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7. क्लोरोफ्लोरो कार्बनों का उपयोग बंद कर दें।
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== वेदों में वायु संरक्षण ==
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शुद्ध हवा में सांस लिये बिना जीवित रहना हमारे लिए संभव नहीं है, इसलिए वायु के संरक्षण पर ध्यान देना बहुत आवश्यक हेै।
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* वेदों में वायु के महत्व को सतही तौर पर जान पाने में; और
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* वेदों में वायु संरक्षण की मूल भावना को समझ पाने में।
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वायु के महत्व को उल्लेखित करते हुए अथर्ववेद में कहा गया है कि वायु आकाशीय जल को सर्वत्र पहुंचाने में सहायक होती है जिससे अन्नादि में समृद्धि आती है-<blockquote>'''उत्समक्षितं व्यचान्ति ये सदा य आसिक्रचनि रसमोषधीष, पुरो दधे मरुतः पृश्निमात्हस्ते नो मुजञ्चंत्वंहसः।'''</blockquote>'''( अथर्ववेद 4.27.2)'''
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अर्थात् जो वायु सींचने वाले जल को अनेक प्रकार से यहाँ-वहाँ पहुँचाते हैं, जो इसको अन्नादि औषधियों तक ले जाते हैं, छूने योग्य पदार्थो तथा आकाश को नापने वाले उन वायु देवताओं को में सम्मुख रखता हूँ। ऐसे वायु देवता हमें सभी कष्टों से मुक्ति दिलावें।
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चित्र 8.1 वायु द्वारा आकाशीय जल का संरक्षण
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वेदों में वायु को सम्मान देते हुए कहा गया है कि वायु हमारे रक्षा करें-<blockquote>'''त्रायन्तां मरूतां गणः'''
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'''(ऋग्वेद 10.137.5)'''</blockquote>अर्थात्, हे वायु गण हमारी रक्षा करो। प्रकृति में हो रहे असंतुलनों में वायु के रौद्र रूप जैसे आँधी, तूफान से होने वाले नुकसान के प्रति वेदों में प्रार्थना की गई है कि हे वायु देवता हमारी प्रार्थना है कि आप हमेशा ही प्राणिमात्र के लिए अनुकूल रहे-<blockquote>'''मरूतां मन्वे अधि मे ब्रुवन्त प्रेमं वाजं वाजवाते अवन्तु'''
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'''आशूनिव सुयमानद उतये तेवो मुञ्चन्त्वंहसः।।'''
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'''( अथर्ववेद 4.27.1)'''</blockquote>अर्थात्, दोषों का नाश करने वाली पवनों का में मन में स्मरण करता हूँ। वे पवन मेरे ऊपर कृपा करें तथा सभी को अन्न के सुख तथा दान देने योग्य बनायें तेज गतिमान अश्वों के समान सुन्दर नियम वाले पवनों को मैंने अपनी रक्षा के लिए पुकारा है। वे पवन हमें सभी दुखों से मुक्ति प्रदान करें। यहाँ पर ऋषि पवन से कल्याणकारी बने रहने के लिए निवेदन कर रहा है। पर्यावरण सुरक्षा को चिंता को इंगित करते हुए ऋषि कहता हे कि हे पवन! आप अन्नादि (तृणदि), वृक्षादि से युक्त खेतों को नुकसान मत पहुँचाओ-<blockquote>'''यत्मीमन्तं न चूनुय'''
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'''(ऋग्वेद 1.37.6)'''</blockquote>अन्तरिक्ष में होने वाले कई प्रकार के विकारों से हमें वायु बचाती हे। इसलिए ऋग्वेद का ऋषि प्रार्थना करता है कि हे पवन अन्तरिक्ष में होने वाले उपद्रवों से हमें संरक्षित करें- <blockquote>'''“पातु वातो अन्तरिक्षात्”'''
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'''(ऋग्वेद 10.158.1)'''</blockquote>अथर्ववेद में वायु को मलीनता नाशक तथा कष्टों का नाशक बताया गया है-<blockquote>'''आपो वायो सविता च दुष्कृतमय रक्षाणि निमिदां च मेघतम्।'''
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'''संहयूर्जया सृजयः संकलेन ता नो मुञ्चन्तवंहमः।।'''
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'''( अथर्ववेद 4.25.2)'''</blockquote>अर्थात्, हे वायु और सूर्य देवता, आप दोनों मिलकर यहां कि मलीनता को हटा दो। रोगों का निवारण कर दो तथा कष्टों को दूर कर दो क्योंकि आप दोनों ही आत्मिक तृष्टि के साथ मिलाते हो तथा शरीरिक बल से युक्त करते हो। अतः आप हमें कष्टों व दुखों से मुक्ति प्रदान करो।
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इस तरह हम देखते हैं कि आक्सीजन को वेदों में प्राणवायु कहा गया हे तथा आदेशित किया गया हे कि हमें वायु संरक्षण अर्थात् वायु को शुद्ध रूप में बनाये रखने का प्रयास करते रहना चाहिए। हमें वायु को प्रदूषित नहीं करना चाहिए और जो भी कोई ऐसा वायु प्रदूषित करता है तो उसका अपराध अक्षम्य है।
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चित्र 8.1 प्राणवायु
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वायु का महत्व बताते हुए कहा जाता हे कि वायु अन्य सभी वस्तुओं को शुद्धता प्रदान करती है। जल को शुद्ध करती हे। इसलिए वेद हमें निर्देशित करता है कि ऐसा कोई भी कर्म ना करें जिससे वायु अशुद्ध हो। हमें हमारी दैनिक दिनचर्या को इस तरह से रखना चाहिए कि हम वायु को संरक्षित करें तथा लेशमात्र भी वायु प्रदूषण न होने दें।
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अंतरिक्ष में आने वाली पराबेंगनी तथा अन्य जहरीली गैसों से पृथ्वी का बचाव करने कि प्रार्थना वेदों में की गई है। संक्षेप में कह सकते हैं कि वैदिक साहित्य में वायु की पवित्रता बनाये रखने पर अत्यधिक जोर दिया गया हे।
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