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==महापुराणों का परिचय==
 
==महापुराणों का परिचय==
अष्टादश महापुराण संस्कृत वांग्मयकी अमूल्य निधि हैं। ये अत्यन्त प्राचीन तथा वेदार्थको स्पष्ट करनेवाले हैं, व पुराण कहा गया है। पुराणोंकी अनादिता, प्रामाणिकता, मंगलमयता तथा यथार्थताका शास्त्रोंमें सर्वत्र उल्लेख है। महापुराण जिसके अन्तर्गत शिवमहापुराण एवं श्रीमद्देवी-भागवत महापुराण भी सन्निविष्ट है। इन दोनों पुराणों को महापुराण माना जाय या नहीं इस पर विद्वानों के मतभेद हैं। यह मतभेद शास्त्र पर आधारित है<ref>कल्याण पत्रिका - राधेश्याम खेमका, [https://ia801501.us.archive.org/30/items/in.ernet.dli.2015.402144/2015.402144.Kalyaan-Puran.pdf पुराणकथांक- महापुराण और उनके पावन-प्रसंग], सन् १९८९, गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० १३१)।</ref> -
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अष्टादश महापुराण संस्कृत वांग्मयकी अमूल्य निधि हैं। ये अत्यन्त प्राचीन तथा वेदार्थको स्पष्ट करनेवाले हैं, व पुराण कहा गया है। पुराणोंकी अनादिता, प्रामाणिकता, मंगलमयता तथा यथार्थताका शास्त्रोंमें सर्वत्र उल्लेख है। महापुराण जिसके अन्तर्गत शिवमहापुराण एवं श्रीमद्देवी-भागवत महापुराण भी सन्निविष्ट है। इन दोनों पुराणों को महापुराण माना जाय या नहीं इस पर विद्वानों के मतभेद हैं। यह मतभेद शास्त्र पर आधारित है<ref>कल्याण पत्रिका - राधेश्याम खेमका, [https://ia801501.us.archive.org/30/items/in.ernet.dli.2015.402144/2015.402144.Kalyaan-Puran.pdf पुराणकथांक- महापुराण और उनके पावन-प्रसंग], सन् १९८९, गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० १३१)।</ref> -<blockquote>मद्वयं भद्वयं चैव ब्रत्रयं वचतुष्टयम्। अनापद्लिंग-कू स्कानि पुराणानि पृथक्-पृथक् ॥ (देवी भाग० १,३,२१)</blockquote>भाषार्थ - मद्वयं - मत्स्य, मार्कण्डेय, भद्वय- भागवत, भविष्य, ब्रत्रयं - ब्रह्म, ब्रह्मवैवर्त, ब्रह्माण्ड, वचतुष्टय- वामन, विष्णु, वाराह, वायु, अ - अग्नि, न - नारद पुराण, प - पद्म , लिं- लिंग, कू - कूर्म, स्क - स्कन्द पुराण। भारतीय जीवन पद्धति को पुराणों ने बहुत अधिक प्रभावित किया है। पुराण धार्मिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक एवं अनेक प्रकार के शास्त्रीय ज्ञानों का अद्वितीय भण्डार है।<ref>उषा कनक, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/182658 शिव महापुराण एवं मत्स्य पुराण में प्रतिपादित भूगोल का समीक्षात्मक अध्ययन], सन् २००४,शोधगंगा-वी०बी०एस० पूर्वाञ्चल विश्वविद्यालय (पृ० ३१)।</ref>
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=== श्रीमद्भागवत महापुराण===
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===श्रीमद्भागवत महापुराण===
 
श्रीमद्भागवत सर्वाधिक महत्त्व पुराण हैं। इसमें १८ हजार श्लोक उपलब्ध हैं। श्रीमद्भागवत में १२ स्कन्ध एवं ३३५ अध्याय हैं। स्कन्ध एवं अध्यायों की संगति अन्य पुराणों में कथित श्रीमद्भागवत-विषयक विवरणों से बैठ जाती है, पर-श्लोक संख्या मेल नहीं खातीं नारदीय-पुराण, कौशिक संहिता गौरी तंत्र, गरुड पुराण, स्कन्द पुराण, सात्वततंत्रा आदि ग्रंथों में बारह-स्कन्ध, ३६५ अध्याय एवं १८ हजार श्लोकों का विवरण है।  
 
