− | देश का सम्बन्ध क्षेत्र विशेष अथवा स्थान विशेष से है जिसमें वास्तुनिर्माण किया जाना है। काल का सम्बन्ध समय से है। ज्योतिष के क्षेत्र में दिक् साधन के उपरान्त देशके शुभाशुभत्व का विचार किया जाता है। अतः शास्त्रानुसार देश और काल की शुद्धता के आधार पर वास्तु का विधान होना चाहिये। ज्योतिष और वास्तु के ग्रन्थों में दिक् , देश, काल पर विस्तार से वर्णन मिलता है। क्षेत्र अथवा देश का निर्धारण अक्षांश व देशान्तर के आधार पर होता है। प्रकृति, जनपद एवं जलवायु को दृष्टि में रखकर देश-भूमि चयन किया जाता है।<ref>योगेंद्र कुमार शर्मा, [http://egyankosh.ac.in//handle/123456789/80827 देश की अवधारणा एवं भेद], सन् २०२१, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ०२७७)।</ref> | + | देश का सम्बन्ध क्षेत्र विशेष अथवा स्थान विशेष से है जिसमें वास्तुनिर्माण किया जाना है। काल का सम्बन्ध समय से है। ज्योतिष के क्षेत्र में दिक् साधन के उपरान्त देशके शुभाशुभत्व का विचार किया जाता है। अतः शास्त्रानुसार देश और काल की शुद्धता के आधार पर वास्तु का विधान होना चाहिये। ज्योतिष और वास्तु के ग्रन्थों में दिक् , देश, काल पर विस्तार से वर्णन मिलता है। क्षेत्र अथवा देश का निर्धारण अक्षांश व देशान्तर के आधार पर होता है। प्रकृति, जनपद एवं जलवायु को दृष्टि में रखकर देश-भूमि चयन किया जाता है।<ref name=":1">योगेंद्र कुमार शर्मा, [http://egyankosh.ac.in//handle/123456789/80827 देश की अवधारणा एवं भेद], सन् २०२१, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ०२७७)।</ref> |
| इसको अगर हम दूसरे शब्दों में समझे तो इसी भूमध्य से उत्तरी ध्रुव तक के नब्बे अंश के क्षेत्र को उत्तरी गोलार्द्ध तथा इसी प्रकार दक्षिणी ध्रुव तक के ९० अंशों तक के विस्तार को दक्षिणी गोलार्द्ध के नाम से जाना जाता है। हम अपने स्थान का निर्धारण भी इसी विषुवद्वृत्त के आधार पर अक्षांशों द्वारा करते हैं। | | इसको अगर हम दूसरे शब्दों में समझे तो इसी भूमध्य से उत्तरी ध्रुव तक के नब्बे अंश के क्षेत्र को उत्तरी गोलार्द्ध तथा इसी प्रकार दक्षिणी ध्रुव तक के ९० अंशों तक के विस्तार को दक्षिणी गोलार्द्ध के नाम से जाना जाता है। हम अपने स्थान का निर्धारण भी इसी विषुवद्वृत्त के आधार पर अक्षांशों द्वारा करते हैं। |
− | द्वितीय प्रकार से हम अपने देश का निर्धारण देशान्तरों के माध्यम से करते हैं कि कल्पना की है। इसके अन्तर्गत इनमें से एक वृत्त को मानक भूमध्य देशान्तर मानकर उससे पूर्व या पश्चिम कितने अंशादि पर अपना स्थान अथवा देश है इसका ज्ञान किया जाता है। किसी स्थान की सटीक स्थिति को उस स्थान के अक्षांश व देशान्तर की मदद से जान सकते हैं। किसी स्थान को अक्षांशधरातल पर उस स्थान की उत्तर-दक्षिण स्थिति को बताता है। यहाँ हम अक्षांश व देशान्तर को विस्तार से समझने का प्रयास करते हैं। | + | द्वितीय प्रकार से हम अपने देश का निर्धारण देशान्तरों के माध्यम से करते हैं कि कल्पना की है। इसके अन्तर्गत इनमें से एक वृत्त को मानक भूमध्य देशान्तर मानकर उससे पूर्व या पश्चिम कितने अंशादि पर अपना स्थान अथवा देश है इसका ज्ञान किया जाता है। किसी स्थान की सटीक स्थिति को उस स्थान के अक्षांश व देशान्तर की मदद से जान सकते हैं। किसी स्थान को अक्षांशधरातल पर उस स्थान की उत्तर-दक्षिण स्थिति को बताता है। यहाँ हम अक्षांश व देशान्तर को विस्तार से समझने का प्रयास करते हैं।<ref name=":1" /> |