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| 'व्रत' शब्द संकल्प का पर्याय है। मन को निश्चित दिशा देने के लिये दृढता लाने का जो विधि विधान है वही संकल्प व्रत है। व्रतों का विधान बहुधा आध्यात्मिक अथवा मानसिक शक्ति की प्राप्ति के लिये, ईश्वर की भक्ति और श्रद्धा के विकास के लिये, वातावरण की पवित्रता के लिये, अपने विचारों को उच्च एवं परिष्कृत करने के लिये तथा प्रकारान्तर से स्वास्थ्य की प्रगति के लिये किया जाता है। सनातनीय संस्कृति में व्रतों की लम्बी शृंघला है। सभी व्रतों का विधान अलग होते हुए भी ध्येय सबका समान ही है। मनपर नियन्त्रण और शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक स्वास्थ्य की प्राप्ति व्रत का प्रतिफल है। | | 'व्रत' शब्द संकल्प का पर्याय है। मन को निश्चित दिशा देने के लिये दृढता लाने का जो विधि विधान है वही संकल्प व्रत है। व्रतों का विधान बहुधा आध्यात्मिक अथवा मानसिक शक्ति की प्राप्ति के लिये, ईश्वर की भक्ति और श्रद्धा के विकास के लिये, वातावरण की पवित्रता के लिये, अपने विचारों को उच्च एवं परिष्कृत करने के लिये तथा प्रकारान्तर से स्वास्थ्य की प्रगति के लिये किया जाता है। सनातनीय संस्कृति में व्रतों की लम्बी शृंघला है। सभी व्रतों का विधान अलग होते हुए भी ध्येय सबका समान ही है। मनपर नियन्त्रण और शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक स्वास्थ्य की प्राप्ति व्रत का प्रतिफल है। |
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− | विविध पुराणोक्त षड्विंशती (छब्बीस) एकादशियों के नाम-
| + | षड्विंशती (छब्बीस) एकादशियों के नाम- |
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| + | सूत जी शौनकादि ऋषियोंसे कहते हैं कि हे ऋषियों ! मैं एकादशी माहात्म्यको कहता हूँ। तुम इसे ध्यानपूर्वक सुनो। सम्पूर्ण द्वादश मासों में चौबीस एकादशियाँ होती हैं और दो अधिक मासमें होती हैं। इस प्रकार ये सब मिलकर २६ एकादशियाँ होती हैं। इनके नाम मैं बतलाता हूँ। तुम सावधान होकर सुनो-<blockquote>सूत उवाच। अथ द्वादशमासेषु एकादश्यो भवन्ति याः। अधिके मासि चाप्यन्ये ये च द्वे भवतः शुभे ॥ १ ॥ |
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| + | एवं षड्विंशसंख्याका एकादश्यो भवन्ति हि। तासां नामान्यहं वच्मि शृणुध्वं सुसमाहिताः ॥ २ ॥ |
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| + | उत्पन्ना मोक्षदा चापि सफला पुत्रदा तथा। षट्तिलाख्या जयाख्या च विजयाऽऽमलकीति च ॥ ३ ॥ |
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| + | पापमोचनिकाख्या च कामदा च वरूथिनी। मोहिनी चापराख्या च निर्जला योगिनी तथा ॥४॥ |
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| + | विष्णोदेवस्य शयनी पवित्रा पुत्रदा त्वजा। परिवर्तिनीन्दिराख्या तथा पाशांकुशा रमा ॥ ५ ॥ |
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| + | देवोत्थानीति च प्रोक्ताश्चतुर्विंशतिनामभिः । द्वे चाप्यधिकमासस्य पद्मिनी परमेति च ॥ ६॥ |
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| + | अन्वर्थानि च नामानि सर्वासां विद्धि निश्चितम् । तद्धि सर्वं कथाभिस्तु स्फुटतां यास्यति ध्रुवम् ॥ ७॥ |
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| + | व्रतमुद्यापनं चासां यदि कर्तुं न शक्नुयात् । तदा संकीर्त्तनान्नाम्नां सद्यस्तत्फलमाप्नुयात् ॥ ८ ॥ (एकादशीमाहात्म्यम् पृ०२/३)</blockquote>उत्पन्ना, मोक्षदा, सफला, पुत्रदा, पतिला, जया, विजया, आमलकी, पापमोचनी, कामदा, वरूथिनी, मोहिनी, अपरा, निर्जला, योगिनी, देवशयनी, पुत्रदा, पवित्रा, अजा, परिवर्तिनी, इन्दिरा, पाशांकुशा, रमा, और देवोत्थानी ये २४ नामोंसे कही गई हैं। और पद्मिनी तथा परमा ये दो अधिक मासमे होती हैं। इनके जैसे नाम हैं वैसे ही गुण भी हैं ये अपने अपने नामके अनुसार निश्चय ही फलको देने वाली हैं । यह वात इन सबकी कथा सुननेसे अवश्य ही स्पष्ट हो जायगी। यदि मनुष्य इन एकादशियोंके व्रत तथा उद्यापन करनेको समर्थ न हो तो इनके नामोंके कीर्त्तन मात्रसे ही शीघ्र उनके फलोंको प्राप्त कर लेता है ॥ ८ ॥ <ref>श्री प्रेमदत्तशर्मा, एकादशीमाहात्म्यम् , चौखम्बा संस्कृत सीरीज आफिस,वाराणसी सन् १९५८ (पृ० सं०२/३)।</ref> |
| {| class="wikitable" | | {| class="wikitable" |
| |+अधोलिखित विवरण पूर्णिमान्त पक्ष के अनुसार प्रस्तुत किया जा रहा है- | | |+अधोलिखित विवरण पूर्णिमान्त पक्ष के अनुसार प्रस्तुत किया जा रहा है- |
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| मेधावी ऋषि ने तब उस अप्सरा को विधि सहित चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत करने के लिए कहा । भोग में निमग्न रहने के कारण ऋषि का तेज भी लोप हो गया था अत: ऋषि ने भी इस एकादशी का व्रत किया जिससे उनका पाप नष्ट हो गया। उधर अप्सरा भी इस व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हो गयी और उसे सुन्दर रूप प्राप्त हुआ व स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गयी। | | मेधावी ऋषि ने तब उस अप्सरा को विधि सहित चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत करने के लिए कहा । भोग में निमग्न रहने के कारण ऋषि का तेज भी लोप हो गया था अत: ऋषि ने भी इस एकादशी का व्रत किया जिससे उनका पाप नष्ट हो गया। उधर अप्सरा भी इस व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हो गयी और उसे सुन्दर रूप प्राप्त हुआ व स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गयी। |
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− | इस व्रत के विषय में भविष्योत्तर पुराण में विस्तार से वर्णन किया गया है। इस व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है । व्रती दशमी तिथि को एक बार सात्विक भोजन करे और मन से भोग विलास की भावना को निकालकर हरि में मन को लगाएं । एकादशी के दिन सूर्योदय काल में स्नान करके व्रत का संकल्प करें । संकल्प के उपरान्त षोड्षोपचार सहित श्री विष्णु की पूजा करें। पूजा के पश्चात भगवान के समक्ष बैठकर भग्वद् कथा का पाठ अथवा श्रवण करें । एकादशी तिथि को जागरण करने से कई गुणा पुण्य मिलता है अत: रात्रि में भी निराहार रहकर भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें । द्वादशी के दिन प्रात: स्नान करके विष्णु भगवान की पूजा करें फिर ब्रह्मणों भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करें पश्चात स्वयं भोजन करें । | + | इस व्रत के विषय में भविष्योत्तर पुराण में विस्तार से वर्णन किया गया है। इस व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है । व्रती दशमी तिथि को एक बार सात्विक भोजन करे और मन से भोग विलास की भावना को निकालकर हरि में मन को लगाएं । एकादशी के दिन सूर्योदय काल में स्नान करके व्रत का संकल्प करें । संकल्प के उपरान्त षोड्षोपचार सहित श्री विष्णु की पूजा करें। पूजा के पश्चात भगवान के समक्ष बैठकर भग्वद् कथा का पाठ अथवा श्रवण करें । एकादशी तिथि को जागरण करने से कई गुणा पुण्य मिलता है अत: रात्रि में भी निराहार रहकर भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें । द्वादशी के दिन प्रात: स्नान करके विष्णु भगवान की पूजा करें फिर ब्रह्मणों भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करें पश्चात स्वयं भोजन करें ।<ref>संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, गीता प्रेस गोरखपुर, (पृ०सं०६५८/ ६५९)।</ref> |
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| === कामदा एकादशी === | | === कामदा एकादशी === |
− | कामदा एकादशी
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| युधिष्ठिर ने पूछा: वासुदेव ! चैत्र शुक्लपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ? उसकी क्या विधि है तथा उसमें किस देवता का पूजन किया जाता है? स्वामिन् ! यह सब यथार्थ रुप से बताइये । | | युधिष्ठिर ने पूछा: वासुदेव ! चैत्र शुक्लपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ? उसकी क्या विधि है तथा उसमें किस देवता का पूजन किया जाता है? स्वामिन् ! यह सब यथार्थ रुप से बताइये । |
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Line 144: |
