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− | उपनिषद का शाब्दिक अर्थ है श्रद्धायुक्त गुरु के चरणों में बैठना (उप+नि+षद्)। उपनिषद् वेदों के अंतिम भाग होने से इन्हैं वेदान्त भी कहा जाता है। उपनिषदों की संख्या के बारे में कई तर्क हैं लेकिन सर्वसंमत 108 या 111 उपनिषद मानी गई है। मुक्तिकोपनिषद् में दस प्रमुख उपनिषदों को सूचीबद्ध किया गया है, जिन पर श्री आदि शंकराचार्य जी ने अपने भाष्य लिखे हैं और जिन्हैं मुख्य एवं प्राचीन माना जाता है। | + | उपनिषद का शाब्दिक अर्थ है श्रद्धायुक्त गुरु के चरणों में बैठना (उप+नि+षद्)। उपनिषद् वेदों के अंतिम भाग होने से इन्हैं वेदान्त भी कहा जाता है। उपनिषदों की संख्या के बारे में कई तर्क हैं लेकिन सर्वसंमत 108 या 111 उपनिषद मानी गई है। मुक्तिकोपनिषद् में दस प्रमुख उपनिषदों को सूचीबद्ध किया गया है, जिन पर श्री आदि शंकराचार्य जी ने अपने भाष्य लिखे हैं और जिन्हैं मुख्य एवं प्राचीन माना जाता है। |
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| ==परिचय== | | ==परिचय== |
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| बाष्कल | | बाष्कल |
| |ऐतरेयोपनिषद् | | |ऐतरेयोपनिषद् |
− | 1 कौषीतकि उपनिषद्
| + | कौषीतकि उपनिषद् |
− | | |
− | 2 बाष्कल
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| |- | | |- |
| | rowspan="2" |सामवेद | | | rowspan="2" |सामवेद |
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| |} | | |} |
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− | | + | शंकराचार्य जी के द्वारा जिन दश उपनिषदों पर अपना भाष्य लिखा है। वे प्राचीनतम और प्रामाणिक माने जाते हैं। उनकी संख्या इस प्रकार है-<ref>कपिलदेव द्विवेदी, [https://archive.org/details/vedicsahityaevamsanskritidr.kapildevdwivedi/page/n185/mode/1up वैदिक साहित्य एवं संस्कृति], सन् २०००, विश्वविद्यालय प्रकाशन, (पृ० १६७)।</ref><blockquote>ईश-केन-कठ-प्रश्न-मुण्ड-माण्डूक्य-तित्तिरः। ऐतरेयं च छान्दोग्यं बृहदारण्यकं तथा॥ (मुक्तिकोपनिषद् 1. 30)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A4%E0%A5%8D मुक्तिकोपनिषद्] </ref> </blockquote>आठवीं शताब्दी में हुए, अद्वैत मत के संस्थापक आदि आचार्य शंकर जी ने इन उपनिषदों पर अपना भाष्य लिखा है। |
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− | शंकराचार्य जी के द्वारा जिन दश उपनिषदों पर अपना भाष्य लिखा है। वे प्राचीनतम और प्रामाणिक माने जाते हैं। उनकी संख्या इस प्रकार है-<ref>कपिलदेव द्विवेदी, [https://archive.org/details/vedicsahityaevamsanskritidr.kapildevdwivedi/page/n185/mode/1up वैदिक साहित्य एवं संस्कृति], सन् २०००, विश्वविद्यालय प्रकाशन, (पृ० १६७)।</ref> <blockquote>ईश-केन-कठ-प्रश्न-मुण्ड-माण्डूक्य-तित्तिरः। ऐतरेयं च छान्दोग्यं बृहदारण्यकं तथा॥ (मुक्तिकोपनिषद् 1. 30)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A4%E0%A5%8D मुक्तिकोपनिषद्] </ref> </blockquote>आठवीं शताब्दी में हुए, अद्वैत मत के संस्थापक आदि आचार्य शंकर जी ने इन उपनिषदों पर अपना भाष्य लिखा है। | |
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| * ह्यूम ने श्वेताश्वतर उपनिषद् के भाष्य को आदि शंकराचार्य प्रणीत माना है। इस दृष्टि से इन दस उपनिषदों में श्वेताश्वतर उपनिषद् को जोडकर प्रायः ग्यारह प्रामाणिक उपनिषद् बताये जाते हैं। | | * ह्यूम ने श्वेताश्वतर उपनिषद् के भाष्य को आदि शंकराचार्य प्रणीत माना है। इस दृष्टि से इन दस उपनिषदों में श्वेताश्वतर उपनिषद् को जोडकर प्रायः ग्यारह प्रामाणिक उपनिषद् बताये जाते हैं। |
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| उपनिषदों के प्रणेता ऋषियों ने गूढ विषय को सरलतम रूप में समझाने के लिए कई वर्णन-शैलियों का आविष्कार किया था, जिनको पद्धति या विधि भी कहा जा सकता है। मुख्य विधियाँ निम्न हैं- | | उपनिषदों के प्रणेता ऋषियों ने गूढ विषय को सरलतम रूप में समझाने के लिए कई वर्णन-शैलियों का आविष्कार किया था, जिनको पद्धति या विधि भी कहा जा सकता है। मुख्य विधियाँ निम्न हैं- |
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− | # '''संवाद विधि -''' | + | # '''संवाद विधि''' |
− | # '''उपमा विधि -''' | + | # '''उपमा विधि''' |
− | # '''कथा विधि -''' | + | # '''कथा विधि''' |
− | # '''समन्वय विधि -''' | + | # '''समन्वय विधि''' |
− | # '''अरुन्धती न्याय विधि -''' | + | # '''अरुन्धती न्याय विधि''' |
− | # '''निर्वचन विधि -''' | + | # '''निर्वचन विधि''' |
− | # '''विश्लेषणात्मक विधि -''' | + | # '''विश्लेषणात्मक विधि''' |
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| ==प्रमुख उपनिषद्== | | ==प्रमुख उपनिषद्== |
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| कौषीतकि उपनिषद् में चार अध्याय हैं। प्रथम अध्याय में देवयान और पितृयान नामक दो मार्गों का वर्णन है, जिससे होकर यह आत्मा मृत्यु के उपरान्त गमन करता है। इसे पर्यंक-विद्या भी कहते हैं। | | कौषीतकि उपनिषद् में चार अध्याय हैं। प्रथम अध्याय में देवयान और पितृयान नामक दो मार्गों का वर्णन है, जिससे होकर यह आत्मा मृत्यु के उपरान्त गमन करता है। इसे पर्यंक-विद्या भी कहते हैं। |
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| ==निष्कर्ष== | | ==निष्कर्ष== |
| + | उपनिषद् ही समस्त भारतीय दर्शनों के मूल स्रोत हैं। यदि हम दर्शन विषय में प्रविष्ट होने की इच्छा रखते हैं तो उपनिषदों का ज्ञान आधार स्वरूप है। मानव सदा दुःखों से पीडित होता रहता है। |
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| ==उद्धरण== | | ==उद्धरण== |