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| == जल को आवश्यकता == | | == जल को आवश्यकता == |
− | आपने यह जरूर अनुभव किया होगा कि यदि किसी दिन काफी देर तक हमें पीने के लिए पानी न मिले तो हमारी हालत खराब हो जाती हे। जल हमारे लिए ही नहीं बल्कि सभी सजीव वस्तुओं के लिए आवश्यक हे। हमारे शरीर का दो तिहाई से भी अधिक भार तो जल की वजह से होता हे। यही नहीं, हमारे शरीर की कई जेविक क्रियाओं के लिए जल आवश्यक है, जैसे भोजन पचाने के लिए, शरीर के अंगों को स्वस्थ रखने के लिए आदि।आप जानते हैं कि हमें भोजन पेड़-पौधों तथा जीव-जन्तुओं से मिलता है और इन सभी को भी जल की आवश्यकता होती है। जितने भी खाद्य पदार्थ होते हैं-जैसे आलू, टमाटर, सेब इन सब में काफी मात्रा में पानी होता है। | + | आपने यह जरूर अनुभव किया होगा कि यदि किसी दिन काफी देर तक हमें पीने के लिए पानी न मिले तो हमारी हालत खराब हो जाती हे। जल हमारे लिए ही नहीं बल्कि सभी सजीव वस्तुओं के लिए आवश्यक हे। हमारे शरीर का दो तिहाई से भी अधिक भार तो जल की वजह से होता हे। यही नहीं, हमारे शरीर की कई जेविक क्रियाओं के लिए जल आवश्यक है, जैसे भोजन पचाने के लिए, शरीर के अंगों को स्वस्थ रखने के लिए आदि।आप जानते हैं कि हमें भोजन पेड़-पौधों तथा जीव-जन्तुओं से मिलता है और इन सभी को भी जल की आवश्यकता होती है। जितने भी खाद्य पदार्थ होते हैं-जैसे आलू, टमाटर, सेब इन सब में काफी मात्रा में पानी होता है। इसके अलावा साफ-सफाई और नहाने-धोने से लेकर भोजन बनाने, खेतीबाडी, उद्योग-धंधों तथा विद्युत उत्पादन आदि सभी कार्यो के लिए जल आवश्यक है। |
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| + | === जल के कुछ उपयोग === |
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| + | * जल बहुत से जीवों को आवास प्रदान करता हे। अनेक प्रकार के जलीय जीव, जैसे सभी प्रकार की मछलियाँ तथा समुद्री प्राणी ऐसे हैं जो केवल पानी में ही जीवित रहते हैं और अपनी वृद्धि करते हैं। |
| + | * सजीवों के शरीर में रक्त आदि में मौजूद जल भोजन, खनिज लवणों एवं गैसों को एक स्थान से दूसरे स्थान में लाने ले जाने का कार्य करता है। मानव शरीर का दो तिहाई से अधिक भाग जल हे, जिससे पता चलता है कि ऊपर दिये गये कार्यो के लिए जल की पर्याप्त मात्रा को आवश्यकता होती है। |
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| + | * जब जल झीलों-तालाबों में एकत्र होता है तथा नदियों के रूप में भी भूमि पर बहता है तो यह बीजों, फलों तथा अनेकों प्रकार के सूक्ष्मजीवों को एक जगह से दूसरी जगह तक ले जाने का कार्य करता है। इस प्रकार वे बीज, जो नदियों और नहरों में गिर जाते हैं तथा एक स्थान से दूसरे स्थानों पर बहकर चले जाते हैं वे कहीं उपयुक्त स्थान पर नीचे बैठकर उग जाते हैं। इस प्रकार जल पृथ्वी पर पादप जीवन को फैलाने में भी सहायता प्रदान करता है। फलों में भी बीज होते हैं, वे भी जल के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाये ले जाए जाते है। |
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| + | == जल के विभिन्न रूप == |
| + | जैसा कि आपने देखा होगा, सामान्यतः जल तरल अवस्था में पाया जाता हे, जिसे द्रव अवस्था कहते हैं। लेकिन शून्य डिग्री तक ठंडा करने पर यह बर्फ में बदल जाता है जो कि इसकी ठोस अवस्था होती है। यदि जल को 100 डिग्री पर गर्म किया जाए तो यह वाष्प यानी भाप में बदल जाता है जो कि इसकी गैसीय अवस्था होती है। इसका मतलब यह हुआ कि जल, ठोस (बर्फ), द्रव (पानी) तथा गैस (वाष्प) तीनों ही रूपों में पाया जाता हे। |
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| + | === जल की संघटना === |
| + | सन् 1781 में हेनरी कैवंडिश ने प्रयोग द्वारा सिद्ध किया कि जल एक तत्व नहीं है बल्कि हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन का यौगिक है। इसका रासायनिक सूत्र ( ) है। जब हम इसको गर्म करते हैं तो यह वाष्प में बदल जाता है और ठंडा करने पर यह पुनः अपनी द्रव अवस्था में लौट आता है। जल के अणुओं को हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन में तोडने के लिए 2200 ढिग्री तापक्रम तक गर्म करने की आवश्यकता होती हे। परन्तु जल को 2200 डिग्री तक गर्म करना बहुत कठिन होता है, क्योंकि यह 100 ढिग्री पर ही वाष्प में बदल जाता है। इसका केवल एक ही विकल्प है, जल का अपघटन करना। जब जल में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती हे तो वह अपने अवयवी तत्वों-हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन में टूट जाता है। जल में हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन भारानुसार 1:8 एवं आयतन के हिसाब से 2:1 के अनुपात में पाये जाते हे। |
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| + | === जल के विभिन्न स्रोत === |
| + | जब हमारे लिए जल इतना महत्त्वपूर्ण और आवश्यक है, तो हमें यह भी पता होना चाहिए कि जल आता कहाँ से है और हमें किन-किन स्रोतों से मिलता हे? हमारे उपयोग में आने वाले जल के मुख्य स्रोत हैं-कुँआ, नदी, झील, तालाब, झरने और हैंड-पंप आदि। |
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| + | वैसे तो हमारी पृथ्वी पर सागरों, महासागरों और झीलों के रूप में जल का अपार भंडार है, लेकिन सीधे ही इनसे अपने उपयोग के लिए जल प्राप्त करना हमारे लिए मुश्किल होता हे। |
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| + | === जल-चक्र === |
| + | सूर्य की गर्मी के कारण सागरों और महासागरों का जल भाप बनकर जल-वाष्प के रूप में आकाश में उड़ जाता है। काफी ऊंचाई पर जाकर यह जल वाष्प ठण्डी |
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| + | होने लगती है और छोटी-छोटी बूंदों में बदलने लगती है, इस प्रकार वे बादलों का रूप लेती हैं। फिर एक स्थिति ऐसी आती है कि ये छोटी-छोटी बूंदें मिलकर बड़ी-बड़ी बृंदें बनाती है और फिर बारिश होने लगती है। बारिश के इस पानी में सागरों और महासागरों में पायी जाने वाली अशुद्धियाँ नहीं होती हें। बारिश के बाद इस जल का कुछ भाग तो जमीन सोख लेती है और बाकी भाग नदी-नालों के मार्ग से झीलों और सागरों में चला जाता हे। |