Line 1: |
Line 1: |
− | महापुराण भारतीय ज्ञान परंपरा के धर्म सम्बन्धी आख्यान ग्रन्थ हैं, जिनमें ऋषियों, राजाओं और जगत से संबंधित वृत्तान्त आदि हैं। ये वैदिक काल के बाद के ग्रन्थ हैं, जो स्मृति विभाग में आते हैं। महापुराणों में वर्णित विषयों की कोई सीमा नहीं है। इसमें ब्रह्माण्डविद्या, देवी देवताओं, राजाओं, नायकों, ऋषि मुनियों की वंशावली, लोककथाएँ, तीर्थयात्रा, मन्दिर, चिकित्सा, खगोलशास्त्र, धर्मशास्त्र, दर्शन और खनिज विज्ञान आदि का भी वर्णन है। | + | महापुराण भारतीय ज्ञान परंपरा के धर्म सम्बन्धी आख्यान ग्रन्थ हैं, जिनमें ऋषियों, राजाओं और जगत से संबंधित वृत्तान्त आदि हैं। ये वैदिक काल के बाद के ग्रन्थ हैं, जो स्मृति विभाग में आते हैं। महापुराणों में वर्णित विषयों की कोई सीमा नहीं है। इसमें ब्रह्माण्डविद्या, देवी देवताओं, राजाओं, नायकों, ऋषि मुनियों की वंशावली, लोककथाएँ, तीर्थयात्रा, मन्दिर, चिकित्सा, खगोलशास्त्र, धर्मशास्त्र, दर्शन और विज्ञान आदि अनेक विषयों पर विशद चर्चा एवं ज्ञान उपलब्ध होता है। |
| + | |
| + | ==परिचय== |
| | | |
− | == परिचय ==
| |
| महापुराणों के लेखक व्यास (कृष्णद्वैपायन, वेदव्यास) है। वे पराशर ऋषि के पुत्र थे। वेदव्यास को यमुनाद्वीप में जन्म के कारण द्वैपायन, शरीर से कृष्णवर्ण होने के कारण कृष्णमुनि तथा वैदिक मन्त्रों को याज्ञिक उपयोग के लिए चार वेदों में विभक्त करने के कारण वेदव्यास भी कहा गया है। महापुराणों के क्रम का आधार श्रीमद्भागवत को माना गया है - <blockquote>ब्राह्मं पाद्मं वैष्णवं च शैवं लैङ्गं सगारुडम्। नारदीयं भागवतमाग्नेयं स्कान्दसंज्ञितम्॥ | | महापुराणों के लेखक व्यास (कृष्णद्वैपायन, वेदव्यास) है। वे पराशर ऋषि के पुत्र थे। वेदव्यास को यमुनाद्वीप में जन्म के कारण द्वैपायन, शरीर से कृष्णवर्ण होने के कारण कृष्णमुनि तथा वैदिक मन्त्रों को याज्ञिक उपयोग के लिए चार वेदों में विभक्त करने के कारण वेदव्यास भी कहा गया है। महापुराणों के क्रम का आधार श्रीमद्भागवत को माना गया है - <blockquote>ब्राह्मं पाद्मं वैष्णवं च शैवं लैङ्गं सगारुडम्। नारदीयं भागवतमाग्नेयं स्कान्दसंज्ञितम्॥ |
| | | |
| भविष्यं ब्रह्मवैवर्तं मार्कण्डेयं सवामनम्। वाराहं मात्स्यं कौमं ब्रह्माण्डाख्यमिति त्रिषट्। (भागवत पु० १२- २३/२४)</blockquote>अर्थात ब्रह्म, पद्म, विष्णु, शिव, लिंग, गरुड, नारद, भागवत, अग्नि, स्कन्द, भविष्य, ब्रह्मवैवर्त, मार्कण्डेय, वामन, वराह, मत्स्य, कूर्म और ब्रह्माण्ड - ये अट्ठारह महापुराण कहे गये हैं। विष्णुपुराण के अनुसार - <blockquote>महापुराणान्येतानि ह्यष्टादश महामुनेः। तथा चोपपुराणानि मुनिभिः कथितानि च॥ (विष्णु पु० ३,६,२४)</blockquote>उपर्युक्त १८ महापुराण एवं अट्ठारह उपपुराण भी मुनियों के द्वारा कहे गये हैं। | | भविष्यं ब्रह्मवैवर्तं मार्कण्डेयं सवामनम्। वाराहं मात्स्यं कौमं ब्रह्माण्डाख्यमिति त्रिषट्। (भागवत पु० १२- २३/२४)</blockquote>अर्थात ब्रह्म, पद्म, विष्णु, शिव, लिंग, गरुड, नारद, भागवत, अग्नि, स्कन्द, भविष्य, ब्रह्मवैवर्त, मार्कण्डेय, वामन, वराह, मत्स्य, कूर्म और ब्रह्माण्ड - ये अट्ठारह महापुराण कहे गये हैं। विष्णुपुराण के अनुसार - <blockquote>महापुराणान्येतानि ह्यष्टादश महामुनेः। तथा चोपपुराणानि मुनिभिः कथितानि च॥ (विष्णु पु० ३,६,२४)</blockquote>उपर्युक्त १८ महापुराण एवं अट्ठारह उपपुराण भी मुनियों के द्वारा कहे गये हैं। |
| | | |
− | == परिभाषा == | + | ==परिभाषा== |
| + | |
| + | == महापुराणों की ऐक्यता == |
| + | वेदों के महत्व के बाद पुराणों के वैशिष्ट्य को मानते हुए श्रीमद्भागवत महापुराण ने पुराणों को पञ्चम वेद का स्थान दिया है - <blockquote>इतिहासपुराणानि पञ्चमं वेदमीश्वरः। सर्वेभ्य एव वक्त्रेभ्यः विसृजे सर्वदर्शनः॥ (भाग०पु० ३/१२/३९)</blockquote>पौरस्त्य विद्वद् गण इसे परब्रह्म के निःश्वास-प्रश्वास के रूप में मानते हैं।<ref>डॉ० बलदेव उपाध्याय, [https://archive.org/details/sanskrit-vangmaya-ka-brihat-itihas-purana-xiii-gangadhar-panda/page/n26/mode/1up?view=theater संस्कृत वाड़्मय का बृहद् इतिहास-पुराण खण्ड], सन् २००६, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ ( पृ० २७)।</ref> |
| + | |
| + | ==महापुराणों का परिचय== |
| + | अष्टादश महापुराण संस्कृत वांग्मयकी अमूल्य निधि हैं। ये अत्यन्त प्राचीन तथा वेदार्थको स्पष्ट करनेवाले हैं, व पुराण कहा गया है। पुराणोंकी अनादिता, प्रामाणिकता, मंगलमयता तथा यथार्थताका शास्त्रोंमें सर्वत्र उल्लेख है<ref>कल्याण पत्रिका - राधेश्याम खेमका, [https://ia801501.us.archive.org/30/items/in.ernet.dli.2015.402144/2015.402144.Kalyaan-Puran.pdf पुराणकथांक- महापुराण और उनके पावन-प्रसंग], सन् १९८९, गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० १३१)।</ref> - |
| + | |
| + | ===श्रीमद्भागवत महापुराण=== |
| + | श्रीमद्भागवत सर्वाधिक महत्त्व पुराण हैं। इसमें १८ हजार श्लोक उपलब्ध हैं। श्रीमद्भागवत में १२ स्कन्ध एवं ३३५ अध्याय हैं। स्कन्ध एवं अध्यायों की संगति अन्य पुराणों में कथित श्रीमद्भागवत-विषयक विवरणों से बैठ जाती है, पर-श्लोक संख्या मेल नहीं खातीं नारदीय-पुराण, कौशिक संहिता गौरी तंत्र, गरुड पुराण, स्कन्द पुराण, सात्वततंत्रा आदि ग्रंथों में बारह-स्कन्ध, ३६५ अध्याय एवं १८ हजार श्लोकों का विवरण है। |
| + | |
| + | ===ब्रह्म पुराण=== |
| + | यह ब्रह्म या ब्राह्म पुराण के नाम से विख्यात है। इसे समस्त पुराणों में आदि या आद्य पुराण के रूप में परिगणित किया गया है। विष्णुपुराण इस तथ्य की पुष्टि करता है और स्वयं ब्रह्मपुराण में भी इसे अग्रिम पुराण का पद प्रदान किया गय है। |
| + | |
| + | ===पद्मपुराण=== |
