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वृद्धिर्ध्रुवाख्यो व्याघातो हर्षणो वज्रसंज्ञकः। सिद्धियोगो व्यतीपातो वरीयान परिघः शिवः॥
 
वृद्धिर्ध्रुवाख्यो व्याघातो हर्षणो वज्रसंज्ञकः। सिद्धियोगो व्यतीपातो वरीयान परिघः शिवः॥
   −
सिद्धिः साध्यः शुभः शुक्लो ब्रह्मेन्द्रो वैधृतिः स्मृतः। सप्तविंशतियोगास्ते स्वनामफलदाः स्मृताः॥<ref name=":0" /></blockquote>'''अर्थ-''' उपर्युक्त ये सत्ताईस योग निम्न क्रम में हैं- विष्कम्भ, प्रीति, आयुष्मान् , सौभाग्य, शोभन, अतिगण्ड, सुकर्मा, धृति, शूल, गण्ड, वृद्धि, ध्रुव, व्याघात, हर्षण, वज्र, सिद्धियोग, व्यतीपात, वरीयान् , परिघ, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, ऐन्द्र और वैधृति। सिद्धियोग एवं सिद्धि का दो बार प्रयोग हुआ है किन्तु अनन्तर्कालीन आचार्यों ने द्वितीय क्रम में स्थित सिद्धि के स्थान पर सिद्ध का प्रयोग किया है।
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सिद्धिः साध्यः शुभः शुक्लो ब्रह्मेन्द्रो वैधृतिः स्मृतः। सप्तविंशतियोगास्ते स्वनामफलदाः स्मृताः॥<ref name=":0">श्री विन्ध्येश्वरीप्रसाद द्विवेदी, म्हूर्तचिन्तामणि, पीयूषधारा टीका, शुभाशुभ प्रकरण, सन् २०१८, वाराणसीः चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन (पृ०२८)</ref></blockquote>'''अर्थ-''' उपर्युक्त ये सत्ताईस योग निम्न क्रम में हैं- विष्कम्भ, प्रीति, आयुष्मान् , सौभाग्य, शोभन, अतिगण्ड, सुकर्मा, धृति, शूल, गण्ड, वृद्धि, ध्रुव, व्याघात, हर्षण, वज्र, सिद्धियोग, व्यतीपात, वरीयान् , परिघ, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, ऐन्द्र और वैधृति। सिद्धियोग एवं सिद्धि का दो बार प्रयोग हुआ है किन्तु अनन्तर्कालीन आचार्यों ने द्वितीय क्रम में स्थित सिद्धि के स्थान पर सिद्ध का प्रयोग किया है।
    
उपर्युक्त योगों में वैधृति एवं व्यतीपात विवाह आदि शुभकर्मों में त्याज्य हैं।
 
उपर्युक्त योगों में वैधृति एवं व्यतीपात विवाह आदि शुभकर्मों में त्याज्य हैं।
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=== विष्कम्भादि योग जानने का प्रकार ===
  −
<blockquote>यस्मिनृक्षे स्थितो भानुर्यत्र तिष्ठति चन्द्रमा। एकीकृत्य त्यजेदेकं योगाः विष्कुम्भकादयः॥(बृह०अव०)<ref name=":1">पं०मदन गोपाल बाजपेयी, बृहदवकहडा चक्रम् ,सन् १९९८ वाराणसीः भारतीय विद्या प्रकाशन श्लो०९ (पृ०१़९)।</ref></blockquote>जिस नक्षत्र पर सूर्य हो और जिस नक्षत्र पर चन्द्रमा हो उन दोनों के नक्षत्र की संख्याओं को जोडकर एक घटायें , जो शेष बचे उसे  विष्कुम्भादि योग जानिये।
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|+(योग सारिणी, देवता एवं फल)<ref name=":0">श्री विन्ध्येश्वरीप्रसाद द्विवेदी, म्हूर्तचिन्तामणि, पीयूषधारा टीका, शुभाशुभ प्रकरण, सन् २०१८, वाराणसीः चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन (पृ०२८)</ref>
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|+(योग सारिणी, देवता एवं फल)<ref name=":0" />
 
