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| Commentary- पित्तान्तर्गत इति वचनेन शरीरे ज्वालादियुक्तवह्निनिषेधेन पित्तोष्मरूपस्य वह्नेः सद्भावं दर्शयति; न तु पित्तादभेदं, पित्तेनाग्निमान्द्यस्य ग्रहण्यध्याये वक्ष्यमाणत्वात्, तथा पित्तहरस्य सर्पिषोऽग्निवर्धनत्वेनोक्तत्वात्| पक्तिमपक्तिमिति अविकृतिविकृतिभेदेन पाचकस्याग्नेः कर्म, दर्शनादर्शने नेत्रगतस्यालोचकस्य, ऊष्मणो मात्रामात्रत्वं वर्णभेदौ च त्वग्गतस्य भ्राजकस्य, भयशौर्यादयो हृदयस्थस्य साधकस्य, रञ्जकस्य तु बहिःस्फुटकार्यादर्शनादुदाहरणं न कृतम्||११|| | | Commentary- पित्तान्तर्गत इति वचनेन शरीरे ज्वालादियुक्तवह्निनिषेधेन पित्तोष्मरूपस्य वह्नेः सद्भावं दर्शयति; न तु पित्तादभेदं, पित्तेनाग्निमान्द्यस्य ग्रहण्यध्याये वक्ष्यमाणत्वात्, तथा पित्तहरस्य सर्पिषोऽग्निवर्धनत्वेनोक्तत्वात्| पक्तिमपक्तिमिति अविकृतिविकृतिभेदेन पाचकस्याग्नेः कर्म, दर्शनादर्शने नेत्रगतस्यालोचकस्य, ऊष्मणो मात्रामात्रत्वं वर्णभेदौ च त्वग्गतस्य भ्राजकस्य, भयशौर्यादयो हृदयस्थस्य साधकस्य, रञ्जकस्य तु बहिःस्फुटकार्यादर्शनादुदाहरणं न कृतम्||११|| |
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| + | रागपक्त्योजस्तेजोमेधोष्मकृत् पित्तं पञ्चधा प्रविभक्तमग्निकर्मणाऽनुग्रहं करोति; |
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| + | (२) |४| Cha SU 15.4 |
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| + | तत्र जिज्ञास्यं किं पित्तव्यतिरेकादन्योऽग्निः? आहोस्वित् पित्तमेवाग्निरिति? | |
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| + | अत्रोच्यते- न खलु पित्तव्यतिरेकादन्योऽग्निरुपलभ्यते, आग्नेयत्वात् पित्ते दहनपचनादिष्वभिप्रवर्तमानेऽग्निवदुपचारः क्रियतेऽन्तरग्निरिति; क्षीणे ह्यग्निगुणे तत्समानद्रव्योपयोगात् , अतिवृद्धे शीतक्रियोपयोगात् , आगमाच्च पश्यामो न [१] खलु पित्तव्यतिरेकादन्योऽग्निरिति ||९|| Su su 21.9 |
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| + | == 5 types of pitta or agni in body == |
| + | तच्चादृष्टहेतुकेन [१] विशेषेण पक्वामाशयमध्यस्थं पित्तं चतुर्विधमन्नपानं पचति, विवेचयति च दोषरसमूत्रपुरीषाणि; तत्रस्थमेव चात्मशक्त्या शेषाणां पित्तस्थानानां शरीरस्य चाग्निकर्मणाऽनुग्रहं करोति, तस्मिन् पित्ते पाचकोऽग्निरिति सञ्ज्ञा; यत्तु यकृत्प्लीह्नोः पित्तं तस्मिन् रञ्जकोऽग्निरिति सञ्ज्ञा, स रसस्य रागकृदुक्तः; यत् पित्तं हृदयस्थं तस्मिन् साधकोऽग्निरिति सञ्ज्ञा, सोऽभिप्रार्थितमनोरथसाधनकृदुक्तः; यद्दृष्ट्यां पित्तं तस्मिन्नालोचकोऽग्निरिति सञ्ज्ञा, स रूपग्रहणाऽधिकृतः; यत्तु त्वचि पित्तं तस्मिन् भ्राजकोऽग्निरिति सञ्ज्ञा, सोऽभ्यङ्गपरिषेकावगाहालेपनादीनां क्रियाद्रव्याणां पक्ता छायानां च प्रकाशकः ||१०|| Su su. 21.10 |
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| == Role of agni in human physiology according to ayurveda == | | == Role of agni in human physiology according to ayurveda == |
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| तत्राग्निर्हेतुराहारान्न ह्यपक्वाद्रसादयः||५४|| (Ashtang Hrudayam sha 3.54) | | तत्राग्निर्हेतुराहारान्न ह्यपक्वाद्रसादयः||५४|| (Ashtang Hrudayam sha 3.54) |
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| + | == Jatharagni == |
| + | जाठरो [१] भगवानग्निरीश्वरोऽन्नस्य पाचकः | |
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| + | सौक्ष्म्याद्रसानाददानो विवेक्तुं नैव शक्यते ||२७|| Su su 35.27 |
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| == Site of Agni in body: Grahani == | | == Site of Agni in body: Grahani == |
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| अपच्यमानं शुक्तत्वं यात्यन्नं विषरूपताम् [१] ||४४|| Cha chi 15 | | अपच्यमानं शुक्तत्वं यात्यन्नं विषरूपताम् [१] ||४४|| Cha chi 15 |
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| + | == How to examine agni? == |
| + | प्रश्नेन च विजानीयाद्देशं कालं जातिं सात्म्यमातङ्कसमुत्पत्तिं वेदनासमुच्छ्रायं बलमन्तरग्निं Su su 10.5 (https://niimh.nic.in/ebooks/esushruta/?mod=read&h=agni) |