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| महाभारत के प्रमुख रचयिता व्यास (वेदव्यास या कृष्णद्वैपायन) हैं। इसमें १८ पर्वों में कौरवों-पाण्डवों का इतिहास है। जिसकी प्रमुख घटना महाभारत युद्ध है। महाभारत के सूक्ष्म परीक्षण से ज्ञात होता है कि सम्पूर्ण महाभारत एक व्यक्ति के हाथ की रचना नहीं है और न ही एक काल की रचना है। प्रारम्भ में मूलकथा संक्षिप्त थी। इसमें बाद में परिवर्तन और परिवर्धन होता रहा है। | | महाभारत के प्रमुख रचयिता व्यास (वेदव्यास या कृष्णद्वैपायन) हैं। इसमें १८ पर्वों में कौरवों-पाण्डवों का इतिहास है। जिसकी प्रमुख घटना महाभारत युद्ध है। महाभारत के सूक्ष्म परीक्षण से ज्ञात होता है कि सम्पूर्ण महाभारत एक व्यक्ति के हाथ की रचना नहीं है और न ही एक काल की रचना है। प्रारम्भ में मूलकथा संक्षिप्त थी। इसमें बाद में परिवर्तन और परिवर्धन होता रहा है। |
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− | जय संहिता - इस ग्रन्थ का मौलिक रूप जय नाम से प्रसिद्ध था। इस ग्रन्थ में नारायण, नर, सरस्वती देवी को नमस्कार कर जिस जय नामक ग्रन्थ के पठन का विधान है वह महाभारत का मूल प्रतीत होता है। पाण्डवों के विजय वर्णन के कारण ही इस ग्रन्थ का ऐसा नामकरण किया गया है - जयो नामेतिहासोऽयं श्रोतव्यो विजिगीषुणा। (महाभा० आदि० ६२-२०) | + | जय संहिता - इस ग्रन्थ का मौलिक रूप जय नाम से प्रसिद्ध था। इस ग्रन्थ में नारायण, नर, सरस्वती देवी को नमस्कार कर जिस जय नामक ग्रन्थ के पठन का विधान है वह महाभारत का मूल प्रतीत होता है। पाण्डवों के विजय वर्णन के कारण ही इस ग्रन्थ का ऐसा नामकरण किया गया है -<ref>शोध गंगा- नमृता सिंह, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/223354 महाभारत के आख्यानों का एक समग्र अध्ययन], सन् - २०१५, शोधकेन्द्र-छत्रपति साहूजी महाराज विश्वविद्यालय (पृ० ११)।</ref> जयो नामेतिहासोऽयं श्रोतव्यो विजिगीषुणा। (महाभा० आदि० ६२-२०) अष्टौ श्लोकसहस्राणि अष्टौ श्लोकशतानि च। अहं वेद्भि शुको वेत्ति संजयो वेत्ति वा न वा॥ |
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− | भारत - दूसरे ग्रंथों इसका नाम भारत पडा। इसमें उपाख्यानों का समावेशन नहीं था। केवल युद्ध का विस्तृत वर्णन ही प्रधान विषय था। इसी भारत को वैशम्पायन ने पढकर जनमेजय को सुनाया था। | + | भारत - दूसरे ग्रंथों इसका नाम भारत पडा। इसमें उपाख्यानों का समावेशन नहीं था। केवल युद्ध का विस्तृत वर्णन ही प्रधान विषय था। इसी भारत को वैशम्पायन ने पढकर जनमेजय को सुनाया था - चतुर्विंशतिसाहस्रीं चक्रे भारत संहिताम्। उपाख्यानैर्विना तावद् भारतं प्रोच्यते बुधैः॥ |
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| महाभारत - इस ग्रन्थ का यही अन्तिम रूप है। इसमें एक लाख श्लोक बतलाये जाते हैं। यह श्लोक संख्या अट्ठारह पर्वों की ही नहीं है, किन्तु हरिवंश के मिलाने से ही एक लाख तक पहुँचती है। आश्वलायन गृह्यसूत्र में भी भारत के साथ महाभारत का नाम निर्दिष्ट है। | | महाभारत - इस ग्रन्थ का यही अन्तिम रूप है। इसमें एक लाख श्लोक बतलाये जाते हैं। यह श्लोक संख्या अट्ठारह पर्वों की ही नहीं है, किन्तु हरिवंश के मिलाने से ही एक लाख तक पहुँचती है। आश्वलायन गृह्यसूत्र में भी भारत के साथ महाभारत का नाम निर्दिष्ट है। |
