बहुत समय पहले की बात है कि हिमालय नामक एक राजा के गौरी तथा पार्वती नाम की दो पुत्रियां थीं। एक दिन हिमालय ने उन दोनों को पूछा-"तुम दोनों किसके भाग्य का खाती हो?" इस पर पार्वती बोली-"मैं तो अपने भाग्य का खाती गौरी ने कहा-"मैं तो आपके ही भाग्य का खाती हूं।" यह सुनकर राजा ने पुरोहित को बुलाकर गौरी के लिए राजकुमार और पार्वती के लिए भिखारी वर ढूंढें। पुरोहित राजआज्ञा से वर खोजने निकल पड़ा। शिव रूप में भिखारी को देखकर पुरोहित ने पार्वतीजी का विवाह उस भिखारी से तय कर दिया और गौरी का विवाह सुन्दर राजकुमार से तय कर दिया। कुछ दिनों के उपरान्त गौरी की बारात का स्वागत खूब धूम-धाम से किया गया। साथ ही बहुत-सा दहेज भी दिया, परन्तु जब पार्वती की बारात आई तो राजा ने उनका कोई सत्कार नहीं किया, केवल कन्यादान देकर पार्वती को विदा कर दिया। शिवजी पार्वती को लेकर कैलाश पर्वत पर आ गए। पार्वती जहां पार्वती जहां कदम रखती वहीं की घास जल जाती। यह देखकर शिवजी ने पण्डितों से इसका कारण पूछा। पण्डितों ने सोच-विचार कर कहा-"पार्वती व इनकी भाभियां आशा भगौति का व्रत करती थीं। इनकी भाभियों ने मायके जाकर उजमन व्रत किया, किन्तु पार्वती ने उजमन नहीं किया। यदि पार्वतीजी भी अपने घर जाकर व्रत तथा उजमन करें तो सब दोष दूर हो जायेगा।" | बहुत समय पहले की बात है कि हिमालय नामक एक राजा के गौरी तथा पार्वती नाम की दो पुत्रियां थीं। एक दिन हिमालय ने उन दोनों को पूछा-"तुम दोनों किसके भाग्य का खाती हो?" इस पर पार्वती बोली-"मैं तो अपने भाग्य का खाती गौरी ने कहा-"मैं तो आपके ही भाग्य का खाती हूं।" यह सुनकर राजा ने पुरोहित को बुलाकर गौरी के लिए राजकुमार और पार्वती के लिए भिखारी वर ढूंढें। पुरोहित राजआज्ञा से वर खोजने निकल पड़ा। शिव रूप में भिखारी को देखकर पुरोहित ने पार्वतीजी का विवाह उस भिखारी से तय कर दिया और गौरी का विवाह सुन्दर राजकुमार से तय कर दिया। कुछ दिनों के उपरान्त गौरी की बारात का स्वागत खूब धूम-धाम से किया गया। साथ ही बहुत-सा दहेज भी दिया, परन्तु जब पार्वती की बारात आई तो राजा ने उनका कोई सत्कार नहीं किया, केवल कन्यादान देकर पार्वती को विदा कर दिया। शिवजी पार्वती को लेकर कैलाश पर्वत पर आ गए। पार्वती जहां पार्वती जहां कदम रखती वहीं की घास जल जाती। यह देखकर शिवजी ने पण्डितों से इसका कारण पूछा। पण्डितों ने सोच-विचार कर कहा-"पार्वती व इनकी भाभियां आशा भगौति का व्रत करती थीं। इनकी भाभियों ने मायके जाकर उजमन व्रत किया, किन्तु पार्वती ने उजमन नहीं किया। यदि पार्वतीजी भी अपने घर जाकर व्रत तथा उजमन करें तो सब दोष दूर हो जायेगा।" |