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=== पुराण ===
 
=== पुराण ===
 
इन की गिनती वैदिक साहित्य में नहीं की जाती । लेकिन इनके महत्व को समझकर इन्हें पंचमवेद कहा जाता है । पुराणम् पंचमो वेद:। पुराण भारत का सांस्कृतिक इतिहास हैं । १८ मुख्य और १८ ही उप पुराण हैं । सर्ग(सृष्टि का सर्जन), प्रतिसर्ग(सृष्टि का विलय), वंश, मन्वंतर, और वंशानुचरित का वर्णन मिलाकर ही उसे पुराण कहते हैं ।
 
इन की गिनती वैदिक साहित्य में नहीं की जाती । लेकिन इनके महत्व को समझकर इन्हें पंचमवेद कहा जाता है । पुराणम् पंचमो वेद:। पुराण भारत का सांस्कृतिक इतिहास हैं । १८ मुख्य और १८ ही उप पुराण हैं । सर्ग(सृष्टि का सर्जन), प्रतिसर्ग(सृष्टि का विलय), वंश, मन्वंतर, और वंशानुचरित का वर्णन मिलाकर ही उसे पुराण कहते हैं ।
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स्मृति : वेदों के अर्थों का औवाद करनेवाले ऋषियों के अनुभव और स्मृति के आधारपर रचे गए ग्रन्थ स्मृति कहलाते हैं । वेदज्ञान के आधारपर मानव धर्मशास्त्र की युगानुकूल और कालानुकूल प्रस्तुति ही स्मृति है ।
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=== [[Smrti (स्मृतिः)|स्मृति]] ===
श्रीमद्भगवद्गीता : बोलचाल की भाषा में इसे गीता कहते हैं । यह ग्रन्थ विश्वविख्यात है । विश्व के भिन्न भिन्न विचारों के विद्वानों ने गीता के विषय में अपने विचार व्यक्त किये हैं । लेखन और प्रवचन किये हैं । यह भारतीय ज्ञानधारा का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है । प्रत्येक भारतीय को इसे पढ़ना, समझना और व्यवहार में लाना चाहिए । अभी हम इसका प्राथमिक परिचय ही देखेंगे ।
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वेदों के अर्थों का औवाद करनेवाले ऋषियों के अनुभव और स्मृति के आधारपर रचे गए ग्रन्थ स्मृति कहलाते हैं । वेदज्ञान के आधारपर मानव धर्मशास्त्र की युगानुकूल और कालानुकूल प्रस्तुति ही स्मृति है ।  
१. श्रीमद्भगवद्गीता का अर्थ है यह प्रत्यक्ष भगवान द्वारा कही गई गयी है । यह अर्जुन को पास बिठाकर अनेक रहस्यों को समझानेवाली है । इसलिए यह उपनिषद् है गीतोपनिषद । गीता स्त्रीलिंगी शब्द है ।
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=== श्रीमद्भगवद्गीता ===
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बोलचाल की भाषा में इसे गीता कहते हैं । यह ग्रन्थ विश्वविख्यात है । विश्व के भिन्न भिन्न विचारों के विद्वानों ने गीता के विषय में अपने विचार व्यक्त किये हैं । लेखन और प्रवचन किये हैं । यह भारतीय ज्ञानधारा का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है । प्रत्येक भारतीय को इसे पढ़ना, समझना और व्यवहार में लाना चाहिए । अभी हम इसका प्राथमिक परिचय ही देखेंगे ।  
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१. श्रीमद्भगवद्गीता का अर्थ है यह प्रत्यक्ष भगवान द्वारा कही गई गयी है । यह अर्जुन को पास बिठाकर अनेक रहस्यों को समझानेवाली है । इसलिए यह उपनिषद् है: गीतोपनिषद ।
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२. यद्यपि यह महाभारत का एक छोटा हिस्सा है फिर भी इस का महत्व और इस की ख्याति स्वतन्त्र ग्रन्थ जैसी ही है । महाभारत के भीष्मपर्व के २५ से ४२ तक के १८ अध्यायों में यह कही गयी है ।  
 
