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| == परिचय == | | == परिचय == |
− | मास संबंधी ज्ञान के विषय में अधिकमास का ज्ञान परम आवश्यक है क्योंकि धार्मिक एवं ज्योतिषीय दोनों की दृष्टि से अधिकमास का आनयन एवं विचार महत्त्वपूर्ण है। शुभ एवं अशुभ कार्यों में अधिकमास एवं क्षयमास दोनों का विचार-विमर्श शास्त्रों में गंभीरता पूर्वक किया है | + | मास संबंधी ज्ञान के विषय में अधिकमास का ज्ञान परम आवश्यक है क्योंकि धार्मिक एवं ज्योतिषीय दोनों की दृष्टि से अधिकमास का आनयन एवं विचार महत्त्वपूर्ण है। शुभ एवं अशुभ कार्यों में अधिकमास एवं क्षयमास दोनों का विचार-विमर्श शास्त्रों में गंभीरता पूर्वक किया है। |
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| + | व्यवहारमें सौर और चान्द्रमासों की गणना प्रचलित है। जिसके साथ सावन दिनों का सम्बन्ध जुटा रहता है सूर्य के एक राशिभोग को सौरमास और ३० तिथ्यात्मक दो अमान्त कालाभ्यन्तर वर्तमान काल को चान्द्रमास कहते हैं।एक सौरमास को सावन दिन से मापा जाय तो जितने सावन दिन होंगे उससे कम सावन दिन १ चान्द्रमास में होते हैं अर्थात् चान्द्रमास की अपेक्षा सौरमास बडा होता है। चान्द्रमास से सौरमास जितना अधिक होता है उसी को अधिशेष कहते हैं। |
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| + | मध्यम मान से एक सौरमास ३० सावनदिन, २६ घटी एवं १५ पल का होता है और चान्द्रमास २९दिन, ३४ घटी एवं २० पल का होता है। दोनों का अन्तर (३०।२६।१५)-(२९।३४।२०)=०।५१।५५ सावनदिनादि १ सौरमास में होता है। यही अधिशेष प्रतिमास बढते हुये अनुपात से- |
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| + | १सौरमास + २९ दि०३४।२०/आन्तर शेष= ३०+२९ दिन ३४/ घ० २०/०।५१।५५= ३२ १/३ आसन्न मास में १ चान्द्रमास पड जाता है। वही अधिमास कहा जाता है। जब अधिशेष १चान्द्रमास बराबर होता है तो उस चान्द्रमास में सूर्य संक्रान्ति नहीं होती है। अर्थात् वह चान्द्रमास सूर्य संक्रान्ति से विहीन होता है, उसी को अधिमास या मलमास अथवा पुरुषोत्तममास कहते हैं। |
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| == परिभाषा == | | == परिभाषा == |