| ब्राह्ममुहूर्त में नाकसे जल पीनेसे अनेक लाभ होते हैं। रात्रि का अंधकार दूर होने पर जो मनुष्य प्रात:काल नाक से पानी पीता है उसके नेत्रों के अनेक विकार नष्ट हो जाते हैं। उसकी बुद्धि सचेष्ट होती एवं स्मरण शक्ति बढती है। हृदय को बल प्राप्त होता है। मल मूत्र के रोग मिट जाते हैं और क्षुधाकी वृद्धि होती है तथा विविध रोगों को नष्ट करने की पात्रता प्राप्त होती है। रात्रिपर्यन्त तॉंबेके पात्र में जो जल रखा हो उसको स्वच्छ वस्त्र से छानकर नाकसे पीना अमृतपान के समान है। मूर्छा-पित्त-गरमी-दाह-विष-रक्त विकारमदात्य-परिश्रम, भ्रम, तमकश्वास, वमन और उर्ध्वगत रक्त पित्त इन रोगों में शीतल जल पीना चाहिये। परन्तु पसली के दर्द, जुकाम, वायु विकार, गले के रोग, कब्ज-कोष्ठबद्धता, जुलाब लेने के बाद, नवज्वर, अरूचि, संग्रहणी, गुल्म, खांसी, हिचकी रोग में शीतल जल नहीं पीना चाहिए कुछ गरम करके जल पीना चाहिये।<ref name=":0" /> | | ब्राह्ममुहूर्त में नाकसे जल पीनेसे अनेक लाभ होते हैं। रात्रि का अंधकार दूर होने पर जो मनुष्य प्रात:काल नाक से पानी पीता है उसके नेत्रों के अनेक विकार नष्ट हो जाते हैं। उसकी बुद्धि सचेष्ट होती एवं स्मरण शक्ति बढती है। हृदय को बल प्राप्त होता है। मल मूत्र के रोग मिट जाते हैं और क्षुधाकी वृद्धि होती है तथा विविध रोगों को नष्ट करने की पात्रता प्राप्त होती है। रात्रिपर्यन्त तॉंबेके पात्र में जो जल रखा हो उसको स्वच्छ वस्त्र से छानकर नाकसे पीना अमृतपान के समान है। मूर्छा-पित्त-गरमी-दाह-विष-रक्त विकारमदात्य-परिश्रम, भ्रम, तमकश्वास, वमन और उर्ध्वगत रक्त पित्त इन रोगों में शीतल जल पीना चाहिये। परन्तु पसली के दर्द, जुकाम, वायु विकार, गले के रोग, कब्ज-कोष्ठबद्धता, जुलाब लेने के बाद, नवज्वर, अरूचि, संग्रहणी, गुल्म, खांसी, हिचकी रोग में शीतल जल नहीं पीना चाहिए कुछ गरम करके जल पीना चाहिये।<ref name=":0" /> |
| + | सनातन भारतीय ज्ञान परम्परा में स्वस्थ का अर्थ है- परमात्मा में अवस्थित होना अर्थात् ब्रह्म के साथ एकाकार हो जाना। आयुर्वेद में शारीरिक स्वास्थ्य के माध्यम से आत्मस्थित अवस्था को स्वस्थ होना कहा गया है। आयुर्वेद का प्रयोजन इसी स्वस्थ (आत्मस्थित) का भाव स्वास्थ्य का प्रतिपादन है, जो कि साधनावस्था है। वेदान्त का प्रयोजन इसी की साध्यावस्था में स्वास्थ्य (आत्मस्थिति) का प्रतिपादन है। दोनों ही अवस्थाओं में सूर्योदय से १ घंटा ३६ मिनट से लेकर ४८ मिनट तक की जो शुभ वेला है, जिसे ब्राह्म मुहूर्त कहा जाता है, सुख और आयु के लिये महत्वपूर्ण है। ब्राह्ममुहूर्त की वेला में आयुर्वेद शय्या त्याग अर्थात् जागने के लिये कहता है और जीर्ण-अजीर्ण आहार के विवेचन करने का निर्देश देता है जो स्वस्थ जीवन के लिये आवश्यक है। इस प्रकार, शरीर से लेकर अध्यात्म (अन्तरात्म भाव-स्वभाव) तक की यात्रा में ब्राह्ममुहूर्त में जागरण महत्त्वपूर्ण है।<ref>धर्मायण पत्रिका, [https://mahavirmandirpatna.org/dharmayan/dharmayan-vol-123-brahma-muhurt-ank/ ब्राह्म-मुहूर्त विशेषांक], डॉ० विनोद कुमार जोशी, स्वस्थ जीवन और ब्राह्म-मुहूर्त, महावीर मन्दिर, पटना (पृ० ५)।</ref> |