| + | पद्मपुराण एक बृहदाकार पुराण है, जिसमें पचास हजार श्लोक एवं ६४१ अध्याय हैं। इसके दो रूप प्राप्त होते हैं - प्रकाशित देवनागरी संस्करण एवं हस्तलिखित बंगालीसंस्करण। आनन्दाश्रम (१८९४ ई०) से प्रकाशित देवनागरी संस्करण में छह खण्ड हैं , जिसका संपादन बी०एन० माण्डलिक ने किया था। वे हैं - आदिखण्ड, भूमिखण्ड, ब्रह्मखण्ड, पातालखण्ड, सृष्टिखण्ड और उत्तरखण्ड। इस संस्करण के उत्तरखण्द में इस बात के संकेत हैं कि मुख्यतः इसमें पांच ही खण्ड थे और छह खण्डों की कल्पना कालान्तर में की गयी। |
| + | |
| + | ===विष्णु पुराण=== |
| + | विष्णु पुराण वैष्णवों का प्रमुख ग्रन्थ माना जात है। इसकी महत्ता इस रूप में सिद्ध है कि वैष्णव आचार्य रामानुज ने अपने श्रीभाष्य में प्रमाण स्वरूप इसके उद्धरण दिये हैं। |
| + | |
| + | ===वायु पुराण=== |
| + | वायु पुराण में ऐतिहासिक तत्त्वों का आधिक्य है तथा अनेक पुराणों की अपेक्षा इसमें वैज्ञानिक तथ्यों की अधिकता है। इस पुराण की रचना असीमकृष्ण के शासनकाल में हुई थी। |
| + | |
| + | ===नारदीयपुराण या बृहन्नारदीय पुराण=== |
| + | नारदीय पुराण विष्णुभक्तिपरक पुराण है, जो प्रसिद्ध विष्णुभक्त नारद के नाम पर रचित है। इसमें नारद जी विष्णुभक्ति का प्रतिपादन करते हैं। पर, इसे केवल भक्ति ग्रन्थ नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इसमें वैष्णवों के अनुष्ठानों एवं सम्प्रदायों तथा तत्संबंधी दीक्षा का विधान है। |
| + | |
| + | ===मार्कण्डेय पुराण=== |
| + | मार्कण्डेय ऋषि के नाम पर इस पुराण का नामकरण किया गया है, जो इसके प्रवक्ता है। शिवपुराण के उत्तर खण्ड में इस प्रकार का कथन है कि मार्कण्डेय मुनि इस पुराण के वक्ता हैं और यह सप्तम पुराण है। |
| + | |
| + | ===अग्निपुराण=== |
| + | अग्नि द्वारा वसिष्ठ को उपदेश दिये जाने के कारन इस पुराण का नाम अग्नि पुराण है। पौराणिक क्रम से इसे अष्टम स्थान प्राप्त है। यह पुराण भारतीय कला, दर्शन, संस्कृति और साहित्य का विश्व कोश माना जाता है, जिसमें शताब्दियों के प्रबह-मान भारतीय विद्या का सार उपन्यस्त है। |
| + | |
| + | ===भविष्य पुराण=== |
| + | भविष्य की घटनाओं वर्णन होने के कारण इसका नाम भविष्य पुराण है। बृहन्नारदीयपुराण में इसकी जो विषय-सूची दी गयी है, उसके अनुसार इसमें पाँच पर्व हैं - ब्रह्मपर्व, विष्णुपर्व, शिवपर्व, सूर्यपर्व तथा प्रतिसर्ग पर्व। भविष्यपुराण में कुल १४ हजार श्लोक हैं। |
| + | |
| + | ===ब्रह्मवैवर्त पुराण=== |
| + | ब्रह्म के विवर्त्त के प्रसंग के कारण इस पुराण की संज्ञा ब्रह्मवैवर्त्त है। यह पुराण चार खण्डों में विभक्त है - ब्रह्म खण्ड, प्रकृति खण्ड, गणेश खण्ड तथा कृष्ण-जन्म-खण्ड और श्लोकों की संख्या अट्ठारह हजार है। यह वैष्णव पुराण है जिसका प्रतिपाद्य विषय श्रीकृष्ण के चरित्र का विस्तारपूर्वक वर्णन कर वैष्णव तथ्यों का प्रकाशन है। |
| + | |
| + | ===लिंग पुराण=== |