!क्र०सं०
 
!क्र०सं०
 
!योग नाम
 
!योग नाम
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|अशुभ
 
|अशुभ
 
|
 
|
 +
15
 
|
 
|
 +
वज्र
 
|
 
|
 +
वरुण
 
|
 
|
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अशुभ
 
|-
 
|-
 
|2
 
|2
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|शुभ
 
|शुभ
 
|
 
|
 +
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|
 
|
 +
सिद्धि
 
|
 
|
 +
गणेश
 
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शुभ
 
|-
 
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|3
 
|3
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|शुभ
 
|शुभ
 
|
 
|
 +
17
 
|
 
|
 +
व्यतीपात
 
|
 
|
 +
रुद्र
 
|
 
|
 +
अशुभ
 
|-
 
|-
 
|4
 
|4
Line 62: Line 70:  
|शुभ
 
|शुभ
 
|
 
|
 +
18
 
|
 
|
 +
वरीयान्
 
|
 
|
 +
कुबेर
 
|
 
|
 +
शुभ
 
|-
 
|-
 
|5
 
|5
Line 71: Line 83:  
|शुभ
 
|शुभ
 
|
 
|
 +
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|
 
|
 +
परिघ
 
|
 
|
 +
विश्वकर्मा
 
|
 
|
 +
अशुभ
 
|-
 
|-
 
|6
 
|6
Line 80: Line 96:  
|अशुभ
 
|अशुभ
 
|
 
|
 +
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|
 
|
 +
शिव
 
|
 
|
 +
मित्र
 
|
 
|
 +
शुभ
 
|-
 
|-
 
|7
 
|7
Line 89: Line 109:  
|शुभ
 
|शुभ
 
|
 
|
 +
21
 
|
 
|
 +
सिद्धि
 
|
 
|
 +
कार्तिकेय
 
|
 
|
 +
शुभ
 
|-
 
|-
 
|8
 
|8
Line 98: Line 122:  
|शुभ
 
|शुभ
 
|
 
|
 +
22
 
|
 
|
 +
साध्य
 
|
 
|
 +
सावित्री
 
|
 
|
 +
शुभ
 
|-
 
|-
 
|9
 
|9
Line 107: Line 135:  
|अशुभ
 
|अशुभ
 
|
 
|
 +
23
 
|
 
|
 +
शुभ
 
|
 
|
 +
लक्ष्मी
 
|
 
|
 +
शुभ
 
|-
 
|-
 
|10
 
|10
Line 116: Line 148:  
|अशुभ
 
|अशुभ
 
|
 
|
 +
24
 
|
 
|
 +
शुक्ल
 
|
 
|
 +
पार्वती
 
|
 
|
 +
शुभ
 
|-
 
|-
 
|11
 
|11
Line 125: Line 161:  
|शुभ
 
|शुभ
 
|
 
|
 +
25
 
|
 
|
 +
ब्रह्मा
 
|
 
|
 +
अश्विनी
 
|
 
|
 +
शुभ
 
|-
 
|-
 
|12
 
|12
Line 134: Line 174:  
|शुभ
 
|शुभ
 
|
 
|
 +
26
 
|
 
|
 +
ऐन्द्र
 
|
 
|
 +
पितर
 
|
 
|
 +
शुभ
 
|-
 
|-
 
|13
 
|13
Line 143: Line 187:  
|अशुभ
 
|अशुभ
 
|
 
|
 +
27
 +
|
 +
वैधृति
 
|
 
|
 +
दिति
 
|
 
|
 +
अशुभ
 +
|-
 +
|14
 +
|हर्षण
 +
|भग
 +
|शुभ
 
|
 
|
|-}
+
|
 +
|
 +
|
 +