२. यद्यपि यह महाभारत का एक छोटा हिस्सा है फिर भी इस का महत्व और इस की ख्याति स्वतन्त्र ग्रन्थ जैसी ही है । महाभारत के भीष्मपर्व के २५ से ४२ तक के १८ अध्यायों में यह कही गयी है ।  
३. एक अक्षौहिणी याने २१८७० रथ, २१८७० हाथी, ६५६१० घोड़े, १०९३५० पदाति ऐसे कुल २,६२,४४० सैनिक मिलकर एक अक्षौहिणी संख्या बनती है । कुरूक्षेत्र (वर्तमान में हरियाणा में है) की रणभूमि में ११ अक्षौहिणी सेना कौरवों की ओर से तथा ७ अक्षौहिणी सेना पांडवों की ओर से लड़ी थी । आज भी यह रणक्षेत्र देखने को मिलता है ।  
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४. गीता महाभारत युद्ध के प्रारम्भ में कही गई है ।
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३. एक अक्षौहिणी याने २१८७० रथ, २१८७० हाथी, ६५६१० घोड़े, १०९३५० पदाति ऐसे कुल २,६२,४४० सैनिक मिलकर एक अक्षौहिणी संख्या बनती है । कुरूक्षेत्र (वर्तमान में हरियाणा में है) की रणभूमि में ११ अक्षौहिणी सेना कौरवों की ओर से तथा ७ अक्षौहिणी सेना पांडवों की ओर से लड़ी थी । आज भी यह रणक्षेत्र देखने को मिलता है ।
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४. गीता महाभारत युद्ध के प्रारम्भ में कही गई है ।  
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५. सम्पूर्ण गीता प्रश्नोत्तर याने संवाद रूप में है । मुख्यत: अर्जुन प्रश्न पूछते हैं और भगवान उत्तर देते हैं ।  
 
५. सम्पूर्ण गीता प्रश्नोत्तर याने संवाद रूप में है । मुख्यत: अर्जुन प्रश्न पूछते हैं और भगवान उत्तर देते हैं ।  
६. कुरुक्षेत्र की रणभूमी में हुए कृष्ण और अर्जुन के संवाद का वृत्त संजय धृतराष्ट्र को बताते haiहैं । अंतिम श्लोक भी संजय द्वारा ध्रुतराष्ट्र को किया गया विश्लेषण है । गीता में धृतराष्ट्र के नाम से १ श्लोक, संजय के नाम से ४० श्लोक हैं । शेष ६५९ श्लोक भगवान और अर्जुन के बीच संवाद के हैं ।  
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६. कुरुक्षेत्र की रणभूमि में हुए कृष्ण और अर्जुन के संवाद का वृत्त संजय धृतराष्ट्र को बताते हैं । अंतिम श्लोक भी संजय द्वारा धृतराष्ट्र को किया गया विश्लेषण है । गीता में धृतराष्ट्र के नाम से १ श्लोक, संजय के नाम से ४० श्लोक हैं । शेष ६५९ श्लोक भगवान और अर्जुन के बीच संवाद के हैं ।  
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७. गीता में अठारह अध्यायों में ७०० श्लोक हैं ।  
 