| ललिता ने मुनि की आज्ञा का पालन किया और एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ। फिर अनेक सुंदर वस्त्राभूषणों से युक्त होकर ललिता के साथ विहार करते हुए वे दोनों विमान में बैठकर स्वर्गलोक को प्राप्त हुए। | | ललिता ने मुनि की आज्ञा का पालन किया और एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ। फिर अनेक सुंदर वस्त्राभूषणों से युक्त होकर ललिता के साथ विहार करते हुए वे दोनों विमान में बैठकर स्वर्गलोक को प्राप्त हुए। |
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− | ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को विधि पूर्वक करने से समस्त पाप नाश हो जाते हैं तथा राक्षस आदि की योनि भी छूट जाती है। संसार में इसके बराबर कोई और दूसरा व्रत नहीं है। इसकी कथा पढ़ने या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। | + | ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को विधि पूर्वक करने से समस्त पाप नाश हो जाते हैं तथा राक्षस आदि की योनि भी छूट जाती है। संसार में इसके बराबर कोई और दूसरा व्रत नहीं है। इसकी कथा पढ़ने या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।<ref>संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, गीता प्रेस गोरखपुर, (पृ०सं०६५९/ ६६०)।</ref> |
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| == वैशाख मासान्तर्गत एकादशी == | | == वैशाख मासान्तर्गत एकादशी == |
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| इस व्रत को करने वाला वैष्णव दशमी के दिन काँसे के पात्र, उडद, मसूर, चना, कोदो, शाक, शहद, दूसरे का अन्न, दो बार भोजन तथा रति- इन दस बातों को त्याग दे । एकादशी को जुआ खेलना, सोना, पान खाना, दातून करना, परनिन्दा, चुगली, चोरी, हिंसा, रति, क्रोध तथा असत्य भाषण- इन ग्यारह बातों का परित्याग करे । द्वादशी को काँसे का पात्र, उडद, मदिरा, मधु, तेल, दुष्टों से वार्तालाप, व्यायाम, परदेश-गमन, दो बार भोजन, रति, सवारी और मसूर को त्याग दे । | | इस व्रत को करने वाला वैष्णव दशमी के दिन काँसे के पात्र, उडद, मसूर, चना, कोदो, शाक, शहद, दूसरे का अन्न, दो बार भोजन तथा रति- इन दस बातों को त्याग दे । एकादशी को जुआ खेलना, सोना, पान खाना, दातून करना, परनिन्दा, चुगली, चोरी, हिंसा, रति, क्रोध तथा असत्य भाषण- इन ग्यारह बातों का परित्याग करे । द्वादशी को काँसे का पात्र, उडद, मदिरा, मधु, तेल, दुष्टों से वार्तालाप, व्यायाम, परदेश-गमन, दो बार भोजन, रति, सवारी और मसूर को त्याग दे । |
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− | इस प्रकार संयम पूर्वक वरूथिनी एकादशी का व्रत किया जाता है । इस एकादशी की रात्रि में जागरण करके भगवान मधुसूदन का पूजन करने से व्यक्ति सब पापों से मुक्त होकर परमगति को प्राप्त होता है। मानव को इस पतितपावनी एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए । इस व्रत के माहात्म्य को पढने अथवा सुनने से भी पुण्य प्राप्त होता है। वरूथिनी एकादशी के अनुष्ठान से मनुष्य सब पापों से मुक्ति पाकर वैकुण्ठ में प्रतिष्ठित होता है । जो लोग एकादशी का व्रत करने में असमर्थ हों, वे इस तिथि में अन्न का सेवन कदापि न करें । वरूथिनी एकादशी महाप्रभु वल्लभाचार्य की जयंती-तिथि है। पुष्टिमार्गीय वैष्णवों के लिये यह दिन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। | + | इस प्रकार संयम पूर्वक वरूथिनी एकादशी का व्रत किया जाता है । इस एकादशी की रात्रि में जागरण करके भगवान मधुसूदन का पूजन करने से व्यक्ति सब पापों से मुक्त होकर परमगति को प्राप्त होता है। मानव को इस पतितपावनी एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए । इस व्रत के माहात्म्य को पढने अथवा सुनने से भी पुण्य प्राप्त होता है। वरूथिनी एकादशी के अनुष्ठान से मनुष्य सब पापों से मुक्ति पाकर वैकुण्ठ में प्रतिष्ठित होता है । जो लोग एकादशी का व्रत करने में असमर्थ हों, वे इस तिथि में अन्न का सेवन कदापि न करें । वरूथिनी एकादशी महाप्रभु वल्लभाचार्य की जयंती-तिथि है। पुष्टिमार्गीय वैष्णवों के लिये यह दिन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।<ref>संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, गीता प्रेस गोरखपुर, (पृ०सं०६६०/ ६६२)।</ref> |
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| === मोहिनी एकादशी === | | === मोहिनी एकादशी === |
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| कौण्डिन्य बोले - वैशाख शुक्ल पक्ष कि 'मोहिनी' एकादशी का व्रत करो । 'मोहिनी' को उपवास करने पर प्राणियों के अनेक जन्मों के किए हुए मेरु पर्वत जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं। | | कौण्डिन्य बोले - वैशाख शुक्ल पक्ष कि 'मोहिनी' एकादशी का व्रत करो । 'मोहिनी' को उपवास करने पर प्राणियों के अनेक जन्मों के किए हुए मेरु पर्वत जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं। |
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− | वशिष्ठजी कहते है : श्रीरामचन्द्रजी ! मुनि का यह वचन सुनकर धृष्ट्बुद्धि का चित्त प्रसन्न हो गया। उसने कौण्डिन्य के उपदेश से विधिपूर्वक 'मोहिनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के करने से वह निष्पाप हो गया और दिव्य देह धारण कर गरुड़ पर आरूढ़ हो सब प्रकार के उपद्रवों से रहित श्रीविष्णु धाम को चला गया । इस प्रकार यह 'मोहिनी' का व्रत बहुत उत्तम है। इसके पढने और सुनने से सहस्र गौदान का फल मिलता है। | + | वशिष्ठजी कहते है : श्रीरामचन्द्रजी ! मुनि का यह वचन सुनकर धृष्ट्बुद्धि का चित्त प्रसन्न हो गया। उसने कौण्डिन्य के उपदेश से विधिपूर्वक 'मोहिनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के करने से वह निष्पाप हो गया और दिव्य देह धारण कर गरुड़ पर आरूढ़ हो सब प्रकार के उपद्रवों से रहित श्रीविष्णु धाम को चला गया । इस प्रकार यह 'मोहिनी' का व्रत बहुत उत्तम है। इसके पढने और सुनने से सहस्र गौदान का फल मिलता है।<ref>संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, गीता प्रेस गोरखपुर, (पृ०सं०६६१/ ६६२)।</ref> |
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| == ज्येष्ठ मासान्तर्गत एकादशी == | | == ज्येष्ठ मासान्तर्गत एकादशी == |
Line 175: |
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| प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। राजा का छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था । वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था । एक दिन अवसर पाकर अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को जंगल में एक पीपल के नीचे गाड़ दिया। अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल पर रहने लगी। मार्ग से गुजरने वाले हर व्यक्ति को आत्मा परेशान करती। एक दिन एक धौम्य नामक ऋषि उधर से गुजर रहे थे । इन्होंने प्रेत को देखा और अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जाना । | | प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। राजा का छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था । वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था । एक दिन अवसर पाकर अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को जंगल में एक पीपल के नीचे गाड़ दिया। अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल पर रहने लगी। मार्ग से गुजरने वाले हर व्यक्ति को आत्मा परेशान करती। एक दिन एक धौम्य नामक ऋषि उधर से गुजर रहे थे । इन्होंने प्रेत को देखा और अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जाना । |
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− | ऋषि ने पीपल के पेड़ से राजा की प्रेतात्मा को नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया । राजा को प्रेत योनी से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने स्वयं अपरा (अचला) एकादशी का व्रत रखा और द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर व्रत का पुण्य प्रेत को दे दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई । वह ऋषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया । | + | ऋषि ने पीपल के पेड़ से राजा की प्रेतात्मा को नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया । राजा को प्रेत योनी से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने स्वयं अपरा (अचला) एकादशी का व्रत रखा और द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर व्रत का पुण्य प्रेत को दे दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई । वह ऋषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया ।<ref>संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, गीता प्रेस गोरखपुर, (पृ०सं०६६२)।</ref> |
