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=== उपवेद ===
=== उपवेद ===
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: समाज जीवन के लिए व्यावहारिक दृष्टी से अत्यंत आवश्यक विषयोंके शास्त्रों को उपवेद में सम्मिलित किया है । जैसे शरीर और प्राण स्वस्थ बनें रहें और अस्वस्थ हुए हों तो स्वस्थ हो जाएँ इस हेतु से आयुर्वेद बनाया गया है । दुष्टों को दंड देने और सज्जनों की रक्षा करने के लिए शस्त्र सम्पादन और संचालन की क्षमता के विकास के लिए तथा युद्ध कौशल के लिए है धनुर्वेद । नृत्य, संगीतौर नाट्य तथा इनसे सम्बंधित सभी विषयों के लिए गांधर्ववेद । अन्न, वस्त्र, भवन और जीवन की अन्य सभी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए शिल्पशास्त्र/अर्थशास्त्र ।
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समाज जीवन के लिए व्यावहारिक दृष्टी से अत्यंत आवश्यक विषयोंके शास्त्रों को उपवेद में सम्मिलित किया है । जैसे शरीर और प्राण स्वस्थ बनें रहें और अस्वस्थ हुए हों तो स्वस्थ हो जाएँ इस हेतु से आयुर्वेद बनाया गया है । दुष्टों को दंड देने और सज्जनों की रक्षा करने के लिए शस्त्र सम्पादन और संचालन की क्षमता के विकास के लिए तथा युद्ध कौशल के लिए है धनुर्वेद । नृत्य, संगीतौर नाट्य तथा इनसे सम्बंधित सभी विषयों के लिए गांधर्ववेद । अन्न, वस्त्र, भवन और जीवन की अन्य सभी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए शिल्पशास्त्र/अर्थशास्त्र ।
वेदांग : वेदों के सम्यक उच्चारण के लिए शीक्षा, यज्ञ की विधि और कर्मकांड के ज्ञान हेतु कल्प, शब्दों की अर्थपूर्ण और नियमबद्ध रचना के ज्ञान हेतु व्याकरण, शब्द व्युत्पत्ति और नए शब्दों के निर्माण के लिए निरुक्त, पद्यरचनाओं के छंदबद्ध गायन के लिए छंद और अनुष्ठानों के उचित कालनिर्णय के लये ज्योतिष ऐसे छ: वेदांगों की रचना की गयी है । जिस प्रकार से शरीर के महत्वपूर्ण अंग होते हैं वैसे ही यह वेद के अंग हैं ऐसा उनका महत्त्व है इस कारण इन्हें वेदांग कहा गया है ।
वेदांग : वेदों के सम्यक उच्चारण के लिए शीक्षा, यज्ञ की विधि और कर्मकांड के ज्ञान हेतु कल्प, शब्दों की अर्थपूर्ण और नियमबद्ध रचना के ज्ञान हेतु व्याकरण, शब्द व्युत्पत्ति और नए शब्दों के निर्माण के लिए निरुक्त, पद्यरचनाओं के छंदबद्ध गायन के लिए छंद और अनुष्ठानों के उचित कालनिर्णय के लये ज्योतिष ऐसे छ: वेदांगों की रचना की गयी है । जिस प्रकार से शरीर के महत्वपूर्ण अंग होते हैं वैसे ही यह वेद के अंग हैं ऐसा उनका महत्त्व है इस कारण इन्हें वेदांग कहा गया है ।
शब्दशात्रम् मुखं ज्योतिषं चक्षुषी श्रोत्रमुक्तन् निरुक्तं च कल्प: करौ । या तु शिक्षस्य वेदस्य सा नासिका पादपद्मद्वयम्छंद आद्यैर्बुधै: । ।
शब्दशात्रम् मुखं ज्योतिषं चक्षुषी श्रोत्रमुक्तन् निरुक्तं च कल्प: करौ । या तु शिक्षस्य वेदस्य सा नासिका पादपद्मद्वयम्छंद आद्यैर्बुधै: । ।