Line 1: |
Line 1: |
− | वार शब्द का अर्थ अवसर अर्थात् नियमानुसार प्राप्त समय होता है। वार शब्द का प्रकृत अर्थ यह होता है कि जो अहोरात्र(सूर्योदय से आरम्भ कर २४ घण्टे अथवा ६० घटी अर्थात् पुनः सूर्योदय होने तक) जिस ग्रह के लिये नियम अनुसार प्राप्त होता है। जो ग्रह जिस अहोरात्र का स्वामी है उसी ग्रह के नाम से वह अहोरात्र अभिहित है। उदाहरणार्थ जिस अहोरात्र का स्वामी सोम है वह सोमवार इत्यादि होगा। यह प्रक्रिया खगोल में ग्रहों की स्थिति के अनुसार नहीं है। | + | वार शब्द का अर्थ अवसर अर्थात् नियमानुसार प्राप्त समय होता है। सम्पूर्ण पृथ्वी पर एक जैसे क्रम में स्थित सात वारों का प्रचलन है। वार शब्द का प्रकृत अर्थ यह होता है कि जो अहोरात्र(सूर्योदय से आरम्भ कर २४ घण्टे अथवा ६० घटी अर्थात् पुनः सूर्योदय होने तक) जिस ग्रह के लिये नियम अनुसार प्राप्त होता है। जो ग्रह जिस अहोरात्र का स्वामी है उसी ग्रह के नाम से वह अहोरात्र अभिहित है। उदाहरणार्थ जिस अहोरात्र का स्वामी सोम है वह सोमवार इत्यादि होगा। यह प्रक्रिया खगोल में ग्रहों की स्थिति के अनुसार नहीं है। |
| | | |
| == परिचय == | | == परिचय == |
| + | सावन मान अर्थात् पृथ्वी के दिन के अनुसार सात वार होते हैं- |
| + | |
| + | अथ सावनमानेन वाराः सप्तप्रकीर्तिताः।(पुलस्तसिद्धान्तः) |
| + | |
| + | सावन दिन का अर्थ है अपने क्षितिज का दिन- |
| + | |
| + | उदयादुदयं भानोर्भूमि सावन वासरः।(सूर्यसिद्धान्तः) |
| + | |
| आदित्यश्चन्द्रमा भौमो बुधश्चाथ बृहस्पतिः। शुक्रः शनैश्चरश्चैव वासराः परिकीर्तिताः॥(मूहूर्त गणपति) | | आदित्यश्चन्द्रमा भौमो बुधश्चाथ बृहस्पतिः। शुक्रः शनैश्चरश्चैव वासराः परिकीर्तिताः॥(मूहूर्त गणपति) |
| | | |
Line 76: |
Line 84: |
| अभ्यक्तो भानुवारे यः स नरः क्लेशवान्भवेत् । ऋक्षेशे कान्तिभाग्भौमे व्याधिः सौभाग्यमिन्दुजे॥जीवे नैःस्वं सिते हानिर्मन्दे सर्वसमृद्धयः॥(ना०सं० श्लो०१५७/१५७) | | अभ्यक्तो भानुवारे यः स नरः क्लेशवान्भवेत् । ऋक्षेशे कान्तिभाग्भौमे व्याधिः सौभाग्यमिन्दुजे॥जीवे नैःस्वं सिते हानिर्मन्दे सर्वसमृद्धयः॥(ना०सं० श्लो०१५७/१५७) |
| | | |
− | तैललेपन में दोष परिहार | + | === तैललेपन में दोष परिहार को === |
| + | |
| + | === वारों में विहित कर्म === |
| + | रविवार-राजाभिषेकोत्सवयानसेवागोवह्निमन्त्रौषधिशस्त्रकर्म। सुवर्णताम्रेर्णिकचर्मकाष्ठसंग्रामपण्यादि रवौ विदध्यात् ॥ |
| + | |
| + | सोमवार-शंखाब्जमुक्तारजतेक्षु भोज्यस्त्री वृक्षकृष्यम्बुविभूषणाद्यम् ।गीतक्रतुक्षीरविकारश्रंगी पुष्पाक्षरारम्भणमिन्दुवारे॥ |
| + | |
| + | मंगलवार-भेदानृतस्तेयविषाग्निशस्त्रबन्धाभिघाताहवशाठयदम्भान् ।सेनानिवेशाकरधातुहेम प्रवालकार्यादि कुजेऽह्निकुर्यात् ॥ |
| + | |
