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| ===महाभारत में आख्यान=== | | ===महाभारत में आख्यान=== |
− | गणेश जी जैसे-लेखक के होते हुए भी व्यास जी ने तीन वर्ष में महाभारत की रचना पूर्ण की थी - <ref>शोधगंगा-अजय कुमार वर्मा, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/311965 महाभारत के प्रमुख आख्यानों का समीक्षात्मक अध्ययन], सन् २०१०, शोधकेन्द्र-महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ (पृ० ८)।</ref><blockquote>त्रिभिर्वर्षैः सदोत्थायी कृष्णद्वैपायनो मुनिः। महाभारतमाख्यानं कृतवानिदमद्भुतम्॥ (महा०आदिपर्व- ६२/५२)</blockquote>महाभारत के आरम्भ में ऋषियों ने महाभारत को आख्यानों में सर्वश्रेष्ठ तथा वेदार्थ से भूषित और पवित्र बताया है। | + | गणेश जी जैसे-लेखक के होते हुए भी व्यास जी ने तीन वर्ष में महाभारत की रचना पूर्ण की थी - <ref>शोधगंगा-अजय कुमार वर्मा, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/311965 महाभारत के प्रमुख आख्यानों का समीक्षात्मक अध्ययन], सन् २०१०, शोधकेन्द्र-महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ (पृ० ८)।</ref><blockquote>त्रिभिर्वर्षैः सदोत्थायी कृष्णद्वैपायनो मुनिः। महाभारतमाख्यानं कृतवानिदमद्भुतम्॥ (महा०आदिपर्व- ६२/५२)</blockquote>महाभारत के आरम्भ में ऋषियों ने महाभारत को आख्यानों में सर्वश्रेष्ठ तथा वेदार्थ से भूषित और पवित्र बताया है। इनके अतिरिक्त महाभारत में अनेक रोचक तथा शिक्षाप्रद उपाख्यान भी हैं जिनमें निम्नलिखित आख्यान विशेष प्रसिद्ध हैं -<ref>शोधगंगा- श्रीमती इन्दुबाला शर्मा, [https://www.uok.ac.in/notifications/(5)%20Indubala%20Sharma.pdf महाभारत के पंचरत्नों का समीक्षात्मक अध्ययन], सन् २०१६, शोधकेन्द्र- कोटा विश्वविद्यालय, कोटा (पृ० १३६)।</ref> |
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| + | #'''शकुन्तलोपाख्यान -''' यह उपाख्यान महाभारत के आदि पर्व में है जिसमें दुष्यन्त और शकुन्तला की मनोहर कथा है। महाकवि कालिदास के शाकुन्तल नाटक का आधार यही आख्यान है। |
| + | #'''मत्स्योपाख्यान -''' यह वन पर्व में है। इसमें मत्स्यावतार की कथा है जिसमें प्रलय उपस्थित होने पर मत्स्य के द्वारा मनु के बचाये जाने का विवरण है। यह कथा शतपथ ब्राह्मण में भी उपलब्ध होती है। |
| + | #'''रामोपाख्यान -''' यह भी कथा वनपर्व में है। वाल्मीकीय रामायण की कथा का यह संक्षेपमात्र है। वाल्मीकि ने बालकाण्ड में गंगावतरण की जो कथा लिखी है, वह भी यहाँ उपलब्ध होती है। |
| + | #'''शिवि उपाख्यान -''' यह सुप्रसिद्ध कथानक वनपर्व में ही है जिसमें उशीनर के राजा शिवि ने अपना प्राण देकर शरण में आये हुए कपोत की रक्षा बाज से की थी। |
| + | #'''सावित्री उपाख्यान -''' भारतीय ललनाओं के लिये आदर्श रूप सावित्री की कथा वनपर्व में मिलती है। महाराज द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान तथा सावित्री का उपाख्यान पातिव्रत धर्म की पराकाष्ठा है। |
| + | #'''नलोपाख्यान -''' महाभारत में नलोपाख्यान को लेकर तीन रचनायें मिलती हैं - श्रीहर्ष का नैषधीय (१३वीं शती वि०) कृष्णानन्द (१४वीं शती) वामनभट्ट बाण (१५वीं शती) का नलाभ्युदय महाकाव्य। |
