Line 8: |
Line 8: |
| Commentary-प्राणा इत्यादिनाऽङ्गेषु शिरःप्राधान्यं दर्शयन् प्रकृतशिरोरोगाणामेवात्यहितत्वं <sup>[१]</sup> दर्शयति; तेन नोत्सूत्रं शिरःप्राधान्याभिधानम्| श्रिता इव श्रिताः, शिर-उपघाते उपघातात्| उपरिष्टादङ्गमुत्तमाङ्गम्||१२|| | | Commentary-प्राणा इत्यादिनाऽङ्गेषु शिरःप्राधान्यं दर्शयन् प्रकृतशिरोरोगाणामेवात्यहितत्वं <sup>[१]</sup> दर्शयति; तेन नोत्सूत्रं शिरःप्राधान्याभिधानम्| श्रिता इव श्रिताः, शिर-उपघाते उपघातात्| उपरिष्टादङ्गमुत्तमाङ्गम्||१२|| |
| | | |
| + | === Anatomy related Shiras === |
| + | Getway |
| + | |
| + | द्वारं हि शिरसो नासा तेन तद् व्याप्य हन्ति तान्||८८|| Cha. Si 9.88 |
| + | |
| + | ==== Marma ==== |
| सप्तोत्तरं मर्मशतं यदुक्तं शरीरसङ्ख्यामधिकृत्य तेभ्यः| | | सप्तोत्तरं मर्मशतं यदुक्तं शरीरसङ्ख्यामधिकृत्य तेभ्यः| |
| | | |
Line 13: |
Line 19: |
| | | |
| प्राणाश्रयात्, तानि हि पीडयन्तो वातादयोऽसूनपि पीडयन्ति| (Char. Samh. chi 26.3-4) | | प्राणाश्रयात्, तानि हि पीडयन्तो वातादयोऽसूनपि पीडयन्ति| (Char. Samh. chi 26.3-4) |
− |
| |
− | === Anatomy related Shiras ===
| |
| | | |
| ==== Bahirmukha strotas- ==== | | ==== Bahirmukha strotas- ==== |
Line 27: |
Line 31: |
| Effect of head injury | | Effect of head injury |
| | | |
− | तेषां त्रयाणामन्यतमस्यापि भेदादाश्वेव शरीरभेदः स्यात्, आश्रयनाशादाश्रितस्यापि विनाशः; तदुपघातात्तु <sup>[५]</sup> घोरतरव्याधिप्रादुर्भावः; तस्मादेतानि विशेषेण रक्ष्याणि बाह्याभिघाद्वातादिभ्यश्च||५|| | + | तेषां त्रयाणामन्यतमस्यापि भेदादाश्वेव शरीरभेदः स्यात्, आश्रयनाशादाश्रितस्यापि विनाशः; तदुपघातात्तु <sup>[५]</sup> घोरतरव्याधिप्रादुर्भावः; तस्मादेतानि विशेषेण रक्ष्याणि बाह्याभिघाद्वातादिभ्यश्च||५|| ??Char. Samh. chi 26.3-4) |
| + | |
| | | |
| शिरस्यभिहते मन्यास्तम्भार्दितचक्षुर्विभ्रममोहोद्वेष्टनचेष्टानाशकासश्वासहनुग्रहमूकगद्गदत्वाक्षिनिमीलन- गण्डस्पन्दनजृम्भणलालास्रावस्वरहानिवदनजिह्मत्वादीनि, (Cha. SI 9.6) | | शिरस्यभिहते मन्यास्तम्भार्दितचक्षुर्विभ्रममोहोद्वेष्टनचेष्टानाशकासश्वासहनुग्रहमूकगद्गदत्वाक्षिनिमीलन- गण्डस्पन्दनजृम्भणलालास्रावस्वरहानिवदनजिह्मत्वादीनि, (Cha. SI 9.6) |
Line 73: |
Line 78: |
| | | |
| ततः शिरसि जायन्ते रोगा विविधलक्षणाः||११|| (Char. Samh. Su. 17.8-11) | | ततः शिरसि जायन्ते रोगा विविधलक्षणाः||११|| (Char. Samh. Su. 17.8-11) |
| + | |
| + | === others === |
| + | तत्रोच्चैर्भाष्यातिभाष्याभ्यां शिरस्तापशङ्खकर्णनिस्तोदश्रोत्रोपरोधमुखतालुकण्ठशोषतैमिर्यपिपासाज्वरतमक- Cha. Si 12.14 |
| + | |
| + | रथक्षोभात् सन्धिपर्वशैथिल्यहनुनासाकर्णशिरःशूलतोदकुक्षिक्षोभाटोपान्त्रकूजनाध्मानहृदयेन्द्रियोपरोध- Cha. Si 12.14 |
| + | |
| + | व्यवायादाशुबलनाशोरुसादशिरोबस्तिगुदमेढ्रवङ्क्षणोरुजा Cha. Si 12.14 |
| | | |
| == Treatment aspects == | | == Treatment aspects == |
Line 84: |
Line 96: |
| === Nasya === | | === Nasya === |
| Aternative name- Shiro virechana - | | Aternative name- Shiro virechana - |
| + | |
| + | नस्तःकर्म च कुर्वीत शिरोरोगेषु शास्त्रविद्| |
| + | |
| + | द्वारं हि शिरसो नासा तेन तद् व्याप्य हन्ति तान्||८८|| Cha. Si 9.88 |
| | | |
| === Dhumapana === | | === Dhumapana === |
Line 162: |
Line 178: |
| | | |
| गलोपलेपः शिरसो गुरुत्वं निष्ठीवनं चाप्यथ दुर्विरिक्ते| (Char. SAMh. SIddhi 1.52) | | गलोपलेपः शिरसो गुरुत्वं निष्ठीवनं चाप्यथ दुर्विरिक्ते| (Char. SAMh. SIddhi 1.52) |
| + | |
| + | Migrain / Ardhavabhedaka |
| + | |
| + | केवलः सकफो वाऽर्धं <sup>[२]</sup> गृहीत्वा शिरसस्ततः| |
| + | |
| + | मन्याभ्रूशङ्खकर्णाक्षिललाटार्धेऽतिवेदनाम्||७५|| |
| + | |
| + | शस्त्रारणिनिभां कुर्यात्तीव्रां सोऽर्धावभेदकः| Cha. Si 9. 74-76 |
| | | |
| == References == | | == References == |