स्कन्द या कार्त्तिकेय के नाम पर किया गया है। इसमें स्कन्द द्वारा शैव तत्त्व का प्रतिपादन कराया गया है। | |
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| ===वामन पुराण=== | | ===वामन पुराण=== |
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| ===मत्स्य पुराण=== | | ===मत्स्य पुराण=== |
− | इस पुराण का प्रारम्भ मनु तथा विष्णु के संवाद से होता है। श्रीमद्भागवत, ब्रह्मवैवर्त्तपुराण तथा रेवामाहात्म्य में इसकी श्लोक संख्या १५,००० दी गयी है। इसमें २९१ अध्याय हैं। आनन्दाश्रम पूना से प्रकाशित इस पुराण के संस्करण में कुल १४,००० हजार श्लोक प्राप्त होते हैं। इस पुराण का आरम्भ प्रलयकाल की, उस घटना के साथ होता है, जब विष्णु जी ने एक मत्स्य का रूप धारण कर मनु की रक्षा की थी तथा नौकारूढ मनु को बचा कर उनके साथ संवाद किया था। | + | इस पुराण का प्रारम्भ मनु तथा विष्णु के संवाद से होता है। श्रीमद्भागवत, ब्रह्मवैवर्त्तपुराण तथा रेवामाहात्म्य में इसकी श्लोक संख्या १५,००० दी गयी है। इसमें २९१ अध्याय हैं। आनन्दाश्रम पूना से प्रकाशित इस पुराण के संस्करण में कुल १४,००० हजार श्लोक प्राप्त होते हैं। इस पुराण का आरम्भ प्रलयकाल की, उस घटना के साथ होता है, जब विष्णु जी ने एक मत्स्य का रूप धारण कर मनु की रक्षा की थी तथा नौकारूढ मनु को बचा कर उनके साथ संवाद किया था। जिस पुराण में सृष्टि के प्रारंभ में भगवान् जनार्दन विष्णु ने मात्स्य रूप धारण कर मनु के लिए, वेदों में लोक प्रवृत्ति के लिए, नरसिंहावतार के विषय के प्रसंग से सात कल्प वृत्तान्तों का वर्णन किया है, उसे मत्स्यपुराण के नाम से जाना जाता है। |
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− | जिस पुराण में सृष्टि के प्रारंभ में भगवान् जनार्दन विष्णु ने मात्स्य रूप धारण कर मनु के लिए, वेदों में लोक प्रवृत्ति के लिए, नरसिंहावतार के विषय के प्रसंग से सात कल्प वृत्तान्तों का वर्णन किया है, उसे मत्स्यपुराण के नाम से जाना जाता है। | |
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| ===गरुड पुराण=== | | ===गरुड पुराण=== |
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| शिवपुराण तथा वायुपुराण के सम्बन्ध में विद्वानों में मतैक्य नहीं है। कुछ विद्वानों के अनुसार दोनों ही पुराण अभिन्न हैं और कतिपय वुद्वान् इन्हें स्वतन्त्र पुराण के रूप में मान्यता प्रदान करते हैं। कुछ विद्वान् विभिन्न पुराणों में निर्दिष्ट सूची के अनुसार शिवपुराण को चतुर्थ स्थान प्रदान करते हैं। | | शिवपुराण तथा वायुपुराण के सम्बन्ध में विद्वानों में मतैक्य नहीं है। कुछ विद्वानों के अनुसार दोनों ही पुराण अभिन्न हैं और कतिपय वुद्वान् इन्हें स्वतन्त्र पुराण के रूप में मान्यता प्रदान करते हैं। कुछ विद्वान् विभिन्न पुराणों में निर्दिष्ट सूची के अनुसार शिवपुराण को चतुर्थ स्थान प्रदान करते हैं। |
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| + | ==महापुराणों का वर्गीकरण== |
| + | मत्स्यपुराण (५३।२७-२८) के अनुसार पुराणों का त्रिविध विभाजन माना गया है - सात्त्विकपुराण, राजसपुराण और तामसपुराण। जिन पुराणों में विष्णु भगवान का अधिक महत्त्व बताया गया है वह सात्त्विकपुराण, जिसमें भगवान शिव का महत्व अधिक बताया गया है, वह तामसपुराण और राजस पुराणों में ब्रह्मा तथा अग्नि का अधिक महत्त्व वर्णित है - <blockquote>महापुराणान्येतानि ह्यष्टादश महामुने। तथा चोपपुराणानि मुनिभः कथितानि च॥ (विष्णुपुराण ३/६/२४) |
