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मृदा-एक प्राकृतिक संसाधन


प्राकृतिक संसाधनों में मृदा यानी मिट्टी और वन हमारे लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण

एवं उपयोगी संसाधन हें। किसी भी खाद्य उत्पादन के लिए मृदा आवश्यक

होती है तो उस पर पैदा होने वाले वन यानी पेड़-पौधे भी हमारे लिए अति

आवश्यक होते हैं। आइए इनके बारे में थोड़ा विस्तार से पढ़ते हैं।


मृदा एक प्राकृतिक रूप से फैला हुआ असंगठित पदार्थ है, जिससे पृथ्वी की

बाहरी पतली परत बनती है। यह एक प्राकृतिक संसाधन है, जिससे खेती के

लिए आधार (माध्यम) बनता है और यह पृथ्वी की सतह पर पौधों की वृद्धि

में मदद करता है। मृदा की प्रकृति उसके मूल पदार्थो पर निर्भर करती हे,

जिनसे उसका निर्माण होता है। कभी-कभी मृदा की परतें हवा, पानी या अन्य

कारणों से हट जाती हे या बह जाती हे। इसे मृदा अपरदन कहते हैं। इससे

बचने के लिए काफी संख्या में पेड लगाए जाते हैं, ताकि मृदा अपरदन रोका

जा सके।

पृथ्वी की ऊपरी सतह (परत) मृदा से बनती हे, जो पौधों को उगाने के लिए

एक आधार बनती हे। क्या आपने कभी यह सोचा है कि यह मृदा बनती कैसे

है? मृदा का निर्माण चट्टानों की भौतिक प्रक्रिया के फलस्वरूप होता है।

तापमान के घटने-बढ्ने से चट्टानों में दरारें पड़ जाती हैं और टूटने लगती हैं

तथा तेज हवा में इनके टुकड़े नीचे गिरकर छोटे-छोटे भागों में बंट जाते हें।

ऐसा रासायनिक प्रक्रिया यानि कि चट्टानों में पाए जाने वाले खनिजों के अपने

दूसरे पदार्थों में बदल जाने के कारण होता है। चट्टानें मौसम, नमी, पौधे,

जीव, जंतुओं और अन्य साधनों के कारण भी छोटे-छोटे कणों मे बदल जाती

है, इसे मिट्टी की अपक्ष्यता कहते हैं। मिट्टी का एक प्रमुख घटक ह्यूमस हे,

जो पौधे तथा जंतुओं के सडे-गले अंशों से बनता है। ह्यूमस मिट्टी को

उपजाऊ और अच्छी दशा में रखने में मदद करती है। इसके कारण मिट्टी की

उर्वरा शक्ति बढ़ जाती हे और पौधों की वृद्धि में सहायक होती है।
















मुक्त बेसिक शिक्षा - भारतीय ज्ञान परम्परा



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पृथ्वी तथा प्राकृतिक संसाधन


मृदा में अनेक पदार्थ पाये जाते हैं, जिनके उचित मात्रा में होने के कारण ही

मृदा उपजाऊ बनती है। यदि मृदा में रेत की मात्रा अधिक होगी, तो मृदा सूखी

(शुष्क) होगी और यदि चिकनी मिट्टी ज्यादा होगी, तो मृदा अत्यधिक गीली

होगी और इस मृदा में कुछ भी उगा पाना मुश्किल होगा।

मृदा (मिट्टी) के प्रकार

भौगोलिक क्षेत्र के अनुसार, मिट्टी के प्रकार-उसके रंग, उसकी बनावट और

उसमें पाये जाने वाले तत्वों पर निर्भर करते हैं। भारत में मुख्यत छः प्रकार की

मिट्टी पायी जाती है-

1. लाल मिट्टी - जैसा कि नाम से प्रतीत होता है इस मिट्टी का रंग लाल

होता है। यह लाल रंग मिट्टी में आयरन आक्साइउ की उपस्थिति के कारण

होता है। इस मिळ्टी में ह्यूमय बिल्कुल कम मात्रा या नाम मात्र को ही पायी

जाती है। इस मिट्टी में उर्वकर मिलाये जाते हैं तब यह खेती योग्य बन जाती

है।

2. काली मिट्टी - इस मिट्टी की प्रकृति संरक्षित (छिद्रित) होती है और

इसमें लोहा और मैग्नीशियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है। यह मिट्टी खासतौर

