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== परिचय ==
 
== परिचय ==
भारतीय महर्षियों ने शरीर को चिरकाल तक स्वस्थ एवं कार्यकरने योग्य रखने के लिये व्यायाम पद्धति को दिनचर्या का अंग बनाया एवं मनुष्य के प्राण हृदय मन आदि आभ्यन्तरिक अवयवों को दृढ एवं पुष्ट बनाने के लिये प्राणायाम का भी आविष्कार किया।महर्षि पतञ्जलि ने अपने योगशास्त्र में अष्टांग योग का साधन मनुष्य के सर्वांगपूर्ण विकास के लिये बतलाया है।महर्षि पतञ्जलि के अनुसार आठ अंग इस प्रकार हैं-<blockquote>यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावङ्गानि ॥पत०यो०सू०(२/२९)॥</blockquote>यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि यह योग के आठ अंग हैं। इनमें से पहले चार साधनों को बहिरंग योग साधन और अनन्तर चार साधनों को अन्तरंग योग साधन कहलाता है
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भारतीय महर्षियों ने शरीर को चिरकाल तक स्वस्थ एवं कार्यकरने योग्य रखने के लिये व्यायाम पद्धति को दिनचर्या का अंग बनाया एवं मनुष्य के प्राण हृदय मन आदि आभ्यन्तरिक अवयवों को दृढ एवं पुष्ट बनाने के लिये प्राणायाम का भी आविष्कार किया।महर्षि पतञ्जलि ने अपने योगशास्त्र में अष्टांग योग का साधन मनुष्य के सर्वांगपूर्ण विकास के लिये बतलाया है।महर्षि पतञ्जलि के अनुसार आठ अंग इस प्रकार हैं-<blockquote>यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावङ्गानि ॥पत०यो०सू०(२/२९)॥</blockquote>यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि यह योग के आठ अंग हैं। इनमें से पहले चार साधनों को बहिरंग योग साधन और अनन्तर चार साधनों को अन्तरंग योग साधन कहलाता है जो व्यक्ति योग के इन आठों अंगों को सिद्ध कर लेता है वह सभी क्लेशों से छूट जाता है।
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जो व्यक्ति योग के इन आठों अंगों को सिद्ध कर लेता है वह सभी क्लेशों से छूट जाता है। अष्टांग योग के क्रम में चतुर्थ अंग प्राणायाम है। प्राणायाम की परिभाषा करते हुये महर्षि पतञ्जलि कहते हैं-<blockquote>तस्मिन् सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेदः प्राणायामः॥पत०यो०सू०(२/४९)॥</blockquote>प्रणीत योग सूत्र के अनुसारप्राणायाम योग के आठ अंगों में से एक है-
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== परिभाषा ==
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अष्टांग योग के क्रम में चतुर्थ अंग प्राणायाम है। प्राणायाम की परिभाषा करते हुये महर्षि पतञ्जलि कहते हैं-<blockquote>तस्मिन् सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेदः प्राणायामः॥पत०यो०सू०(२/४९)॥</blockquote>प्रणीत योग सूत्र के अनुसारप्राणायाम योग के आठ अंगों में से एक है-
    
== प्राणायाम की उपयोगिता ==
 
== प्राणायाम की उपयोगिता ==
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प्राणायाम इस पद में दो शब्द मिले हुये हैं-प्राण और आयाम। प्राण अर्थात् श्वास(सांस लेना) और प्रश्वास(सांस छोडना)।इसी क्रिया के द्वारा शरीर में  प्राण शक्ति स्थिर रहती है। इसलिये इन दोनों क्रियाओं को मिलाकर प्राण संज्ञा दी गई है। और आयाम कहते हैं  वश में करने को अथवा फैलाने को। संयुक्त प्राणायाम शब्द का अर्थ हुआ-प्राण को वश में करना अथवा उसको फैलाना।अर्थात्  श्वास-प्रश्वास को अपने इच्छानुसार वश में करके,अव्यवस्थित गति का अवरोध करके, उसको फैलाना (उसकी अवधि को बढाना)।अर्थात् चाहे जितने काल तक हम प्राण को अपने अन्दर या बाहर रख सकें। इस क्रिया से प्राणशक्ति अपने वश में हो जाती है। इसीलिये योगाभ्यास में प्राणायाम का विशेष महत्व है।  
 
