संयोग एषां न त्वात्मभावादात्माप्यनीशः सुखदुःखहेतोः॥ (श्वेताश्वतरोपनिषद् १/२)</blockquote>इस उपनिषद् का काव्य बहुत ही उत्तम कोटि का है। इसमें कठिन से कठिन विषय को भी सरल ढंग से प्रस्तुत किया गया है और उसके लिए रोचक आख्यानों , साधारण उपमानों और सुन्दर प्रतीकों को आधार बनाया गया है। प्रतीक-योजना इस उपनिषद् की अपनी विशेषता है। | संयोग एषां न त्वात्मभावादात्माप्यनीशः सुखदुःखहेतोः॥ (श्वेताश्वतरोपनिषद् १/२)</blockquote>इस उपनिषद् का काव्य बहुत ही उत्तम कोटि का है। इसमें कठिन से कठिन विषय को भी सरल ढंग से प्रस्तुत किया गया है और उसके लिए रोचक आख्यानों , साधारण उपमानों और सुन्दर प्रतीकों को आधार बनाया गया है। प्रतीक-योजना इस उपनिषद् की अपनी विशेषता है। |