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| ==परिभाषा== | | ==परिभाषा== |
− | चार उपवेदों में से एक स्थापत्यवेद जिसमें वास्तुशिल्प या भवननिर्माण कला का विषय वर्णित है। कहते हैं, इसे विश्वकर्मा ने अथर्ववेद से निकाला था। जिस प्रकार संगीत शास्त्र और नृत्य शास्त्र गन्धर्ववेद से निकले उसी प्रकार वास्तुशास्त्र , शिल्पशास्त्र, चित्रकला स्थापत्यवेद के निकले हैं। | + | चार उपवेदों में से एक स्थापत्यवेद जिसमें वास्तुशिल्प या भवननिर्माण कला का विषय वर्णित है। कहते हैं, इसे विश्वकर्मा ने अथर्ववेद से निकाला था। जिस प्रकार संगीत शास्त्र और नृत्य शास्त्र गन्धर्ववेद से निकले उसी प्रकार वास्तुशास्त्र , शिल्पशास्त्र, चित्रकला स्थापत्यवेद के निकले हैं।<ref>लेख-श्री किशोर मिश्र, [https://archive.org/details/kalyan-ved-katha-anka/page/n8/mode/1up वेदकथांक-वैदिक वांग्मयका शास्त्रीय स्वरूप], गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० १७३)।</ref> |
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| ==अथर्ववेद का उपवेद== | | ==अथर्ववेद का उपवेद== |
− | शौनक ऋषि जी चरण व्यूह में कहते हैं कि - <blockquote>तत्र वेदानामुपवेदाश्चत्वारो भवन्ति। ऋग्वेदस्यायुर्वेद उअवेदो, यजुर्वेदस्य धनुर्वेद उपवेदः, सामवेदस्य गान्धर्ववेद उपवेदः, अथर्ववेदस्यार्थशास्त्रं चेत्याह भगवान् व्यासः स्कन्धोवा॥ (चरणव्यूह)</blockquote>इस प्रकार चरणव्यूहकार जी ने अथर्ववेद का उपवेद अर्थशास्त्र को स्वीकार किया है। | + | शौनक ऋषि जी चरण व्यूह में कहते हैं कि - <blockquote>तत्र वेदानामुपवेदाश्चत्वारो भवन्ति। ऋग्वेदस्यायुर्वेद उपवेदो, यजुर्वेदस्य धनुर्वेद उपवेदः, सामवेदस्य गान्धर्ववेदोऽथर्ववेदस्यार्थशास्त्रं चेत्याह भगवान्व्यासः स्कन्दो वा॥ (चरणव्यूह)<ref>अनन्तराम शास्त्री, [https://ia801409.us.archive.org/31/items/in.ernet.dli.2015.326552/2015.326552.The-Charanavyuha.pdf चरणव्यूहसूत्र-टिप्पणीसहित], सन-१९९५, चतुर्थ-अथर्वणखण्ड, चौखम्बा संस्कृत सीरीज, वाराणसी (पृ० ४७)।</ref></blockquote>इस प्रकार चरणव्यूहकार जी ने अथर्ववेद का उपवेद अर्थशास्त्र को स्वीकार किया है। आचार्य सुश्रुत ने आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपवेद माना है एवं आचार्य के द्वारा स्थापत्यवेद को अथर्ववेद का उपवेद माना है। चरणव्यूह के इसी सूत्र के भाष्यमें ऐतरेय जी कहते हैं कि - <blockquote>अथर्ववेदस्यार्थशास्त्रं नीतिशास्त्रं शस्त्रशास्त्रं विश्वकर्मादिप्रणीतशिल्पशास्त्रम्। इति भगवान्वेदव्यासः स्कन्दः कुमारो वाऽह। (चरणव्यूह सूत्र)</blockquote>उपवेद उन सब विद्याओं को कहा जाता है, जो वेद के ही अन्तर्गत हों। यह वेद के ही आश्रित तथा वेदों से ही निकले होते हैं। चारों वेदों के उपवेद इस प्रकार हैं -<ref>स्वामी श्रीदत्तयोगेश्वरदेवतीर्थजी, कल्याणपत्रिका-वेदकथांक, [https://vedicheritage.gov.in/pdf/ved_vedang_gp_11.pdf वेदवांग्मय परिचय एवं अपौरुषेयवाद], गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० १४६)।</ref> <blockquote>आयुर्वेदो धनुर्वेदो गान्धर्वश्चेति ते त्रयः। स्थापत्यवेदमपरमुपवेदश्चतुर्विधः॥ </blockquote>उपवेदोंके कर्ता क्रमसे इस प्रकार ऋषि हुये हैं -<ref>राणा प्रसाद शर्मा, [https://ia904703.us.archive.org/27/items/in.ernet.dli.2015.429895/2015.429895.pooranik-kosh.pdf पौराणिक कोश], सन् 2013, ज्ञान मण्डल लिमिटेड वाराणसी (पृ० 63)।</ref> |