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| + | ==परिभाषा== |
| + | विश्व-वांग्मय में महाभारत को महाभारत इसके महत्त्व और आकार-गौरव के कारण ही जाता है - <blockquote>महत्त्वाद् भारवत्वाच्च महाभारतमुच्यते।</blockquote> |
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| ==महाभारत का वर्ण्यविषय== | | ==महाभारत का वर्ण्यविषय== |
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| *महाभारत को शतसाहस्र संहिता भी कहा जाता है। | | *महाभारत को शतसाहस्र संहिता भी कहा जाता है। |
| + | *डॉ० बेनीप्रसाद के अनुसार महाभारत एक प्रकार का ज्ञान कोश है जिसमें धर्म, नैतिकता, राजनीति आदि पर विचारों का मिश्रण मिलता है। |
| + | *महाभारत के शान्तिपर्व में दण्ड-नीति (राजशास्त्र), राजधर्म (राजाओं के कर्तव्य), शासन पद्धति, मन्त्रिपरिषद और कर-व्यवस्था के बारे में अनेक महत्वपूर्ण विचार मिलते हैं। |
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| + | ==महाभारतकार वेदव्यास== |
| + | पराशर पुत्र वेदव्यास महाभारत के प्रणेता और पुराणों के रचनाकार के रूप में विख्यात हैं। देवीभागवत में उल्लेख है कि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास से पूर्व २८ व्यास थे और प्रथम व्यास स्वयं ब्रह्माजी थे। वेदव्यास जी ने स्वयं महाभारत में स्वजीवन परिचय दिया है - <blockquote>एवं द्वैपायनो यज्ञे सत्यवत्यां पराशरात्। न्यस्तो द्वीपे स यद् बालस्तस्माद् द्वैपायनः स्मृतः॥</blockquote>अर्थात् महर्षि पराशर द्वारा सत्यवती के गर्भ से द्वैपायन व्यास जी का जन्म हुआ। वे बाल्यावस्था में ही यमुना के द्वीप में छोड दिए गये, इसलिये द्वैपायन नाम से प्रसिद्ध हुए। |
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| ==महाभारत में आख्यान== | | ==महाभारत में आख्यान== |
| + | गणेश जी जैसे-लेखक के होते हुए भी व्यास जी ने तीन वर्ष में महाभारत की रचना पूर्ण की थी - <ref>शोधगंगा-अजय कुमार वर्मा, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/311965 महाभारत के प्रमुख आख्यानों का समीक्षात्मक अध्ययन], सन् २०१०, शोधकेन्द्र-महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ (पृ० ८)।</ref><blockquote>त्रिभिर्वर्षैः सदोत्थायी कृष्णद्वैपायनो मुनिः। महाभारतमाख्यानं कृतवानिदमद्भुतम्॥(महा०आदिपर्व- ६२/५२)</blockquote>महाभारत के आरम्भ में ऋषियों ने महाभारत को आख्यानों में सर्वश्रेष्ठ तथा वेदार्थ से भूषित और पवित्र बताया है। |
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− | ==महाभारतीय प्रमुख युद्ध== | + | == महाभारत का महत्व == |
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| + | == महाभारतीय प्रमुख युद्ध== |
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| *प्रथम दिवसीय युद्ध - भीमसेन का कौरव पक्ष के योद्धाओं से युद्ध। | | *प्रथम दिवसीय युद्ध - भीमसेन का कौरव पक्ष के योद्धाओं से युद्ध। |
| *शल्य-उत्तर का युद्ध | | *शल्य-उत्तर का युद्ध |
− | * भीष्म-श्वेत युद्ध | + | *भीष्म-श्वेत युद्ध |
