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== विद्या के अट्ठारह प्रकार॥ Kinds of 18 Vidhyas ==
 
== विद्या के अट्ठारह प्रकार॥ Kinds of 18 Vidhyas ==
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अपौरुषेय वैदिक शब्द राशि से प्रारंभ होकर प्रस्तुत काल पर्यन्त संस्कृत वाङ्मय की परम्परा पाश्चात्य दृष्टिकोण से भी विश्व की प्राचीनतम परम्परा मानी जाती है।
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अष्टादश विद्याओं में शामिल हैं- <blockquote>अंगानि चतुरो वेदा मीमांसा न्यायविस्तर:। पुराणं धर्मशास्त्रं च विद्या ह्येताश्चतुर्दश।।
 
अष्टादश विद्याओं में शामिल हैं- <blockquote>अंगानि चतुरो वेदा मीमांसा न्यायविस्तर:। पुराणं धर्मशास्त्रं च विद्या ह्येताश्चतुर्दश।।
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== कला के चौंसठ प्रकार॥ Kinds of 64 Kalas ==
 
== कला के चौंसठ प्रकार॥ Kinds of 64 Kalas ==
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प्राचिन साहित्य में पूर्णावतार परमात्मा को 64 कलाओं से युक्त कहा गया है। वात्स्यायन सूत्र एवं शुक्र नीति में कला के  64 प्रकारों का विवेचन है तथा ललित-विस्तर इसके 86 प्रभेदों का निरूपण करता है। जैन एवं बौद्ध परंपरा के ग्रन्थों में चौंसठ कलाओं की सूची मिलती है। जैन आचार्य शेखरसूरि के प्रबन्धकोष में इसके 72 प्रकारों का विश्लेषण है।
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जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, 64 कलाओं की गणना के संबंध में  भिन्नताएं हैं। इन कलाओं का उल्लेख इन ग्रन्थोंमें प्राप्त होता है -
 
जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, 64 कलाओं की गणना के संबंध में  भिन्नताएं हैं। इन कलाओं का उल्लेख इन ग्रन्थोंमें प्राप्त होता है -
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|नेपथ्ययोगाः - वेश-भूषा धारण की कला।
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|नेपाथ्ययोगाः - वेश-भूषा धारण की कला।
 
|धात्वादीनां संयोगापूर्वविज्ञानम्- धातुओं के नये संयोग बनाना ।
 
|धात्वादीनां संयोगापूर्वविज्ञानम्- धातुओं के नये संयोग बनाना ।
 
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== वंशागत कला॥ Traditional Arts ==
 
== वंशागत कला॥ Traditional Arts ==
 
वंशागत कला के सीखने में कितनी सुगमता होती है, यह प्रत्यक्ष है। एक बढ़ई का लड़का बढ़ईगिरी जितनी शीघ्रता और सुगमता के साथ सीखकर उसमें निपुण हो सकता है, उतना दूसरा नहीं, क्योंकि वंश-परम्परा और बालकपन से ही उसके उस कला के योग्य संस्कार बन जाने हैं। इन मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर प्राचीन शिक्षा क्रम की रचना हुई थी। उसमें आजकल की सी धाँधली न थी, जिसका दुष्परिणाम आज सर्वत्र दिखाई पड़ रहा है। प्राय: सभी विषयों में चञ्चुप्रवेश और किसी एक विषय की, जिसमें प्रवृत्ति हो, योग्यता प्राप्त करने से ही पूर्व शिक्षा और यथोचित ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है। आज पाश्चात्य विद्वान् भी प्रचलित शिक्षा-पद्धति की अनेक त्रुटियों का अनुभव कर रहे हैं; परंतु हम उस दूषित पद्धति की नकल करने की ही धुन में लगे हुए हैं। वर्तमान शिक्षा से लोगों को अपने वंशागत कार्यों से घृणा तथा अरुचि होती चली जा रही है और वे अपने बाप-दादा के व्यवसायों को बड़ी तेज़ीसे छोड़ते चले जा रहे हैं। शिक्षित युवक ऑफिस में छोटी-छोटी नौकरियों के लिये दर-दर दौड़ते हैं, अपमान सहते हैं, दूसरों की ठोकर खाते हैं और जीवन से निराश होकर कई तो आत्मघात कर बैठते हैं। यदि यही क्रम जारी रहा तो पूरा विनाश सामने है। क्या ही अच्छा होता, यदि हमारे शिक्षा-आयोजकों का ध्यान एक बार हमारी प्राचीन शिक्षा-पद्धति की ओर भी जाता।
 