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| === निर्जला एकादशी === | | === निर्जला एकादशी === |
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| व्यास जी ने कहा तुम जीवन पर्यन्त इस व्रत का पालन करो वृकोदर भीम ने बडे साहस के साथ निर्जला एकादशी व्रत किया, जिसके परिणाम स्वरूप प्रातः होते होते वह सज्ञाहीन हो गया तब पांडवो ने गंगाजल, तुलसी चरणामृत प्रसाद, देकर उनकी मुर्छा दूर की। इसलिए इसे पांडव या भीमसेन एकादशी भी कहते हैं। | | व्यास जी ने कहा तुम जीवन पर्यन्त इस व्रत का पालन करो वृकोदर भीम ने बडे साहस के साथ निर्जला एकादशी व्रत किया, जिसके परिणाम स्वरूप प्रातः होते होते वह सज्ञाहीन हो गया तब पांडवो ने गंगाजल, तुलसी चरणामृत प्रसाद, देकर उनकी मुर्छा दूर की। इसलिए इसे पांडव या भीमसेन एकादशी भी कहते हैं। |
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− | निर्जला एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, गौ, जल, शैय्या, सुन्दर आसन, कमण्डलु तथा छाता दान करने चाहिए । इस दिन जो स्वयं निर्जल रहकर ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को शुद्ध पानी से भरा घड़ा इस मंत्र के साथ दान करता है। उसे परम गति की प्राप्ति होती है। | + | निर्जला एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, गौ, जल, शैय्या, सुन्दर आसन, कमण्डलु तथा छाता दान करने चाहिए । इस दिन जो स्वयं निर्जल रहकर ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को शुद्ध पानी से भरा घड़ा इस मंत्र के साथ दान करता है। उसे परम गति की प्राप्ति होती है।<ref>संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, गीता प्रेस गोरखपुर, (पृ०सं०६६३/ ६६४)।</ref> |
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| ■ मन्त्र | | ■ मन्त्र |
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Line 237: |
| यह सुनकर हेम माली ने अत्यंत प्रसन्न होकर मुनि को साष्टांग प्रणाम किया। मुनि ने उसे स्नेह के साथ उठाया । हेम माली ने मुनि के कथनानुसार विधिपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत किया । इस व्रत के प्रभाव से अपने पुराने स्वरूप में आकर वह अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा। | | यह सुनकर हेम माली ने अत्यंत प्रसन्न होकर मुनि को साष्टांग प्रणाम किया। मुनि ने उसे स्नेह के साथ उठाया । हेम माली ने मुनि के कथनानुसार विधिपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत किया । इस व्रत के प्रभाव से अपने पुराने स्वरूप में आकर वह अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा। |
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− | भगवान कृष्ण ने कहा हे राजन! यह योगिनी एकादशी का व्रत ८८ हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर फल देता है । इसके व्रत से समस्त पाप हो जाते हैं और अंत में स्वर्ग प्राप्त होता है। | + | भगवान कृष्ण ने कहा हे राजन! यह योगिनी एकादशी का व्रत ८८ हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर फल देता है । इसके व्रत से समस्त पाप हो जाते हैं और अंत में स्वर्ग प्राप्त होता है।<ref>संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, गीता प्रेस गोरखपुर, (पृ०सं०६६५/ ६६६)।</ref> |
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| === देवशयनी एकादशी === | | === देवशयनी एकादशी === |
Line 236: |
Line 252: |
| धार्मिक शास्त्रों के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि को शंखासुर दैत्य मारा गया । पुराण के अनुसार भगवान हरि ने वामन रूप में दैत्य बलि के यज्ञ में तीन पग दान के रूप में मांगे। भगवान ने पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया। अगले पग में सम्पूर्ण स्वर्ग लोक ले लिया । तीसरे पग में बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर पग रखने को कहा । इस प्रकार के दान से भगवान ने प्रसन्न होकर पाताल लोक का अधिपति बना दिया और कहा वर मांगो। बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में नित्य रहें। बलि के बंधन में बंधा देख उनकी भार्या लक्ष्मी ने बलि को भाई बना लिया और भगवान से बलि को वचन से मुक्त करने का अनुरोध किया । तब इसी दिन से भगवान विष्णु जी द्वारा वर का पालन करते हुए तीनों देवता ४-४ माह सुतल में निवास करते हैं । विष्णु देवशयनी एकादशी से देवउठानी एकादशी तक, शिवजी महाशिवरात्रि तक और ब्रह्मा जी शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक निवास करते हैं । | | धार्मिक शास्त्रों के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि को शंखासुर दैत्य मारा गया । पुराण के अनुसार भगवान हरि ने वामन रूप में दैत्य बलि के यज्ञ में तीन पग दान के रूप में मांगे। भगवान ने पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया। अगले पग में सम्पूर्ण स्वर्ग लोक ले लिया । तीसरे पग में बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर पग रखने को कहा । इस प्रकार के दान से भगवान ने प्रसन्न होकर पाताल लोक का अधिपति बना दिया और कहा वर मांगो। बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में नित्य रहें। बलि के बंधन में बंधा देख उनकी भार्या लक्ष्मी ने बलि को भाई बना लिया और भगवान से बलि को वचन से मुक्त करने का अनुरोध किया । तब इसी दिन से भगवान विष्णु जी द्वारा वर का पालन करते हुए तीनों देवता ४-४ माह सुतल में निवास करते हैं । विष्णु देवशयनी एकादशी से देवउठानी एकादशी तक, शिवजी महाशिवरात्रि तक और ब्रह्मा जी शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक निवास करते हैं । |
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− | शयनी और बोधिनी के बीच में जो कृष्णपक्ष की एकादशीयाँ होती हैं, गृहस्थ के लिए वे ही व्रत रखने योग्य हैं - अन्य मासों की कृष्णपक्षीय एकादशी गृहस्थ के रखने योग्य नहीं होती । शुक्लपक्ष की सभी एकादशी करनी चाहिए । इस व्रत से प्राणी की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। सारे पाप नष्ट होते हैं। | + | शयनी और बोधिनी के बीच में जो कृष्णपक्ष की एकादशीयाँ होती हैं, गृहस्थ के लिए वे ही व्रत रखने योग्य हैं - अन्य मासों की कृष्णपक्षीय एकादशी गृहस्थ के रखने योग्य नहीं होती । शुक्लपक्ष की सभी एकादशी करनी चाहिए । इस व्रत से प्राणी की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। सारे पाप नष्ट होते हैं।<ref>संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, गीता प्रेस गोरखपुर, (पृ०सं०६६६)।</ref> |
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| == श्रावण मासान्तर्गत एकादशी == | | == श्रावण मासान्तर्गत एकादशी == |
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Line 269: |
| जो मनुष्य श्रावण में भगवान का पूजन करते हैं, उनसे देवता, गंधर्व और सूर्य आदि सब पूजित हो जाते हैं । अत: पापों से डरने वाले मनुष्यों को कामिका एकादशी का व्रत और भगवान का पूजन अवश्य करना चाहिए । पापरूपी कीचड़ में फँसे हुए और संसार रूपी समुद्र में डूबे मनुष्यों के लिए इस एकादशी का व्रत और भगवान का पूजन अत्यंत आवश्यक है। इससे बढ़कर पापों के नाशों का कोई उपाय नहीं है । | | जो मनुष्य श्रावण में भगवान का पूजन करते हैं, उनसे देवता, गंधर्व और सूर्य आदि सब पूजित हो जाते हैं । अत: पापों से डरने वाले मनुष्यों को कामिका एकादशी का व्रत और भगवान का पूजन अवश्य करना चाहिए । पापरूपी कीचड़ में फँसे हुए और संसार रूपी समुद्र में डूबे मनुष्यों के लिए इस एकादशी का व्रत और भगवान का पूजन अत्यंत आवश्यक है। इससे बढ़कर पापों के नाशों का कोई उपाय नहीं है । |
