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| == परिचय == | | == परिचय == |
− | भू-भ्रमण सिद्धान्त ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण एवं रोचक विषय है। भू-भ्रमण का शाब्दिक अर्थ है- भू अर्थात् पृथ्वी तथा उसका भ्रमण मतलब घूमना। इस प्रकार भू-भ्रमण का अर्थ है- पृथ्वी का घूमना। पृथ्वी के घूमने के सम्बन्ध में हम देखें तो प्राच्य एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण से इसमें मत-मतान्तर दिखाई देते हैं। प्राच्य जगत् (ज्योतिषजगत् ) पृथ्वी को स्वशक्ति से निराधार आकाश में स्थिर मानता है। जबकि आधुनिक विज्ञान पृथ्वी को चलायमान मानता है। उनके अनुसार पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है। उसकी घूर्णन गति होती है, और वह अपने अक्ष पर निरन्तर भ्रमण करते रहती है।<ref>अम्बुज त्रिवेदी, [http://egyankosh.ac.in//handle/123456789/94069 प्राच्य-पाश्चात्य ज्योतिष सिद्धांत समीक्षा], सन् २०२३, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली (पृ० २६४)।</ref> | + | भू-भ्रमण सिद्धान्त ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण एवं रोचक विषय है। भू-भ्रमण का शाब्दिक अर्थ है- भू अर्थात् पृथ्वी तथा उसका भ्रमण मतलब घूमना। इस प्रकार भू-भ्रमण का अर्थ है- पृथ्वी का घूमना। पृथ्वी के घूमने के सम्बन्ध में हम देखें तो प्राच्य एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण से इसमें मत-मतान्तर दिखाई देते हैं। प्राच्य जगत् (ज्योतिषजगत् ) पृथ्वी को स्वशक्ति से निराधार आकाश में स्थिर मानता है। जबकि आधुनिक विज्ञान पृथ्वी को चलायमान मानता है। उनके अनुसार पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है। उसकी घूर्णन गति होती है, और वह अपने अक्ष पर निरन्तर भ्रमण करते रहती है।<ref name=":0">अम्बुज त्रिवेदी, [http://egyankosh.ac.in//handle/123456789/94069 प्राच्य-पाश्चात्य ज्योतिष सिद्धांत समीक्षा], सन् २०२३, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली (पृ० २६४)।</ref> |
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| == भू-भ्रमण सिद्धान्त == | | == भू-भ्रमण सिद्धान्त == |
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| {{Main|Prthvi_(पृथ्वी)}}पृथ्वी स्थिर न होकर गतिशील है। पृथ्वी अपने स्थान पर घूमने के साथ ही सूर्य का चक्कर भी लगाती है। जिस तरह से लड्डू अपनी कील पर घूमता है और साथ- ही साथ अण्डाकार चक्कर भी लगाता है, ठीक इसी तरह हमारी पृथ्वी भी अंतरिक्ष में अपनी धुरी पर घूमने के साथ-साथ अण्डाकार पथ पर सूर्य की परिक्रमा भी करती है। इस प्रकार पृथ्वी की दो गतियाँ हैं- | | {{Main|Prthvi_(पृथ्वी)}}पृथ्वी स्थिर न होकर गतिशील है। पृथ्वी अपने स्थान पर घूमने के साथ ही सूर्य का चक्कर भी लगाती है। जिस तरह से लड्डू अपनी कील पर घूमता है और साथ- ही साथ अण्डाकार चक्कर भी लगाता है, ठीक इसी तरह हमारी पृथ्वी भी अंतरिक्ष में अपनी धुरी पर घूमने के साथ-साथ अण्डाकार पथ पर सूर्य की परिक्रमा भी करती है। इस प्रकार पृथ्वी की दो गतियाँ हैं- |