से गन्ना और कपास की खेती के लिए अत्यंत उपयोगी होती हेै।










3. जलोढ॒ मिट्टी - यह मिट्टी अत्यंत उपजाऊ, कृषि-योग्य और ह्यूमस

युक्त होती है। यह मिट्टी नदियों द्वारा लाकर मेदानों में छोड़ी जाती है। यह

दोमट प्रकृति की मिट्टी होती है और इसमें सभी आकार के कण पाये जाते

हैं। इस मिट्टी में गेहूँ, सरसों आदि की अच्छी पैदावार होती है।

4. रेतीली मिट्टी - इस मिट्टी मे कण मोटे होते हैं। यह मिट्टी सूखी,

रेतीली और संरंध होती है और इसमें खनिजों की पर्याप्त मात्रा पायी जाती हे।

इस मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा कम होती है क्योंकि, इसमें पेडु-पोधों के

सडे-गले अंश कम मात्रा में होते हें।




विज्ञान, स्तर-'क'


पृथ्वी तथा प्राकृतिक संसाधन

5. पर्वतीय मिट्टी - यह मिट्टी अत्यन्त उपजाऊ होती है और इसमें ह्यूमस

भी अधिक मात्रा में पाया जाता है।

6. लेटेराइट मिटटी - यह चिकनी मिट्टी होती है और इसका रंग भी लाल | 2

होता है। यह मिट्टी चाय, कॉफी और नारियल उगाने के लिए अच्छी होती

है।





 

 

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भारत

मृदा प्रकार






चित्र 3.4 मृदा के प्रकार


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मिट्टी की विभिन्न किस्मों के बारे में ठीक से समझने के लिए आप अपने

आस-पास के क्षेत्रों में जाइये। यहाँ की तरह-तरह की मिटि्टियों मे नमूने

इक्ट्ठे कीजिए। इसके बाद ऊप बताये गये गुणों क॑ आधार पर यह बताइए

कि वहाँ पर किस प्रकार की मिट्टी पायी जाती है।

मृदा-अपरदन









जब काफी तेज हवा चल रही हो, तब आपने देखा होगा कि मिट्टी (धूल)

के कण हवा में उडते रहते हैं। यही कण आपकी आंखों में भी चले जाते हे।


मुक्त बेसिक शिक्षा - भारतीय ज्ञान परम्परा B27


 

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पृथ्वी तथा प्राकृतिक संसाधन

आपको गर्मी की ऋतु में चलने वाली धूल भरी आंधियों का भी अनुभव होगा

ही। क्या आप जानते हैं कि यह धूल क्या होती है? दरअसल धूल, हवा में पाये

जाने वाले मिट्टी के कण ही हैं। वर्षा ऋतु में पहली बारिश के समय भी आप

देखते हैं कि पानी के साथ काफी सारी धूल भी बह जाती है। आसमान और

जमीन साफ हो जाती है। तेज हवा चलने या पानी बहने के कारण मिट्टी का






एक स्थान से दूसरे स्थान पर चला जाना ही मृदा अपरदन कहलाता है।



मृदा अपरदन के कारण भूमि का उपजाऊपन कम हो जाता है और इसके

फलस्वरूप उत्पादन भी कम हो जाता है। मृदा अपरदन वर्षा, वायु, वनों की

कटाई, पशुओं के अति-चारण और खेती के गलत तरीकों के प्रयोग करने के

कारण होता है।






मृदा प्रदूषण

हमारे लिए भूमि और मिट्टी दोनों बहुत ही महत्त्वपूर्ण और उपयोगी हैं। मिट्टी

जीवन का आधार बनाती है। लेकिन हमारी बहुत सी ऐसी गतिविधियां हैं,

जिनके कारण मृदा जहरीली होती जा रही हे तथा इसकी उत्पादन क्षमता भी

कम हो रही है। इसे मृदा प्रदूषण कहते हैं। कोई भी ऐसा पदार्थ, जिसके मिट्टी

में मिलने से उसकी उत्पादन-क्षमता कम हो जाए या किसी प्रकार से वह

जहरीली हो जाए, वह मृदा प्रदूषक कहलाता है। मृदा प्रदूषण के प्रमुख कारक

निम्नलिखित हैं :







® कीटनाशकों का उपयोग।

® उद्योगों से निकले बेकार पदार्थो को मिट्टी में डालना।

® घरों से निकली गंदगी और पानी का मिट्टी में मिलना।

® खुले में शौच करना।

विज्ञान, स्तर-'क'
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