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सुधार जारि
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सनातन धर्म में भारतीय जीवन पद्धति क्रमबद्ध और नियन्त्रित है। इसकी क्रमबद्धता और नियन्त्रित जीवन पद्धति ही दीर्घायु, प्रबलता, अपूर्व ज्ञानत्व, अद्भुत प्रतिभा एवं अतीन्द्रिय शक्ति का कारण रही है। ऋषिकृत दिनचर्या व्यवस्था का शास्त्रीय, व्यावहारिक एवं सांस्कृतिक तथा वैज्ञानिक अनुशासन भारतीय जीवनचर्या में देखा जाता है। जो अपना सर्वविध कल्याण चाहते हैं उन्हैं शास्त्रकी विधिके अनुसार अपनी दैनिकचर्या बनानी चाहिए।  
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सनातन धर्म में भारतीय जीवन पद्धति क्रमबद्ध और नियन्त्रित है। इसकी क्रमबद्धता और नियन्त्रित जीवन पद्धति ही दीर्घायु, प्रबलता, अपूर्व ज्ञानत्व, अद्भुत प्रतिभा एवं अतीन्द्रिय शक्ति का कारण रही है। ऋषिकृत दिनचर्या व्यवस्था का शास्त्रीय, व्यावहारिक एवं सांस्कृतिक तथा वैज्ञानिक अनुशासन भारतीय जीवनचर्या में देखा जाता है। जो अपना सर्वविध कल्याण चाहते हैं उन्हैं शास्त्रकी विधिके अनुसार अपनी दैनिकचर्या बनानी चाहिए। दिनचर्या का धर्म से सम्बन्ध एवं गहरी चिंतन की प्रक्रिया में आध्यात्मिकता की भूमिका का महत्वपूर्ण योगदान है।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
 
दिनचर्या नित्य कर्मों की एक क्रमबद्ध शृंघला है। जिसका प्रत्येक अंग अन्त्यत महत्त्वपूर्ण है और क्रमशः दैनिककर्मों को किया जाता है। दिनचर्या के अनेक बिन्दु नीतिशास्त्र, धर्मशास्त्र और आयुर्वेद शास्त्र में प्राप्त होते हैं।
 
दिनचर्या नित्य कर्मों की एक क्रमबद्ध शृंघला है। जिसका प्रत्येक अंग अन्त्यत महत्त्वपूर्ण है और क्रमशः दैनिककर्मों को किया जाता है। दिनचर्या के अनेक बिन्दु नीतिशास्त्र, धर्मशास्त्र और आयुर्वेद शास्त्र में प्राप्त होते हैं।
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एतादृश जागरण के अनन्तर दैनिक क्रिया कलापों की सूची-बद्धता प्रातः स्मरण के बाद ही बिस्तर पर निर्धारित कर लेना चाहिये। जिससे हमारे नित्य के कार्य सुचारू रूप से पूर्ण हो सकें।<ref>पं०लालबिहारी मिश्र,नित्यकर्म पूजाप्रकाश,गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० १४)।</ref>
 
एतादृश जागरण के अनन्तर दैनिक क्रिया कलापों की सूची-बद्धता प्रातः स्मरण के बाद ही बिस्तर पर निर्धारित कर लेना चाहिये। जिससे हमारे नित्य के कार्य सुचारू रूप से पूर्ण हो सकें।<ref>पं०लालबिहारी मिश्र,नित्यकर्म पूजाप्रकाश,गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० १४)।</ref>
 
==धार्मिक दिनचर्या के विषयविभाग॥ Guidelines on different aspects of Dinacharya==
 
==धार्मिक दिनचर्या के विषयविभाग॥ Guidelines on different aspects of Dinacharya==
प्रातः जागरण॥ Time of getting up in the morning
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दिनचर्या प्रकृति के नियमों के अनुसार हो, तो उन कृत्यों से मानव को कष्ट नहीं वरन् लाभ ही होता है।
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ब्राह्म मुहूर्तम्॥ Brahma muhurta
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'''ब्राह्म मुहूर्तम्॥ Brahma muhurta'''
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करदर्शन॥ Kar Darshana
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'''प्रातः जागरण॥ Time of getting up in the morning'''
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भूमिवन्दना॥ Bhumi Vandana
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'''करदर्शन॥ Kar Darshana'''
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मंगलदर्शन॥ Mangala Darshana
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'''भूमिवन्दना॥ Bhumi Vandana'''
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अभिवादन॥ Abhivadana
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'''मंगलदर्शन॥ Mangala Darshana'''
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अजपाजप॥ Ajapajapa
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'''अभिवादन॥ Abhivadana'''
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उषा काल॥ Ushakala
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'''अजपाजप॥ Ajapajapa'''
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शौचाचार॥ Shouchara
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'''उषा काल॥ Ushakala'''
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दन्तधावन एवं मुखप्रक्षालन॥ Dantadhavana Evam Mukhaprakshalana
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'''शौचाचार॥ Shouchara'''
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व्यायाम॥ Vyayama
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'''दन्तधावन एवं मुखप्रक्षालन॥ Dantadhavana Evam Mukhaprakshalana'''
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तैलाभ्यंग॥ Tailabhyanga
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'''व्यायाम॥ Vyayama'''
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क्षौर॥ Kshaura
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'''तैलाभ्यंग॥ Tailabhyanga'''
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स्नान॥ Snana
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'''क्षौर॥ Kshaura'''
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वस्त्रपरिधान॥ vastra paridhana
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'''स्नान॥ Snana'''
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पूजाविधान॥ pujavidhana
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'''वस्त्रपरिधान॥ vastra paridhana'''
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योगसाधना॥ yoga sadhana
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'''पूजाविधान॥ pujavidhana'''
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यज्ञोपवीत धारण॥ Yagyopavita Dharana
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'''योगसाधना॥ yoga sadhana'''
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तिलक-आभरण धारण॥ Tilaka Abharana Dharana
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'''यज्ञोपवीत धारण॥ Yagyopavita Dharana'''
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संध्योपासना-आराधना॥ Sandhyopasana- Aradhana
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'''तिलक-आभरण धारण॥ Tilaka Abharana Dharana'''
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तर्पण॥ Tarpana
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'''संध्योपासना-आराधना॥ Sandhyopasana- Aradhana'''
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पञ्चमहायज्ञ॥ Pancha mahayagya
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'''तर्पण॥ Tarpana'''
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भोजन॥ Bhojana
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'''पञ्चमहायज्ञ॥ Pancha mahayagya'''
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लोक संग्रह-व्यवहार-जीविका॥ Loka sangraha- Vyavahara jivika
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'''भोजन॥ Bhojana'''
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संध्या-गोधूलि-प्रदोष॥ sayam Sandhya
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'''लोक संग्रह-व्यवहार-जीविका॥ Loka sangraha- Vyavahara jivika'''
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शयनविधि॥ Shayana Vidhi
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'''संध्या-गोधूलि-प्रदोष॥ sayam Sandhya'''
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'''शयनविधि॥ Shayana Vidhi'''
 
