अध्याय एक के द्वितीय खण्ड में पाँच श्रुतियाँ हैं। इनके द्वारा अग्नि आदि देवता कैसे इन्द्रियों में अपना स्थान बनाते हैं, इसका प्रतिपादन किया गया है। क्षुधा और पिपासा को भी इनसे युक्त किया गया। तृतीय खण्ड में अन्न की रचना का प्रसंग है। अन्न के पलायन का सन्दर्भ बहुत ही महत्वपूर्ण है। | अध्याय एक के द्वितीय खण्ड में पाँच श्रुतियाँ हैं। इनके द्वारा अग्नि आदि देवता कैसे इन्द्रियों में अपना स्थान बनाते हैं, इसका प्रतिपादन किया गया है। क्षुधा और पिपासा को भी इनसे युक्त किया गया। तृतीय खण्ड में अन्न की रचना का प्रसंग है। अन्न के पलायन का सन्दर्भ बहुत ही महत्वपूर्ण है। |