वंशागत कला के सीखने में कितनी सुगमता होती है, यह प्रत्यक्ष है। एक बढ़ई का लड़का बढ़ईगिरी जितनी शीघ्रता और सुगमता के साथ सीखकर उसमें निपुण हो सकता है, उतना दूसरा नहीं, क्योंकि वंश-परम्परा और बालकपन से ही उसके उस कला के योग्य संस्कार बन जाने हैं। इन मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर प्राचीन शिक्षा क्रम की रचना हुई थी। उसमें आजकल की सी धाँधली न थी, जिसका दुष्परिणाम आज सर्वत्र दिखाई पड़ रहा है। प्राय: सभी विषयों में चञ्चुप्रवेश और किसी एक विषय की, जिसमें प्रवृत्ति हो, योग्यता प्राप्त करने से ही पूर्व शिक्षा और यथोचित ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है। आज पाश्चात्य विद्वान् भी प्रचलित शिक्षा-पद्धति की अनेक त्रुटियों का अनुभव कर रहे हैं; परंतु हम उस दूषित पद्धति की नकल करने की ही धुन में लगे हुए हैं। वर्तमान शिक्षा से लोगों को अपने वंशागत कार्यों से घृणा तथा अरुचि होती चली जा रही है और वे अपने बाप-दादा के व्यवसायों को बड़ी तेज़ीसे छोड़ते चले जा रहे हैं। शिक्षित युवक ऑफिस में छोटी-छोटी नौकरियों के लिये दर-दर दौड़ते हैं, अपमान सहते हैं, दूसरों की ठोकर खाते हैं और जीवन से निराश होकर कई तो आत्मघात कर बैठते हैं। यदि यही क्रम जारी रहा तो पूरा विनाश सामने है। क्या ही अच्छा होता, यदि हमारे शिक्षा-आयोजकों का ध्यान एक बार हमारी प्राचीन शिक्षा-पद्धति की ओर भी जाता।
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== कलाओं का आधुनीकरण॥ Modernization of the  Arts ==
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समस्त कलाऐं संस्कृतशास्त्र में प्रारंभ से ही व्याप्त हैं किन्तु वर्तमान में उन्हैं नवीन एवं पाश्चात्य देशों से आविर्भाव हुआ है इस प्रकार माना जाता है। इस प्रकार की मान्यता के पीछे मुख्य हेतु है परम्परा से प्राप्त होने वाले ज्ञान का अभाव होना। कुछ कलाओं को उदाहृत किया जाता है जैसे कि-
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ललितविस्तर में कही गयी विडिम्बित कला वर्तमान में  Miniature अथवा Mimicry के नाम से जानी जाति है एवं शुक्रनीतिसार में वर्णित अनेकवाद्यविकृतौ तद्वादने ज्ञानम् ये कला वर्तमान में Orkestra के नाम से व्याप्त है। इसीप्रकार कामसूत्र में नेपाथ्ययोगाः कला अन्तर्गत वधूनेपथ्यं एवं शुक्रनीतिसार में वर्णित स्त्रीपुंसोः वस्त्रालंकारसन्धानम् कला वर्तमान में Beauty parlor के नाम से व्यवसाय के रूप में देखी जा सकती है।
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शुक्रनीतिसार में वर्णित कञ्चुकादीनां सीवने विज्ञानम् कला Ladies teller इस नाम से कार्यकरने वालों के द्वारा व्यवहार में प्रचलित है एवं कृत्रिमस्वर्णरत्नादिक्रियाज्ञानम् कला Imitation कर्म में प्रयुक्त है। वात्स्यायनसूत्र उक्त विशेषकच्छेद्यम् कला Tatto निर्माण के रूप में विश्व में व्याप्त है। क्रीडाओं (खेलों)में भी वाजिवाह्यालिक्रीडा Polo इस नाम से व्याप्त है। धरणीपात-भासुर-मारादियुद्धानि कला Freestyle wrestling कलाऐं इस प्रकार के रूपों में परिवर्तित होकर संसार में अर्थोपार्जन (रुपया एकत्रित करना) के साधन रूप में प्रयुक्त हैं।
    
== निष्कर्ष॥ Discussion ==
 
== निष्कर्ष॥ Discussion ==
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