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सुधार जारि
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वृक्ष प्रकृतिके श्रृंगार हैं। भारतभूमि प्रकृति एवं जीवन के प्रति सद्भाव एवं श्रद्धा पर केन्द्रित मानव जीवन का मुख्य केन्द्रबिन्दु रही है। हमारी संस्कृतिमें स्थित स्नेह एवं श्रद्धा ने मानवमात्र में प्रकृति के साथ सहभागिता एवं अंतरंगता का भाव सजा रखा है। हमारे शास्त्रों में मनुष्य की वृक्षों के साथ अंतरंगता एवं वनों पर निर्भरता का विस्तृत विवरण प्राप्त होता है। हमारे मनीषियों ने अपनी गहरी सूझ-बूझ तथा अनुभव के आधार पर मानव जीवन, खगोल पिण्डों तथा पेड-पौधों के बीच के परस्पर संबन्धों का वर्णन किया है।
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वृक्ष प्रकृति के श्रृंगार हैं। भारतभूमि प्रकृति एवं जीवन के प्रति सद्भाव एवं श्रद्धा पर केन्द्रित मानव जीवन का मुख्य केन्द्रबिन्दु रही है। हमारी संस्कृतिमें स्थित स्नेह एवं श्रद्धा ने मानवमात्र में प्रकृति के साथ सहभागिता एवं अंतरंगता का भाव सजा रखा है। हमारे शास्त्रों में मनुष्य की वृक्षों के साथ अंतरंगता एवं वनों पर निर्भरता का विस्तृत विवरण प्राप्त होता है। हमारे मनीषियों ने अपनी गहरी सूझ-बूझ तथा अनुभव के आधार पर मानव जीवन, खगोल पिण्डों तथा पेड-पौधों के बीच के परस्पर संबन्धों का वर्णन किया है। ज्योतिषशास्त्र के संहिता स्कन्ध के अन्तर्गत वृक्षों का रोपण, वृक्ष रोपण के लिये सुष्ठु भूमि का चयन, किस वृक्ष को कब और किस स्थान पर रोपित करें, उनमें उत्पन्न होने वाले रोगों का आयुर्वेदिक निदान अत्यन्त आवश्यक बिन्दु है।
    
==परिचय==
 
==परिचय==
पर्यावरण को हरा-भरा और प्रदूषण मुक्त बनाये रखने में वृक्षों का महत्वपूर्ण योगदान है। ज्योतिषशास्त्र में वृक्षों को देवताओं और ग्रहों के निमित्त लगाकर उनसे शुभफल प्राप्त किये जाने का उल्लेख प्राप्त होता है। शास्त्रों में एक वृक्ष सौ पुत्रों से भी बढकर बताया है क्योंकि वृक्ष जीवन पर्यन्त अपने पालक को समान एवं निःस्वार्थ भाव से लाभ पहुँचाता रहता है।
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पर्यावरण को हरा-भरा और प्रदूषण मुक्त बनाये रखने में वृक्षों का महत्वपूर्ण योगदान है। ज्योतिषशास्त्र में वृक्षों को देवताओं और ग्रहों के निमित्त लगाकर उनसे शुभफल प्राप्त किये जाने का उल्लेख प्राप्त होता है। शास्त्रों में एक वृक्ष सौ पुत्रों से भी बढकर बताया है क्योंकि वृक्ष जीवन पर्यन्त अपने पालक को समान एवं निःस्वार्थ भाव से लाभ पहुँचाता रहता है। बृहत्-संहिता में वृक्षों के लगाने के बारे में बताते हुए कहते हैं-<blockquote>प्रान्तच्छायाविनिर्मुक्ता न मनोज्ञा जलाशयाः। यस्मादतो जलप्रान्तेष्वारामान् विनिवेशयेत्॥</blockquote>यदि वापी, कूप, तालाब आदि जलाशयों के प्रान्त वृक्षों के छाया से रहित हो तो सुन्दर नहीं लगते हैं अर्थात् जलाशयों के किनारों पर बहुत सारे वृक्ष लगाने चाहिये।
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कलशादि स्थापना एवं तोरण बंधनवार आदि के लिये
   
==शुभ मुहूर्त में वृक्षारोपण==
 
==शुभ मुहूर्त में वृक्षारोपण==
 
===ग्रह शान्ति एवं वृक्ष===
 
===ग्रह शान्ति एवं वृक्ष===
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====प्रदूषण रोधक वृक्ष और औषधियाँ====
 
====प्रदूषण रोधक वृक्ष और औषधियाँ====
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== सारांश ==
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ज्योतिषशास्त्र में वृक्षों के रोपण, उन वृक्षों के रोग एवं निदान, वृक्षों को किस क्रम से लगाना चाहिये तथा वृक्षों को गृह के कौन-कौन से भाग (दिशा) में लगाना शुभ एवं अशुभ होता है। इस विषय पर ज्योतिषशास्त्र के संहिताचार्यों ने अपने-अपने ग्रन्थों में बहुत ही सुन्दर रूप में प्रतिपादित किया है। ग्रन्थों में वर्णन प्राप्त होता है कि अश्वत्थ, एक नीम, एक न्यग्रोध या बरगद, दस चिन्चिनीक या इमली के वृक्ष लगाने से और कैथ, बिल्व व आँवला के तीन तीन तथा आम का पांच वृक्ष लगाने से मनुष्य कभी नरक को प्राप्त नहीं होता है। इस संसार में केवल वृक्ष ही इहलौकिक और पारलौकिक आनन्द की अनुभूति करा सकते हैं। वृक्ष इस संसार को नाना प्रकार के कष्टों, आपदाओं से बचाते हैं इसीलिये इन्हैं इस संसार का मूलरक्षक भी कहा जाता है। यदि वृक्षों की उचित रूप से देखभाल की जाए तो वे अपनी छाया, पुष्प और फलों के माध्यम से हमारे लिये धर्म, अर्थ और मोक्ष की साधना में अत्यन्त ही सहायक होते हैं।
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==सन्दर्भ==
 
==सन्दर्भ==
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