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| श्रीगर्गाचार्य जी के मत से अधिकमास में त्याज्य कर्म-<blockquote>अग्न्याधानं प्रतिष्ठां च यज्ञो दानव्रतानि च। वेदव्रतवृषोत्सर्ग चूडाकरणमेखलाः॥गमनं देवतीर्थानां विवाहमभिषेचनम् । यानं च गृहकर्माणि मलमासे विवर्जयेत्॥(गर्ग सं०)</blockquote>श्रीगर्गाचार्य जी का कहना है कि अग्न्याधान, प्रतिष्ठा, यज्ञ, दान, व्रतादि, वेदव्रत वृषोत्सर्ग, चूडाकर्म, व्रतबन्ध, देवतीर्थों में गमन, विवाह, अभिषेक, यान और घर के काम अर्थात् गृहारम्भादि कार्य अधिक मास में नहीं करना चाहिये। मनुस्मृति के आधार पर कर्त्तव्य-<blockquote>तीर्थश्राद्धं दर्शश्राद्धं प्रेतश्राद्धं सपिण्डनम् । चन्द्रसूर्यग्रहे स्नानं मलमासे विधीयते॥(मनु स्मृ०)</blockquote>मनुस्मृतिमें कहा गया है कि तीर्थश्राद्ध, दर्शश्राद्ध, प्रेतश्राद्ध, सपिण्डीकरण, चन्द्रसूर्यग्रहणीय स्नान अधिकमास में भी करना चाहिये। | | श्रीगर्गाचार्य जी के मत से अधिकमास में त्याज्य कर्म-<blockquote>अग्न्याधानं प्रतिष्ठां च यज्ञो दानव्रतानि च। वेदव्रतवृषोत्सर्ग चूडाकरणमेखलाः॥गमनं देवतीर्थानां विवाहमभिषेचनम् । यानं च गृहकर्माणि मलमासे विवर्जयेत्॥(गर्ग सं०)</blockquote>श्रीगर्गाचार्य जी का कहना है कि अग्न्याधान, प्रतिष्ठा, यज्ञ, दान, व्रतादि, वेदव्रत वृषोत्सर्ग, चूडाकर्म, व्रतबन्ध, देवतीर्थों में गमन, विवाह, अभिषेक, यान और घर के काम अर्थात् गृहारम्भादि कार्य अधिक मास में नहीं करना चाहिये। मनुस्मृति के आधार पर कर्त्तव्य-<blockquote>तीर्थश्राद्धं दर्शश्राद्धं प्रेतश्राद्धं सपिण्डनम् । चन्द्रसूर्यग्रहे स्नानं मलमासे विधीयते॥(मनु स्मृ०)</blockquote>मनुस्मृतिमें कहा गया है कि तीर्थश्राद्ध, दर्शश्राद्ध, प्रेतश्राद्ध, सपिण्डीकरण, चन्द्रसूर्यग्रहणीय स्नान अधिकमास में भी करना चाहिये। |
| | | |
− | == ( संवत्सर एवं संवत्) == | + | === चान्द्रमास के नामकरण === |
− | काल गणनामें कल्प, मन्वन्तर, युगादि के पश्चात् संवत्सरका नाम आता है। गणना पद्धति के अन्तर्गत समय मापने की छोटी-बडी इकाइयों का निर्धारण व इन इकाइयों के लिये ग्रहों,नक्षत्रों, चन्द्र, सूर्य की चालों का अध्ययन आवश्यक है। इस कार्य को खगोलशास्त्रियों व पंचांग निर्माताओं द्वारा किया जाता है। इस प्रकार निर्धारित की गई गणना पद्धति को आधार मानते हुये, किसी भी स्मरणीय घटना से वर्षों की गिनती आरम्भ कर देना तथा इस गणना को एक नाम दे देना संवत् कहलाता है।
| + | कृतिका, रोहिणी |
| | | |
− | == परिचय ==
| + | पूर्णिमा |
| | | |
− | == परिभाषा ==
| + | पूर्णिमा |
− | संवसन्ति ऋतवोऽत्र संवस्-सरन् इति सः संवत्सरः।(आप्टे)<ref>आप्टे शब्दकोष १।२।४</ref>
| |
| | | |
− | == भारतीय एवं विदेशी संवत् ==
| + | |