|}
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=== विष्कम्भादि योग जानने का प्रकार ===
 +
<blockquote>यस्मिनृक्षे स्थितो भानुर्यत्र तिष्ठति चन्द्रमा। एकीकृत्य त्यजेदेकं योगाः विष्कुम्भकादयः॥(बृह०अव०)<ref name=":1">पं०मदन गोपाल बाजपेयी, बृहदवकहडा चक्रम् ,सन् १९९८ वाराणसीः भारतीय विद्या प्रकाशन श्लो०९ (पृ०१़९)।</ref></blockquote>जिस नक्षत्र पर सूर्य हो और जिस नक्षत्र पर चन्द्रमा हो उन दोनों के नक्षत्र की संख्याओं को जोडकर एक घटायें , जो शेष बचे उसे  विष्कुम्भादि योग जानिये।
   −
=== आनन्दादि योग ===
  −
<blockquote>आनन्दाख्यः कालदण्डश्च धूम्रो धाता सौम्यो ध्वांक्षके तु क्रमेण। श्रीवत्साख्यो वज्रकं मुद्गरश्च छत्रं मित्रं मानसं पद्मलुंबौ॥
     −
उत्पातमृत्यू किल काणसिद्धि शुभो मृताख्यो मुसलो गदश्च। मातंगरक्षश्चर सुस्थिराख्यः प्रवर्धमानाः फलदाः स्वनाम्ना॥(बृह०अव०)<ref name=":1" /></blockquote>अर्थ- आनन्द, कालदण्ड, धूम्र, धाता, सौम्य, ध्वांक्ष, केतु, श्रीवत्स, वज्र, मुद्गर, छत्र, मित्र, मानस, पद्म, लुम्ब, उत्पात, मृत्यु, काण, सिद्धि, शुभ, अमृत, मुसल, गद, मातंग, रक्ष, चर, सुस्थिर और प्रवर्धमान ये २८ योग होते हैं। ये अपने नाम अनुरूप ही फल देते हैं।
      +
== आनन्दादि योग जानने का प्रकार ==
   −
अश्विनी भरणी कृत्तिका रोहिणी मृगशिरा आर्द्रा पुनर्वसु पुष्य आश्लेषा  रेवती
  −
  −
=== आनन्दादि योग जानने का प्रकार ===
  −
<blockquote>दस्रादर्के मृगादिन्दौ सर्पाद्भौमे कराद्बुधे। मैत्राद्गुरौ भृगौ वैश्वाद्गण्या मन्दे च वारुणात् ॥(बृह०अव०)<ref name=":1" /></blockquote>अर्थात् रविवार को यदि योग जानना हो तो रविवार को जो नक्षत्र हो उस नक्षत्र से अश्विनी तक गिने, सोमवार को मृगशिरा से अश्विनी तक गिने, मंगलवार को आश्लेषा से, बुधवार को हस्त से, गुरुवार को अनुराधा से, शुक्रवार को उत्तराषाढा से और शनिवार को शतभिषा से अश्विनी तक गिने। जो संख्या प्राप्त हो तत्तुल्य आनन्दादि योग होते हैं। इसमें अभिजित् सहित नक्षत्रों की गणना करनी चाहिये।
   
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|+(सुगमता पूर्वक आनन्दादि योगों को जानने के लिये सारिणी)<ref name=":0" />
 
|+(सुगमता पूर्वक आनन्दादि योगों को जानने के लिये सारिणी)<ref name=":0" />
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|आर्द्रा
 