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− | हे नारद! स्वयं भगवान ने कहा है कि कामिका व्रत से जीव कुयोनि को प्राप्त नहीं होता । जो मनुष्य एकादशी के दिन भक्तिपूर्वक तुलसी दल भगवान विष्णु को अर्पण करते हैं, वे इस संसार के समस्त पापों से दूर रहते हैं । भगवान रत्न, मोती, मणि तथा आभूषण आदि से इतने प्रसन्न नहीं होते जितने तुलसी दल से । तुलसी दल पूजन का फल चार भार चाँदी और एक भार स्वर्ण के दान के बराबर होता है। हे नारद! स्वयं भगवान की अतिप्रिय तुलसी को सदैव नमस्कार करता हूँ। तुलसी के पौधे को सींचने से मनुष्य की सब यातनाएँ नष्ट हो जाती हैं। दर्शन मात्र से सब पाप नष्ट हो जाते हैं और स्पर्श से मनुष्य पवित्र हो जाता है। कामिका एकादशी की रात्रि को जो लोग भगवान के मंदिर में घी या तेल का दीपक जलाते हैं उनके पितर स्वर्गलोक में अमृतपान करते हैं तथा वे सौ करोड़ दीपकों से प्रकाशित होकर सूर्यलोक जाते हैं। ब्रह्माजी कहते हैं कि हे नारद! ब्रह्महत्या तथा भ्रूण हत्या आदि पापों को नष्ट करने वाली इस कामिका एकादशी का व्रत मनुष्य को यत्न के साथ करना चाहिए । कामिका एकादशी के व्रत का माहात्म्य श्रद्धा से सुनने और पढ़ने वाला मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को जाता है। | + | हे नारद! स्वयं भगवान ने कहा है कि कामिका व्रत से जीव कुयोनि को प्राप्त नहीं होता । जो मनुष्य एकादशी के दिन भक्तिपूर्वक तुलसी दल भगवान विष्णु को अर्पण करते हैं, वे इस संसार के समस्त पापों से दूर रहते हैं । भगवान रत्न, मोती, मणि तथा आभूषण आदि से इतने प्रसन्न नहीं होते जितने तुलसी दल से । तुलसी दल पूजन का फल चार भार चाँदी और एक भार स्वर्ण के दान के बराबर होता है। हे नारद! स्वयं भगवान की अतिप्रिय तुलसी को सदैव नमस्कार करता हूँ। तुलसी के पौधे को सींचने से मनुष्य की सब यातनाएँ नष्ट हो जाती हैं। दर्शन मात्र से सब पाप नष्ट हो जाते हैं और स्पर्श से मनुष्य पवित्र हो जाता है। कामिका एकादशी की रात्रि को जो लोग भगवान के मंदिर में घी या तेल का दीपक जलाते हैं उनके पितर स्वर्गलोक में अमृतपान करते हैं तथा वे सौ करोड़ दीपकों से प्रकाशित होकर सूर्यलोक जाते हैं। ब्रह्माजी कहते हैं कि हे नारद! ब्रह्महत्या तथा भ्रूण हत्या आदि पापों को नष्ट करने वाली इस कामिका एकादशी का व्रत मनुष्य को यत्न के साथ करना चाहिए । कामिका एकादशी के व्रत का माहात्म्य श्रद्धा से सुनने और पढ़ने वाला मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को जाता है।<ref>संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, गीता प्रेस गोरखपुर, (पृ०सं०६६७/ ६६८)।</ref> |
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| === पुत्रदा एकादशी === | | === पुत्रदा एकादशी === |
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Line 294: |
| लोमश मुनि कहने लगे कि श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी को जिसे पुत्रदा एकादशी भी कहते हैं, तुम सब लोग व्रत करो और रात्रि को जागरण करो तो इससे राजा का यह पूर्व जन्म का पाप अवश्य नष्ट हो जाएगा, साथ ही राजा को पुत्र की अवश्य प्राप्ति होगी । लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर मंत्रियों सहित सारी प्रजा नगर को वापस लौट आई और जब श्रावण शुक्ल एकादशी आई तो ऋषि की आज्ञानुसार सबने पुत्रदा एकादशी का व्रत और जागरण किया । | | लोमश मुनि कहने लगे कि श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी को जिसे पुत्रदा एकादशी भी कहते हैं, तुम सब लोग व्रत करो और रात्रि को जागरण करो तो इससे राजा का यह पूर्व जन्म का पाप अवश्य नष्ट हो जाएगा, साथ ही राजा को पुत्र की अवश्य प्राप्ति होगी । लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर मंत्रियों सहित सारी प्रजा नगर को वापस लौट आई और जब श्रावण शुक्ल एकादशी आई तो ऋषि की आज्ञानुसार सबने पुत्रदा एकादशी का व्रत और जागरण किया । |
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− | इसके पश्चात द्वादशी के दिन इसके पुण्य का फल राजा को दिया गया। उस पुण्य के प्रभाव से रानी ने गर्भ धारण किया और प्रसव-काल समाप्त होने पर उसके एक बड़ा तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ । इसलिए हे राजन! इस श्रावण शुक्ल एकादशी का नाम पुत्रदा पड़ा । अत: संतान सुख की इच्छा हासिल करने वाले इस व्रत को अवश्य करें। इसके माहात्म्य को सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है और इस लोक में संतान सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है । | + | इसके पश्चात द्वादशी के दिन इसके पुण्य का फल राजा को दिया गया। उस पुण्य के प्रभाव से रानी ने गर्भ धारण किया और प्रसव-काल समाप्त होने पर उसके एक बड़ा तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ । इसलिए हे राजन! इस श्रावण शुक्ल एकादशी का नाम पुत्रदा पड़ा । अत: संतान सुख की इच्छा हासिल करने वाले इस व्रत को अवश्य करें। इसके माहात्म्य को सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है और इस लोक में संतान सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है ।<ref>संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, गीता प्रेस गोरखपुर, (पृ०सं०६६९/ ६७०)।</ref> |
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| == भाद्रपद मासान्तर्गत एकादशी == | | == भाद्रपद मासान्तर्गत एकादशी == |
Line 293: |
Line 309: |
| गौतम ऋषि ने कहा कि इस व्रत के पुण्य प्रभाव से तुम्हारे समस्त पाप नष्ट हो जाएँगे । इस प्रकार राजा से कहकर गौतम ऋषि उसी समय अंतर्ध्यान हो गए । राजा ने उनके कथनानुसार एकादशी आने पर विधिपूर्वक व्रत व जागरण किया । उस व्रत के प्रभाव से राजा के समस्त पाप नष्ट हो गए । स्वर्ग से बाजे बजने लगे और पुष्पों की वर्षा होने लगी। उसने अपने मृतक पुत्र को जीवित और अपनी स्त्री को वस्त्र तथा आभूषणों से युक्त देखा । व्रत के प्रभाव से राजा को पुन: राज्य मिल गया। अंत में वह अपने परिवार सहित स्वर्ग को गया । | | गौतम ऋषि ने कहा कि इस व्रत के पुण्य प्रभाव से तुम्हारे समस्त पाप नष्ट हो जाएँगे । इस प्रकार राजा से कहकर गौतम ऋषि उसी समय अंतर्ध्यान हो गए । राजा ने उनके कथनानुसार एकादशी आने पर विधिपूर्वक व्रत व जागरण किया । उस व्रत के प्रभाव से राजा के समस्त पाप नष्ट हो गए । स्वर्ग से बाजे बजने लगे और पुष्पों की वर्षा होने लगी। उसने अपने मृतक पुत्र को जीवित और अपनी स्त्री को वस्त्र तथा आभूषणों से युक्त देखा । व्रत के प्रभाव से राजा को पुन: राज्य मिल गया। अंत में वह अपने परिवार सहित स्वर्ग को गया । |
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− | हे राजन! यह सब अजा एकादशी के प्रभाव से ही हुआ । अतः जो मनुष्य यत्न के साथ विधिपूर्वक इस व्रत को करते हुए रात्रि जागरण करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट होकर अंत में वे स्वर्गलोक को प्राप्त होते हैं । इस एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है । | + | हे राजन! यह सब अजा एकादशी के प्रभाव से ही हुआ । अतः जो मनुष्य यत्न के साथ विधिपूर्वक इस व्रत को करते हुए रात्रि जागरण करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट होकर अंत में वे स्वर्गलोक को प्राप्त होते हैं । इस एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है ।<ref>संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, गीता प्रेस गोरखपुर, (पृ०सं०६७०)।</ref> |
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| === पद्मा (परिवर्तिनी) एकादशी === | | === पद्मा (परिवर्तिनी) एकादशी === |
Line 326: |
Line 342: |
| नमो नमस्ते गोविन्द बुधश्रवणसंज्ञक ॥ अघौघसंक्षयं कृत्वा सर्वसौख्यप्रदो भव । भुक्तिमुक्तिप्रदश्चैव लोकानां सुखदायकः ॥ | | नमो नमस्ते गोविन्द बुधश्रवणसंज्ञक ॥ अघौघसंक्षयं कृत्वा सर्वसौख्यप्रदो भव । भुक्तिमुक्तिप्रदश्चैव लोकानां सुखदायकः ॥ |