| + | यह शिवपूजा एवं लिंगोपासना के रहस्य को बतलाने वाला तथा शिव-तत्त्व का प्रतिपादक पुराण है। इसके आरम्भ में लिंग शब्द का अर्थ ओंकार किया गया है, जिसका अभिप्राय यह है कि शब्द तथा अर्थ दोनों ही ब्रह्म के विवर्त रूप हैं। इसमें बताया गया है कि ब्रह्म सच्चिदानन्द स्वरूप है और उसके तीन रूप- सत्ता, चेतना और आनन्द आपस में संबद्ध हैं। |
| + | |
| + | शिव पुराण बतलाता है कि लिंग के चरित का कथन करने या शिवपूजा के विधान का प्रतिपादन करने के कारण इसे लिंग पुराण कहते हैं। |
| | | |
− | == महापुराण का महत्त्व == | + | ===वाराह पुराण=== |
| + | विष्णु भगवान् के वराह अवतार का वर्णन होने के कारण इसे वराह पुराण कहा जाता है। इसमें इस प्रकार का उल्लेख है कि विष्णु ने वराह का रूप धारण कर पाताल लोक से पृथ्वी का उद्धार कर, इस पुराण का प्रवचन किया था। यह समग्रतः वैष्णव पुराण है। |
| + | |
| + | ===स्कन्द पुराण=== |
| + | यह सर्वाधिक विशाल पुराण है, जिसकी श्लोक संख्या ८१००० है। इस पुराण में ६ संहितायें हैं - |
| + | |
| + | #सनत्कुमार संहिता - ३६,००० |
| + | #सूत संहिता - ६,००० |
| + | #शंकर संहिता - ३०,००० |
| + | #वैष्णव संहिता - ५,००० |
| + | #ब्रह्म संहिता - ३,००० |
| + | #सौर संहिता - १,००० |
| + | |
| + | टोटल = ८१,००० श्लोक |
| + | |
| + | इस पुराण का विभाजन विभिन्न खण्डों में भी किया गया है, यथा - माहेश्वरखंड, वैष्णवखण्ड, ब्रह्मखण्ड, काशीखण्ड, ध्वनिखण्ड, रेवाखंड, तापीखंड तथा प्रभासक्षेत्र। |
| + | |
| + | इस पुराण का नामकरण शिव जी के पुत्र स्कन्द या कार्त्तिकेय के नाम पर किया गया है। इसमें स्कन्द द्वारा शैव तत्त्व का प्रतिपादन कराया गया है। |
| + | |
| + | ===वामन पुराण=== |
| + | विष्णु भगवान् के वामनावतार से संबद्ध होने के कारण इसका नाम वामन पुराण है। इसमें ९५ अध्याय एवं दस हजार श्लोक हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार जिसमें त्रिविक्रम (वामन) भगवान् की गाथा ब्रह्मा द्वारा कीर्त्तित है और उसमें वामन द्वारा तीन पगों में ब्रह्माण्ड को नापने का वर्णन है, उसे वामन पुराण कहते हैं। इस पुराण में चार संहितायें - माहेश्वर संहिता, भागवती संहिता, सौरी संहिता तथा गाणेश्वरी संहिता हैं और पूर्व तथा उत्तर के नाम से दो विभाग किये गये हैं। इसके आरम्भ में वामनावतार की कथा वर्णित है तथा बाद के कई अध्यायों में विष्णु के अवतारों का उल्लेख है। यह विष्णुपरक पुराण है। |
| + | |
| + | ===कूर्म पुराण=== |
| + | इस पुराण का प्रारम्भ भगवान् कूर्म की प्रशंसा से होता है। प्राचीन काल में जब देवता और दानवों ने मिलकर समुद्र का मंथन किया तो भगवान् विष्णु ने कूर्म का रूप ग्रहण कर मंदराचल को अपने पृष्ठ पर धारण किया। इस पुराण में चार संहितायें रही होंगी - ब्राह्मी संहिता, भागवती संहिता, गौरी संहिता एवं वैष्णवी संहिता - पर सम्प्रति एक भाग ब्राह्मी संहिता ही प्राप्त होती है और उपलब्ध प्रति में केवल छह हजार श्लोक हैं। |
| + | |
| + | ===मत्स्य पुराण=== |
