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भारत में शिक्षा का लक्ष्य बालक के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास है ऐसा कुछ लोग मानते हैं तो कुछ लोग समग्र विकास को मानते हैं| और यूरो अमरीकी सोच के अनुसार सोचनेवाले ‘ओल राऊंड डेव्हलपमेंट ऑफ पर्सनालिटी’ को शिक्षा का लक्ष्य मानते हैं| किन्तु ‘सर्वांगीण’, ‘समग्र’ और ओल राऊंड इन के अर्थों में बहुत अंतर है। ‘समग्र” के अर्थ सर्वांगीण से भी अधिक व्यापक और सटीक हैं| अंग्रेजी में जिसे पर्सनॅलिटी कहते है वह और भारतीय व्यक्तित्व की संकल्पना यह भिन्न बातें है । पर्सनॅलिटी शब्द लॅटीन शब्द ‘पर्सोना’ से बना है । पर्सोना का अर्थ है मुखौटा। अर्थात् मनुष्य का वास्तविक स्वरूप नहीं| मनुष्य ने धारण किया मुखौटा। याने बाहर से दिखनेवाला रूप ।
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व्यक्तित्व :
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व्यक्तित्व और पर्सनालिटी में ‘होना’ और ‘बनाया’ जाना का अंतर है| इनमें होना स्वाभाविक होता है| बनाना कृत्रिम होता है| स्वाभाविक का अर्थ है जो स्वभाव के अनुकूल है| भारतीय या हिन्दू जन्म से ही होता है| जैसे बाप्तिस्मा से ईसाई बनता है, सुन्नत से मुसलमान बनता है भारतीय या हिन्दू बनने के लिए इन जैसी कोई विधी नहीं होती|
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प्रस्तावना
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भारत में शिक्षा का लक्ष्य बालक के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास है ऐसा कुछ लोग मानते हैं तो कुछ लोग समग्र विकास को मानते हैं| और यूरो अमरीकी सोच के अनुसार सोचनेवाले ‘ओल राऊंड डेव्हलपमेंट ऑफ पर्सनालिटी’ को शिक्षा का लक्ष्य मानते हैं| किन्तु ‘सर्वांगीण’, ‘समग्र’ और ओल राऊंड इन के अर्थों में बहुत अंतर है। ‘समग्र” के अर्थ सर्वांगीण से भी अधिक व्यापक और सटीक हैं| अंग्रेजी में जिसे पर्सनॅलिटी कहते है वह और भारतीय व्यक्तित्व की संकल्पना यह भिन्न बातें है । पर्सनॅलिटी शब्द लॅटीन शब्द ‘पर्सोना’ से बना है । पर्सोना का अर्थ है मुखौटा। अर्थात् मनुष्य का वास्तविक स्वरूप नहीं| मनुष्य ने धारण किया मुखौटा। याने बाहर से दिखनेवाला रूप ।
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व्यक्तित्व और पर्सनालिटी में ‘होना’ और ‘बनाया’ जाना का अंतर है| इनमें होना स्वाभाविक होता है| बनाना कृत्रिम होता है| स्वाभाविक का अर्थ है जो स्वभाव के अनुकूल है| भारतीय या हिन्दू जन्म से ही होता है| जैसे बाप्तिस्मा से ईसाई बनता है, सुन्नत से मुसलमान बनता है भारतीय या हिन्दू बनने के लिए इन जैसी कोई विधी नहीं होती|
सर्वांगीण विकास को जो लोग लक्ष्य मानते हैं उनके अनुसार अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय ऐसे पाँच कोशों का विकास ही मनुष्य का विकास होता है| समग्र विकास की व्याप्ति इससे अधिक है| उसका विचार हम आगे करेंगे|
सर्वांगीण विकास को जो लोग लक्ष्य मानते हैं उनके अनुसार अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय ऐसे पाँच कोशों का विकास ही मनुष्य का विकास होता है| समग्र विकास की व्याप्ति इससे अधिक है| उसका विचार हम आगे करेंगे|
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हमारे पंचमहाभौतिक शरीर में से हम में विद्यमान उस परमात्मतत्व की जो सहज अभिव्यक्ति होती है उसे भारतीय सोच में व्यक्तित्व कहते है । यह मुखौटे जैसी कृत्रिम नहीं होती । और ना ही किसी को बताने के लिये धारण की हुई होती है। इसलिये हम ऑल राऊंड पर्सनॅलिटी डेव्हलपमेंट का विचार नहीं करेंगे । हम विचार करेंगे अष्टधा प्रकृति के सभी अंगों के सर्वांगीण विकास से भी अधिक व्यापक ऐसे व्यक्तित्व के समग्र विकास का । लेकिन उससे पहले व्यक्तित्व क्या है इसे समझना आवश्यक है|
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हमारे पंचमहाभौतिक शरीर में से हम में विद्यमान उस परमात्मतत्व की जो सहज अभिव्यक्ति होती है उसे भारतीय सोच में व्यक्तित्व कहते है । यह मुखौटे जैसी कृत्रिम नहीं होती । और ना ही किसी को बताने के लिये धारण की हुई होती है। इसलिये हम ऑल राऊंड पर्सनॅलिटी डेव्हलपमेंट का विचार नहीं करेंगे । हम विचार करेंगे अष्टधा प्रकृति के सभी अंगों के सर्वांगीण विकास से भी अधिक व्यापक ऐसे व्यक्तित्व के समग्र विकास का । लेकिन उससे पहले व्यक्तित्व क्या है इसे समझना आवश्यक है|
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व्यक्तित्व का अर्थ
व्यक्तित्व का अर्थ
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व्यक्तित्व एक बहुत व्यापक अर्थवाला शब्द है| संसार में अनगिनत अस्तित्व हैं| श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय ७ में कहा है –
व्यक्तित्व एक बहुत व्यापक अर्थवाला शब्द है| संसार में अनगिनत अस्तित्व हैं| श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय ७ में कहा है –
भूमिराप: अनलो वायु: खं मनो बुद्धिरेव च| अहंकार इतीयं में भिन्ना प्रकृतिरष्टधा|| - ४ अपरेयमितस्त्वन्याम् प्रकृतिं विद्धि मे पराम् | जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत् || - ५ आगे और कहा है –
भूमिराप: अनलो वायु: खं मनो बुद्धिरेव च| अहंकार इतीयं में भिन्ना प्रकृतिरष्टधा|| - ४ अपरेयमितस्त्वन्याम् प्रकृतिं विद्धि मे पराम् | जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत् || - ५ आगे और कहा है –