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| '''चन्द्र नक्षत्र से वृष्टिज्ञान-''' रोहिणी निवास सिद्धान्त के अनुसार जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, उस समय चन्द्र अधिष्ठित नक्षत्र से, नक्षत्रों की गणना रोहिणी तक करनी चाहिए। १, २, ८, ९, १५, १६, २२ या २३ हो तो रोहिणी का वास समुद्र में माना जाता है जो वर्षा की अधिकता की संसूचक है। | | '''चन्द्र नक्षत्र से वृष्टिज्ञान-''' रोहिणी निवास सिद्धान्त के अनुसार जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, उस समय चन्द्र अधिष्ठित नक्षत्र से, नक्षत्रों की गणना रोहिणी तक करनी चाहिए। १, २, ८, ९, १५, १६, २२ या २३ हो तो रोहिणी का वास समुद्र में माना जाता है जो वर्षा की अधिकता की संसूचक है। |
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− | नाडीचक्रों से वृष्टिज्ञान - | + | '''नाडीचक्रों से वृष्टिज्ञान -''' कुछ सिद्धान्तों के अनुसार २८ नक्षत्रों को २ नाडी चक्रों में विभक्त किया जा सकता है इसे द्विनाडी चक्र कहते हैं। तीन नाडी चक्र में विभक्त होने पर त्रिनाडी चक्र, सात भागों में विभक्त होने पर सप्त नाडी चक्र कहा जाता है। तब नक्षत्रों के सापेक्ष सूर्य व चन्द्र की स्थितियों का निरीक्षण करके वर्षा का पूर्वानुमान किया जाता है। |
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− | दशतपा से वृष्टिज्ञान - | + | '''दशतपा से वृष्टिज्ञान -''' दशातपा सिद्धान्त के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या से आषाढ शुक्ल दशमी तक के १० चान्द्रदिवसों के आधार पर ही आषाढ, श्रावण, भाद्रपद एवं आश्विन इन चार वर्षाकाल के मासों में वर्षायोग का ज्ञान होता है। |
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− | निमित्त परीक्षण द्वारा वृष्ट्यावधि - | + | '''निमित्त परीक्षण द्वारा वृष्ट्यावधि -''' |
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| निमित्त परीक्षण सिद्धान्त के अनुसार दीर्घावधि, मध्यमावधि एवं अल्पावधि वृष्टिज्ञान के निम्न आधार हैं- | | निमित्त परीक्षण सिद्धान्त के अनुसार दीर्घावधि, मध्यमावधि एवं अल्पावधि वृष्टिज्ञान के निम्न आधार हैं- |
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| ==== गणितीय सिद्धान्त द्वारा वृष्ट्यावधि ==== | | ==== गणितीय सिद्धान्त द्वारा वृष्ट्यावधि ==== |
− | इस सिद्धान्त के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष की गणना के पश्चात् वृष्टिज्ञान में निम्नलिखित तत्वों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इस आधार पर किसी भी वर्ष की सम्पूर्ण गणितीय प्रक्रिया पूर्ण कर वृष्टि का पूर्वानुमान कभी किया जा सकता है। | + | इस सिद्धान्त के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष की गणना के पश्चात् वृष्टिज्ञान में निम्नलिखित तत्वों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इस आधार पर किसी भी वर्ष की सम्पूर्ण गणितीय प्रक्रिया पूर्ण कर वृष्टि का पूर्वानुमान कभी किया जा सकता है। दीर्घावधि पूर्वानुमान के लिये यह विधि सर्वाधिक सहायक है। |
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| + | '''1. वार्षिक वृष्टि के हेतु-''' |
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| + | संवत्सर |
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| + | संवत्सर अधिकारी |
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| + | गुरूवर्ष |
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| + | विंशोपक |
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| + | शकाब्दसंख्या |
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| + | आर्द्राप्रवेश |
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| + | मेघनाम |
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| + | रोहिणीवास |
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| + | जलाढक |
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| + | '''2. मासिक वृष्टि के हेतु-''' |
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| + | द्विनाडी |
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| + | त्रिनाडी |
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| + | सप्तनाडी |
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| + | वृष्टि सम्बन्धि विविध योग |
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| + | दैनिक वृष्टि के हेतु |
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| ==मानव जीवन में वृष्टि का प्रभाव== | | ==मानव जीवन में वृष्टि का प्रभाव== |