७. गीता में अठारह अध्यायों में ७०० श्लोक हैं ।  
८. गीता के अठारह अध्याय हैं । हर अध्याय को योग कहा है । अध्यायों के नाम और श्लोकसंख्या निम्न है
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    १. अर्जुन विषाद – ४७ २. सांख्य – ७२ ३. कर्म – ४३ ४. ज्ञानकर्मसंन्यास – ४२   ५. कर्मसंन्यास – २९ ६. आत्मसंयम – ४७ ७. ज्ञानविज्ञान ३० ८. अक्षर ब्रह्म – २८ ९. राजविद्याराजगृह्य -३८ १०. विभूति - ४२ ११. विश्वरूपदर्शन – ५५ १२. भक्तियोग २० १३. क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभाग -३८ १४. गुणत्रयविभाग - २७ १५. पुरूषोत्तम – २० १६. दैवासुरसम्पदविभाग –२८ १७. श्रद्धात्रयविभाग – २८ १८. मोक्षसंन्यास – ७८  
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८. गीता के अठारह अध्याय हैं । हर अध्याय को योग कहा है । अध्यायों के नाम और श्लोकसंख्या निम्न है
९. वेद के मोटे मोटे ३ भाग हैं । ज्ञानकाण्ड, कर्मकांड और उपासनाकाण्ड । उपनिषद् ज्ञानकाण्ड हैं याने वेदों का ज्ञानात्मक हिस्सा हैं । वेद भारतीय ज्ञानधारा के सोत और सत्य ज्ञान के ग्रन्थ हैं । १२० उपनिषदों में से १० मुख्य उपनिषद हैं । इन सभी उपनिषदों का सार गीता है । कहा गया है सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनंदन: पार्थो वत्स: सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत्  । ।   उपनिषद् गायें हैं, इन गायों को दुहनेवाले स्वयं गोपालनंदन श्रीकृष्ण हैं । गायों का दूध गीता रूपी ज्ञान है । अर्जुन उसका दूध पीनेवाला बछडा है ।  
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१. अर्जुन विषाद – ४७  
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२. सांख्य – ७२  
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३. कर्म – ४३  
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४. ज्ञानकर्मसंन्यास – ४२
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५. कर्मसंन्यास – २९  
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६. आत्मसंयम – ४७  
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७. ज्ञानविज्ञान ३०  
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८. अक्षर ब्रह्म – २८  
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९. राजविद्याराजगृह्य -३८  
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१०. विभूति - ४२  
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११. विश्वरूपदर्शन – ५५  
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१२. भक्तियोग २०  
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१३. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग -३८  
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१४. गुणत्रयविभाग - २७  
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१५. पुरूषोत्तम – २०  
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१६. दैवासुरसम्पदविभाग –२८  
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१७. श्रद्धात्रयविभाग – २८  
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१८. मोक्षसंन्यास – ७८  
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वेद के मोटे मोटे ३ भाग हैं । ज्ञानकाण्ड, कर्मकांड और उपासनाकाण्ड । उपनिषद् ज्ञानकाण्ड हैं याने वेदों का ज्ञानात्मक हिस्सा हैं । वेद भारतीय ज्ञानधारा के सोत और सत्य ज्ञान के ग्रन्थ हैं । १२० उपनिषदों में से १० मुख्य उपनिषद हैं । इन सभी उपनिषदों का सार गीता है ।  
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कहा गया है:
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सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनंदन: ।  
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पार्थो वत्स: सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत्  ।।
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उपनिषद् गायें हैं, इन गायों को दुहनेवाले स्वयं गोपालनंदन श्रीकृष्ण हैं । गायों का दूध गीता रूपी ज्ञान है । अर्जुन उसका दूध पीनेवाला बछडा है ।  
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१०. गीता ब्रह्मविद्या का ग्रन्थ है । ब्रह्म को जानने की विद्या । ब्रह्म याने जिसमें से यह सारी सृष्टि निर्माण हुई है और जिसमें यह फिर से विलीन होनेवाली है उसे जानने की यह विद्या है । इस सृष्टि के मूल तत्व को तथा सृष्टि के साथ हमारा व्यवहार कैसा हो यह जानने के लिए उपयोगी यह ग्रन्थ है ।
 
१०. गीता ब्रह्मविद्या का ग्रन्थ है । ब्रह्म को जानने की विद्या । ब्रह्म याने जिसमें से यह सारी सृष्टि निर्माण हुई है और जिसमें यह फिर से विलीन होनेवाली है उसे जानने की यह विद्या है । इस सृष्टि के मूल तत्व को तथा सृष्टि के साथ हमारा व्यवहार कैसा हो यह जानने के लिए उपयोगी यह ग्रन्थ है ।
 
११. गीता प्रस्थानत्रयी के तीन ग्रंथों में से एक है । प्रस्थानत्रयी याने तीन प्रस्थान । प्रस्थान याने प्राराम्भाबिन्दू, विचारा यात्रा के मूल ग्रन्थ । ये हैं – पहला ब्रह्मसूत्र दूसरा उपनिषद् और तीसरा गीता । भारत में किसी भी तत्वचिंतक आचार्य को अपने मत की प्रतिष्ठा के लिए इन तीन ग्रंथोंद्वारा उसे प्रमाणित करना पड़ता है । सैद्धांतिक साहित्य के क्षेत्र में गीता इसीलिये महत्वपूर्ण है ।
 
११. गीता प्रस्थानत्रयी के तीन ग्रंथों में से एक है । प्रस्थानत्रयी याने तीन प्रस्थान । प्रस्थान याने प्राराम्भाबिन्दू, विचारा यात्रा के मूल ग्रन्थ । ये हैं – पहला ब्रह्मसूत्र दूसरा उपनिषद् और तीसरा गीता । भारत में किसी भी तत्वचिंतक आचार्य को अपने मत की प्रतिष्ठा के लिए इन तीन ग्रंथोंद्वारा उसे प्रमाणित करना पड़ता है । सैद्धांतिक साहित्य के क्षेत्र में गीता इसीलिये महत्वपूर्ण है ।
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