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=== शकुनस्कन्ध ===
 
=== शकुनस्कन्ध ===
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== Tithi (तिथि) ==
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तिथि भारतीय पंचांग का सबसे मुख्य अंग है। यह भारतीय चान्द्रमास का एक दिन होता है। तिथि के आधार पर ही वार, त्यौहार, जयन्ती और पुण्यतिथि आदि का निर्धारण होता है।
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== परिचय ==
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चन्द्रमा की एक कलाको तिथि कहते हैं। तिथियाँ १ से ३० तक एक मास में ३० होती हैं। ये पक्षों में विभाजित हैं। प्रत्येक पक्ष में १५-१५ तिथियाँ होती हैं।
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== परिभाषा ==
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तनोति विस्तारयति वर्द्धमानां क्षीयमाणांवा चन्द्रकलामेकां यः कालविशेषः सा तिथिः।
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== तिथि भेद ==
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भारतवर्ष में दो प्रकार की तिथियाँ प्रचलित हैं। सौर तिथि एवं चान्द्र तिथि। सूर्य की गति के अनुसार मान्य तिथि को सौर तिथि तथा चन्द्रगति के अनुसार मान्य तिथि को चान्द्र तिथि कहते हैं।
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'''सौर तिथि-''' सौर तिथि में सूर्य का राशि भ्रमण मुख्य हेतु है। सौर तिथि दो प्रकार से मानी जाती है। एक प्रकार यह है कि जिस-जिस दिन सूर्य की संक्रांति लगती है उस दिन को प्रथम तिथि माना जाये। दूसरा प्रकार यह है कि संक्रान्ति के दूसरे दिन से प्रथम तिथि माना जाय। बंगाल एवं पञ्जाब में इन तिथियों का प्रयोग विशेष रूप से होता है। अन्यत्र भी सौर तिथि के नाम से इनका प्रचलन है। किन्तु, भारत में प्रचलित व्रतों एवं उत्सवादि में इन तिथियों का प्रयोग प्रायः कम ही होता है।
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'''चान्द्र तिथि-''' भारतीय धार्मिक कार्यों में विशेषरूप से चान्द्र तिथियों का ही प्रयोग होता है। इन तिथियों का नाम एवं तिथि स्वामी इस प्रकार हैं-
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{| class="wikitable"
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|+तिथि नाम एवं तिथि स्वामी तालिका
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!क्र०संख्या
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!तिथियों का नाम
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!तिथि स्वामी
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|-
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|1.
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|प्रतिपदा
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|अग्नि
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|-
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|2.
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|द्वितीया
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|विधि
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|-
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|3.
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|तृतीया
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|गौरी
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|-
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|4.
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|चतुर्थी
 +
|गणेश
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|-
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|5.
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|पञ्चमी
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|अहि(सर्प)
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|-
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|6.
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|षष्ठी
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|गुह(स्कन्द स्वामी)
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|-
 +
|7.
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|सप्तमी
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|रवि
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|-
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|8.
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|अष्टमी
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|शिव
 +
|-
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|9.
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|नवमी
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|दुर्गा
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|-
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|10.
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|दशमी
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|अन्तक(यम)
 +
|-
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|11.
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|एकादशी
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|विश्वेदेव
 +
|-
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|12.
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|द्वादशी
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|हरि
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|-