श्रीमद्भागवत सर्वाधिक महत्त्व पुराण हैं। इसमें १८ हजार श्लोक उपलब्ध हैं। श्रीमद्भागवत में १२ स्कन्ध एवं ३३५ अध्याय हैं। स्कन्ध एवं अध्यायों की संगति अन्य पुराणों में कथित श्रीमद्भागवत-विषयक विवरणों से बैठ जाती है, पर-श्लोक संख्या मेल नहीं खातीं नारदीय-पुराण, कौशिक संहिता गौरी तंत्र, गरुड पुराण, स्कन्द पुराण, सात्वततंत्रा आदि ग्रंथों में बारह-स्कन्ध, ३६५ अध्याय एवं १८ हजार श्लोकों का विवरण है।  
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भगवान् व्यास-सरीखे भगवत्स्वरूप महापुरुषको जिसकी रचनासे ही शान्ति मिली - जिसमें सकाम कर्म, निष्काम कर्म , साधनज्ञान, सिद्धज्ञान, साधनभक्ति, साध्यभक्ति, वैधी भक्ति, प्रेमा भक्ति, मर्यादार्ग, अनुग्रहमार्ग, द्वैत, अद्वैत और द्वैताद्वैत आदि सभीका परम रहस्य बडी ही मधुरताके साथ भरा हुआ है।<ref>महर्षिवेद व्यास - [https://ia801706.us.archive.org/0/items/srimad-bhagavat-mahapuran-2-volume-set-sanskrit-hindi/Srimad%20Bhagavat%20Mahapuran%20Volume%201%20Sanskrit%20Hindi.pdf श्रीमद्भागवतमहापुराण], गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० ५)।</ref>
    
===ब्रह्म पुराण===
 
===ब्रह्म पुराण===
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===पद्मपुराण===
 
===पद्मपुराण===
पद्मपुराण एक बृहदाकार पुराण है, जिसमें पचास हजार श्लोक एवं ६४१ अध्याय हैं। इसके दो रूप प्राप्त होते हैं - प्रकाशित देवनागरी संस्करण एवं हस्तलिखित बंगालीसंस्करण। आनन्दाश्रम (१८९४ ई०) से प्रकाशित देवनागरी संस्करण में छह खण्ड हैं , जिसका संपादन बी०एन० माण्डलिक ने किया था। वे हैं - आदिखण्ड, भूमिखण्ड, ब्रह्मखण्ड, पातालखण्ड, सृष्टिखण्ड और उत्तरखण्ड। इस संस्करण के उत्तरखण्द में इस बात के संकेत हैं कि मुख्यतः इसमें पांच ही खण्ड थे और छह खण्डों की कल्पना कालान्तर में की गयी।
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पद्मपुराण एक बृहदाकार पुराण है, जिसमें पचास हजार श्लोक एवं ६४१ अध्याय हैं। इसके दो रूप प्राप्त होते हैं - प्रकाशित देवनागरी संस्करण एवं हस्तलिखित बंगालीसंस्करण। आनन्दाश्रम (१८९४ ई०) से प्रकाशित देवनागरी संस्करण में छह खण्ड हैं, जिसका संपादन बी०एन० माण्डलिक ने किया था। वे हैं - आदिखण्ड, भूमिखण्ड, ब्रह्मखण्ड, पातालखण्ड, सृष्टिखण्ड और उत्तरखण्ड। इस संस्करण के उत्तरखण्द में इस बात के संकेत हैं कि मुख्यतः इसमें पांच ही खण्ड थे और छह खण्डों की कल्पना कालान्तर में की गयी।
    
* पद्मपुराण में सुभाषितों का संग्रह उपलब्ध है।
 
* पद्मपुराण में सुभाषितों का संग्रह उपलब्ध है।
* पद्मपुराण में वर्णित विषयों का सार आदि खण्ड में है।
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*पद्मपुराण में वर्णित विषयों का सार आदि खण्ड में है।
    