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− | 'बुधवार और श्रवण नक्षत्र के योग से युक्त द्वादशी के दिन बुद्धश्रवण नाम धारण करने वाले भगवान गोविन्द ! आपको नमस्कार है... नमस्कार है ! मेरी पापराशि का नाश करके आप मुझे सब प्रकार के सुख प्रदान करें । आप पुण्यात्माजनों को भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले तथा सुखदायक हैं। राजन् ! इसके पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है। | + | 'बुधवार और श्रवण नक्षत्र के योग से युक्त द्वादशी के दिन बुद्धश्रवण नाम धारण करने वाले भगवान गोविन्द ! आपको नमस्कार है... नमस्कार है ! मेरी पापराशि का नाश करके आप मुझे सब प्रकार के सुख प्रदान करें । आप पुण्यात्माजनों को भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले तथा सुखदायक हैं। राजन् ! इसके पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है।<ref>संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, गीता प्रेस गोरखपुर, (पृ०सं०६७१)।</ref> |
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| == आश्विन मासान्तर्गत एकादशी == | | == आश्विन मासान्तर्गत एकादशी == |
Line 349: |
Line 365: |
| रात में भगवान के निकट जागरण करें। इसके पश्चात द्वादशी के दिन प्रातः काल होने पर भगवान का पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन कराएँ । भाई-बंधुओं, स्त्री और पुत्र सहित आप भी मौन होकर भोजन करें । नारदजी कहने लगे कि हे राजन! इस विधि से यदि तुम आलस्य रहित होकर इस एकादशी का व्रत करोगे तो तुम्हारे पिता अवश्य ही स्वर्गलोक को जाएँगे। इतना कहकर नारदजी अंतर्ध्यान हो गए । नारदजी के कथनानुसार राजा द्वारा अपने बाँधवों तथा दासों सहित व्रत करने से आकाश से पुष्पवर्षा हुई और उस राजा का पिता गरुड़ पर चढ़कर विष्णुलोक को गया । राजा इंद्रसेन भी एकादशी के व्रत के प्रभाव से निष्कंटक राज्य करके अंत में अपने पुत्र को सिंहासन पर बैठाकर स्वर्गलोक को गया । हे | | रात में भगवान के निकट जागरण करें। इसके पश्चात द्वादशी के दिन प्रातः काल होने पर भगवान का पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन कराएँ । भाई-बंधुओं, स्त्री और पुत्र सहित आप भी मौन होकर भोजन करें । नारदजी कहने लगे कि हे राजन! इस विधि से यदि तुम आलस्य रहित होकर इस एकादशी का व्रत करोगे तो तुम्हारे पिता अवश्य ही स्वर्गलोक को जाएँगे। इतना कहकर नारदजी अंतर्ध्यान हो गए । नारदजी के कथनानुसार राजा द्वारा अपने बाँधवों तथा दासों सहित व्रत करने से आकाश से पुष्पवर्षा हुई और उस राजा का पिता गरुड़ पर चढ़कर विष्णुलोक को गया । राजा इंद्रसेन भी एकादशी के व्रत के प्रभाव से निष्कंटक राज्य करके अंत में अपने पुत्र को सिंहासन पर बैठाकर स्वर्गलोक को गया । हे |
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− | युधिष्ठिर! यह इंदिरा एकादशी के व्रत का माहात्म्य मैंने तुमसे कहा । इसके पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाते हैं और सब प्रकार के भोगों को भोगकर बैकुंठ को प्राप्त होते हैं। | + | युधिष्ठिर! यह इंदिरा एकादशी के व्रत का माहात्म्य मैंने तुमसे कहा । इसके पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाते हैं और सब प्रकार के भोगों को भोगकर बैकुंठ को प्राप्त होते हैं।<ref>संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, गीता प्रेस गोरखपुर, (पृ०सं०६७२ )।</ref> |
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| === पापांकुशा एकादशी === | | === पापांकुशा एकादशी === |
Line 364: |
Line 380: |
| हे नृपोत्तम! बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था में इस व्रत को करने से पापी मनुष्य भी दुर्गति को प्राप्त न होकर सद्गति को प्राप्त होता है । आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की इस पापांकुशा एकादशी का व्रत जो मनुष्य करते हैं, वे अंत समय में हरिलोक को प्राप्त होते हैं तथा समस्त पापों से मुक्त हो जाते हैं। सोना, तिल, भूमि, गौ, अन्न, जल, छतरी तथा जूती दान करने से मनुष्य यमराज को नहीं देखता । | | हे नृपोत्तम! बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था में इस व्रत को करने से पापी मनुष्य भी दुर्गति को प्राप्त न होकर सद्गति को प्राप्त होता है । आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की इस पापांकुशा एकादशी का व्रत जो मनुष्य करते हैं, वे अंत समय में हरिलोक को प्राप्त होते हैं तथा समस्त पापों से मुक्त हो जाते हैं। सोना, तिल, भूमि, गौ, अन्न, जल, छतरी तथा जूती दान करने से मनुष्य यमराज को नहीं देखता । |
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− | जो मनुष्य किसी प्रकार के पुण्य कर्म किए बिना जीवन के दिन व्यतीत करता है, वह लोहार की भट्टी की तरह साँस लेता हुआ निर्जीव के समान ही है। निर्धन मनुष्यों को भी अपनी शक्ति के अनुसार दान करना चाहिए तथा धनवालों को सरोवर, बाग, मकान आदि बनवाकर दान करना चाहिए। ऐसे मनुष्यों को यम का द्वार नहीं देखना पड़ता तथा संसार में दीर्घायु होकर धनाढ्य, कुलीन और रोगरहित रहते हैं । | + | जो मनुष्य किसी प्रकार के पुण्य कर्म किए बिना जीवन के दिन व्यतीत करता है, वह लोहार की भट्टी की तरह साँस लेता हुआ निर्जीव के समान ही है। निर्धन मनुष्यों को भी अपनी शक्ति के अनुसार दान करना चाहिए तथा धनवालों को सरोवर, बाग, मकान आदि बनवाकर दान करना चाहिए। ऐसे मनुष्यों को यम का द्वार नहीं देखना पड़ता तथा संसार में दीर्घायु होकर धनाढ्य, कुलीन और रोगरहित रहते हैं ।<ref>संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, गीता प्रेस गोरखपुर, (पृ०सं०६७३)।</ref> |
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− | भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- हे राजन! जो आपने मुझसे पूछा वह सब मैंने आपको बतलाया । अब आपकी और क्या सुनने की इच्छा है
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| == कार्तिक मासान्तर्गत एकादशी == | | == कार्तिक मासान्तर्गत एकादशी == |
Line 399: |
Line 413: |
| कार्तिक मास में तो प्रात: सूर्योदय से पूर्व उठने, स्नान करने और दानादि करने का विधान है। इसी कारण प्रात: उठकर केवल स्नान करने मात्र से ही मनुष्य को जहां कई हजार यज्ञ करने का फल मिलता है, वहीं इस मास में किए गए किसी भी व्रत का पुण्यफल हजारों गुणा अधिक है। रमा एकादशी व्रत में भगवान विष्णु के पूर्णावतार भगवान जी के केशव रूप की विधिवत धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प एवं मौसम के फलों से पूजा की जाती है । | | कार्तिक मास में तो प्रात: सूर्योदय से पूर्व उठने, स्नान करने और दानादि करने का विधान है। इसी कारण प्रात: उठकर केवल स्नान करने मात्र से ही मनुष्य को जहां कई हजार यज्ञ करने का फल मिलता है, वहीं इस मास में किए गए किसी भी व्रत का पुण्यफल हजारों गुणा अधिक है। रमा एकादशी व्रत में भगवान विष्णु के पूर्णावतार भगवान जी के केशव रूप की विधिवत धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प एवं मौसम के फलों से पूजा की जाती है । |
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− | व्रत में एक समय फलाहार करना चाहिए तथा अपना अधिक से अधिक समय प्रभु भक्ति एवं हरिनाम संकीर्तन में बिताना चाहिए । शास्त्रों में विष्णुप्रिया तुलसी की महिमा अधिक है इसलिए व्रत में तुलसी पूजन करना और तुलसी की परिक्रमा करना अति उत्तम है । ऐसा करने वाले भक्तों पर प्रभु अपार कृपा करते हैं जिससे उनकी सभी मनोकामनाएं सहज ही पूरी हो जाती हैं। | + | व्रत में एक समय फलाहार करना चाहिए तथा अपना अधिक से अधिक समय प्रभु भक्ति एवं हरिनाम संकीर्तन में बिताना चाहिए । शास्त्रों में विष्णुप्रिया तुलसी की महिमा अधिक है इसलिए व्रत में तुलसी पूजन करना और तुलसी की परिक्रमा करना अति उत्तम है । ऐसा करने वाले भक्तों पर प्रभु अपार कृपा करते हैं जिससे उनकी सभी मनोकामनाएं सहज ही पूरी हो जाती हैं।<ref>संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, गीता प्रेस गोरखपुर, (पृ०सं०६७४)।</ref> |
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| === प्रबोधिनी एकादशी === | | === प्रबोधिनी एकादशी === |
Line 418: |
Line 432: |