|आर्द्रा
 
|मघा
 
|मघा
|
+
|चित्रा
|
+
|ज्येष्ठा
|
+
|अभिजित्
|
+
|पू०भाद्र
 
|-
 
|-
 
|3
 
|3
Line 199: Line 252:  
|पुनर्वसु
 
|पुनर्वसु
 
|पू०फाल्गु
 
|पू०फाल्गु
|
+
|स्वाती
|
+
|मूल
|
+
|श्रवण
|
+
|उ०भाद्र
 
|-
 
|-
 
|4
 
|4
Line 210: Line 263:  
|पुष्य
 
|पुष्य
 
|उ०फाल्गु
 
|उ०फाल्गु
|
+
|विशाखा
|
+
|पू०षाढा
|
+
|धनिष्ठा
|
+
|रेवती
 
|-
 
|-
 
|5
 
|5
Line 221: Line 274:  
|आश्लेषा
 
|आश्लेषा
 
|हस्त
 
|हस्त
|
+
|अनुराधा
|
+
|उ०षाढा
|
+
|शतभिषा
|
+
|अश्विनी
 
|-
 
|-
 
|6
 
|6
Line 232: Line 285:  
|मघा
 
|मघा
 
|चित्रा
 
|चित्रा
|
+
|ज्येष्ठा
|
+
|अभिजित्
|
+
|पू०भाद्र
|
+
|भरणी
 
|-
 
|-
 
|7
 
|7
Line 243: Line 296:  
|पू०फाल्गु
 
|पू०फाल्गु
 
|स्वाती
 
|स्वाती
|
+
|मूल
|
+
|श्रवण
|
+
|उ०भाद्र
|
+
|कृत्तिका
 
|-
 
|-
 
|8
 
|8
Line 254: Line 307:  
|उ०फाल्गु
 
|उ०फाल्गु
 
|विशाखा
 
|विशाखा
|
+
|पू०षाढा
|
+
|धनिष्ठा
|
+
|रेवती
|
+
|रोहिणी
 
|-
 
|-
 
|9
 
|9
Line 265: Line 318:  
|हस्त
 
|हस्त
 
|अनुराधा
 
|अनुराधा
|
+
|उ०षाढा
|
+
|शतभिषा
|
+
|अश्विनी
|
+
|मृगशिरा
 
|-
 
|-
 
|10
 
|10
Line 276: Line 329:  
|चित्रा
 
|चित्रा
 
|ज्येष्ठा
 
|ज्येष्ठा
|
+
|अभिजित्
|
+
|पू०भाद्र
|
+
|भरणी
|
+
|आर्द्रा
 
|-
 
|-
 
|11
 
|11
Line 287: Line 340:  
|स्वाती
 
|स्वाती
 
|मूल
 
|मूल
|
+
|श्रवण
|
+
|उ०भाद्र
|
+
|कृत्तिका
|
+
|पुनर्वसु
 
|-
 
|-
 
|12
 
|12
Line 298: Line 351:  
|विशाखा
 
|विशाखा
 
|पू०षाढा
 
|पू०षाढा
|
+
|धनिष्ठा
|
+
|रेवती
|
+
|रोहिणी
|
+
|पुष्य
 
|-
 
|-
 
|13
 
|13
Line 309: Line 362:  
|अनुराधा
 
|अनुराधा
 
|उ०षाढा
 
|उ०षाढा
|
+
|शतभिषा
|
+
|अश्विनी
|
+
|मृगशिरा
|
+
|आश्लेषा
 
|-
 
|-
 
|14
 
|14
Line 320: Line 373:  
|ज्येष्ठा
 
|ज्येष्ठा
 
|अभिजित्
 
|अभिजित्
|
+
|पू०भाद्र
|
+
|भरणी
|
+
|आर्द्रा
|
+
|मघा
 
|-
 
|-
 
|15
 
|15
Line 331: Line 384:  
|मूल
 
|मूल
 
|श्रवण
 
|श्रवण
|
+
|उ०भाद्र
|
+
|कृत्तिका
|
+
|पुनर्वसु
|
+
|पू०फाल्गु
 
|-
 
|-
 
|16
 
|16
Line 342: Line 395:  