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− | # '''घूर्णन अथवा दैनिक गति (Daily movement)''' | + | # '''घूर्णन अथवा दैनिक गति (Daily movement / Revolation )''' |
− | # '''परिक्रमण अथवा वार्षिक गति (''' | + | # '''परिक्रमण अथवा वार्षिक गति (Rotation of the eart)''' |
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| पृथ्वी की गति दो प्रकार की है- घूर्णन एवं परिक्रमण। पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना घूर्णन कहलाता है। सूर्य के चारों ओर एक स्थिर कक्ष में पृथ्वी की गति को परिक्रमण कहते हैं। | | पृथ्वी की गति दो प्रकार की है- घूर्णन एवं परिक्रमण। पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना घूर्णन कहलाता है। सूर्य के चारों ओर एक स्थिर कक्ष में पृथ्वी की गति को परिक्रमण कहते हैं। |
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| ==== वैदिक मत से पृथ्वी का परिभ्रमण ==== | | ==== वैदिक मत से पृथ्वी का परिभ्रमण ==== |
− | पश्चिम में १५वीं शताब्दी में गैलिलियो के समय तक धारणा रही कि पृथ्वी स्थिर है तथा सूर्य उसका चक्कर लगाता है, परन्तु आज से लगभग १५०० वर्ष पूर्व हुये आर्यभट ने प्रतिपादित किया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है। वेदों में लिखा है कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है और उसी सूर्य के आकर्षण के कारण अपने मार्ग से भटक नहीं सकती। २७ सूर्य अर्थात् नक्षत्रों की परिक्रमा पृथ्वी कितने दिनों में करती है, इसका उत्तर ऋग्वेद इस प्रकार से देता है-<blockquote>द्वादश प्रधयश्चक्रमेकं त्रीणि नभ्यानि क उतच्चिकेत। तस्मिन् त्साकं त्रिशता न शंकवो र्पिताः षष्टिर्न चलाचलाशः॥</blockquote>पृथ्वी के परिभ्रमण का नाम क्रान्तिवृत्त है। इसी क्रान्तिवृत्त पर पृथ्वी घूमती है। पृथ्वी से ही चन्द्रमा बद्ध रहता है। अत एव ये दोनों सूर्य का चक्कर लगाते हैं। पृथ्वी का जो अयन है अर्थात् क्रान्ति वृत्त और विषुवद वृत्त का जो सम्पात् है वह विषुवद वृत्त के चारों ओर घूमता है। इसकी परिक्रमा २५ हजार ९सौ ४०दिनमें समाप्त होती है। अयन का संबन्ध पृथिवी से है। अयन परिक्रमा लगाता है इसका अर्थ है पृथिवी की धुरी भी परिक्रमा लगाती है। | + | पश्चिम में १५वीं शताब्दी में गैलिलियो के समय तक धारणा रही कि पृथ्वी स्थिर है तथा सूर्य उसका चक्कर लगाता है, परन्तु आज से लगभग १५०० वर्ष पूर्व हुये आर्यभट ने प्रतिपादित किया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है। वेदों में लिखा है कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है और उसी सूर्य के आकर्षण के कारण अपने मार्ग से भटक नहीं सकती। २७ सूर्य अर्थात् नक्षत्रों की परिक्रमा पृथ्वी कितने दिनों में करती है, इसका उत्तर ऋग्वेद इस प्रकार से देता है-<ref name=":0" /><blockquote>द्वादश प्रधयश्चक्रमेकं त्रीणि नभ्यानि क उतच्चिकेत। तस्मिन् त्साकं त्रिशता न शंकवो र्पिताः षष्टिर्न चलाचलाशः॥</blockquote>पृथ्वी के परिभ्रमण का नाम क्रान्तिवृत्त है। इसी क्रान्तिवृत्त पर पृथ्वी घूमती है। पृथ्वी से ही चन्द्रमा बद्ध रहता है। अत एव ये दोनों सूर्य का चक्कर लगाते हैं। पृथ्वी का जो अयन है अर्थात् क्रान्ति वृत्त और विषुवद वृत्त का जो सम्पात् है वह विषुवद वृत्त के चारों ओर घूमता है। इसकी परिक्रमा २५ हजार ९सौ ४०दिनमें समाप्त होती है। अयन का संबन्ध पृथिवी से है। अयन परिक्रमा लगाता है इसका अर्थ है पृथिवी की धुरी भी परिक्रमा लगाती है। |