| संस्कृत बोलने में असमर्थ सामान्य लोग उठो देवा, बैठो देवा कहकर श्रीनारायण को उठाएं। श्रीहरि को जगाने के पश्चात् उनकी षोडशोपचार विधि से पूजा करें। अनेक प्रकार के फलों के साथ नैवेद्य निवेदित करें। संभव हो तो उपवास रखें अन्यथा केवल एक समय फलाहार ग्रहण करें। इस एकादशी में रातभर जागकर हरि नाम संकीर्तन करने से भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न होते हैं । विवाहादि समस्त मांगलिक कार्यो के शुभारम्भ में संकल्प भगवान विष्णु को साक्षी मानकर किया जाता है । अतएव चातुर्मास में प्रभावी प्रतिबंध देवोत्थान एकादशी के दिन समाप्त हो जाने से विवाहादि शुभ कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं। | | संस्कृत बोलने में असमर्थ सामान्य लोग उठो देवा, बैठो देवा कहकर श्रीनारायण को उठाएं। श्रीहरि को जगाने के पश्चात् उनकी षोडशोपचार विधि से पूजा करें। अनेक प्रकार के फलों के साथ नैवेद्य निवेदित करें। संभव हो तो उपवास रखें अन्यथा केवल एक समय फलाहार ग्रहण करें। इस एकादशी में रातभर जागकर हरि नाम संकीर्तन करने से भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न होते हैं । विवाहादि समस्त मांगलिक कार्यो के शुभारम्भ में संकल्प भगवान विष्णु को साक्षी मानकर किया जाता है । अतएव चातुर्मास में प्रभावी प्रतिबंध देवोत्थान एकादशी के दिन समाप्त हो जाने से विवाहादि शुभ कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं। |
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− | पद्मपुराण के उत्तरखण्ड में वर्णित एकादशी-माहात्म्य के अनुसार श्री हरि प्रबोधिनी (देवोत्थान) - एकादशी का व्रत करने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ तथा सौ राजसूय यज्ञों का फल मिलता है। इस परम पुण्य प्रदा एकादशी के विधिवत व्रत से सब पाप भस्म हो जाते हैं तथा व्रती मरणोपरान्त बैकुण्ठ जाता है । इस एकादशी के दिन भक्त श्रद्धा के साथ जो कुछ भी जप-तप, स्नान-दान, होम करते हैं, वह सब अक्षय फलदायक हो जाता है। देवोत्थान एकादशी के दिन व्रतोत्सव करना प्रत्येक सनातन धर्मी का आध्यात्मिक कर्तव्य है। इस व्रत को करने वाला दिव्य फल प्राप्त करता है। | + | पद्मपुराण के उत्तरखण्ड में वर्णित एकादशी-माहात्म्य के अनुसार श्री हरि प्रबोधिनी (देवोत्थान) - एकादशी का व्रत करने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ तथा सौ राजसूय यज्ञों का फल मिलता है। इस परम पुण्य प्रदा एकादशी के विधिवत व्रत से सब पाप भस्म हो जाते हैं तथा व्रती मरणोपरान्त बैकुण्ठ जाता है । इस एकादशी के दिन भक्त श्रद्धा के साथ जो कुछ भी जप-तप, स्नान-दान, होम करते हैं, वह सब अक्षय फलदायक हो जाता है। देवोत्थान एकादशी के दिन व्रतोत्सव करना प्रत्येक सनातन धर्मी का आध्यात्मिक कर्तव्य है। इस व्रत को करने वाला दिव्य फल प्राप्त करता है।<ref>संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, गीता प्रेस गोरखपुर, (पृ०सं०६७५)।</ref> |
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| == मार्गशीर्ष मासान्तर्गत एकादशी == | | == मार्गशीर्ष मासान्तर्गत एकादशी == |
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| सैकडों असुरों का संहार करके नारायण बदरिकाश्रम चले गए । वहां वे बारह योजन लम्बी सिंहावती गुफा में निद्रालीन हो गए । दानव मुर ने भगवान विष्णु को मारने के उद्देश्य से जैसे ही उस गुफा में प्रवेश किया, वैसे ही श्रीहरि के शरीर से दिव्य अस्त्र-शस्त्रों से युक्त एक अति रूपवती कन्या उत्पन्न हुई। उस कन्या ने अपने हुंकार से दानव मुर को भस्म कर दिया । | | सैकडों असुरों का संहार करके नारायण बदरिकाश्रम चले गए । वहां वे बारह योजन लम्बी सिंहावती गुफा में निद्रालीन हो गए । दानव मुर ने भगवान विष्णु को मारने के उद्देश्य से जैसे ही उस गुफा में प्रवेश किया, वैसे ही श्रीहरि के शरीर से दिव्य अस्त्र-शस्त्रों से युक्त एक अति रूपवती कन्या उत्पन्न हुई। उस कन्या ने अपने हुंकार से दानव मुर को भस्म कर दिया । |
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− | नारायण ने जगने पर पूछा तो कन्या ने उन्हें सूचित किया कि आतातायी दैत्य का वध उसी ने किया है । इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने एकादशी नामक उस कन्या को मनोवांछित वरदान देकर उसे अपनी प्रिय तिथि घोषित कर दिया । श्रीहरि के द्वारा अभीष्ट वरदान पाकर परम पुण्य प्रदा एकादशी बहुत खुश हुई। जो मनुष्य जीवन पर्यन्त एकादशी को उपवास करता है, वह मरणोपरांत वैकुण्ठ जाता है। एकादशी के समान पाप-नाशक व्रत दूसरा कोई नहीं है। एकादशी-माहात्म्य को सुनने मात्र से सहस्र गोदानों का पुण्यफल प्राप्त होता है। एकादशी में उपवास करके रात्रि जागरण करने से व्रती श्रीहरि की अनुकम्पा का भागी बनता है। उपवास करने में असमर्थ एकादशी के दिन कम से कम अन्न का परित्याग अवश्य करें। एकादशी में अन्न का सेवन करने से पुण्य का नाश होता है तथा भारी दोष लगता है। ऐसे लोग एकादशी के दिन एक समय फलाहार कर सकते हैं। एकादशी का व्रत समस्त प्राणियों के लिए अनिवार्य बताया गया है। मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष में एकादशी के उत्पन्न होने के कारण इस व्रत का अनुष्ठान इसी तिथि से शुरू करना उचित रहता है। इस व्रत को करने वाला दिव्य फल प्राप्त करता है । | + | नारायण ने जगने पर पूछा तो कन्या ने उन्हें सूचित किया कि आतातायी दैत्य का वध उसी ने किया है । इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने एकादशी नामक उस कन्या को मनोवांछित वरदान देकर उसे अपनी प्रिय तिथि घोषित कर दिया । श्रीहरि के द्वारा अभीष्ट वरदान पाकर परम पुण्य प्रदा एकादशी बहुत खुश हुई। जो मनुष्य जीवन पर्यन्त एकादशी को उपवास करता है, वह मरणोपरांत वैकुण्ठ जाता है। एकादशी के समान पाप-नाशक व्रत दूसरा कोई नहीं है। एकादशी-माहात्म्य को सुनने मात्र से सहस्र गोदानों का पुण्यफल प्राप्त होता है। एकादशी में उपवास करके रात्रि जागरण करने से व्रती श्रीहरि की अनुकम्पा का भागी बनता है। उपवास करने में असमर्थ एकादशी के दिन कम से कम अन्न का परित्याग अवश्य करें। एकादशी में अन्न का सेवन करने से पुण्य का नाश होता है तथा भारी दोष लगता है। ऐसे लोग एकादशी के दिन एक समय फलाहार कर सकते हैं। एकादशी का व्रत समस्त प्राणियों के लिए अनिवार्य बताया गया है। मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष में एकादशी के उत्पन्न होने के कारण इस व्रत का अनुष्ठान इसी तिथि से शुरू करना उचित रहता है। इस व्रत को करने वाला दिव्य फल प्राप्त करता है ।<ref>संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, गीता प्रेस गोरखपुर, (पृ०सं०६७६)।</ref> |
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| === मोक्षदा एकादशी === | | === मोक्षदा एकादशी === |
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| जो इस कल्याणमयी मोक्षदा एकादशी का व्रत करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। प्राणियों को भवबंधन से मुक्ति देने वाली यह एकादशी चिन्तामणि के समान समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली है। मोक्षदा एकादशी की पौराणिक कथा पढने-सुनने से वाजपेय यज्ञ का पुण्य फल मिलता है। | | जो इस कल्याणमयी मोक्षदा एकादशी का व्रत करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। प्राणियों को भवबंधन से मुक्ति देने वाली यह एकादशी चिन्तामणि के समान समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली है। मोक्षदा एकादशी की पौराणिक कथा पढने-सुनने से वाजपेय यज्ञ का पुण्य फल मिलता है। |
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− | मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के दिन ही कुरुक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्री मद्भगवद्गीता का उपदेश दिया था । अत:यह तिथि गीता जयंती के नाम से विख्यात हो गई। इस दिन से गीता-पाठ का अनुष्ठान प्रारंभ करें तथा प्रतिदिन थोडी देर गीता अवश्य पढें । गीतारूपी सूर्य के प्रकाश से अज्ञानरूपी अंधकार नष्ट हो जाएगा। इस व्रत को करने वाला दिव्य फल प्राप्त करता है। | + | मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के दिन ही कुरुक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्री मद्भगवद्गीता का उपदेश दिया था । अत:यह तिथि गीता जयंती के नाम से विख्यात हो गई। इस दिन से गीता-पाठ का अनुष्ठान प्रारंभ करें तथा प्रतिदिन थोडी देर गीता अवश्य पढें । गीतारूपी सूर्य के प्रकाश से अज्ञानरूपी अंधकार नष्ट हो जाएगा। इस व्रत को करने वाला दिव्य फल प्राप्त करता है।<ref>संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, गीता प्रेस गोरखपुर, (पृ०सं० ६४७)।</ref> |
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| == पौष मासान्तर्गत एकादशी == | | == पौष मासान्तर्गत एकादशी == |