| + | सात्त्विकेषु पुराणेषु माहात्म्यमधिकं हरेः। राजसेषु च माहात्म्यमधिकं ब्रह्मणो विदुः॥ |
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| + | तद्वदग्नेर्माहात्म्यं तामसेषु शिवस्य च। संकीर्णेषु सरस्वत्याः पितॄणां च निगद्यते॥ (मत्स्यपुराण ५३, ६८-६९) </blockquote>इन अट्ठारह पुराणोंका वर्गीकरण अनेक प्रकार से देखा जाता है। जैसे - ज्ञानकोशीय पुराण - अग्नि, गरुड एवं नारद। तीर्थ से सम्बन्धित पुराण - पद्म, स्कन्द एवं भविष्य। साम्प्रदायिक पुराण - लिंग, वामन एवं मार्कण्डेय। ऐतिहासिक पुराण - वायु एवं ब्रह्माण्ड। |
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| + | *इसी तरह पुराणों का वर्गीकरण प्राचीन और प्राचीनेतर को लेकर भी किया जाता है, जैसे - वायु, ब्रह्माण्ड, मत्स्य और विष्णु यह प्राचीन प्रतीत होते हैं अन्य सभी प्राचीनेतर। |
| + | *स्कन्दपुराण में पुराणों का वर्गीकरण देवताओं के आधार पर किया गया है। |
| + | *पञ्चलक्षणात्मक वर्गीकरण भी पुराणों का देखा जाता है। |
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| + | {| class="wikitable" |
| + | |+पुराण विभाजन |
| + | ! |
| + | ! |
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| + | |- |
| + | |सात्त्विक पुराण |
| + | |विष्णु, नारद, भागवत, गरुड, पद्म, वराह |
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| + | | |
| + | |- |
| + | |तामस पुराण |
| + | |मत्स्य कूर्म, लिंग, शिव, अग्नि तथा स्कान्द |
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| + | |- |
| + | |राजस पुराण |
| + | |ब्रह्माण्ड, ब्रह्मवैवर्त, मार्कण्डेय, ब्रह्म, वामन तथा भविष्य |
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| + | |} |
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| ==महापुराण का महत्त्व== | | ==महापुराण का महत्त्व== |
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| #'''आचार-विचार -''' पुराणों में दान, दया, अतिथि सेवा, सर्वधर्मसमभाव, उदार दृष्टि, व्रत के प्रति निष्ठा इत्यादि मानवीय गुणों का प्रकाशन कथाओं के द्वारा किया गया है। सद्गुणों के प्रति आकर्षण और दोषों से निवृत्ति के उपाय का वर्णन सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है। | | #'''आचार-विचार -''' पुराणों में दान, दया, अतिथि सेवा, सर्वधर्मसमभाव, उदार दृष्टि, व्रत के प्रति निष्ठा इत्यादि मानवीय गुणों का प्रकाशन कथाओं के द्वारा किया गया है। सद्गुणों के प्रति आकर्षण और दोषों से निवृत्ति के उपाय का वर्णन सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है। |
| #'''ज्ञान-विज्ञान -''' कुछ पुराणों में व्याकरण, काव्यशास्त्र, ज्योतिष, आयुर्वेद, शरीर विज्ञान आदि शास्त्रीय तथा वैज्ञानिक विषयों का संकलन है। | | #'''ज्ञान-विज्ञान -''' कुछ पुराणों में व्याकरण, काव्यशास्त्र, ज्योतिष, आयुर्वेद, शरीर विज्ञान आदि शास्त्रीय तथा वैज्ञानिक विषयों का संकलन है। |
| + | #'''भौगोलिक महत्व -''' अनेक पुराणों में भुवनकोश प्रकरण के द्वारा भूमण्डल का यथासाध्य जानकारी प्राप्त होती है। भारत के विभिन्न भूभागों के साथ-साथ नदियों, पर्वतों, झीलों, वनों, मरुस्थलों, नगरों, प्रदेशों एवं जातियों का भी विवरण प्राप्त होता है। |
| + | #'''सामाजिक महत्व -''' पुराणों में भारतीय समाज की व्यवस्था का न केवल चित्रण है, अपितु आदर्श समाज बनाने की व्यापक विधियाँ वर्णित हैं। वर्णाश्रम के गुण कर्म, विविध संस्कार, पारिवारिक सम्बन्ध, राजधर्म, स्त्रीधर्म, गुरु-शिष्य के बीच सम्बन्ध इत्यादि के विवरण है। |