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| जिस पृथ्वी पिण्ड पर हम स्थित हैं, वह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा लगाती है। सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के घूमने का जो मार्ग है उसे क्रान्ति वृत्त कहते है। पृथिवी के मध्य का जो सबसे बडा पूर्वापर वृत्त है उसे नाडीवृत्त, विषुवद्वृत्त, भूमध्यरेखा या आंग्लभाषा में इक्वेटर कहा जाता है। उत्तरीध्रुव से ९० अंश दक्षिण और दक्षिणी ध्रुव से ९० अंश उत्तर की ओर जो कल्पित पूर्वापर वृत्त है, उसी का नाम विषुवद्वृत्त है। यदि पृथ्वी सदा इस विषुवद्वृत्त पर ही घूमती तो दिन-रात सदा बराबर रहते। १२ घण्टे की रात व १२ घण्टे का दिन होता, परन्तु ऐसा है नहीं। पृथ्वी सूर्य से दक्षिण भाग में नीचे की ओर लगभग २४ अंश तक चली जाती है, इसी तरह सूर्य से ऊपर उत्तर की ओर लगभग २४ तक चली जाती है। इससे २४ अंश ऊंचा और २४ अंश नीचा ४८ अंश का एक अण्डाकार वृत्त बन जाता है, उसपर पृथ्वी घूमती है, इसी का नाम क्रान्तिवृत्त है। यही कारण है कि दिन रात बराबर नहीं होते हैं। पृथ्वी घूमते घूमते जब सौर विषुव पर आती है तो इस दिन रात-दिन बराबर होते हैं। ऐसी स्थिति वर्ष में दो बार आती है। अतः कोशकार कहते हैं- <blockquote>समरात्रिन्दिवे काले विषुवद् विषुवं च तत् ' इति।</blockquote>सूर्य के विषुवत् से जो दक्षिण भाग है वह दक्षिण गोल कहलाता है, और उत्तरभाग उत्तर गोल कहलाता है। पृथिवी दक्षिण-गोल से जिस दिन उत्तर गोल में प्रविष्ट होती है। उस दिन दिन-रात बराबर होते हैं। एवं जिस दिन उत्तर से दक्षिण गोल में प्रविष्ट होते हैं, उस दिन भी रात दिन बराबर होते हैं। ६ महिने पृथ्वी उत्तर गोल में रहती है, ६ महिने दक्षिण गोल में रहती है। क्रान्तिवृत्त और विषुवत वृत्त के सम्पात बिन्दुओं को राहु-केतु कहा जाता है। ये दोनों सम्पात १ शारद सम्पात और २ वासन्त सम्पात नाम से प्रसिद्ध हैं। जिस दिन (२१ मार्च को चैत्र महिने में) वासन्त सम्पात होता है और २३ सितम्बर को शारद सम्पात होता है उस दिन दिन-रात बराबर होते हैं। एवं २२ जून को दिन सबसे बडा होता है। एवं २२ दिसम्बर को दिन सबसे छोटा होता है। | | जिस पृथ्वी पिण्ड पर हम स्थित हैं, वह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा लगाती है। सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के घूमने का जो मार्ग है उसे क्रान्ति वृत्त कहते है। पृथिवी के मध्य का जो सबसे बडा पूर्वापर वृत्त है उसे नाडीवृत्त, विषुवद्वृत्त, भूमध्यरेखा या आंग्लभाषा में इक्वेटर कहा जाता है। उत्तरीध्रुव से ९० अंश दक्षिण और दक्षिणी ध्रुव से ९० अंश उत्तर की