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देशाभिमंत्रण :
 
देशाभिमंत्रण :
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इस विधि में जहाँ पर प्रसव हुआ उस स्थान के कृतज्ञता स्वरुप वहा , कुछ मंत्रौच्चारण के साथ पूजा करके प्रणाम करते है।</blockquote>
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इस विधि में जहाँ पर प्रसव हुआ उस स्थान के कृतज्ञता स्वरुप वहा , कुछ मंत्रौच्चारण के साथ पूजा करके प्रणाम करते है।
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नामकरण:
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आपस्तंग गुह्यसूत्र में जन्म के समय नक्षत्र के अनुसार शिशु का गुप्त नाम रखा जाता है। यह नाम तो माता-पिता ही जानते हैं - पिता वे बच्चे के कान में उच्चारण करते हैं , " तुम वेद हो।"
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पंच-ब्राह्मण स्थान:
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ये क्रियाएं पिता या आमंत्रित ब्राह्मण द्वारा की जाती हैं। प्राण यह जीवन का अत्यंत महत्वपूर्ण कारक है। बच्चे की उम्र लंबी होनी चाहिए अत : उसके शरीर में पंचप्राण का उचित परिसंचरण आवश्यक है इस  भावों को मन में रखकर चारों दिशाओं में एक ब्राह्मण खड़ा होता है , एक ब्राह्मण दक्षिण की ओर देखते हैं और प्रतिश्वास लेते हैं , दूसरे पश्चिम की ओर देखते निश्वास , तीसरी को उत्तर की ओर देखते हुए बहिश्वास और चौथा पूर्व की ओर देखते हुए उच्छ्वास शब्दों का प्रयोग करते हुए श्वास लेंते और छोड़ेंते है । स्वयं ब्राह्मण नहीं तो पिता बच्चे के चारों ओर घूमकर इस अनुष्ठान को करता है।
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इस संस्कार के समाप्ति के बाद , दान और दक्षिणा जितना संभव हो उतना सोना देते हैं , वे भूमि , गाय , घोड़े , छतरियां , बकरी , माली , आसन दान करते हैं।
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वर्तमान प्रारूप:
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आजकल इस संस्कार में शास्त्रोंविधि के साथ-साथ लोकाचार को भी समाविष्ट किया गया है। कुछ स्थानों पर केवल लोकाचार को ही देखी जाती हैं। आजकल बच्चो की प्रसूति वार्ड में या किसी अस्पताल में होती है वहा यह संस्कार करना संभव नहीं है। तो डिलीवरी के बाद छठे या दसवें दिन जब बालनतिन घर आता है तो वह यह संस्कार करना चाहिए । इस समय प्रसव के बाद पहली बार बच्चे और मां को नहलाया जाता है। बच्चे को नीम के पानी से नहला कर सुटक को समाप्त किया जाता है | देव पूजा और हवन किया जाता है। नए कपड़े पहने जाते हैं। इस विधि में मां बच्चे के नाखून काटती है। प्रकृति और चूंकि जड़ में चैतन्य की पूजा भारतीय संस्कृति का मूल होने के कारन जन्म स्थान की कृतज्ञता की भावना के साथ उस स्थान को प्रणाम करते हैं।
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बच्चे के जन्म के समय:
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उस समय की खगोलीय दशाओं को संगृहीत करने के लिए इस समय सही बुद्धिमान आचार्य द्वारा  जन्मकुंडली – जन्मपत्रिका तैयार किया जाता है। कुछ लोग बच्चे का नाम कुंडली राशिनुसार अक्षर पर रखा जाता है।
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भारत में ज्योतिष को एक विकसित विज्ञान के रूप में मान्यता प्राप्त है। परनिंदा , उचित अध्ययन की कमी , स्वार्थ केंद्री भावनाओं के कारन कई भ्रांतियों को जन्म दिया है । .</blockquote>
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