− | काल गणनामें युगादि के भेदसे सत्ययुग में ब्रह्म-संवत् , त्रेतामें वामन-संवत् ,परशुराम-संवत् (सहस्रार्जुन वधसे) तथा श्रीराम-संवत् (रावण-विजयसे), द्वापरमें युधिष्ठिर-संवत् और कलिमें विक्रम-संवत्, शक संवत् आदि इन संवतों के अतिरिक्त अनेक राजाओं तथा सम्प्रदायाचार्योंके नामपर संवत् चलाये गये हैं। भारतीय संवतोंके अतिरिक्त विश्वमें और भी धर्मोंके संवत् हैं। तुलना के लिये उनमेंसे प्रधान-प्रधानकी तालिका दी जा रही है-
| + | मृगशीर्ष, आर्द्रा |
| + | |
| + | |
| + | मार्गशीर्ष |
| + | |
| + | पुनर्वसु पुष्य |
| + | |
| + | पौष |
| + | |
| + | पूर्णिमा |
| + | |
| + | पूर्णिमा |
| + | |
| + | आषा, मघा |
| + | |
| + | माघ |
| + | |
| + | |
| + | पू० फा० उ० फा०, हस्त |
| + | |
| + | पूर्णिमा |
| + | |
| + | फाल्गुन |
| + | |
| + | चित्रा, स्वाती |
| + | |
| + | पूर्णिमा |
| + | |
| + | निशाया, अनुराधा |
| + | |
| + | पूर्णिमा |
| + | |
| + | उयंता मूल |
| + | |
| + | पूर्णिमा |
| + | |
| + | वैशाख |
| + | |
| + | पूर्णिमा |
| + | |
| + | पू०पा० उ०पा० |
| + | |
| + | स्पेश |
| + | |
| + | पूर्णिमा |
| + | |
| + | आधाद |
| + | |
| + | श्रवण, धनिष्ठा । |
| + | |
| + | अनभिष, पू०भा० उ०भा० |
| + | |
| + | पूर्णिमा |
| + | |
| + | भाद्रपद |
| + | |
| + | रेवती, अश्विनी, भरणी |
| + | |
| + | आश्विन |
| {| class="wikitable" | | {| class="wikitable" |
− | |+(संवत् सारिणी)<ref>राधेश्याम खेमका, हिन्दू-संस्कृति-अंक, हिन्दू संवत् वर्ष मास और वार, श्रीदेवकी नंदनजी खेडवाल, सन् २०१९, (पृ०८६२)।</ref> | + | |+(सौर एवं चान्द्रमास नामकरण) |
− | ! colspan="3" |भारतीय | + | !सौर मास |
− | ! colspan="3" |विदेशीय | + | ! colspan="2" |चान्द्र मास(पूर्णिमा तिथि में नक्षत्र के अनुसार) |
− | |-
| |
− | !क्रम
| |
− | !संवत् नाम
| |
− | !वर्तमान वर्ष
| |
− | !क्रम
| |
− | !संवत् नाम
| |
− | !वर्तमान वर्ष
| |
− | |-
| |
− | |1
| |
− | |कल्पाब्द
| |
− | |1,97,29,49,050
| |
− | |1
| |
− | |चीनी संवत्
| |
− | |1,60,02,247
| |
− | |-
| |
− | |2
| |
− | |सृष्टि-संवत्
| |
− | |1,15,58,85,050
| |
− | |2
| |
− | |खताई
| |
− | |8,88,38,320
| |
− | |-
| |
− | |3
| |
− | |वामन-संवत्
| |
− | |1,96,08,89,050
| |
− | |3
| |
− | |पारसी
| |
− | |1,89,917
| |
− | |-
| |
− | |4
| |
− | |श्रीराम-संवत्
| |
− | |1,25,69,050
| |
− | |4
| |
− | |मिस्री
| |
− | |27,603
| |
− | |-
| |
− | |5
| |
− | |श्रीकृष्ण-संवत्
| |
− | |5,175
| |
− | |5
| |
− | |तुर्की
| |
− | |7,556
| |
| |- | | |- |
− | |6 | + | |'''संक्रान्ति''' |
− | |युधिष्ठिर-संवत् | + | |'''चान्द्रनक्षत्राणि''' |
− | |5,050 | + | |'''मासाः''' |
− | |6
| |
− | |आदम
| |
− | |7,301
| |
| |- | | |- |
− | |7 | + | |मीन |
− | |बौद्ध-संवत् | + | |चित्रा, रोहिणी |
− | |2,524
| + | |चैत्र |
− | |7
| |
− | |ईरानी | |
− | |5,954
| |
| |- | | |- |
− | |8 | + | |मेष |
− | |महावीर(जैन)-संवत् | + | |विशाखा, अनुराधा |
− | |2,476
| + | |वैशाख |
− | |8
| |
− | |यहूदी | |
− | |5,710
| |
