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सुधार जारि
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== स्नान विधि ==
 
== स्नान विधि ==
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=== तीर्थ स्नान ===
    
== स्नान की आवश्यकता ==
 
== स्नान की आवश्यकता ==
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== स्नान का महत्व ==
 
== स्नान का महत्व ==
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स्नान करनेमें सर्वप्रथम ध्यान देनेकी बात है कि स्नानसे शरीरको शुद्ध करना है, अतः स्नान भी शुद्ध जल एवं शुद्ध पात्रमें रखे जलसे ही करना चाहिये।<blockquote>शुद्धोदकेन स्नात्वा नित्यकर्म समारभेत्॥</blockquote>आदि शास्त्रीय वाक्य स्पष्ट ही हैं। गंगादि पुण्यतोया नदियोंमें स्नान करना उत्तम माना गया है, तडागका मध्यम तथा घरका स्नान निम्न कोटिका है। सुधार लें अथवा समाजका सहयोग लें। अन्यथा स्वर्गरूपी गृह परागमन शिविर बनकर रह जायगा। पुरुष तो वृक्षके नीचे रहकर भी जी लेगा, पर स्त्रीका सुरक्षित आश्रय हमेशाके लिये नष्ट हो जायगा। इससे गृहणी गर्हित होगी, सामाजिक ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो जायगा। अत: मर्यादामें रहकर गृहस्थाश्रम व्यवस्थाको आँच न आने दें। नारी ही इसकी मूलभित्ति और आधारशिला है।<blockquote>उत्तमं तु नदीस्नानं तडागं मध्यम तथा। कनिष्ठं कूपस्नानं भाण्डस्नानं वृथा वृथा ॥</blockquote>स्नानसे पूर्व संकल्प तथा किसी नदी आदिपर स्नानके समय स्नानांग-तर्पण करनेका भी विधान है।
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स्नानाङ्गतर्पणं विद्वान् कदाचिन्नैव हापयेत्।
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जल सृष्टिका प्रथम तत्त्व है और जलमें सभी देवताओंका भी निवास है-
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अपां मध्ये स्थिता देवा सर्वमप्सु प्रतिष्ठितम।
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तथापि स्नानसे पूर्व जलमें जलाधिपति वरुण, गंगा-यमुना आदि नदियोंका आवाहन कर लेना चाहिये। गंगाजीके नन्दिनी-नलिनी आदि नामोंका स्मरणकर स्नान करनेपर उस जलमें स्वयं गंगाजीका ही वास होता है, ऐसा स्वयं भगवती गंगाजीका कथन है<blockquote>नन्दिनी नलिनी सीता मालती च मलापहा। विष्णुपादाब्जसम्भूता गङ्गा त्रिपथगामिनी॥</blockquote><blockquote>भागीरथी भोगवती जाह्नवी त्रिदशेश्वरी।द्वादशैतानि नामानि यत्र यत्र जलाशये ॥</blockquote><blockquote>स्नानोद्यतः पठेजातु तत्र तत्र वसाम्यहम्।</blockquote>सृष्टिका निर्माण स्वयं सर्वशक्तिमान् ईश्वर ने मायाके द्वारा किया है। अत: मायामय जगत्की नश्वर एवं अपवित्र वस्तुका सम्पर्क शरीर अथवा शरीरके किसी तत्त्वसे हो जाय तो उसे अपवित्र माना जाता है। जिसकी शुद्धिहेतु सामान्य विधान स्नान ही है।
    
