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नया पृष्ठ निर्माण (मुख्य उपनिषद्)
उपनिषद का शाब्दिक अर्थ है श्रद्धायुक्त गुरु के चरणों में बैठना (उप+नि+षद्)।  उपनिषद् वेदों के अंतिम भाग होने से इन्हैं वेदान्त भी कहा जाता है। उपनिषदों की संख्या के बारे में कई तर्क हैं लेकिन सर्वसंमत 108 या 111 उपनिषद मानी गई है। जिनमें 13 प्रमुख उपनिषद हैं।

== परिचय ==
मुख्य उपनिषद इस प्रकार हैं –

=== ईशावास्योपनिषद् ===
शुक्ल यजुर्वेद संहिता का अंतिम चालीसवां अध्याय। इसमें केवल 18 मंत्र हैं। इसको प्रारम्भिक शब्द ईश पर से ईशावास्योपनिषद् कहते हैं। इसका दूसरा नाम वाजसनेयी संहिता या मंत्रोपनिषद् भी कहते हैं। दर्शन के परम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये ज्ञानोपार्जन के साथ-साथ कर्म करने के भी आवश्यकता है, इस विषय का प्रतिपादन ईश में है। यही मत ज्ञान-कर्म समुच्चय वाद के नाम से प्रसिद्ध हुआ है। वस्तुतः भारतीय दर्शन में इसी विचार का प्राधान्य है।

ईशावास्य उपनिषद में त्याग की भावना तथा इसके अनुकूल ईश्वर की हर वस्तु में उपस्थित यह निश्चित हो जाता है।  

=== केनोपनिषद् ===

=== कठोपनिषद् ===

=== छान्दोग्योपनिषद् ===

=== बृहदारण्यक उपनिषद् ===

=== प्रश्नोपनिषद् ===

=== मुंडक उपनिषद् ===

=== मांण्डूक्य उपनिषद् ===

=== तैत्तिरीय उपनिषद् ===

=== ऐतरेय उपनिषद् ===

=== उपनिषद् में प्रमुख विचार ===
आत्मा विषयक मत

भगवद् एवं उपनिषद् के विचार

उपनिषदों का दर्शन एवं स्वरूप  

== निष्कर्ष ==

== उद्धरण ==
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