पौष मास की कृष्ण पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत करना चाहिये। विधि दोनों की एक ही है। व्रती मनुष्य प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर शौच स्नानादि से निवृत होकर अपना नित्य नियम करने के पश्चात् भगवान शिव का षोडशोपचार विधि से पूजन करें और फिर तीसरे पहर भोजन करें। भोजन में सात्विक पदार्थ हो या तामसी हो, रात्रि को जागरण-कीर्तन करें, दूसरे दिन अर्थात् चतुर्दर्शी को व्रत का पालन कर प्रदोष के दिन जो कोई इस व्रत को करत है तथा भगवान शिव की पूजा करता है। उसके सब मनवांछित कार्य सिद्ध हो जाते हैं और अन्त में शिवलोक को प्राप्त हो जाता है। | पौष मास की कृष्ण पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत करना चाहिये। विधि दोनों की एक ही है। व्रती मनुष्य प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर शौच स्नानादि से निवृत होकर अपना नित्य नियम करने के पश्चात् भगवान शिव का षोडशोपचार विधि से पूजन करें और फिर तीसरे पहर भोजन करें। भोजन में सात्विक पदार्थ हो या तामसी हो, रात्रि को जागरण-कीर्तन करें, दूसरे दिन अर्थात् चतुर्दर्शी को व्रत का पालन कर प्रदोष के दिन जो कोई इस व्रत को करत है तथा भगवान शिव की पूजा करता है। उसके सब मनवांछित कार्य सिद्ध हो जाते हैं और अन्त में शिवलोक को प्राप्त हो जाता है। |