'''साफल्यं मानवीयस्य जीवनस्येही निश्चितं ।।'''</blockquote>जैसा कि उपरोक्त शब्दों से प्रतिध्वनित होता है , इस संस्कार में बालक का मस्तक यह जन्मजात बालों को हटाने की रस्म है। मानव जीवन में सृजन और मूल से जुड़ी पुरानी चीजों का संशोधन, यदि अनावश्यक हो तो करना , यही इस संस्कार का उद्देश्य है। रचनात्मकता के साथ पहले वर्णित सात संस्कार या सृजन प्रक्रिया से संबंधित है। ये अगले संस्कार व्यक्ति से स्वतंत्र हैं अस्तित्व के सार को निर्धारित करने वाली इकाई के रूप में बनाया गया क्या पहचान होती है , वे प्रक्रियाएँ जिनके द्वारा प्रत्येक व्यक्ति उत्तरोत्तर प्रगति करता है बढ़ रहा है। इसलिए ज्वाला और उसके बाद के सभी संस्कारों का किसी व्यक्ति के अंतिम विसर्जन की ओर जाने वाला मार्ग विकासात्मक संस्कार है। | '''साफल्यं मानवीयस्य जीवनस्येही निश्चितं ।।'''</blockquote>जैसा कि उपरोक्त शब्दों से प्रतिध्वनित होता है , इस संस्कार में बालक का मस्तक यह जन्मजात बालों को हटाने की रस्म है। मानव जीवन में सृजन और मूल से जुड़ी पुरानी चीजों का संशोधन, यदि अनावश्यक हो तो करना , यही इस संस्कार का उद्देश्य है। रचनात्मकता के साथ पहले वर्णित सात संस्कार या सृजन प्रक्रिया से संबंधित है। ये अगले संस्कार व्यक्ति से स्वतंत्र हैं अस्तित्व के सार को निर्धारित करने वाली इकाई के रूप में बनाया गया क्या पहचान होती है , वे प्रक्रियाएँ जिनके द्वारा प्रत्येक व्यक्ति उत्तरोत्तर प्रगति करता है बढ़ रहा है। इसलिए ज्वाला और उसके बाद के सभी संस्कारों का किसी व्यक्ति के अंतिम विसर्जन की ओर जाने वाला मार्ग विकासात्मक संस्कार है। |