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| उस समय सहसा आकाशवाणी हुई: राजकुमार तुम सफला एकादशी के प्रसाद से राज्य और पुत्र प्राप्त करोगे । इसके बाद उसका रुप दिव्य हो गया। उसकी बुद्धि भगवान विष्णु के भजन में लग गयी । ईश्वर की कृपा से निष्कण्टक राज्य प्राप्त किया और पंद्रह वर्षों तक उसका संचालन करता रहा । उसको मनोज्ञ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । जब वह बड़ा हुआ, तब लुम्भक ने तुरंत ही राज्य की ममता छोड़कर उसे पुत्र को सौंप दिया और वह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के समीप चला गया । | | उस समय सहसा आकाशवाणी हुई: राजकुमार तुम सफला एकादशी के प्रसाद से राज्य और पुत्र प्राप्त करोगे । इसके बाद उसका रुप दिव्य हो गया। उसकी बुद्धि भगवान विष्णु के भजन में लग गयी । ईश्वर की कृपा से निष्कण्टक राज्य प्राप्त किया और पंद्रह वर्षों तक उसका संचालन करता रहा । उसको मनोज्ञ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । जब वह बड़ा हुआ, तब लुम्भक ने तुरंत ही राज्य की ममता छोड़कर उसे पुत्र को सौंप दिया और वह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के समीप चला गया । |
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− | सफला एकादशी का व्रत अपने नामानुसार मनोनुकूल फल प्रदान करने वाला है। इस एकादशी के व्रत से व्यक्ति को जीवन में उत्तम फल की प्राप्ति होती है और वह जीवन का सुख भोगकर मृत्यु पश्चात विष्णु लोक को प्राप्त होता है । यह व्रत अति मंगलकारी और पुण्यदायी है। एकादशी के माहात्म्य को सुनने से राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। | + | सफला एकादशी का व्रत अपने नामानुसार मनोनुकूल फल प्रदान करने वाला है। इस एकादशी के व्रत से व्यक्ति को जीवन में उत्तम फल की प्राप्ति होती है और वह जीवन का सुख भोगकर मृत्यु पश्चात विष्णु लोक को प्राप्त होता है । यह व्रत अति मंगलकारी और पुण्यदायी है। एकादशी के माहात्म्य को सुनने से राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।<ref>संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, गीता प्रेस गोरखपुर, (पृ०सं०६४९)।</ref> |
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| === पुत्रदा एकादशी === | | === पुत्रदा एकादशी === |
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Line 498: |
| भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: युधिष्ठिर! इस प्रकार उन मुनियों के कहने से राजा ने उक्त उत्तम व्रत का पालन किया । महर्षियों के उपदेश के अनुसार विधिपूर्वक ‘पुत्रदा एकादशी' का अनुष्ठान किया । फिर द्वादशी को पारण करके मुनियों के चरणों में बारंबार मस्तक झुकाकर राजा अपने घर आये । तदनन्तर रानी ने गर्भधारण किया। प्रसवकाल आने पर पुण्यकर्मा राजा को तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ, जिसने अपने गुणों से पिता को संतुष्ट कर दिया । वह प्रजा का पालक हुआ। | | भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: युधिष्ठिर! इस प्रकार उन मुनियों के कहने से राजा ने उक्त उत्तम व्रत का पालन किया । महर्षियों के उपदेश के अनुसार विधिपूर्वक ‘पुत्रदा एकादशी' का अनुष्ठान किया । फिर द्वादशी को पारण करके मुनियों के चरणों में बारंबार मस्तक झुकाकर राजा अपने घर आये । तदनन्तर रानी ने गर्भधारण किया। प्रसवकाल आने पर पुण्यकर्मा राजा को तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ, जिसने अपने गुणों से पिता को संतुष्ट कर दिया । वह प्रजा का पालक हुआ। |
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− | इसलिए राजन्! ‘पुत्रदा’ का उत्तम व्रत अवश्य करना चाहिए। मैंने लोगों के हित के लिए तुम्हारे सामने इसका वर्णन किया है। जो मनुष्य एकाग्रचित्त होकर ‘पुत्रदा एकादशी' का व्रत करते हैं, वे इस लोक में पुत्र पाकर मृत्यु के पश्चात् स्वर्गगामी होते हैं। इस माहात्म्य को पढ़ने और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है। | + | इसलिए राजन्! ‘पुत्रदा’ का उत्तम व्रत अवश्य करना चाहिए। मैंने लोगों के हित के लिए तुम्हारे सामने इसका वर्णन किया है। जो मनुष्य एकाग्रचित्त होकर ‘पुत्रदा एकादशी' का व्रत करते हैं, वे इस लोक में पुत्र पाकर मृत्यु के पश्चात् स्वर्गगामी होते हैं। इस माहात्म्य को पढ़ने और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है।<ref>संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, गीता प्रेस गोरखपुर, (पृ०सं०६४९)।</ref> |
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| == माघ मासान्तर्गत एकादशी == | | == माघ मासान्तर्गत एकादशी == |
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Line 543: |
| दें। | | दें। |
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− | इस प्रकार जो षट्तिला एकादशी का व्रत रखते हैं भगवान उनको अज्ञानता पूर्वक किये गये सभी अपराधों से मुक्त कर देते हैं और पुण्य दान देकर स्वर्ग में स्थान प्रदान करते हैं। कथन को सत्य मानकर जो भग्वत् भक्त यह व्रत करता हैं उनका निश्चित ही प्रभु उद्धार करते हैं । | + | इस प्रकार जो षट्तिला एकादशी का व्रत रखते हैं भगवान उनको अज्ञानता पूर्वक किये गये सभी अपराधों से मुक्त कर देते हैं और पुण्य दान देकर स्वर्ग में स्थान प्रदान करते हैं। कथन को सत्य मानकर जो भग्वत् भक्त यह व्रत करता हैं उनका निश्चित ही प्रभु उद्धार करते हैं ।<ref>संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, गीता प्रेस गोरखपुर, (पृ०सं०६५१)।</ref> |
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| === जया एकादशी === | | === जया एकादशी === |
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| श्री कृष्ण ने कहा कि जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु ही पूजनीय हैं। जो भक्त इस एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें दशमी तिथि को एक समय सात्विक आहार करना चाहिए। एकादशी के दिन श्री विष्णु का ध्यान, संकल्प, धूप, दीप, चंदन, फल, तिल, एवं पंचामृत से पूजा करे। पूरे दिन व्रत रखें संभव हो तो रात्रि में भी व्रत रखकर जागरण करें। अगर रात्रि में व्रत संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें जनेऊ सुपारी देकर विदा करें फिर भोजन करें। , | | श्री कृष्ण ने कहा कि जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु ही पूजनीय हैं। जो भक्त इस एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें दशमी तिथि को एक समय सात्विक आहार करना चाहिए। एकादशी के दिन श्री विष्णु का ध्यान, संकल्प, धूप, दीप, चंदन, फल, तिल, एवं पंचामृत से पूजा करे। पूरे दिन व्रत रखें संभव हो तो रात्रि में भी व्रत रखकर जागरण करें। अगर रात्रि में व्रत संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें जनेऊ सुपारी देकर विदा करें फिर भोजन करें। , |
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− | इस प्रकार नीयम निष्ठा से जया व्रत रखने से व्यक्ति ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो जाता है। उसने सब प्रकार के दान दे दिये और सम्पूर्ण यज्ञों का अनुष्ठान कर लिया। इस माहात्म्य के पढ़ने और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है। | + | इस प्रकार नीयम निष्ठा से जया व्रत रखने से व्यक्ति ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो जाता है। उसने सब प्रकार के दान दे दिये और सम्पूर्ण यज्ञों का अनुष्ठान कर लिया। इस माहात्म्य के पढ़ने और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है।<ref>संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, गीता प्रेस गोरखपुर, (पृ०सं०६५१)।</ref> |
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| == फाल्गुन मासान्तर्गत एकादशी == | | == फाल्गुन मासान्तर्गत एकादशी == |
Line 561: |
Line 575: |