ओर जो कल्पित पूर्वापर वृत्त है, उसी का नाम विषुवद्वृत्त है। यदि पृथ्वी सदा इस विषुवद्वृत्त पर ही घूमती तो दिन-रात सदा बराबर रहते। १२ घण्टे की रात व १२ घण्टे का दिन होता, परन्तु ऐसा है नहीं। पृथ्वी सूर्य से दक्षिण भाग में नीचे की ओर लगभग २४ अंश तक चली जाती है, इसी तरह सूर्य से ऊपर उत्तर की ओर लगभग २४ तक चली जाती है। इससे २४ अंश ऊंचा और २४ अंश नीचा ४८ अंश का एक अण्डाकार वृत्त बन जाता है, उसपर पृथ्वी घूमती है, इसी का नाम क्रान्तिवृत्त है। यही कारण है कि दिन रात बराबर नहीं होते हैं। पृथ्वी घूमते घूमते जब सौर विषुव पर आती है तो इस दिन रात-दिन बराबर होते हैं। ऐसी स्थिति वर्ष में दो बार आती है। अतः कोशकार कहते हैं- <blockquote>समरात्रिन्दिवे काले विषुवद् विषुवं च तत् ' इति।</blockquote>सूर्य के विषुवत् से जो दक्षिण भाग है वह दक्षिण गोल कहलाता है, और उत्तरभाग उत्तर गोल कहलाता है। पृथिवी दक्षिण-गोल से जिस दिन उत्तर गोल में प्रविष्ट होती है। उस दिन दिन-रात बराबर होते हैं। एवं जिस दिन उत्तर से दक्षिण गोल में प्रविष्ट होते हैं, उस दिन भी रात दिन बराबर होते हैं। ६ महिने पृथ्वी उत्तर गोल में रहती है, ६ महिने दक्षिण गोल में रहती है। क्रान्तिवृत्त और विषुवत वृत्त के सम्पात बिन्दुओं को राहु-केतु कहा जाता है। ये दोनों सम्पात १ शारद सम्पात और २ वासन्त सम्पात नाम से प्रसिद्ध हैं। जिस दिन (२१ मार्च को चैत्र महिने में) वासन्त सम्पात होता है और २३ सितम्बर को शारद सम्पात होता है उस दिन दिन-रात बराबर होते हैं। एवं २२ जून को दिन सबसे बडा होता है। एवं २२ दिसम्बर को दिन सबसे छोटा होता है। |
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| == दीर्घवृत्ताकार पथ पर गति == | | == दीर्घवृत्ताकार पथ पर गति == |
− | पृथ्वी के कक्ष का आकार दीर्घवृत्ताकार होता है। कक्ष के इस आकार के कारण पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी पूरे साल में बदलती रहती है। कभी पृथ्वी सूर्य के बहुत नजदीक होती है तो कभी बहुत दूर हो जाती है। | + | पृथ्वी के कक्ष का आकार दीर्घवृत्ताकार होता है। कक्ष के इस आकार के कारण पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी पूरे साल में बदलती रहती है। कभी पृथ्वी सूर्य के बहुत नजदीक होती है तो कभी बहुत दूर हो जाती है।<ref name=":0" /> |
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| === उपसौर(Perihelion) पेरीहेलियन === | | === उपसौर(Perihelion) पेरीहेलियन === |
− | परिक्रमा करती हुई पृथ्वी जब सूर्य के अत्यधिक नजदीक होती हैं तब इस स्थिति को '''उपसौर (Perihelion)''' कहते हैं। यह स्थिति सामान्यतया ३ जनवरी को होती है। | + | [[File:दीर्घवृत्ताकार पथ पर गति.png|right|frameless|402x402px]] |
| + | परिक्रमा करती हुई पृथ्वी जब सूर्य के अत्यधिक नजदीक होती हैं तब इस स्थिति को '''उपसौर (Perihelion)''' कहते हैं। यह स्थिति सामान्यतया ३ जनवरी को होती है। |
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| === अपसौर (Aphelion) === | | === अपसौर (Aphelion) === |