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भगवान विष्णु के अष्टम्अवतार रूप में प्रसिद्ध, वसुदेव-देवकी के जाये तथा नन्द-यशोदा के लालित-पालित पुत्र, अनेक असुरों के संहारकर्ता, गोकुलवासियों की इन्द्रकोप से रक्षा-हेतु गोवर्धन धारण करने वाले, कंस के दुर्जन-राज्य का अंत कर जरासंध को सत्रह बार परास्त करने वाले, सुदामा के प्रति आत्मीयता—निर्वाह कर मित्रता का श्रेष्ठ आदर्श प्रस्थापित करने वाले, युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में अग्रपूजा का सम्मान पाकर भी यज्ञ में उपस्थित ब्राह्मणों के पैर धोने वाले और भोज के पश्चात् सबके जूठे पत्तल उठाने वाले, महाभारत युद्ध में पाण्डवों को कौरवों पर विजय दिलाने वाले, धर्म-संस्थापक एवं कर्मयोगी, भगवद्गीता काउपदेश देने वाले, अपने वंश (यदुवंश) में उपजे दोषों के कारण उसका भी विध्वंस करने वाले श्रीकृष्ण षोडष कलायुक्त पूर्णावतार रूप में परम आराध्य हैं। न केवल भागवतपुराण के अपितु महाभारत महाकाव्य के भी वास्तविक नायक वही हैं। उनके चरित को आधार बनाकर भारत की सभी भाषाओं में उत्कृष्ट भक्ति-साहित्य का निर्माण हुआ है। श्रीकृष्ण के जन्म से पूर्व मथुरा में अन्धक और वृष्णि गणों का संघ था जिसके गणप्रमुख उग्रसेन श्रीकृष्ण के नाना देवक के बड़े भाई थे। कंस ने इसी गणराज्य को एकतन्त्र में परिणत कर दिया था जिसे कृष्ण ने पुन: गणराज्य बनाया। कंस का श्वसुर जरासंध प्रतिशोध के लिए बारम्बार आक्रमण करने के पश्चात् जब विदेशियों को भी अपनी सहायता के लिए आमंत्रित करने लगा तो श्रीकृष्ण ने विदेशी कालयवन का अन्त कराने के साथ ही इस प्रवृत्ति को बढ़ने न देने के लिए अन्धक-वृष्णि गण को द्वारिका स्थानान्तरित कर दिया तथा बाद में जरासन्ध को युक्तिपूर्वक भीम के हाथों समाप्त कराया। वे अपने समय के सर्वश्रेष्ठ राजनीतिज्ञ भी थे और महायोगी भी।