| + | बुधवार-नैपुण्यपुण्याध्ययन कलाश्च शिल्पादिसेवालिपिलेखनानि।धातुक्रियाकांचनयुक्ति सन्धि व्यायामवादाश्चबुधे विधेयाः॥ |
| + | |
| + | गुरुवार-धर्मक्रिया पौष्टिक यज्ञविद्यामांगल्य हेमाम्बरवेश्मयात्रा।रथाश्वभैषज्यविभूषणाद्यं कार्यं विदध्यात्सुरमंत्रिणोह्नि॥ |
| + | |
| + | शुक्रवार- स्त्रीगीतशय्यामणिरत्नगन्धं वस्त्रोत्सवालंकरणादि कर्म। भूपण्यगोकोशकृषिक्रियाश्च सिध्यन्ति शुक्रस्य दिने समस्तम् ॥ |
| + | |
| + | शनिवार- लोहश्मसीसत्रपुरस्रदास पापानृतस्तेयविषासवाद्यम् । गृहप्रवेशो द्विपबन्धदीक्षा स्थिरं च कर्मार्कसुतेऽह्नि कुर्यात् ॥ |
| | | |
| == वारविज्ञान == | | == वारविज्ञान == |
| + | |
| + | === वारक्रम का सिद्धान्त === |
| + | [[File:क्रम दर्शिका.jpg|thumb|पीयूषधारा टीका( मुहूर्तचिन्तामणि)]] |
| + | हमारे सौर मण्डलमें प्राचीन मत के अनुसार पृथ्वी, चन्द्र, बुध, सूर्य, मंगल, गुरु और शनि स्थित हैं। इनके ऊपर नक्षत्र मण्डल हैं। आधुनिक मत के अनुसार पृथ्वी के स्थान पर केन्द्र में सूर्य स्थित हैं। प्राचीन कक्षा क्रम में शनि से नीचे की ओर चौथे पिण्ड को वार का अधिपति माना गया। |
| + | |
| + | |
| + | इस क्रम से स्पष्ट है कि शनि से चौथा सूर्य, सूर्य से चौथा चन्द्र, चन्द्र से चौथा मंगल, मंगल से चौथा बुध, बुध से चौथा गुरु, गुरू से चौथा शुक्र, शुक्र से चौथा शनि वार का अधिपति होने से यही वार क्रम निर्मित हुआ। प्राचीनकाल में पृथ्वी को केन्द्र मानकर अन्य समीपवर्ती ग्रहों के कक्षा क्रम को निर्धारित किया जाता था। आधुनिक युग में सूर्य को केन्द्र मानकर गणितकर्म किया जा रहा है। मनुष्य का कर्म क्षेत्र पृथ्वी है और सौरमण्डल का कर्मबिन्दु सूर्य है। प्राचीन आचार्य भी सूर्य के केन्द्रत्व रहस्य से परिचित थे। इसीलिये सूर्य को उन्होंने आत्मा ग्रह कहा। |
| + | |
| + | सूर्यसिद्धान्त ग्रन्थ का भूगोलाध्याय वारप्रवृत्ति के वैज्ञानिक पक्ष को सामने रखता है-<blockquote>मन्दादधः क्रमेण स्युश्चतुर्धा दिवसाधिपाः, वर्षाधिपतयस्तद्वत्तृतीयाश्च प्रकीर्तिताः। |
| + | |
| + | ऊर्ध्वक्रमेण शशिनो मासानामधिपाः स्मृताः, होरेशाः सूर्यतनयादधोऽधः क्रमशस्तथा॥</blockquote>ग्रहों के प्राचीनकक्षा क्रम (भारतीय आचार्यों द्वारा प्रदत्त) से वारों का क्रम निर्धारित हो सका। ऐसा वैज्ञानिक क्रम अन्यत्र कहीं दिखलाई नहीं देता। |
| + | |
| + | === वारप्रवृत्ति में होरा का महत्व === |
| + | इस प्रकार से सूर्यसिद्धान्त ग्रन्थ के द्वारा वार क्रम जानने की दो विधियाँ सामने आती हैं- |
| + | |
| + | # ग्रहकक्षाक्रमविधि |
| + | # होरा क्रम विधि |
| | | |
| ===== वारदोष ===== | | ===== वारदोष ===== |
| | | |
| ==== कालहोरा ==== | | ==== कालहोरा ==== |
| + | |
| + | == उद्धरण == |
| [[Category:Jyotisha]] | | [[Category:Jyotisha]] |