| + | इस पुराण का प्रारम्भ मनु तथा विष्णु के संवाद से होता है। श्रीमद्भागवत, ब्रह्मवैवर्त्तपुराण तथा रेवामाहात्म्य में इसकी श्लोक संख्या १५,००० दी गयी है। इसमें २९१ अध्याय हैं। आनन्दाश्रम पूना से प्रकाशित इस पुराण के संस्करण में कुल १४,००० हजार श्लोक प्राप्त होते हैं। इस पुराण का आरम्भ प्रलयकाल की, उस घटना के साथ होता है, जब विष्णु जी ने एक मत्स्य का रूप धारण कर मनु की रक्षा की थी तथा नौकारूढ मनु को बचा कर उनके साथ संवाद किया था। |
| + | |
| + | ===गरुड पुराण=== |
| + | विष्णु के वाहन गरुड के नाम पर इस पुराण का नामकरण हुआ है। इसमें विष्णु द्वारा गरुड को विश्व की सृष्टि का कथन किया गया है। यह वैष्णव पुराण है। यह पुराण पूर्व एवं उत्तर दो खण्डों में विभक्त है और उत्तर खण्ड का नाम प्रेतखण्ड भी है। इस खण्ड में मृत्यु के अनन्तर प्राणी की गति का वर्णन होने के कारण सनातनी परंपरा में श्राद्ध के समय इसका श्रवण करते हैं। |
| + | |
| + | ===ब्रह्माण्ड पुराण=== |
| + | नारदपुराण तथा मत्स्य पुराण के अनुसार इसमें १०८ अध्याय एवं बारह हजार श्लोक हैं। यह पुराण चार पादों में विभक्त - प्रक्रियापाद, अनुषंगपाद, उपोद्घातपाद तथा उपसंहारपाद। सृष्टि के विवरण से ही इस पुराण का आरम्भ होता है, तदनन्तर योग का वर्णन है। |
| + | |
| + | '''शिवपुराण''' |
| + | |
| + | शिवपुराण तथा वायुपुराण के सम्बन्ध में विद्वानों में मतैक्य नहीं है। कुछ विद्वानों के अनुसार दोनों ही पुराण अभिन्न हैं और कतिपय वुद्वान् इन्हें स्वतन्त्र पुराण के रूप में मान्यता प्रदान करते हैं। कुछ विद्वान् विभिन्न पुराणों में निर्दिष्ट सूची के अनुसार शिवपुराण को चतुर्थ स्थान प्रदान करते हैं। |
| + | |
| + | ==महापुराण का महत्त्व== |
| पुराण का शाब्दिक अर्थ है - प्राचीन आख्यान या पुरानी कथा। पुरा शब्द का अर्थ है - अनागत एवं अतीत। अण शब्द का अर्थ होता है - कहना या बतलाना। पुराण मनुष्य को धर्म एवं नीति के अनुसार जीवन व्यतीत करने की शिक्षा देते हैं। पुराण मनुष्य के कर्मों का विश्लेषण कर उन्हें दुष्कर्म करने से रोकते हैं। पुराण वस्तुतः वेदों का विस्तार हैं। इस प्रकार पुराण मानव संस्कृति को समृद्ध करने तथा सरल बनाने में अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुये हैं तथा इनका प्रचार भी वेदव्यास जी के कारण जन-जन तक सरल भाषा में हो पाया है। | | पुराण का शाब्दिक अर्थ है - प्राचीन आख्यान या पुरानी कथा। पुरा शब्द का अर्थ है - अनागत एवं अतीत। अण शब्द का अर्थ होता है - कहना या बतलाना। पुराण मनुष्य को धर्म एवं नीति के अनुसार जीवन व्यतीत करने की शिक्षा देते हैं। पुराण मनुष्य के कर्मों का विश्लेषण कर उन्हें दुष्कर्म करने से रोकते हैं। पुराण वस्तुतः वेदों का विस्तार हैं। इस प्रकार पुराण मानव संस्कृति को समृद्ध करने तथा सरल बनाने में अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुये हैं तथा इनका प्रचार भी वेदव्यास जी के कारण जन-जन तक सरल भाषा में हो पाया है। |
| | | |