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| ==महाभारत में विज्ञान== | | ==महाभारत में विज्ञान== |
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| महाभारत में अनेकों स्थान पर पर्यावरण के पशु, पक्षी, वृक्ष, नदी आदि अंगों का वर्णन मिलता है। इसी प्रकार महाभारत में पर्यावरण संरक्षण के भी अनेकों धार्मिक, सामाजिक आदि उपाय देखने को मिलते हैं। | | महाभारत में अनेकों स्थान पर पर्यावरण के पशु, पक्षी, वृक्ष, नदी आदि अंगों का वर्णन मिलता है। इसी प्रकार महाभारत में पर्यावरण संरक्षण के भी अनेकों धार्मिक, सामाजिक आदि उपाय देखने को मिलते हैं। |
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| + | #'''भौतिक पर्यावरण -''' इसमें वृक्ष, वनस्पति, नदी, पर्वत, खगोल आदि मानव जीवन पर प्रभाव पडता है। |
| + | #'''सामाजिक पर्यावरण -''' इसमें आचार, भाव, विचार आदि का मानव जीवन पर प्रभाव पडता है। |
| + | #'''मानसिक पर्यावरण -''' इसके अन्तर्गत काम, क्रोध आदि मनोवेग द्वारा संयम, शिव संकल्प से शान्ति लाभ प्राप्त होता है। |
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| महाभारत कालीन मनुष्य का प्रकृति से अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध था वह अपने जीवन के सभी आवश्यक संसाधन प्रकृति से ही प्राप्त करता है अतः उस काल में पर्यावरण प्रदूषण की प्रचुरता नहीं थी। कल्याण की इच्छा करने वाले मनुष्यों को निरन्तर वृक्षारोपण करते रहना चाहिये, उनकी पुत्र के समान पालन-पोषण करते रहना चाहिये क्योंकि वे वृक्ष उनके धर्मपुत्र कहलाते हैं - <blockquote>वृक्षा रोप्याः श्रेयोऽर्थिना सदा। पुत्रवत्परिपाल्याश्च पुत्रास्ते धर्मतः स्मृताः॥ (म०अनुशा०९३-३१)</blockquote>इस प्रकार महाभारत में वर्णित पर्यावरण संरक्षण के उपायों से ज्ञात होता है कि महाभारत अनेकों विद्याओं, नाटकों, काव्यों का उपजीव्य होने के साथ-साथ प्रकृति चिन्तन का भी उपजीव्य है। महाभारतकालीन भौगोलिक परिवेश, पर्यावरण संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण के कारण एवं प्रदूषण निवारण के उपायों का भी वर्णन प्राप्त होता है। | | महाभारत कालीन मनुष्य का प्रकृति से अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध था वह अपने जीवन के सभी आवश्यक संसाधन प्रकृति से ही प्राप्त करता है अतः उस काल में पर्यावरण प्रदूषण की प्रचुरता नहीं थी। कल्याण की इच्छा करने वाले मनुष्यों को निरन्तर वृक्षारोपण करते रहना चाहिये, उनकी पुत्र के समान पालन-पोषण करते रहना चाहिये क्योंकि वे वृक्ष उनके धर्मपुत्र कहलाते हैं - <blockquote>वृक्षा रोप्याः श्रेयोऽर्थिना सदा। पुत्रवत्परिपाल्याश्च पुत्रास्ते धर्मतः स्मृताः॥ (म०अनुशा०९३-३१)</blockquote>इस प्रकार महाभारत में वर्णित पर्यावरण संरक्षण के उपायों से ज्ञात होता है कि महाभारत अनेकों विद्याओं, नाटकों, काव्यों का उपजीव्य होने के साथ-साथ प्रकृति चिन्तन का भी उपजीव्य है। महाभारतकालीन भौगोलिक परिवेश, पर्यावरण संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण के कारण एवं प्रदूषण निवारण के उपायों का भी वर्णन प्राप्त होता है। |