== स्नान के भेद ==
 
== स्नान के भेद ==
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स्नानकी विधि-उषा की लालीसे पहले ही स्नान करना उत्तम माना गया है । इससे प्राजापत्यका फल प्राप्त होता है । तेल लगाकर तथा देहको मल-मलकर नदीमें नहाना मना है। अतः नदीसे बाहर तटपर ही देहहाथ मलकर नहा ले, तब नदीमें गोता लगाये। शास्त्रोंने इसे 'मलापकर्षण' स्नान कहा है। यह अमन्त्रक होता है। यह स्नान स्वास्थ्य और शुचिता दोनोंके लिये आवश्यक है। देहमें मल रह जानेसे शुचितामें कमी आ जाती है और रोमछिद्रोंके न खुलनेसे स्वास्थ्य में भी अवरोध हो जाता है। इसलिये मोटे कपड़ेसे प्रत्येक अङ्गको खूब रगड़-रगड़कर तटपर नहा लेना चाहिये। निवीती होकर बेसन आदिसे यज्ञोपवीत भी स्वच्छ कर ले ।
 
स्नानकी विधि-उषा की लालीसे पहले ही स्नान करना उत्तम माना गया है । इससे प्राजापत्यका फल प्राप्त होता है । तेल लगाकर तथा देहको मल-मलकर नदीमें नहाना मना है। अतः नदीसे बाहर तटपर ही देहहाथ मलकर नहा ले, तब नदीमें गोता लगाये। शास्त्रोंने इसे 'मलापकर्षण' स्नान कहा है। यह अमन्त्रक होता है। यह स्नान स्वास्थ्य और शुचिता दोनोंके लिये आवश्यक है। देहमें मल रह जानेसे शुचितामें कमी आ जाती है और रोमछिद्रोंके न खुलनेसे स्वास्थ्य में भी अवरोध हो जाता है। इसलिये मोटे कपड़ेसे प्रत्येक अङ्गको खूब रगड़-रगड़कर तटपर नहा लेना चाहिये। निवीती होकर बेसन आदिसे यज्ञोपवीत भी स्वच्छ कर ले ।
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==== शूद्रों के हाथ से स्नान निषेध ====
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==== स्नान के अंग ====
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==== विशेष स्नान ====
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==== स्नान के समय में मन्त्र ====
    
== स्नान के लाभ ==
 
== स्नान के लाभ ==
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स्नान करते ही मनुष्य पवित्रता और आनन्द का अनुभव करने लगता है। भौतिक लाभ की दृष्टि से आयुर्वेद शास्त्र सुश्रुत संहिता में इस प्रकार लिखा है-<blockquote>निद्रादाहश्रम हरं स्वेद कण्डू तृषापहम् । हृद्य मल हरं श्रेष्ठं सर्वेन्द्रिय विशोधनम् ॥</blockquote><blockquote>तन्द्रायाथोपशमनं पुष्टिदं पुसत्व वर्द्धनम् । रक्तप्रसादनं चापि स्नान मग्नेश्च दीपनम् ॥ (सु०चि०स्थान ११७।११८)</blockquote>अर्थात् स्नान से निद्रा, दाह, थकावट, पसीना, तथा प्यास दूर होती है। स्नान हृदय को हितकर मैल को दूर करने में श्रेष्ठ तथा समस्त इन्द्रियों का शोधन करने वाला होता है। तन्द्रा (आलस्य अथवा ऊंघना ) कष्ट निवारक, पुष्टिकर्ता, पुरुषत्ववर्द्धक, रक्त शोधक और जठराग्नि को प्रदीप्त करने वाला है । चरक में भी लिखा है कि-<blockquote>दौर्गन्ध्यं गौरवं तन्द्रा कण्डूमलमरोचकम् । स्वेदं वीभत्सतां हन्ति शरीर परिमार्जनम् ।।</blockquote>अर्थात् स्नान देह दुर्गन्ध नाशक, शरीर के भारीपन को दूर करने वाला, तन्द्रा ( शरीर में निद्रावत् क्लान्ति होना ), खुजली, मैल, मन की अरुचि तथा पसीना एवं देह की कुरूपता को नष्ट करता है। जो लोग ढोंग समझकर अथवा आलस्यवश नित्य स्नान नहीं करते उन्हें स्नान के गुण व लाभ समझ लेने चाहिये और नित्य प्रातः स्नान अवश्य करना चाहिये ।
    
== उद्धरण ==
 
== उद्धरण ==
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