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मुहूर्तों, संस्कारों और उन संस्कारों के काल-निर्धारण में मुहूर्तों की महत्वपूर्ण भूमिका है। वस्तुतः मुहूर्त भारतीय-ज्योतिष के होरा और संहिता इन दोनों ही स्कंधों के महत्वपूर्ण पक्ष को उद्घाटित करता है।

== परिचय ==

== परिभाषा ==
वक्र-गतिक या चक्रीय-गतिक होने के कारण मुहूर्त यह संज्ञा है। काल का खण्ड विशेष ही मुहूर्त इस शब्द से अभिहित है।

नाडिके द्वे मुहूर्तस्तु.....।(अथर्व ज्यो० 7/12)

नारद संहिता में मुहूर्त की परिभाषा इस प्रकार है –

अह्नः पञ्चदशो भागस्तथा रात्रिप्रमाणतः। मुहूर्तमानं द्वे नाड्यौ कथिते गणकोत्तमैः॥ (नार० सं०9/5)

इस प्रकार ये परिभाषायें मुहूर्त को काल-खण्ड के रूप में परिभाषित करती हैं। अथर्वज्योतिष मुहूर्त को इस प्रकार परिभाषित करता है –

चतुर्भिः कारयेत् कर्म सिद्धिहेतोंर्विचक्षणैः। तिथिनक्षत्रकरण मुहूर्तैरिति नित्यशः॥ (अथर्व ज्यो० 7/12)

विद्वानों को प्रतिदिन के कर्म की सिद्धता में कारण तिथि, वार, नक्षत्र और मुहूर्त इन चारों के द्वारा कार्य करने के समय का विचार करना चाहिए। इस प्रकार मुहूर्त की इस परिभाषा के अनुसार 2 घटी का एक काल खंड मुहूर्त कहलाता है। जो कि उपयुक्त काल निर्धारणका एक महत्वपूर्ण कारक है। आगे अन्य पुराणादि में मुहूर्त का और अर्थ-विस्तार हुआ और मुहूर्त में तिथि आदि सभी कारक समाहित हो गए। यह प्रगति स्वतंत्र मुहूर्त-ग्रंथों की रचना के बाद हुई। इस प्रकार मुहूर्त की आधुनिकतम परिभाषा इस प्रकार है –

तिथि, नक्षत्र, वार, करण योग एवं लग्न, मास, संक्रांति, ग्रहण आदि विविध कारकों के द्वारा निर्धारित क्रिया-योग्य काल को मुहूर्त कहते हैं।

== मुहूर्त का स्वरूप ==
किसी भी विषय को पूर्णता से जानने के लिए उसके उत्पत्ति, विकास इत्यादि क्रम को जानना आवश्यक है। चाहे वह कोई शास्त्रीय तत्व हो, व्यक्ति-विशेष हो या फिर वस्तु-विशेष उसके ऐतिहासिक स्वरूप निश्चय तक ले जाता है।

'''वैदिक-साहित्य में मुहूर्त'''

'''प्रथम'''

'''द्वितीय'''

'''वेदांग-ज्योतिष में मुहूर्त'''

'''पुराणों में मुहूर्त'''

'''स्वतंत्र मुहूर्त ग्रंथ'''

'''पञ्चाङ्ग एवं मुहूर्त'''

'''संस्कार एवं मुहूर्त'''

'''मुहूर्तों की उपयोगिता'''

'''सारांश'''

'''उद्धरण'''
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