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| यथा पुत्रास्तथा पौरा द्रष्टव्यास्ते न संशयः। भक्तिश्चैषु न कर्तव्या व्यवहारप्रदर्शने।। 12.68.29 (69.27) | | यथा पुत्रास्तथा पौरा द्रष्टव्यास्ते न संशयः। भक्तिश्चैषु न कर्तव्या व्यवहारप्रदर्शने।। 12.68.29 (69.27) |
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− | श्रोतुं चैव न्यसेद्राजा प्राज्ञान्सर्वार्थदर्शिनः। व्यवहारेषु सततं तत्र राज्यं प्रतिष्ठितम्।। 30 (28) | + | श्रोतुं चैव न्यसेद्राजा प्राज्ञान्सर्वार्थदर्शिनः। व्यवहारेषु सततं तत्र राज्यं प्रतिष्ठितम्।। 30 (28)<ref name=":4" /> |
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| + | ततः साक्षिबलं साधु द्वैधवादकृतं भवेत्। असाक्षिकमनाथं वा परीक्ष्यं तद्विशेषतः।। 12.85.19<ref name=":8">Mahabharata, Shanti Parva, [https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A5%8D-12-%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5-085 Adhyaya 85]</ref> |
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| Qualification | | Qualification |
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| * '''Infrastructure''' | | * '''Infrastructure''' |
| विशालान्राजमार्गांश्च कारयेत नराधिपः। प्रपाश्च विपणीश्चैव यथोद्देशं समादिशेत्।। 12.68.58 (69.53)<ref name=":4" /> | | विशालान्राजमार्गांश्च कारयेत नराधिपः। प्रपाश्च विपणीश्चैव यथोद्देशं समादिशेत्।। 12.68.58 (69.53)<ref name=":4" /> |
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| + | While establishing a city, the Raja must develop the following |
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| + | भाण्डागारायुधागारं प्रयत्नेनाभिवर्धयेत्। निचयान्वर्धयेत्सर्वांस्तथा यन्त्रकटंकटान्।। 12.86.12<ref name=":9">Mahabharata, Shanti Parva, [https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A5%8D-12-%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5-086 Adhyaya 86]</ref> |
| * '''36 Qualities of a Raja''' | | * '''36 Qualities of a Raja''' |
| चरेद्धर्मानकटुको मुञ्चेत्स्नेहं न चास्तिकः। अनृशंसश्चरेदर्थं चरेत्काममनुद्धतः।। 12.70.3 | | चरेद्धर्मानकटुको मुञ्चेत्स्नेहं न चास्तिकः। अनृशंसश्चरेदर्थं चरेत्काममनुद्धतः।। 12.70.3 |
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| संविनीयमदक्रोधौ मानमीर्ष्यां च निर्वृताः। नित्यं पञ्चोपधातीतैर्मन्त्रयेत्सह मन्त्रिभिः।। 52<ref name=":7" /> | | संविनीयमदक्रोधौ मानमीर्ष्यां च निर्वृताः। नित्यं पञ्चोपधातीतैर्मन्त्रयेत्सह मन्त्रिभिः।। 52<ref name=":7" /> |
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| + | Mantri Mandal |
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| + | चतुरो ब्राह्मणान्वैद्यान्प्रगल्भान्स्नातकाञ्शुचीन्। क्षत्रियान्दश चाष्टौ च बलिनः शस्त्रपाणिनः।। 12.85.7 |
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| + | वैश्यान्वित्तेन संपन्नानेकविंशतिसङ्ख्यया। त्रींश्च शूद्रान्विनीतांश्च शुचीन्कर्मणि पूर्वके।। 8 |
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| + | अष्टाभिश्च गुणैर्युक्तं सूतं पौराणिकं तथा। पञ्चाशद्वर्षवयसं प्रगल्भमनसूयकम्।। 9 |
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| + | श्रुतिस्मृतिसमायुक्तं विनीतं समदर्शिनम्। कार्ये विवदमानानां शक्तमर्थेष्वलोलुपम्।। 10 |
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| + | वर्जितं चैव व्यसनैः सुघोरैः सप्तभिर्भृशम्। अष्टानां मन्त्रिणां मध्ये मन्त्रं राजोपधारयेत्।। 11<ref name=":8" /> |
| + | |
| + | Qualities of an Amatya and Senapati |
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| + | धर्मशास्त्रार्थतत्त्वज्ञः सांधिविग्रहिको भवेत्। मतिमान्धृतिमान्ह्रीमान्रहस्यविनिगूहिता।। 12.85.30 |
| + | |
| + | कुलीनः सत्वसंपन्नः शुक्लोऽमात्यः प्रशस्यते। एतैरेव गुणैर्युक्तस्तथा सेनापतिर्भवेत्।। 31<ref name=":8" /> |
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| + | Additional specific qualities required in a Senapati |
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| + | व्यूहयन्त्रायुधानां च तत्त्वज्ञो विक्रमान्वितः। वर्षशीतोष्णवातानां सहिष्णुः पररन्ध्रवित्।। 12.85.32<ref name=":8" /> |
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| + | Where should a Raja stay ? |
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| + | यत्पुरं दुर्गसंपन्नं धान्यायुधसमन्वितम्। दृढप्राकारपरिखं हस्त्यश्वरथसंकुलम्।। 12.86.6 |
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| + | विद्वांसः शिल्पिनो यत्र निचयाश्च सुसंचिताः। धार्मिकश्च जनो यत्र दाक्ष्यमुत्तममास्थितः।। 7 |
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| + | ऊर्जस्विनरनागाश्वं चत्वरापणशोभितम्। प्रसिद्धव्यवहारं च प्रशान्तमकुतोभयम्।। 8 |
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| + | सुप्रभं सानुनादं च सुप्रशस्तनिवेशनम्। शूराढ्यं प्राज्ञसंपूर्णं ब्रह्मघोषानुनादितम्।। 9 |
| + | |
| + | समाजोत्सवसंपन्नं सदापूजितदैवतम्। वश्यामात्यबलो राजा तत्पुरं स्वयमाविशेत्।। 10<ref name=":9" /> |
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| + | A Raja must protect |
| + | |
| + | आशयाश्चोदपानाश्च प्रभूतसलिलाकराः। निरोद्धव्याः सदा राज्ञा क्षीरिणश्च महीरुहाः।। 12.86.15<ref name=":9" /> |
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| + | Governance principles |
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| + | बाह्यमाभ्यन्तरं चैव पौरजानपदं तथा। चारैः सुविदितं कृत्वा ततः कर्म प्रयोजयेत्।। 12.86.19 |
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| + | चरान्मन्त्रं च कोशं च दण्डं चैव विशेषतः। अनुतिष्ठेत्स्वयं राजा सर्वं ह्यत्र प्रतिष्ठितम्।। 20<ref name=":9" /> |
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| == References == | | == References == |
| <references /> | | <references /> |