| |- | | |- |
− | |9 | + | |वृष |
− | |श्रीशंकराचार्य-संवत् | + | |ज्येष्ठा, मूल |
− | |2,229
| + | |ज्येष्ठ |
− | |9
| |
− | |इब्राहीम | |
− | |4,389
| |
| |- | | |- |
− | |10 | + | |मिथुन |
− | |विक्रम-संवत् | + | |पू०षा०, उ०षा० |
− | |2,006
| + | |आषाढ |
− | |10
| |
− | |मूसा | |
− | |3,653
| |
| |- | | |- |
− | |11 | + | |कर्क |
− | |शालिवाहन-संवत् | + | |श्रवण, धनिष्ठा |
− | |1,871
| + | |श्रावण |
− | |11
| |
− | |यूनानी | |
− | |3,522
| |
| |- | | |- |
− | |12 | + | |सिंह |
− | |कलचुरी संवत् | + | |शतभिषा, पू०भा०, उ०भा० |
− | |1,701
| + | |भाद्रपद |
− | |12
| |
− | |रोमन
| |
− | |2,700 | |
| |- | | |- |
− | |13 | + | |कन्या |
− | |वलभी संवत् | + | |रेवती, अश्विनी, भरणी |
− | |1,629
| + | |आश्विन |
− | |13
| |
− | |ब्रह्मा
| |
− | |2,490 | |
| |- | | |- |
− | |14 | + | |तुला |
− | |फसली संवत् | + | |कृत्तिका, रोहिणी |
− | |1,360
| + | |कार्तिक |
− | |14
| |
− | |मलयकेतु | |
− | |2,261
| |
| |- | | |- |
− | |15 | + | |वृश्चिक |
− | |बँगला संवत् | + | |मृगशीर्ष, आर्द्रा |
− | |1,356
| + | |मार्गशीर्ष |
− | |15
| |
− | |पार्थियन | |
− | |2,196
| |
| |- | | |- |
− | |16 | + | |धनु |
− | |हर्षाब्द संवत् | + | |पुनर्वसु, पुष्य |
− | |1,342
| + | |पौष |
− | |16
| |
− | |ईस्वी | |
− | |1,949
| |
| |- | | |- |
− | | | + | |मकर |
− | | | + | |आश्लेषा, मघा |
− | | | + | |माघ |
− | |17
| |
− | |जावा
| |
− | |1,875
| |
| |- | | |- |
− | | | + | |कुम्भ |
− | | | + | |पू०फा०, उ०फा०, हस्त |
− | | | + | |फाल्गुन |
− | |18
| |
− | |हिजरी
| |
− | |1,319
| |
| |} | | |} |
− | यह तुलना इस बातको तो स्पष्ट ही कर देती है कि भारतीय संवत् अत्यन्त प्राचीन हैं। साथ ही ये गणितकी दृष्टिसे अत्यन्त सुगम और सर्वथा ठीक हिसाब रखकर निश्चित किये गये हैं।
| |
− |
| |
− | === राष्ट्रीय सम्वत् ===
| |
− | भारतमें केन्द्र सरकारके निर्णयके अनुसार २२ मार्च १९५७ से शक सम्वत् को राष्ट्रीय सम्वत् घोषित कर दिया गया है। यह प्रतिवर्ष २२ मार्चसे प्रारम्भ होता है।
| |
− |
| |
− | === विक्रम सम्वत् ===
| |
− | यह सम्वत् उज्जयिनीके सम्राट् विक्रमादित्यने चलाया था। यह प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदासे प्रारंभ होता है। इसमें दिन, वार और तिथिका प्रारम्भ सूर्योदयसे माना जाता है।
| |
− |
| |
− | === शक सम्वत् ===
| |
− | यह सम्वत् शालिवाहन नामक नृपतिने चलाया था। इसे अब राष्ट्रीय सम्वत् की मान्यता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार कनिष्क प्रथमको इस संवत् का प्रवर्तक माना जाता है।
| |
− |
| |
− | === बँगला संवत् ===
| |
− | बँगला सम्वत् मेषकी संक्रान्तिसे प्रारम्भ होता है। मीनकी संक्रान्तिसे बंगाली चैत्रमास तथा मेषकी संक्रान्तिसे वैशाख मास प्रारम्भ होता है। वर्षारम्भ संक्रान्तिके दूसरे दिनसे पहली तारीख गिनते हैं। बंगला सम्वत् में कभी २९, ३०, ३१ या ३२ दिन भी एक महीनेमें पड सकते हैं। बंगाली सन् में ५१५ जोडनेसे शक सम्वत् और ५९३-९४ जोडनेसे ईसवी सन् आता है।