| भगवान श्रीराम लक्ष्मण समेत वकदाल्भ्य मुनि के आश्रम में पहुंचे और उन्हें प्रणाम करके अपना प्रश्न उनके सामने रख दिया। मुनिवर ने कहा हे राम आप अपनी सेना समेत फाल्गुन कृष्ण एकादशी का व्रत रखें, इस एकादशी के व्रत से आप निश्चित ही समुद्र को पार कर रावण को पराजित कर देंगे। श्री रामचन्द्र जी ने अपनी सेना समेत मुनिवर के बताये विधान के अनुसार एकादशी का व्रत रखा और सागर पर पुल का निर्माण कर लंका पर चढ़ाई की। राम और रावण का युद्ध हुआ जिसमें रावण मारा गया । | | भगवान श्रीराम लक्ष्मण समेत वकदाल्भ्य मुनि के आश्रम में पहुंचे और उन्हें प्रणाम करके अपना प्रश्न उनके सामने रख दिया। मुनिवर ने कहा हे राम आप अपनी सेना समेत फाल्गुन कृष्ण एकादशी का व्रत रखें, इस एकादशी के व्रत से आप निश्चित ही समुद्र को पार कर रावण को पराजित कर देंगे। श्री रामचन्द्र जी ने अपनी सेना समेत मुनिवर के बताये विधान के अनुसार एकादशी का व्रत रखा और सागर पर पुल का निर्माण कर लंका पर चढ़ाई की। राम और रावण का युद्ध हुआ जिसमें रावण मारा गया । |
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− | हे अर्जुन दशमी के दिन एक वेदी बनाकर उस पर सप्तधान रखें फिर अपने सामर्थ्य के अनुसार स्वर्ण, रजत, ताम्बा अथवा मिट्टी का कलश बनाकर उस पर स्थापित करें। एकदशी के दिन उस कलश में पंचपल्लव रखकर श्री विष्णु की मूर्ति स्थापित करें और विधि सहित धूप, दीप, चंदन, फूल, फल एवं तुलसी से प्रभु का पूजन करें। व्रती पूरे दिन भगवान की कथा का पाठ एवं श्रवण करें और रात्रि में कलश के सामने बैठकर जागरण करे । द्वादशी के दिन कलश को योग्य ब्राह्मण अथवा पंडित को दान कर दें । | + | हे अर्जुन दशमी के दिन एक वेदी बनाकर उस पर सप्तधान रखें फिर अपने सामर्थ्य के अनुसार स्वर्ण, रजत, ताम्बा अथवा मिट्टी का कलश बनाकर उस पर स्थापित करें। एकदशी के दिन उस कलश में पंचपल्लव रखकर श्री विष्णु की मूर्ति स्थापित करें और विधि सहित धूप, दीप, चंदन, फूल, फल एवं तुलसी से प्रभु का पूजन करें। व्रती पूरे दिन भगवान की कथा का पाठ एवं श्रवण करें और रात्रि में कलश के सामने बैठकर जागरण करे । द्वादशी के दिन कलश को योग्य ब्राह्मण अथवा पंडित को दान कर दें ।<ref>संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, गीता प्रेस गोरखपुर, (पृ०सं०६५३/ ६५४)।</ref> |
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| === आमलकी एकादशी === | | === आमलकी एकादशी === |
Line 578: |
Line 592: |
| भगवान की पूजा के पश्चात पूजन सामग्री लेकर आंवले के वृक्ष की पूजा करें । सबसे पहले वृक्ष के चारों की भूमि को साफ करें और उसे गाय के गोबर से पवित्र करें। पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें । इस कलश में देवताओं, तीर्थों एवं सागर को आमंत्रित करें। कलश में सुगन्धी और पंच रत्न रखें । इसके ऊपर पंच पल्लव रखें फिर दीप जलाकर रखें। कलश के कण्ठ में श्रीखंड चंदन का लेप करें और वस्त्र पहनाएं। अंत में कलश के ऊपर श्री विष्णु के छठे अवतार परशुराम की स्वर्ण मूर्ति स्थापित करें और विधिवत रूप से परशुराम जी की पूजा करें । रात्रि में भगवत कथा व भजन कीर्तन करते हुए प्रभु का स्मरण करें। | | भगवान की पूजा के पश्चात पूजन सामग्री लेकर आंवले के वृक्ष की पूजा करें । सबसे पहले वृक्ष के चारों की भूमि को साफ करें और उसे गाय के गोबर से पवित्र करें। पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें । इस कलश में देवताओं, तीर्थों एवं सागर को आमंत्रित करें। कलश में सुगन्धी और पंच रत्न रखें । इसके ऊपर पंच पल्लव रखें फिर दीप जलाकर रखें। कलश के कण्ठ में श्रीखंड चंदन का लेप करें और वस्त्र पहनाएं। अंत में कलश के ऊपर श्री विष्णु के छठे अवतार परशुराम की स्वर्ण मूर्ति स्थापित करें और विधिवत रूप से परशुराम जी की पूजा करें । रात्रि में भगवत कथा व भजन कीर्तन करते हुए प्रभु का स्मरण करें। |
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− | द्वादशी के दिन प्रात: ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा दें साथ ही परशुराम की मूर्ति सहित कलश ब्राह्मण को भेंट करें। इन क्रियाओं के पश्चात परायण करके अन्न जल ग्रहण करें। पश्चिमी राजस्थान में आंवला वृक्ष नही होने पर औरते खेजड़ी वृक्ष की पुजा करती हैं। | + | द्वादशी के दिन प्रात: ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा दें साथ ही परशुराम की मूर्ति सहित कलश ब्राह्मण को भेंट करें। इन क्रियाओं के पश्चात परायण करके अन्न जल ग्रहण करें। पश्चिमी राजस्थान में आंवला वृक्ष नही होने पर औरते खेजड़ी वृक्ष की पुजा करती हैं।<ref>संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, गीता प्रेस गोरखपुर, (पृ०सं०६५४/ ६५५)।</ref> |
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| == अधिक मासान्तर्गत एकादशी == | | == अधिक मासान्तर्गत एकादशी == |
Line 601: |
Line 615: |
| इस एकादशी व्रत की विधि बड़ी ही कठिन है । इस व्रत में पांच दिनों तक निराहार रहने का व्रत लिया जाता है। व्रती को एकादशी के दिन स्नान करके भगवान विष्णु के समक्ष बैठकर हाथ में जल एवं फूल लेकर संकल्प करना चाहिए। इसके पश्चात भगवान की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद पांच दिनों तक श्री हरि में मन लगाकर व्रत का पालन करना चाहिए। पांचवें दिन ब्रह्मण को भोजन करवाकर दान दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात व्रती को स्वयं भोजन करना चाहिए। गरीबी का अंत हुआ और पृथ्वी पर काफी समय तक सुख भोगकर वे पति पत्नी श्री विष्णु के उत्तम लोक को प्रस्थान कर गये । | | इस एकादशी व्रत की विधि बड़ी ही कठिन है । इस व्रत में पांच दिनों तक निराहार रहने का व्रत लिया जाता है। व्रती को एकादशी के दिन स्नान करके भगवान विष्णु के समक्ष बैठकर हाथ में जल एवं फूल लेकर संकल्प करना चाहिए। इसके पश्चात भगवान की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद पांच दिनों तक श्री हरि में मन लगाकर व्रत का पालन करना चाहिए। पांचवें दिन ब्रह्मण को भोजन करवाकर दान दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात व्रती को स्वयं भोजन करना चाहिए। गरीबी का अंत हुआ और पृथ्वी पर काफी समय तक सुख भोगकर वे पति पत्नी श्री विष्णु के उत्तम लोक को प्रस्थान कर गये । |
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− | इस एकादशी व्रत की विधि बड़ी ही कठिन है। इस व्रत में पांच दिनों तक निराहार रहने का व्रत लिया जाता है। व्रती को एकादशी के दिन स्नान करके भगवान विष्णु के समक्ष बैठकर हाथ जल एवं फूल लेकर संकल्प करना चाहिए। इसके पश्चात भगवान की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद पांच दिनों तक श्री हरि में मन लगाकर व्रत का पालन करना चाहिए। पांचवें दिन ब्रह्मण को भोजन करवाकर दान दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात व्रती को स्वयं भोजन करना चाहिए । | + | इस एकादशी व्रत की विधि बड़ी ही कठिन है। इस व्रत में पांच दिनों तक निराहार रहने का व्रत लिया जाता है। व्रती को एकादशी के दिन स्नान करके भगवान विष्णु के समक्ष बैठकर हाथ जल एवं फूल लेकर संकल्प करना चाहिए। इसके पश्चात भगवान की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद पांच दिनों तक श्री हरि में मन लगाकर व्रत का पालन करना चाहिए। पांचवें दिन ब्रह्मण को भोजन करवाकर दान दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात व्रती को स्वयं भोजन करना चाहिए ।<ref>संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, गीता प्रेस गोरखपुर, (पृ०सं०६७७)।</ref> |
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| === पद्मिनी(समुद्रा) एकादशी === | | === पद्मिनी(समुद्रा) एकादशी === |
Line 618: |
Line 632: |
| द्वादशी के दिन प्रात: भगवान की पूजा करें फिर ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करें इसके पश्चात स्वयं भोजन करें। | | द्वादशी के दिन प्रात: भगवान की पूजा करें फिर ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करें इसके पश्चात स्वयं भोजन करें। |
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− | इस प्रकार इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य जीवन सफल होता है, व्यक्ति जीवन का सुख भोगकर श्री हरि के लोक में स्थान प्राप्त करता है। | + | इस प्रकार इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य जीवन सफल होता है, व्यक्ति जीवन का सुख भोगकर श्री हरि के लोक में स्थान प्राप्त करता है।<ref>संक्षिप्त पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, गीता प्रेस गोरखपुर, (पृ०सं०६७८/६७९)।</ref> |
| + | |
| + | == उद्धरण == |