− | * पुराणों की संख्या अनेक हो सकती है लेकिन महापुराण १८(अट्ठारह) ही हैं। | + | *पुराणों की संख्या अनेक हो सकती है लेकिन महापुराण १८(अट्ठारह) ही हैं। |
− | * पुराण संक्षिप्त हैं तथा महापुराण बृहत हैं। | + | *पुराण संक्षिप्त हैं तथा महापुराण बृहत हैं। |
− | * पुराण विषय वस्तु की दृष्टि से संक्षिप्त तथा महापुराण में विषयों की भरमार है। | + | *पुराण विषय वस्तु की दृष्टि से संक्षिप्त तथा महापुराण में विषयों की भरमार है। |
− | * विद्वानों की मान्यता है कि कुछ परवर्ती पुराण बोपदेव जी ने लिखे हैं, किन्तु महापुराण महर्षि व्यास के द्वारा ही लिखे गए हैं। | + | *विद्वानों की मान्यता है कि कुछ परवर्ती पुराण बोपदेव जी ने लिखे हैं, किन्तु महापुराण महर्षि व्यास के द्वारा ही लिखे गए हैं। |
− | * पुराणों में अनेक विषयों का संकलन प्राप्त होता है, अपितु महापुराण में कुछ चयनित विषयों का ही विस्तार से वर्णन प्राप्त होता है। | + | *पुराणों में अनेक विषयों का संकलन प्राप्त होता है, अपितु महापुराण में कुछ चयनित विषयों का ही विस्तार से वर्णन प्राप्त होता है। |
| + | |
| + | ==महापुराणों में वर्ण्यविषय== |
| + | समस्त रूप से पुराणों में प्रतिपादित विषय-वस्तु का निर्देश इस प्रकार किया जा सकता है - |
| + | |
| + | #'''धार्मिक सामग्री''' - देवी देवता या देवी की उपासना का विधान बताकर उनके प्रति श्रद्धा और भक्ति पुराणों में बल दिया गया है। जिस देवता की भक्ति का विधान है उसे ही श्रेष्ठ कहकर अन्य देवताओं को गौण भी बताया गया है। |
| + | #'''ऐतिहासिक सामग्री''' - वंश एवं वंशानुचरित के अन्तर्गत पौराणिक और वैदिक काल के ऋषियों और राजाओं की वंशावली के अतिरिक्त नन्द, मौर्य, शुंग, आन्ध्र तथा गुल वंश के राजाओं की सूचियाँ पुराणों में दी गयी हैं जिन पर आधुनिक इतिहासकारों को अत्यधिक विश्वास है। |
| + | #'''आचार-विचार -''' पुराणों में दान, दया, अतिथि सेवा, सर्वधर्मसमभाव, उदार दृष्टि, व्रत के प्रति निष्ठा इत्यादि मानवीय गुणों का प्रकाशन कथाओं के द्वारा किया गया है। सद्गुणों के प्रति आकर्षण और दोषों से निवृत्ति के उपाय का वर्णन सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है। |
| + | #'''ज्ञान-विज्ञान -''' कुछ पुराणों में व्याकरण, काव्यशास्त्र, ज्योतिष, आयुर्वेद, शरीर विज्ञान आदि शास्त्रीय तथा वैज्ञानिक विषयों का संकलन है। |
| + | |
| + | ===उपपुराण=== |
| | | |
− | == महापुराणों में वर्ण्यविषय == | + | ===औपपुराण=== |
| | | |
− | == सारांश == | + | ==सारांश== |
| + | वेदों में निर्गुण निराकार की उपासना पर बल दिया गया था। निराकार ब्रह्म की वैदिक अवधारणा में पुराणों ने साकार ब्रह्मा की सगुण उपासना को जोडा। |
| | | |
− | == उद्धरण == | + | ==उद्धरण== |
| [[Category:Puranas]] | | [[Category:Puranas]] |
| [[Category:Hindi Articles]] | | [[Category:Hindi Articles]] |
| + | <references /> |