==दिनचर्या के विभाग==
 
==दिनचर्या के विभाग==
 
<blockquote>'''ब्राह्ममुहूर्ते उत्तिष्ठेत्‌। कुर्यान्‌ मूत्रं पुरीषं च। शौचं कुर्याद्‌ अतद्धितः। दन्तस्य धावनं कुयात्‌।'''
 
<blockquote>'''ब्राह्ममुहूर्ते उत्तिष्ठेत्‌। कुर्यान्‌ मूत्रं पुरीषं च। शौचं कुर्याद्‌ अतद्धितः। दन्तस्य धावनं कुयात्‌।'''
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===दिनचर्या कब, कितनी ?===
 
===दिनचर्या कब, कितनी ?===
दिनचर्या सुव्यवस्थित ढंग से अपने स्थिर निवास पर ही हो पाती है। अनेक लोग ऐसे भी हैं जो अपनी दिनचर्या को सर्वत्र एक जैसे जी लेते हैं। यात्रा, विपत्ति, तनाव, अभाव ओर मौसम का प्रभाव उन पर नहीं पडता। ऐसे लोगों को दृढव्रत कहते हैं। किसी भी कर्म को सम्पन्न करने के लिए दृढव्रत ओर एकाग्रचित्त होना अनिवार्य है। यह शास्त्रों का आदेश है -<blockquote>'''मनसा नैत्यक कर्म प्रवसन्नप्यतन्द्रितः। उपविश्य शुचिः सर्वं यथाकालमनुद्रवेत्‌॥''' (कात्यायनस्मृतिः,९,९८/२)</blockquote>प्रवास में भी आलस्य रहित होकर, पवित्र होकर, बैठकर समस्त नित्यकर्मो को यथा समय कर लेना चाहिषए्‌। अपने निवास पर दिनचर्या का शतप्रतिशत पालन करना चाहिए। यात्रा मे दिनचर्या विधान को आधा कर देना चाहिए। बीमार पड़ने पर दिनचर्या का कोई नियम नहीं होता। विपत्ति मे पड़ने पर दिनचर्या का नियम बाध्य नहीं करता-<blockquote>'''स्वग्रामे पूर्णमाचारं पथ्यर्धं मुनिसत्तम। आतुरे नियमो नास्ति महापदि तथेव च॥''' (ब्रह्माण्डपुराण)</blockquote>
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दिनचर्या सुव्यवस्थित ढंग से अपने स्थिर निवास पर ही हो पाती है। अनेक लोग ऐसे भी हैं जो अपनी दिनचर्या को सर्वत्र एक जैसे जी लेते हैं। यात्रा, विपत्ति, तनाव, अभाव ओर मौसम का प्रभाव उन पर नहीं पडता। ऐसे लोगों को दृढव्रत कहते हैं। किसी भी कर्म को सम्पन्न करने के लिए दृढव्रत ओर एकाग्रचित्त होना अनिवार्य है। यह शास्त्रों का आदेश है -<blockquote>'''मनसा नैत्यक कर्म प्रवसन्नप्यतन्द्रितः। उपविश्य शुचिः सर्वं यथाकालमनुद्रवेत्‌॥''' (कात्यायनस्मृतिः,९,९८/२)</blockquote>प्रवास में भी आलस्य रहित होकर, पवित्र होकर, बैठकर समस्त नित्यकर्मो को यथा समय कर लेना चाहिए। अपने निवास पर दिनचर्या का शतप्रतिशत पालन करना चाहिए। यात्रा में दिनचर्या विधान को आधा कर देना चाहिए। बीमार पड़ने पर दिनचर्या का कोई नियम नहीं होता। विपत्ति मे पड़ने पर दिनचर्या का नियम बाध्य नहीं करता-<blockquote>'''स्वग्रामे पूर्णमाचारं पथ्यर्धं मुनिसत्तम। आतुरे नियमो नास्ति महापदि तथेव च॥''' (ब्रह्माण्डपुराण)</blockquote>
    
====दिनचर्या एवं मानवीय जीवनचर्या====
 
====दिनचर्या एवं मानवीय जीवनचर्या====
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