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=== सांपदा (दसिया) का डोरा व्रत ===
 
=== सांपदा (दसिया) का डोरा व्रत ===
 
होली से दूसरे दिन स्त्रियां दसिया का डोरा बांधे और वैशाख मास में कोई शुभ दिन देखकर यह डोरा खोलें और व्रत करें, इस दिन सांपदा की कहानी सुनें और इस दिन हलवा व पूरी का भोजन बनायें। रानी फूलों की माला बनाकर बाजार में बेचने जाती। एक दिन रानी ने कुछ स्त्रियों को सांपदा माता की कथा व व्रत करते देखा, रानी ने भी कथा सुन डोरा धारण किया। इसी दिन नगर के राजा ने ढिंढोरा पिटवाया कि जो भी घोड़े की उल्टी जीन पर चढ़कर निशाना लगायेगा उससे मैं अपनी बेटी का विवाह कर दूंगा। राजा नल का विवाह राजा की पुत्री से हो गया। एक दिन राजा-रानी चौसर खेल रहे थे तभी राजा को अपनी रानी की याद आयी । दुसरे ही दिन राजा  नई रानी व सिपाहियों के साथ बाग़ में पहुंचकर पहली रानी को साथ ले अपने मित्र के महल महल पहुंचा तथा उसने अपने मित्र की खूंटी पर टंगा हार दिखाया । अपनी बहन के बाग़ में आकर घड़ा निकाला वह हीरों से भरा था । राजा वह घड़ा अपनी बहन को दे चल दिया । राह में तालाब के किनारे उन्हें तीसरा घड़ा मिला । जब राजा अपने राज्य में पहुंचा तो वहां पहले की ही तरह खुशहाली थी तथा सम्पूर्ण खजाने पहले के जैसे ही भरे पड़े थे । माँ साम्पदा ने जिस प्रकार राजा का भला किया वैसे सब का करें ।
 
होली से दूसरे दिन स्त्रियां दसिया का डोरा बांधे और वैशाख मास में कोई शुभ दिन देखकर यह डोरा खोलें और व्रत करें, इस दिन सांपदा की कहानी सुनें और इस दिन हलवा व पूरी का भोजन बनायें। रानी फूलों की माला बनाकर बाजार में बेचने जाती। एक दिन रानी ने कुछ स्त्रियों को सांपदा माता की कथा व व्रत करते देखा, रानी ने भी कथा सुन डोरा धारण किया। इसी दिन नगर के राजा ने ढिंढोरा पिटवाया कि जो भी घोड़े की उल्टी जीन पर चढ़कर निशाना लगायेगा उससे मैं अपनी बेटी का विवाह कर दूंगा। राजा नल का विवाह राजा की पुत्री से हो गया। एक दिन राजा-रानी चौसर खेल रहे थे तभी राजा को अपनी रानी की याद आयी । दुसरे ही दिन राजा  नई रानी व सिपाहियों के साथ बाग़ में पहुंचकर पहली रानी को साथ ले अपने मित्र के महल महल पहुंचा तथा उसने अपने मित्र की खूंटी पर टंगा हार दिखाया । अपनी बहन के बाग़ में आकर घड़ा निकाला वह हीरों से भरा था । राजा वह घड़ा अपनी बहन को दे चल दिया । राह में तालाब के किनारे उन्हें तीसरा घड़ा मिला । जब राजा अपने राज्य में पहुंचा तो वहां पहले की ही तरह खुशहाली थी तथा सम्पूर्ण खजाने पहले के जैसे ही भरे पड़े थे । माँ साम्पदा ने जिस प्रकार राजा का भला किया वैसे सब का करें ।
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==== सांपदा (दसिया) व्रत की उद्यापन विधि- ====
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इस व्रत को आठ वर्ष तक करें तथा फिर उद्यापन कर दें। जिस दिन उद्यापन करें उस दिन व्रत धारण करने वाली स्त्री सोलह श्रृंगार कर 16 जगह 4-4 पूरी तथा साड़ी व रुपये रखे, तत्पश्चात् जल हाथ में लेकर थाली के चारों और हाथ की परिक्रमा कर अपनी सासू मां के पैर छूकर इसी दिन 16 ब्राह्मणियों को भोजन कराकर यथाशक्ति दक्षिणा देकर विदा करें।
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=== बुड्ढा  बसौड़ा ===
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वैशाख मास लगते ही सोमवार तथा बुधवार या शुक्रवार के दिन सुबह एक थाली में एक दिन पहले बने भात, रोटी, पूरी, दही, चीनी, जल का गिलास, रोली, चावल, गोली, मूंग की दाल छिलका वाली, हल्दी, धूपबत्ती एक गूलरी की एक माला, मोठ, बाजरा आदि सामान रखें। उस थाली में घर के सभी प्राणियों का हाथ लगवाकर किसी घर के व्यक्ति द्वारा शीतला माता पर भेज दें। वह व्यक्ति इस सब सामान को शीतला की पूजा करके चढ़ा दे। एक कलश पानी शीतला मां पर तथा एक कलश चौराहे पर चढ़ा दें। मोठ, बाजरा और रुपये रखकर बायना निकालें और अपनी सासू मां को पैर छूकर दें। इस दिन शीतला मां की पूजा करें व ठण्डा खाना खायें।
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=== कश्यपावतार ===
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यह त्यौहार वैशाख मास की एकम को मनाया जाता है। इस दिन भगवान कश्यप की पूजा करनी चाहिए। सर्वप्रथम भगवान कश्यपजी को स्नान कराके वस्त्रादि पहनाकर उन्हें भोग लगायें। भोग लगाने के उपरान्त आचमन कराकर, फूल, धूप, दीप, चन्दन आदि चढ़ाने से भगवान कश्यप हर कार्य में सहायता करते हैं और मनोकामनाओं को पूरा करते हैं। कश्यपावतार की कथा-एक समय देवताओं को असुरों ने हराकर इन्द्र सहित सभी देवताओं को इन्द्रलोक भगा दिया। सभी देवगण भगवान विष्णु के समक्ष पहुंचकर प्रार्थना करने लगे। तब भगवान बोले-“हे देवगणों! तुम क्षीर सागर का मंथन करो। उसमें से तुम्हें रत्न व अमृत की प्राप्ति होगी। उस अमृत को देवता पी लेना फिर असुर तुम्हें हरा नहीं सकेंगे।" देवगण भगवान से पूछने लगे,
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