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|13.
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|त्रयोदशी
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|कामदेव
 +
|-
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|14.
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|चतुर्दशी
 +
|शिव
 +
|-
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|15.
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|अमावस्या(कृष्णपक्ष की पञ्चदशी)
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|पितृ देवता
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|-
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|16.
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|पूर्णिमा(शुक्लपक्ष की पञ्चदशी)
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|शशि( चन्द्रमा)
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|}
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सूर्य एवं चन्द्रमा जिस दिन एक बिन्दु पर आ जाते हैं उस तिथि को अमावस्या कहते हैं। उस दिन सूर्य और चन्द्रमाका गति अन्तर शून्य अक्षांश होता है। एवं इसी प्रकार सूर्य एवं चन्द्रमा परस्पर आमने-सामने अर्थात् ६राशि या १८० अंशके अन्तरपर होते हैं, उस तिथि को पूर्णिमा या पूर्णमासी कहते हैं।
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अमावस्या तिथि दो प्रकार की होती है-
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# '''सिनीवाली अमावस्या-''' जो चतुर्दशी तिथिमिश्रित अमावस्या हो वह सिनीवाली संज्ञक कहलाती है।
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# '''कुहू अमावस्या-''' जो प्रतिपदा तिथि मिश्रित अमावस्या हो वह कुहू संज्ञक कहलाती है। 
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पूर्णिमा तिथि के दो प्रकार हैं-
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# '''अनुमति पूर्णिमा-''' जो चतुर्दशी तिथिमिश्रित पूर्णिमा हो वह अनुमति संज्ञक कहलाती है।
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# '''राका पूर्णिमा-''' जो प्रतिपदा तिथि मिश्रित पूर्णिमा हो वह राका संज्ञक कहलाती है।
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शास्त्रों में अमावस्या तिथि की दर्श एवं पूर्णिमा तिथि की पर्व संज्ञा विहित है।
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== तिथि निर्माण ==
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चन्द्रमा की गति सूर्यसे प्रायः तेरह गुना अधिक है। जब इन दोनों की गति में १२ अंश का अन्तर आ जाता है, तब एक तिथि बनती है। इस प्रकार ३६० अंशवाले 'भचक्र'(आकाश मण्डल) में ३६०÷१२=३० तिथियों का निर्माण होता है। एक मास में ३० तिथियाँ होती हैं। यह नैसर्गिक क्रम निरन्तर चालू रहता है।
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== तिथिक्षय वृद्धि ==
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एक तिथिका मान १२ अंश होता है, कम न अधिक। सूर्योदयके साथ ही तिथि नाम एवं संख्या बदल जाती है। यदि किसी तिथिका अंशादि मान आगामी सूर्योदयकालसे पूर्व ही समाप्त रहा होता है तो वह तिथि समाप्त होकर आनेवाली तिथि प्रारम्भ मानी जायगी और सूर्योदयकालपर जो तिथि वर्तमान है, वही तिथि उस दिन आगे रहेगी। यदि तिथिका अंशादि मान आगामी सूर्योदयकालके उपरान्ततक, चाहे थोड़े ही कालके लिये सही रहता है तो वह तिथि- वृद्धि मानी जायगी। यदि दो सूर्योदयकालके भीतर दो तिथियाँ आ जाती हैं तो दूसरी तिथि का क्षय माना जायगा और उस क्षयतिथिकी क्रमसंख्या पंचांगमें नहीं लिखते, वह तिथि अंक छोड़ देते हैं। आशय यह है कि सूर्योदयकालतक जिस भी तिथिका अंशादि मान वर्तमान रहता है। चाहे कुछ मिनटोंके लिये ही सही, वही तिथि वर्तमानमें मानी जाती है। तिथि-क्षयवृद्धिका आधार सूर्योदयकाल है।
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== तिथि और तारीख ==
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तिथि और तारीख में अन्तर है। एक सूर्योदयकालसे अगले सूर्योदयकाल तक के समयको तिथि कहते हैं। तिथिका मान रेखांशके आधारपर विभिन्न स्थानोंपर कुछ मिनट या घण्टा घट-बढ सकता है। तारीख आधी रातसे अगली आधीरात तक के समयको कहते हैं। तारीख चौबीस घण्टेकी होती है। यह आधी रात बारह बजे प्रारम्भ होकर दूसरे दिन आधी रात बारह बजे समाप्त होती है। यह सब स्थानों पर एक समान चौबीस घण्टेकी है।
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== विचार-विमर्श ==
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उपलब्ध वैदिक संहिताओं में तिथियों का स्पष्ट उल्लेख नहीं होता। किन्तु वेदों के ब्राह्मण भागमें तिथियों का वर्णन प्राप्त होता है। जैसा कि बह्वृच ब्राह्मण में कहा गया है-<blockquote>या पर्यस्तमियादभ्युदियादिति सा तिथिः।</blockquote>अर्थात् जिस काल विशेष में चन्द्रमा का उदय अस्त होता है उसको तिथि कहते हैं। तैत्तिरीय ब्राह्मण में -<blockquote>चन्द्रमा वै पञ्चदशः। एष हि पञ्चदश्यामपक्षीयते। पञ्चदश्यामापूर्यते॥(तै० ब्रा० १/५/१०)</blockquote>इस प्रकार के कथन से पञ्चदशी शब्द के द्वारा प्रतिपदा आदि तिथियों की भी गणना की सम्भावना दिखाई देती है। इसी प्रकार सामविधान ब्राह्मण में भी कृष्णचतुर्दशी, कृष्णपञ्चमी, शुक्ल चतुर्दशी का भी उल्लेख प्राप्त होता है।
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== सन्दर्भ ==
    
== ज्योतिष एवं आयुर्वेद॥ Jyotisha And Ayurveda ==
 
== ज्योतिष एवं आयुर्वेद॥ Jyotisha And Ayurveda ==
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