ऋग्वेद से सम्बद्ध कौषीतकि उपनिषद् ऋग्वेद के कौषीतकि आरण्यक अथवा शांखायन आरण्यक के तृतीय, चतुर्थ, पंचम और षष्ठ अध्यायों से मिलकर बना है, इसीलिये इसे 'कौषीतकि ब्राह्मणोपनिषद्' भी कहते हैं। इसके उपदेष्टा ऋषि कुषीतक हैं। यह उपनिषद् पूर्णतया गद्य में है।
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'''मैत्रायणीय उपनिषद्'''
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कौषीतकि उपनिषद् में चार अध्याय हैं। प्रथम अध्याय में देवयान और पितृयान नामक दो मार्गों का वर्णन है, जिससे होकर यह आत्मा मृत्यु के उपरान्त गमन करता है। इसे पर्यंक-विद्या भी कहते हैं।
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===महानारायण उपनिषद्===
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'''मैत्रायणीय उपनिषद्'''
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मैत्रायणी उपनिषद् कृष्णयजुर्वेद की मैत्रायण या मैत्रायणी शाखा से सम्बद्ध है। इसे मैत्रायणीय उपनिषद् भी कहते हैं। इस उपनिषद् में सात प्रपाठक हैं, जिनमें कुल ७६ खण्ड हैं।
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इसका मुख्य विषय आत्मविद्या है। उपनिषद् का प्रारम्भ इक्ष्वाकुवंशीय राजा बृहद्रथ और मुनि शाकायन्य के प्रसंग से होता है।