Changes

Jump to navigation Jump to search
m
no edit summary
Line 3,850: Line 3,850:  
== मंत्र योग ==
 
== मंत्र योग ==
 
मंत्र की साधना चेतना को परिष्कृत करती है। इसमें किसी बीजाक्षर, मंत्र या वाक्य का बार-बार पुनरावर्तन किया जाता है। विधिवत् लयबद्ध पुनरावर्तन को जाप कहते हैं। इसमें ध्वनि के उच्चारण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। चित्त की सूक्ष्मतम तरंगें ध्वनि की तरंगें हैं। मंत्र की साधना से पहले अन्दर की सफाई होती है। अन्त में व्यक्ति उसी में एकाग्र हो जाता है। उसका मन स्थिर होने लगता है। वैदिक साधना पद्धति में, बौद्धों में मणि पद्मे हं, जैनों में नमस्कार महामंत्र, अर्हम् आदि ध्वनियों के उदाहरण हैं। उन ध्वनियों का उपयोग करना चाहिये जिनसे मन परमात्मा में लयहीन हो जाये।<blockquote>तस्य वाचकः प्रणवः। तज्जपस्तदर्थभावनम् ।</blockquote>पातंजल योग सूत्र के अनुसार ईश्वर का वाचक प्रणव (ओंकार) है। इसका जप करते हुये अन्त में इसके अर्थ अर्थात् परमात्म रूप हो जाना मंत्र का प्रमुख उद्देश्य है। मंत्र के जप के साथ उसके अर्थ, छन्द, ऋषि या देवता का अधिकाधिक रूप में मनन किया जाता है। तब वह शीघ्र सिद्ध होता है। मंत्र सिद्धि के द्वारा मन, मंत्र तथा आराध्य देव की पृथक्ता का बोध साधक को नहीं होता है।
 
मंत्र की साधना चेतना को परिष्कृत करती है। इसमें किसी बीजाक्षर, मंत्र या वाक्य का बार-बार पुनरावर्तन किया जाता है। विधिवत् लयबद्ध पुनरावर्तन को जाप कहते हैं। इसमें ध्वनि के उच्चारण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। चित्त की सूक्ष्मतम तरंगें ध्वनि की तरंगें हैं। मंत्र की साधना से पहले अन्दर की सफाई होती है। अन्त में व्यक्ति उसी में एकाग्र हो जाता है। उसका मन स्थिर होने लगता है। वैदिक साधना पद्धति में, बौद्धों में मणि पद्मे हं, जैनों में नमस्कार महामंत्र, अर्हम् आदि ध्वनियों के उदाहरण हैं। उन ध्वनियों का उपयोग करना चाहिये जिनसे मन परमात्मा में लयहीन हो जाये।<blockquote>तस्य वाचकः प्रणवः। तज्जपस्तदर्थभावनम् ।</blockquote>पातंजल योग सूत्र के अनुसार ईश्वर का वाचक प्रणव (ओंकार) है। इसका जप करते हुये अन्त में इसके अर्थ अर्थात् परमात्म रूप हो जाना मंत्र का प्रमुख उद्देश्य है। मंत्र के जप के साथ उसके अर्थ, छन्द, ऋषि या देवता का अधिकाधिक रूप में मनन किया जाता है। तब वह शीघ्र सिद्ध होता है। मंत्र सिद्धि के द्वारा मन, मंत्र तथा आराध्य देव की पृथक्ता का बोध साधक को नहीं होता है।
 +
 +
मन की कामना ही यज्ञ की जननी है। ऋषि जिस कामना से देवता की जिस पदार्थ का स्वामी बनने की इच्छा से स्तुति करता है, वही उस स्तुति रूप मंत्र का देवता हो जाता है।<blockquote>यत्काम ऋषिर्यस्यां देवतायामार्य-पत्यमिच्छन्स्तुति प्रयुंक्ते तद्दैवतः स मन्त्रो भवति। (निरुक्त७।१) </blockquote>ऋषि अर्थात् द्रष्टा अपनी कामना की अभिव्यक्ति मंत्र अर्थात् मनोबल से करता है। इच्छाएँ तो हममें भी अनन्त हैं, किन्तु हमारा मन इतना बलवान नहीं है कि इन इच्छाओं को मंग्त्र बल में बदल सके। मंत्र मनन की शक्ति है हमारा मन इतना चंचल है कि एक जगह टिककर मनन ही नहीं कर सकता। अर्थात् मंत्र शक्ति की सफलता का मूल इच्छा-शक्ति की दृढता है।<ref>श्री शशांक शेखर शुल्व, यज्ञ विधानम्, सनातन पूजा विज्ञान, वाराणसीः पिल्ग्रिम्स पब्लिशिंग अध्याय-भूमिका, (पृ०2)। </ref>
 +
 +
चारित्रिक श्रेष्ठता
 +
 +
मानसिक एकाग्रता
 +
 +
अभीष्ट लक्ष्य में अटूट श्रद्धा
 +
 +
शब्द शक्ति
    
== पूजा विधान एवं योग ==
 
== पूजा विधान एवं योग ==
 
भारतीय मान्यता के अनुसार वेद सृष्टिक्रम की प्रथम वाणी है। फलतः भारतीय संस्कृति का मूल ग्रन्थ वेद सिद्ध होता है। पाश्चात्य विचारकों ने ऐतिहासिक दृष्टि अपनाते हुये वेद को विश्व का आदि ग्रन्थ सिद्ध किया।  
 