| + | #धनुर्वेद - विश्वामित्र ने इसे यजुर्वेद से निकाला था। |
| + | #गन्धर्ववेद - भरतमुनि ने इसे सामवेद से निकाला था। |
| + | #आयुर्वेद - धन्वन्तरि जी ने इसे ऋग्वेद से निकाला था। |
| + | #स्थापत्य - विश्वकर्मा ने अथर्ववेद से निकाला था। |
| + | श्रीमद्भागवत महापुराण में इस प्रकार कहा है - <blockquote>ऋग्यजुःसामाथर्वाख्यान् वेदान् पूर्वादिभिर्मुखैः। शास्त्रमिज्यां स्तुतिस्तोमं प्रायश्चित्तं व्यधात्क्रमात् ॥ |
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| + | आयुर्वेदं धनुर्वेदं गान्धर्वं वेदमात्मनः। स्थापत्यं चासृजद् वेदं क्रमात् पूर्वादिभिर्मुखैः॥ (भागवत पुराण)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%B5%E0%A4%A4%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%83_%E0%A5%A9/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%A7%E0%A5%A8 श्रीमद्भागवत महापुराण] , स्कन्ध-३, अध्याय- १२, श्लोक - ३७/३८।</ref></blockquote> |
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| ==स्थापत्यवेद का महत्व== | | ==स्थापत्यवेद का महत्व== |
− | स्थापत्यवेद में हमें भवन निर्माण संबंधी नियमों का वर्णन मिलता है जिसे हम वास्तुशास्त्र के नाम से जानते हैं। | + | स्थापत्यवेद में हमें भवन निर्माण संबंधी नियमों का वर्णन मिलता है जिसे हम वास्तुशास्त्र के नाम से जानते हैं। वास्तुशिल्प का अधिष्ठाता स्थपति न केवल एक कुशल और निष्ठावान् शिल्पी किन्तु अनिवार्यतः शास्त्रज्ञ भी होते थे।<ref>कृष्णदत्त वाजपेयी, [https://ignca.gov.in/Asi_data/52258.pdf भारतीय वास्तुकला का इतिहास], सन् १९७२, हिन्दी समिति, लखनऊ (पृ०८)।</ref> |
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| ==स्थापत्यवेद एवं वास्तुशास्त्र== | | ==स्थापत्यवेद एवं वास्तुशास्त्र== |
− | {{Main|Vastu_Shastra_(वास्तु_शास्त्र)}}भारतीय वास्तुशास्त्र समग्र निर्माण (भवन आदि का) विधि एवं प्रक्रिया प्रतिपादक शास्त्र है। इस शास्त्र की उत्पत्ति स्थापत्यवेद से हुई है, जो अथर्ववेद के उपवेद के रूप में प्रसिद्ध है। यह स्थापत्य विज्ञान है, जो प्रकृति के पाँच मूलभूत तत्त्वों (पृथिवी, जल, तेज, वायु एवं आकाश) का संयोजन करती है तथा उनका मनुष्य एवं पदार्थों के साथ सामञ्जस्य स्थापित करती है। यह वास्तु सम्मत भवनों में रहने वाले प्राणियों के स्वास्थ्य, धन-धान्य, प्रसन्नता एवं समृद्धि के लिए कार्य करती है। | + | {{Main|Vastu_Shastra_(वास्तु_शास्त्र)}}भारतीय वास्तुशास्त्र समग्र निर्माण (भवन आदि का) विधि एवं प्रक्रिया प्रतिपादक शास्त्र है। इस शास्त्र की उत्पत्ति स्थापत्यवेद से हुई है, जो अथर्ववेद के उपवेद के रूप में प्रसिद्ध है। यह स्थापत्य विज्ञान है, जो प्रकृति के पाँच मूलभूत तत्त्वों (पृथिवी, जल, तेज, वायु एवं आकाश) का संयोजन करती है तथा उनका मनुष्य एवं पदार्थों के साथ सामञ्जस्य स्थापित करती है। यह वास्तु सम्मत भवनों में रहने वाले प्राणियों के स्वास्थ्य, धन-धान्य, प्रसन्नता एवं समृद्धि के लिए कार्य करती है।