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अध्याय एक के द्वितीय खण्ड में पाँच श्रुतियाँ हैं। इनके द्वारा अग्नि आदि देवता कैसे इन्द्रियों में अपना स्थान बनाते हैं, इसका प्रतिपादन किया गया है। क्षुधा और पिपासा को भी इनसे युक्त किया गया। तृतीय खण्ड में अन्न की रचना का प्रसंग है। अन्न के पलायन का सन्दर्भ बहुत ही महत्वपूर्ण है।
 
अध्याय एक के द्वितीय खण्ड में पाँच श्रुतियाँ हैं। इनके द्वारा अग्नि आदि देवता कैसे इन्द्रियों में अपना स्थान बनाते हैं, इसका प्रतिपादन किया गया है। क्षुधा और पिपासा को भी इनसे युक्त किया गया। तृतीय खण्ड में अन्न की रचना का प्रसंग है। अन्न के पलायन का सन्दर्भ बहुत ही महत्वपूर्ण है।
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द्वितीय अध्याय में छः श्रुतियाँ हैं। जहाँ ब्रह्म सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और असंसारी के रूप में है। तृतीय अध्याय में भी एक ही खण्ड है। उसके अन्तर्गत यह विषय उपस्थित होता है कि - जिसके माध्यम से सुनते हैं, वाणी का विवेचन करते हैं, स्वादु-अस्वादु का ज्ञान प्राप्त करते हैं, वह कौन सा आत्मा है। अन्त में यही कहा गया है कि प्रज्ञानरूप आत्मा की एकता को स्पष्ट करने के लिये है। आत्मा का भेद कर के कारण है। जब कर्म दृष्टि हट जाती है तो वही आत्मा अभेद रूप से उपासनीय है। आत्मा में कोई भेदात्मक सम्बन्ध नहीं है। भेद केवल वाणी का है। यही सनातन ब्रह्म है।
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द्वितीय अध्याय में छः श्रुतियाँ हैं। जहाँ ब्रह्म सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और असंसारी के रूप में है। तृतीय अध्याय में भी एक ही खण्ड है। उसके अन्तर्गत यह विषय उपस्थित होता है कि - जिसके माध्यम से सुनते हैं, वाणी का विवेचन करते हैं, स्वादु-अस्वादु का ज्ञान प्राप्त करते हैं, वह कौन सा आत्मा है। अन्त में यही कहा गया है कि प्रज्ञानरूप आत्मा की एकता को स्पष्ट करने के लिये है। आत्मा का भेद कर के कारण है। जब कर्म दृष्टि हट जाती है तो वही आत्मा अभेद रूप से उपासनीय है। आत्मा में कोई भेदात्मक सम्बन्ध नहीं है। भेद केवल वाणी का है। यही सनातन ब्रह्म है।<ref>Rajvi, Kavita Kanwar, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/296508 Yajurvedeeya Upanishad Kadhopanishad mein Tathwa niroopan], Completed Date: 2009, Maharaja Ganga Singh University (page- 15)।</ref>
    
==उद्धरण==
 
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