===विष्णु पुराण===
 
===विष्णु पुराण===
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मार्कण्डेय ऋषि के नाम पर इस पुराण का नामकरण किया गया है, जो इसके प्रवक्ता है। शिवपुराण के उत्तर खण्ड में इस प्रकार का कथन है कि मार्कण्डेय मुनि इस पुराण के वक्ता हैं और यह सप्तम पुराण है।
 
मार्कण्डेय ऋषि के नाम पर इस पुराण का नामकरण किया गया है, जो इसके प्रवक्ता है। शिवपुराण के उत्तर खण्ड में इस प्रकार का कथन है कि मार्कण्डेय मुनि इस पुराण के वक्ता हैं और यह सप्तम पुराण है।
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===अग्निपुराण===
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=== अग्निपुराण===
 
अग्नि द्वारा वसिष्ठ को उपदेश दिये जाने के कारन इस पुराण का नाम अग्नि पुराण है। पौराणिक क्रम से इसे अष्टम स्थान प्राप्त है। यह पुराण भारतीय कला, दर्शन, संस्कृति और साहित्य का विश्व कोश माना जाता है, जिसमें शताब्दियों के प्रबह-मान भारतीय विद्या का सार उपन्यस्त है।
 
अग्नि द्वारा वसिष्ठ को उपदेश दिये जाने के कारन इस पुराण का नाम अग्नि पुराण है। पौराणिक क्रम से इसे अष्टम स्थान प्राप्त है। यह पुराण भारतीय कला, दर्शन, संस्कृति और साहित्य का विश्व कोश माना जाता है, जिसमें शताब्दियों के प्रबह-मान भारतीय विद्या का सार उपन्यस्त है।
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ब्रह्म के विवर्त्त के प्रसंग के कारण इस पुराण की संज्ञा ब्रह्मवैवर्त्त है। यह पुराण चार खण्डों में विभक्त है - ब्रह्म खण्ड, प्रकृति खण्ड, गणेश खण्ड तथा कृष्ण-जन्म-खण्ड और श्लोकों की संख्या अट्ठारह हजार है। यह वैष्णव पुराण है जिसका प्रतिपाद्य विषय श्रीकृष्ण के चरित्र का विस्तारपूर्वक वर्णन कर वैष्णव तथ्यों का प्रकाशन है।
 
ब्रह्म के विवर्त्त के प्रसंग के कारण इस पुराण की संज्ञा ब्रह्मवैवर्त्त है। यह पुराण चार खण्डों में विभक्त है - ब्रह्म खण्ड, प्रकृति खण्ड, गणेश खण्ड तथा कृष्ण-जन्म-खण्ड और श्लोकों की संख्या अट्ठारह हजार है। यह वैष्णव पुराण है जिसका प्रतिपाद्य विषय श्रीकृष्ण के चरित्र का विस्तारपूर्वक वर्णन कर वैष्णव तथ्यों का प्रकाशन है।
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===लिंग पुराण ===
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===लिंग पुराण===
 
यह शिवपूजा एवं लिंगोपासना के रहस्य को बतलाने वाला तथा शिव-तत्त्व का प्रतिपादक पुराण है। इसके आरम्भ में लिंग शब्द का अर्थ ओंकार किया गया है, जिसका अभिप्राय यह है कि शब्द तथा अर्थ दोनों ही ब्रह्म के विवर्त रूप हैं। इसमें बताया गया है कि ब्रह्म सच्चिदानन्द स्वरूप है और उसके तीन रूप- सत्ता, चेतना और आनन्द आपस में संबद्ध हैं।
 
यह शिवपूजा एवं लिंगोपासना के रहस्य को बतलाने वाला तथा शिव-तत्त्व का प्रतिपादक पुराण है। इसके आरम्भ में लिंग शब्द का अर्थ ओंकार किया गया है, जिसका अभिप्राय यह है कि शब्द तथा अर्थ दोनों ही ब्रह्म के विवर्त रूप हैं। इसमें बताया गया है कि ब्रह्म सच्चिदानन्द स्वरूप है और उसके तीन रूप- सत्ता, चेतना और आनन्द आपस में संबद्ध हैं।
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===स्कन्द पुराण===
 