| *द्वितीय दिवसीय युद्ध - क्रौंच व्यूह का निर्माण | | *द्वितीय दिवसीय युद्ध - क्रौंच व्यूह का निर्माण |
| *भीष्म-अर्जुन युद्ध | | *भीष्म-अर्जुन युद्ध |
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| *सात्यकि और भूरिश्रवा का युद्ध | | *सात्यकि और भूरिश्रवा का युद्ध |
| *षड् दिवसीय युद्ध - पांडवों का मकरव्यूह तथा कौरवों द्वारा क्रौञ्च व्यूह। | | *षड् दिवसीय युद्ध - पांडवों का मकरव्यूह तथा कौरवों द्वारा क्रौञ्च व्यूह। |
− | * भीमसेन का कौरव योद्धाओं के साथ युद्ध | + | *भीमसेन का कौरव योद्धाओं के साथ युद्ध |
− | * धृष्टद्युम्न का कौरव पक्षीय योद्धाओं के साथ युद्ध | + | *धृष्टद्युम्न का कौरव पक्षीय योद्धाओं के साथ युद्ध |
| *भीमसेन द्वारा दुर्योधन की पराजय | | *भीमसेन द्वारा दुर्योधन की पराजय |
| *अभिमन्यु का कौरव पक्षीय योद्धाओं के साथ युद्ध | | *अभिमन्यु का कौरव पक्षीय योद्धाओं के साथ युद्ध |
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| !अवसर | | !अवसर |
| |- | | |- |
− | |जय | + | | जय |
| |व्यास | | |व्यास |
| |८८०० | | |८८०० |
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| ==सारांश== | | ==सारांश== |
| + | भगवान् वेदव्यास स्वयं कहते हैं कि इस महाभारतमें मैंने वेदोंके रहस्य और विस्तार, उपनिषदोंके सम्पूर्ण सार, इतिहास-पुराणोंके उन्मेष और निमेष, चातुर्वर्ण्यके विधान, पुराणोंके आशय, ग्रह-नक्षत्र-तारा आदिके परिमाण, न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, दान, पाशुपत, तीर्थों, पुण्य देशों, नदियों, पर्वतों, वनों तथा समुद्रोंका भी वर्णन किया गया है।<ref>पण्डित रामनारायणदत्त शास्त्री, [https://ia601804.us.archive.org/5/items/unabridged-mahabharata-6-volumes-set-in-hindi-by-veda-vyasa-compressed/Mahabharata%20Volume%201.pdf महाभारत-प्रथम खण्ड], गीताप्रेस गोरखपुर, भूमिका (पृ० १)।</ref> |
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| महाभारतीय कथा की रूपरेखा के तीन क्रम है - जय, भारत और महाभारत। इनमें से जय की रचना का श्रेय कृष्ण द्वैपायन को है। इसमें कौरव पाण्डवीय युद्ध का आख्यान प्रधान था। युद्ध के पर्व इसके अन्तर्गत प्रमुख थे। वैशम्पायन ने भारत और सौति ने महाभारत का व्याख्यान किया। परवर्ती दो विन्यासों में इसका वह रूप बना, जो लोक संग्रह की दृष्टि से अनुत्तम कहा जा सकता है। सौति के महाभारत में लगभग एक लाख श्लोक थे, वैशम्पायन के भारत में चौबीस हजार तथा जय में केवल आठ हजार आठ सौ श्लोक थे। | | महाभारतीय कथा की रूपरेखा के तीन क्रम है - जय, भारत और महाभारत। इनमें से जय की रचना का श्रेय कृष्ण द्वैपायन को है। इसमें कौरव पाण्डवीय युद्ध का आख्यान प्रधान था। युद्ध के पर्व इसके अन्तर्गत प्रमुख थे। वैशम्पायन ने भारत और सौति ने महाभारत का व्याख्यान किया। परवर्ती दो विन्यासों में इसका वह रूप बना, जो लोक संग्रह की दृष्टि से अनुत्तम कहा जा सकता है। सौति के महाभारत में लगभग एक लाख श्लोक थे, वैशम्पायन के भारत में चौबीस हजार तथा जय में केवल आठ हजार आठ सौ श्लोक थे। |
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| ==उद्धरण== | | ==उद्धरण== |
| <references /> | | <references /> |