|पू०षाढा
 
|पू०षाढा
 
|धनिष्ठा
 
|धनिष्ठा
|
+
|रेवती
|
+
|रोहिणी
|
+
|पुष्य
|
+
|उ०फाल्गु
 
|-
 
|-
 
|17
 
|17
Line 353: Line 406:  
|उ०षाढा
 
|उ०षाढा
 
|शतभिषा
 
|शतभिषा
|
+
|अश्विनी
|
+
|मृगशिरा
|
+
|आश्लेषा
|
+
|हस्त
 
|-
 
|-
 
|18
 
|18
Line 364: Line 417:  
|अभिजित्
 
|अभिजित्
 
|पू० भाद्र
 
|पू० भाद्र
|
+
|भरणी
|
+
|आर्द्रा
|
+
|मघा
|
+
|चित्रा
 
|-
 
|-
 
|19
 
|19
Line 375: Line 428:  
|श्रवण
 
|श्रवण
 
|उ०भाद्र
 
|उ०भाद्र
|
+
|कृत्तिका
|
+
|पुनर्वसु
|
+
|पू०फाल्गु
|
+
|स्वाती
 
|-
 
|-
 
|20
 
|20
Line 386: Line 439:  
|धनिष्ठा
 
|धनिष्ठा
 
|रेवती
 
|रेवती
|
+
|रोहिणी
|
+
|पुष्य
|
+
|उ०फाल्गु
|
+
|विशाखा
 
|-
 
|-
 
|21
 
|21
Line 397: Line 450:  
|शतभिषा
 
|शतभिषा
 
|अश्विनी
 
|अश्विनी
|
+
|मृगशिरा
|
+
|आश्लेषा
|
+
|हस्त
|
+
|अनुराधा
 
|-
 
|-
 
|22
 
|22
Line 408: Line 461:  
|पूर्वाभाद्रपदा
 
|पूर्वाभाद्रपदा
 
|भरणी
 
|भरणी
|
+
|आर्द्रा
|
+
|मघा
|
+
|चित्रा
|
+
|ज्येष्ठा
 
|-
 
|-
 
|23
 
|23
Line 419: Line 472:  
|उत्तराभाद्रपदा
 
|उत्तराभाद्रपदा
 
|कृत्तिका
 
|कृत्तिका
|
+
|पुनर्वसु
|
+
|पू०फाल्गु
|
+
|स्वाती
|
+
|मूल
 
|-
 
|-
 
|24
 
|24
Line 430: Line 483:  
|रेवती
 
|रेवती
 
|रोहिणी
 
|रोहिणी
|
+
|पुष्य
|
+
|उ०फाल्गु
|
+
|विशाखा
|
+
|पू०षाढा
 
|-
 
|-
 
|25
 
|25
Line 441: Line 494:  
|अश्विनी
 
|अश्विनी
 
|मृगशिरा
 
|मृगशिरा
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+
|आश्लेषा
|
+
|हस्त
|
+
|अनुराधा
|
+
|उ०षाढा
 
|-
 
|-
 
|26
 
|26
Line 452: Line 505:  
|भरणी
 
|भरणी
 
|आर्द्रा
 
|आर्द्रा
|
+
|मघा
|
+
|चित्रा
|
+
|ज्येष्ठा
|
+
|अभिजित्
 
|-
 
|-
 
|27
 
|27
Line 463: Line 516:  
|कृत्तिका
 
|कृत्तिका
 
|पुनर्वसु
 
|पुनर्वसु
|
+
|पू०फाल्गु
|
+
|स्वाती
|
+
|मूल
|
+
|श्रवण
 
|-
 
|-
 
|28
 
|28
Line 474: Line 527:  
|रोहिणी
 
|रोहिणी
 
|पुष्य
 
|पुष्य
|
+
|उ०फाल्गु
|
+
|विशाखा
|
+
|पू०षाढा
|
+
|धनिष्ठा
 
|}
 
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