प्राणायाम इस पद में दो शब्द मिले हुये हैं-प्राण और आयाम। प्राण अर्थात् श्वास(सांस लेना) और प्रश्वास(सांस छोडना)।इसी क्रिया के द्वारा शरीर में  प्राण शक्ति स्थिर रहती है। इसलिये इन दोनों क्रियाओं को मिलाकर प्राण संज्ञा दी गई है। और आयाम कहते हैं  वश में करने को अथवा फैलाने को। संयुक्त प्राणायाम शब्द का अर्थ हुआ-प्राण को वश में करना अथवा उसको फैलाना।अर्थात्  श्वास-प्रश्वास को अपने इच्छानुसार वश में करके,अव्यवस्थित गति का अवरोध करके, उसको फैलाना (उसकी अवधि को बढाना)।अर्थात् चाहे जितने काल तक हम प्राण को अपने अन्दर या बाहर रख सकें। इस क्रिया से प्राणशक्ति अपने वश में हो जाती है। इसीलिये योगाभ्यास में प्राणायाम का विशेष महत्व है।  
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=== प्राणायाम का मूल स्वरूप ===
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== प्राणायाम का मूल स्वरूप ==
शारीरिक दृष्टिसे प्राणायाम में केवल श्वासोपयोगी अंगों का ही सञ्चालन होता है। किन्तु प्राणायाम मात्र श्वास-प्रश्वास मात्र नहीं अपितु विज्ञान सम्मत मानसोपचार प्रक्रिया भी है। अपनी ओग दृष्टि से विश्लेषण कर आप्त पुरुषों ने प्राण को पॉंच उपविभागों तथा पॉंच उपप्राणों में विभाजित किया है। ऐसा माना जाता है कि प्राण शरीर प्राणमय कोष इन्हीं दस के सम्मिश्रण से बनता है।<ref>ब्रह्मवर्चस,(२००७) प्राणायाम से आधि व्याधि निवरण, मथुरा: युग निर्माण योजना प्रेस अध्याय-०५ (पृ०५७)।</ref>
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शारीरिक दृष्टिसे प्राणायाम में केवल श्वासोपयोगी अंगों का ही सञ्चालन होता है। किन्तु प्राणायाम मात्र श्वास-प्रश्वास मात्र नहीं अपितु विज्ञान सम्मत मानसोपचार प्रक्रिया भी है। अपनी ओग दृष्टि से विश्लेषण कर आप्त पुरुषों ने प्राण को पॉंच उपविभागों तथा पॉंच उपप्राणों में विभाजित किया है। ऐसा माना जाता है कि प्राण शरीर प्राणमय कोष इन्हीं दस के सम्मिश्रण से बनता है।<ref>ब्रह्मवर्चस,(२००७) प्राणायाम से आधि-व्याधि निवारण, मथुरा: युग निर्माण योजना प्रेस अध्याय-०५ (पृ०५७)।</ref>
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पॉंच मुख्य प्राण हैं-प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान।तथा उपप्राण भी पॉंच हैं- देवदत्त, कृकल, कूर्म, नाग और धनञ्जय नाम दिया गया है।शरीर क्षेत्र में इन प्राणों के क्या-क्या कार्य हैं।इसका वर्णन आयुर्वेद शास्त्र में इस प्रकार किया गया है-
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पॉंच मुख्य प्राण हैं-प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान तथा उपप्राण भी पॉंच हैं- देवदत्त, कृकल, कूर्म, नाग और धनञ्जय नाम दिया गया है।शरीर क्षेत्र में इन प्राणों के क्या-क्या कार्य हैं।इसका वर्णन आयुर्वेद शास्त्र में इस प्रकार किया गया है-
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(१) प्राण-प्रकर्षेण नयति वा बलं ददाति आकर्षति च शक्तिः स प्राणः।
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(१) प्राण-प्रकर्षेण नयति वा बलं ददाति आकर्षति च शक्तिः यः प्राणः।जो वायु मुख और नासिका से लेकर हृदय तक शरीर का व्यापार चलाता है, उसको प्राणवायु कहते हैं । इसका मुख्य कार्य फेफड़ों में रक्तशुद्धि करना है और यह हृदय प्रदेश में रहती है।
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(२)अपान-अपनयति प्रकर्षेण मलं निस्सारयति अपकर्षति च शक्तिमिति अपानः।
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(२)अपान-अपनयति प्रकर्षेण मलं निस्सारयति अपकर्षति च शक्तिमिति अपानः। यह वायु नाभि से लेकर नीचे पैरों के तलवों तक सञ्चार करके शरीर का व्यापार चलाता है । मलमूत्रविसर्जन और स्त्रियों में गर्भ को भी नीचे यही सरकाता है।
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(३)व्यान-व्याप्नोति शरीरं यः स व्यानः।
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(३)व्यान-व्याप्नोति शरीरं यः स व्यानः। व्यान-यह वायु सारे शरीर सञ्चार किया करता है।
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(४)उदान-उन्नयति यः उद् आनयति वा व्यानः।
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(४)उदान-उन्नयति यः उद् आनयति वा व्यानः। यह वायु कंठ से लेकर ऊपर मस्तक तक सञ्चार करके मस्तिष्क में रस, पहुँचाता है। शरीर से प्राणोत्क्रमण भी इसी के द्वारा होता है।
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(५)समान-रस समं नयति सम्यक् प्रकारेण नयति इति समानः।
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(५)समान-रस समं नयति सम्यक् प्रकारेण नयति इति समानः। यह वायु हृदय के नीचे नाभि तक सञ्चार करके नादियों को, उनके आवश्यकतानुसार, रस पहुँचाता है ।जैसा कि कहा गया है-<blockquote>हृदि प्राणो गुदेऽपानः समानो नाभिमध्यगः । उदानः कण्ठदेशे तु व्यानः सर्वशरीरगः ॥</blockquote>हृदय में प्राण, गुदा(गुह्य) में अपान, नाभि मण्डल में समान,कण्ठदेश में व्यान और उदान सर्व शरीर में सञ्चार करती है।
    
==== प्राणायाम के भेद ====
 
==== प्राणायाम के भेद ====
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== उद्धरण ==
 
== उद्धरण ==
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<references />
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