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| ===उपपुराण=== | | ===उपपुराण=== |
| + | उपपुराणों के स्रोत महापुराण ही हैं इसमें किसी की विमति नहीं है। परन्तु महापुराणों की कथावस्तुओं को कहीं पर संक्षिप्त कर दिया गया है तो कहीं पर विस्तृत कर दिया गया है। अतः उपपुराणों का रसास्वाद अन्य पुराणों की अपेक्षा भिन्न ही हैं। स्कन्दपुराण उपपुराणों की मान्यता को निम्न प्रकार से स्वीकार करता है - <blockquote>तथैवोपपुराणानि यानि चोक्तानि वेधसा। (स्क० पु० १, ५४)</blockquote>ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार - <blockquote>अष्टादशपुराणानामेवमेवं विदुर्बुधाः। एवञ्चोपपुराणानामष्टादश प्रकीर्तिताः॥ (ब्र०वै० श्रीकृष्ण जन्मख० १३१, २२)</blockquote>पद्मपुराण के अनुसार उपपुराणों का क्रम इस प्रकार है - <blockquote>तथा चोपपुराणानि कथयिष्याम्यतः परम्। आद्यं सनत्कुमाराख्यं नारसिंहमतः परम्॥ |
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| + | तृतीयं माण्डमुद्दिष्टं दौर्वाससमथैव च। नारदीयमथान्यच्च कापिलं मानवं तथा॥ |
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| + | तद्वदौशनसं प्रोक्तं ब्रह्माण्डं च ततः परम् । वारुणं कालिकास्वानं माहेशं साम्बमेव च॥ |
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| + | सौरं पाराशरं चैव मारीचं भार्गवायम्। कौमारं च पुराणानि कीर्तितान्यष्ट वै दश॥ (पद्म महा० पु० पातालखण्डे ११३, ६३-६७)</blockquote>भाषार्थ - सनत्कुमार, नारसिंह, आण्ड, दौर्वासस, नारदीय, कपिल, मानव, औशनस, ब्रह्माण्ड, वारुण, कालिका, माहेन, साम्ब, सौर, पाराशर, मारीच, भार्गव और कौमार ये पद्मपुराण के अनुसार अट्ठारह उपपुराण हैं। |
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| ===औपपुराण=== | | ===औपपुराण=== |
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| ==सारांश== | | ==सारांश== |
| वेदों में निर्गुण निराकार की उपासना पर बल दिया गया था। निराकार ब्रह्म की वैदिक अवधारणा में पुराणों ने साकार ब्रह्मा की सगुण उपासना को जोडा। पुराणों में मन्वन्तर एवं कल्पों का सिद्धान्त प्रतिपादित है। यह एक अत्यन्त गम्भीर विषय है। वास्तव में काल-प्रवाह अनन्त है। पुराणों में चतुर्दश विद्याओं का तो संग्रह है ही, वेदार्थ भी सम्यक् प्रतिपादित हैं। साथ ही आत्मज्ञान, ब्रह्मविद्या, सांख्य, योग, धर्मनीति, अर्थशास्त्र, ज्योतिष एवं अन्यान्य कला-विज्ञानों का भी समावेश हुआ है। | | वेदों में निर्गुण निराकार की उपासना पर बल दिया गया था। निराकार ब्रह्म की वैदिक अवधारणा में पुराणों ने साकार ब्रह्मा की सगुण उपासना को जोडा। पुराणों में मन्वन्तर एवं कल्पों का सिद्धान्त प्रतिपादित है। यह एक अत्यन्त गम्भीर विषय है। वास्तव में काल-प्रवाह अनन्त है। पुराणों में चतुर्दश विद्याओं का तो संग्रह है ही, वेदार्थ भी सम्यक् प्रतिपादित हैं। साथ ही आत्मज्ञान, ब्रह्मविद्या, सांख्य, योग, धर्मनीति, अर्थशास्त्र, ज्योतिष एवं अन्यान्य कला-विज्ञानों का भी समावेश हुआ है। |
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| + | पुराणों में अनेक प्रसंगों में ऐतिहासिक वीर-गाथाओं, मिथकीय पुराकथाओं, आचारात्मक नीति-कथाओं आदि का, मूल वक्तव्य को स्पष्ट करने के लिए समावेश किया गया है। |
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| ==उद्धरण== | | ==उद्धरण== |