===स्कन्द पुराण===
यह सर्वाधिक विशाल पुराण है, जिसकी श्लोक संख्या ८१००० है। इस पुराण में ६ संहितायें हैं -  
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यह सर्वाधिक विशाल पुराण है, जिसकी श्लोक संख्या ८१००० है। स्कन्दपुराण का विभाजन दो प्रकार से उपलब्ध होता है - 1. खंडात्मक, 2. संहितात्मक। संहितात्मक विभाग में ६ संहितायें हैं -  
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# सनत्कुमार संहिता - ३६,०००
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#सनत्कुमार संहिता - ३६,०००
 
#सूत संहिता - ६,०००
 
#सूत संहिता - ६,०००
 
#शंकर संहिता - ३०,०००
 
#शंकर संहिता - ३०,०००
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#सौर संहिता - १,०००
 
#सौर संहिता - १,०००
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टोटल = ८१,००० श्लोक
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ये छः संहितायें हैं  टोटल = ८१,००० श्लोक
    
इस पुराण का विभाजन विभिन्न खण्डों में भी किया गया है, यथा - माहेश्वरखंड, वैष्णवखण्ड, ब्रह्मखण्ड, काशीखण्ड, ध्वनिखण्ड, रेवाखंड, तापीखंड तथा प्रभासक्षेत्र।
 
इस पुराण का विभाजन विभिन्न खण्डों में भी किया गया है, यथा - माहेश्वरखंड, वैष्णवखण्ड, ब्रह्मखण्ड, काशीखण्ड, ध्वनिखण्ड, रेवाखंड, तापीखंड तथा प्रभासक्षेत्र।
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पुराण का शाब्दिक अर्थ है - प्राचीन आख्यान या पुरानी कथा। पुरा शब्द का अर्थ है - अनागत एवं अतीत। अण शब्द का अर्थ होता है - कहना या बतलाना। पुराण मनुष्य को धर्म एवं नीति के अनुसार जीवन व्यतीत करने की शिक्षा देते हैं। पुराण मनुष्य के कर्मों का विश्लेषण कर उन्हें दुष्कर्म करने से रोकते हैं। पुराण वस्तुतः वेदों का विस्तार हैं। इस प्रकार पुराण मानव संस्कृति को समृद्ध करने तथा सरल बनाने में अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुये हैं तथा इनका प्रचार भी वेदव्यास जी के कारण जन-जन तक सरल भाषा में हो पाया है।
 
पुराण का शाब्दिक अर्थ है - प्राचीन आख्यान या पुरानी कथा। पुरा शब्द का अर्थ है - अनागत एवं अतीत। अण शब्द का अर्थ होता है - कहना या बतलाना। पुराण मनुष्य को धर्म एवं नीति के अनुसार जीवन व्यतीत करने की शिक्षा देते हैं। पुराण मनुष्य के कर्मों का विश्लेषण कर उन्हें दुष्कर्म करने से रोकते हैं। पुराण वस्तुतः वेदों का विस्तार हैं। इस प्रकार पुराण मानव संस्कृति को समृद्ध करने तथा सरल बनाने में अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुये हैं तथा इनका प्रचार भी वेदव्यास जी के कारण जन-जन तक सरल भाषा में हो पाया है।
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*पुराणों की संख्या अनेक हो सकती है लेकिन महापुराण १८(अट्ठारह) ही हैं।
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* पुराणों की संख्या अनेक हो सकती है लेकिन महापुराण १८(अट्ठारह) ही हैं।
 
*पुराण संक्षिप्त हैं तथा महापुराण बृहत हैं।
 
*पुराण संक्षिप्त हैं तथा महापुराण बृहत हैं।
 
*पुराण विषय वस्तु की दृष्टि से संक्षिप्त तथा महापुराण में विषयों की भरमार है।
 
*पुराण विषय वस्तु की दृष्टि से संक्षिप्त तथा महापुराण में विषयों की भरमार है।
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