| |
− |
| |
− | === ईसवी सन् ===
| |
− | ईसवी सन् का प्रारंभ ईसामसीहके जन्मदिनसे माना जाता है। जनवरी माहसे प्रारम्भ होकर दिसम्बर माहतक १२ माह सम्मिलित होते हैं।
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− |
| |
− | === इस्लामी हिजरी सन् ===
| |
− | इसकी उत्पत्ति अरब देश में हुई थी। भारतमें इसका प्रचार मुसलमानी राज्यकालसे हुआ है। हिजरत का अर्थ है संकट में देशत्याग। पैगम्बर मुहम्मद साहब १५ जुलाई सन् ६२२ ई०तदनुसार शाके ५४४ श्रावण शुक्ल, गुरुवारकी रात्रि (मुसलमानोंकी शुक्रवारकी रात)- को अपने वतन मक्काको छोडकर मदीना चले गये थे। पैगम्बर साहबके हिजरतकी यह घटना ही इस सन् का आरम्भ काल है। इसीलिये इसे हिजरी सन् कहते हैं। इसमें चान्द्रवर्ष ३५४ या ३५५ दिन का होता है। इसमें अधिकमास नहीं होता। महीनेका आरम्भ शुक्लपक्षकी प्रतिपदा या द्वितीयाके चन्द्रदर्शनके बाद होता है। महीने के दिनों को पहला चाँद, दूसरा चाँद आदि कहते हैं। एक मास में २९या ३० चाँद दिन होते हैं। इसमें वार और तारीखका प्रारम्भ सूर्यास्तसे होता है। मुहर्रम महीनेसे जिलहिजतक १२ महीने होते हैं।
| |
− |
| |
− | == शक एवं संवत् ==
| |
− | भारत में विक्रम संवत् तथा शालीवाहन शक का विशेष प्रचार है। विक्रमादित्य राजा ने विक्रम संवत् का प्रारम्भ किया और शालीवाहन ने शक का प्रारंभ किया। इस समय विक्रम संवत् २०७९ तथा शक संवत् १९४४ है। शक से संवत् १३५ वर्ष पुराना है। व्यापारियों का विक्रम संवत् दीपावली से प्रारंभ होता है एवं दक्षिण भारत में भी प्रायः विक्रम संवत् कार्तिक से प्रारंभ होता है और शेष भारत में प्रायः चैत्र से विक्रम संवत् का प्रारंभ होता है।शक का प्रारंभ सभी जगह चैत्र से ही होता है।
| |
− |
| |
− | == विक्रमसंवत् से संवत्सर का ज्ञान ==
| |
− | एक संवत्सर एक वर्ष का माना जाता है। वर्ष गणना हेतु संवत्सर का उपयोग होता है। संहिता स्कन्ध के विद्वान् बृहस्पति की मध्यम राशि के भोगकाल को संवत्सर कहते हैं। यह काल भी एक वर्ष का माना जाता है।संवत्सर ६० होते है। जिनका नाम इस प्रकार है-<blockquote>संवत्कालस्त्वंकयुतः कृत्वा शून्यरसैर्हृतः। शेषः संवत्सरो ज्ञेयः प्रभवादिर्बुधैः क्रमात् ॥</blockquote>विक्रम संवत् में ९ जोडकर ६० से भाग दें। शेष में एक जोडने पर प्रभवादि संवत्सर होगा। जैसे-
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− | वर्तमान संवत् २०७९ में ९ जोडकर योग=२०८८ में ६० का भाग देने से शेष ३४,८ रहे। इनमें १ जोडने से प्रभवादि ३५,८ अर्थात् ३६ वाँ संवत्सर शुभकृत् वर्तमान संवत्सर ज्ञात हुआ।<ref>मीठालाल हिंमतराम ओझा, भारतीय कुण्डली विज्ञान, सन् २००४, वाराणसीः देवर्षि प्रकाशन पृ०८।</ref>
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| == उद्धरण == | | == उद्धरण == |