भारतीय मान्यता के अनुसार वेद सृष्टिक्रम की प्रथम वाणी है। फलतः भारतीय संस्कृति का मूल ग्रन्थ वेद सिद्ध होता है। पाश्चात्य विचारकों ने ऐतिहासिक दृष्टि अपनाते हुये वेद को विश्व का आदि ग्रन्थ सिद्ध किया।  
 +
 +
पूजा आध्यात्मिक विकास में मदद करती है। पूजा भक्त द्वारा भगवान के प्रति प्रेम और भक्ति की अभिव्यक्ति है, उनके प्रति अत्यधिक श्रद्धा, सचेतन संवाद, आदि।
 +
 +
पूजा प्रार्थना, स्तुतिपाठ, कीर्तन, जप, ध्यान आदि के रूपमें हो सकती है।
 +
 +
पूजा व्यक्ति की वृद्धि और विकास के अनुसार विभिन्न रूपों में होती है।
 +
 +
प्रकृति पूजा-
 +
 +
वीर पूजा-
 +
 +
नायक पूजा-
 +
 +
महान व्यक्तियों की पूजा-
 +
 +
पितृ पूजा-
 +
 +
जैसे-जैसे मनुष्य विकसित होता है वह एक अवस्था से दूसरी अवस्था में जाता है। निचली अवस्थायें अपने आप वहीं छूट जाती हैं एवं उच्च स्तर पर पहुंचते-पहुंचते लय अर्थात् समाधि की स्थिति को प्राप्त होता है। जैसा की श्री गीता जी में कहा गया है-
 +
 +
कोई भी भक्त जिस किसी रूपकी श्रद्धा से पूजा करना चाहता है- उसी विश्वास को में दृढ और अचल बना देता हूँ।(गीता ८/२१)
 +
 +
=== पूजा विधान का महत्व ===
 +
सनातन धर्म में पूजाविधान को प्रवृत्ति और निवृत्ति मूलक एक-लक्ष्य केन्द्रित धर्म माना है। वहां प्रवृत्ति मूलक और निवृत्ति मूलक दोनों मार्गों का एक ही लक्ष्य है - मुक्ति। संसार से मुक्त होकर [[Moksha (मोक्षः)|मोक्ष]] प्राप्त करना।
    
'''पूजा'''
 
'''पूजा'''
Line 3,861: Line 3,894:     
किसी भी देवी या देवता का गुणगान और महिमा का वर्णन किया जाता है। स्त्रोत का जाप करने से अलौकिक ऊर्जा का संचार होता है और दिव्य शब्दों के चयन से हम उस देवता को प्राप्त कर लेते हैं और इसे किसी भी राग में गाया जा सकता है। स्त्रोत के शब्दों का चयन ही महत्वपूर्ण होता है और ये गीतात्मक होता है।
 
किसी भी देवी या देवता का गुणगान और महिमा का वर्णन किया जाता है। स्त्रोत का जाप करने से अलौकिक ऊर्जा का संचार होता है और दिव्य शब्दों के चयन से हम उस देवता को प्राप्त कर लेते हैं और इसे किसी भी राग में गाया जा सकता है। स्त्रोत के शब्दों का चयन ही महत्वपूर्ण होता है और ये गीतात्मक होता है।
 +
 +
मन का अन्तर्मुखी भाव होते-होते ध्यान की प्रगाढ अवस्था आ जाती है। और अन्त में ध्याता ध्यान तथा ध्येय एक हो जाते हैं, त्रिपुटी समाप्त हो जाती है, और साधक साध्य को प्राप्त कर लेता है। योग साधना के अनुसार ध्यान के बाद समाधि अवस्था का प्रादुर्भाव हो जाता है। समाधि में भी पहले सविकल्प समाधि फिर धीरे-धीरे निर्विकल्प समाधि आ जाती है।
 +
 +
    
'''ध्यान'''
 
'''ध्यान'''
Line 3,868: Line 3,905:  
'''लय'''
 
'''लय'''
   −
मन्त्र के जाप से एक तरंग का निर्माण होता है जो की सम्पूर्ण वायुमंडल में व्याप्त हो जाता है और छिपी हुयी शक्तियों को जाग्रत कर लाभ प्रदान करता है।  
+
मन्त्र के जाप से एक तरंग का निर्माण होता है जो की सम्पूर्ण वायुमंडल में व्याप्त हो जाता है और छिपी हुयी शक्तियों को जाग्रत कर लाभ प्रदान करता है।
   −
=== पूजा के प्रकार ===
+
=== पूजा के विविध प्रकार ===
 
पूजा के मुख्य रूप से दो प्रकार का बताया गया है।
 
पूजा के मुख्य रूप से दो प्रकार का बताया गया है।
   −
# '''पंचोपचार पूजन।'''
+
# '''पंचोपचार पूजन'''- गन्ध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य।
# '''षोडशोपचार पूजन।'''
+
# '''दस उपचार-''' पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, गन्ध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य।
 +
#'''षोडश उपचार पूजन-''' पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, ताम्बूल, स्तवपाठ, तर्पण और नमस्कार।
 +
# '''द्वात्रिंशोपचार-'''
 +
# '''चतुष्षष्ट्युपचार-'''
 +
# '''एकशताधिकद्वात्रिंशोपचार-'''
 +
मानस पूजा को शास्त्रों में सबसे शक्तिशाली पूजा माना गया है।
    
== उद्धरण ==
 
== उद्धरण ==
 
<references />
 
<references />
924

edits

Navigation menu