ऋग्वेद की एक ऋचा में वैदिक-ऋषि वास्तोष्पति से अपने संरक्षण में रखने तथा समृद्धि से रहने का आशीर्वाद प्रदान करने हेतु प्रार्थना करता है। ऋषि अपने द्विपदों (मनुष्यों) तथा चतुष्पदों (पशुओं) के लिए भी वास्तोष्पति से कल्याणकारी आशीर्वाद की कामना करते हैं जैसे - <blockquote>वास्तोष्पते प्रति जानीह्यस्मान्स्वावेशो अनमीवो भवा नः। यत्त्वेमहे प्रति तन्नो जुषस्व शं नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे ॥ (ऋग्वेद - ७/५४/१)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%8B%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%83_%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%82_%E0%A5%AD.%E0%A5%AB%E0%A5%AA ऋग्वेद] , मण्डल- ७, सूक्त- ५४, मन्त्र - ०१।</ref></blockquote>ज्योतिष शास्त्र के संहिता भाग में सर्वाधिक रूप से वास्तुविद्या का वर्णन उपलब्ध होता है। ज्योतिष के विचारणीय पक्ष दिग्-देश-काल के कारण ही वास्तु ज्योतिष के संहिता भाग में समाहित हुआ। वैदिक काल से ही ज्योतिष शास्त्र मानव जीवन के विविध पक्षों का सूक्ष्मातिसूक्ष्म विचार करता आ रहा है। कई वर्षों से हमारे आचार्य इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार भृगु, अत्रि, वसिष्ठ आदि ऋषियों ने वास्तुशास्त्र की विस्तृत व्याख्या करके उच्च कीर्तिमान स्थापित किये हैं। इनमें विश्वकर्मा एवं मय के अनुयायियों ने भवननिर्माण के अनेकों नियमों की व्याख्या वास्तुशास्त्र के मानक ग्रन्थों में की है। |
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− | ऋग्वेद की एक ऋचा में वैदिक-ऋषि वास्तोष्पति से अपने संरक्षण में रखने तथा समृद्धि से रहने का आशीर्वाद प्रदान करने हेतु प्रार्थना करता है। ऋषि अपने द्विपदों (मनुष्यों) तथा चतुष्पदों (पशुओं) के लिए भी वास्तोष्पति से कल्याणकारी आशीर्वाद की कामना करते हैं जैसे - <blockquote>वास्तोष्पते प्रति जानीह्यस्मान्स्वावेशो अनमीवो भवा नः। यत्त्वेमहे प्रति तन्नो जुषस्व शं नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे ॥ (ऋग्वेद - ७/५४/१)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%8B%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%83_%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%82_%E0%A5%AD.%E0%A5%AB%E0%A5%AA ऋग्वेद] , मण्डल- ७, सूक्त- ५४, मन्त्र - ०१।</ref></blockquote>ज्योतिष शास्त्र के संहिता भाग में सर्वाधिक रूप से वास्तुविद्या का वर्णन उपलब्ध होता है। ज्योतिष के विचारणीय पक्ष दिग्-देश-काल के कारण ही वास्तु ज्योतिष के संहिता भाग में समाहित हुआ। वैदिक काल से ही ज्योतिष शास्त्र मानव जीवन के विविध पक्षों का सूक्ष्मातिसूक्ष्म विचार करता आ रहा है। कई वर्षों से हमारे आचार्य इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार भृगु, अत्रि, वसिष्ठ आदि ऋषियों ने वास्तुशास्त्र की विस्तृत व्याख्या करके उच्च कीर्तिमान स्थापित किये हैं। इनमें विश्वकर्मा एवं मय के अनुयायियों ने भवननिर्माण के अनेकों नियमों की व्याख्या वास्तुशास्त्र के मानक ग्रन्थों में की है।
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